UK ; भाजपा के बडे वादों को याद कर रही है जनता-

वादो के हिसाब से स्‍पीड धीमी है#त्रिवेंद्र सरकार की तुलना यूपी के मुख्‍यमंत्री से हो  रही है, जिस हिसाब से भाजपा ने उत्‍तराखण्‍ड में अपना विजन जनता के सामने रखा था, उस हिसाब से स्‍पीड धीमी है, क्या त्रिवेंद्र सरकार सड़क सहित मूलभूत ढांचे को समयबद्ध और नियोजित तरीके से विकसित कर पाएगी. सवाल इसलिए है कि अपने उत्तराखंड बनने के सोलह साल बाद भी 3745 गांव एक अदद सरकारी सड़क से महरूम हैं. इसके अलावा और भी बहुत कुछ है- मीडिया में छायी रिपोर्ट के अनुसार ; 

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपने विजन डॉक्यूमेंट में कईं वादे किए थे. जिनमें गरीब और मेधावी छात्रों को मुफ्त में लैपटाप, स्मार्टफोन और विश्वविद्यालयों फ्री वाईफाई देने का वादा किया गया था है.
बीजेपी के विजन डॉक्यूमेंट जारी कर करने के दौरान भाजपा नेता ओर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि केंद्र में भाजपा की सरकार है़, उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनेगी तो केंद्र के सहयोग से सभी वादे पूरे किए जाएंगे. अब उत्तराखंड में न सिर्फ भाजपा की सरकार बनी बल्की बंपर जीत भी मिली है. अब देखना होगा कि भाजपा सरकार अपने विजय डॉक्यूमेंट में किए गए वादों पूरा कर पाती है या नहीं या फिर कब तक वादे पूरे होते हैं. ये हैं भाजपा के वें पांच वादें जो चुनाव से पहले उन्होंने किए थे.
विजन डॉक्यूमेंट में गरीब और मेधावी छात्रों को लैपटॉप और मोबाइल देने का वादा किया गया है. साथ ही विश्वविद्यालयों में फ्री वाईफाई सुविधा देने की बात भी कही गई है. ऐसा माना जा रहा है कि युवा वर्ग ने भी भाजपा को जमकर वोट दिए हैं. अब देखना होगा कि छात्रों को कब तक लैपटॉप और स्मार्टफोन दिए जाते हैं. चुनाव से पूर्व गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का वादा भी भाजपा ने अपने विजन डॉक्यूमेंट में किया है. गैरसैंण को राजधानी बनाने का मुद्दा राज्य गठन के समय से ही चल रहा है. इस मुद्दे को लेकर लोगों ने उत्तराखंड बनाने का आंदोलन चलाया था. इसके बाद से कांग्रेस-भाजपा की सरकारें बनती रही, लेकिन गैरसैंण का सभी ने राजनीतिक इस्तेमाल ही किया. अब देखना होगा कि भाजपा सरकार इस वादे को पूरा करती है या नहीं.
विजन डॉक्यूमेंट में 100 दिनों के अंदर लोकपाल नियुक्त करने का वादा भी भाजपा ने किया था. लोकपाल को लेकर भी राजनीति ज्यादा होती रही है. इस मुद्दे को भाजपा सरकार निर्धारित समय सीमा में पूरा करती हैं या नहीं, देखना होगा.
उत्तराखंड को टूरिज्म हब बनाने और इको और मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने का वादा भाजपा ने किया है. इसके तहत पर्वतीय इलाकों में विरान पड़े घरों में पर्यटन सुविधाएं देकर होम स्टे जैसी योजनाओं को प्रभावित ढंग से लागू करने की बात कही गई है. नई पर्यटन नीति बनाकर पर्यटन विकास का वादा किया गया है. यह वादा पूरा होता है तो काफी लोगों को रोजगार मिल सकता है.
भाजपा ने अपने विजन डॉक्यूमेंट में 24 घंटे बिजली देने का वादा किया है. बेशक उत्तरप्रदेश के चुनव में बिजली बड़ा मुद्दा बना था, लेकिन उत्तराखंड में भी यह बड़ी मांग है.

वही दूसरी ओर
उत्तराखंड में एक अप्रैल से 6 हजार से ज्यादा गेस्ट टीचर बेरोजगार हो जाएंगे. 6 हजार अतिथि शिक्षकों की नौकरी जाने का मतलब है 6 हजार परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संसकट खड़ा हो सकता है. हालांकि मामला हाईकोर्ट में है, लेकिन मौजूदा सरकार अतिथि शिक्षाकों को लेकर क्या रुख अपनाती है, यह देखना होगा.
दरअसल उत्तराखंड में शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए हरीश सरकार ने सरकारी स्कूलों में 6214 अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की थी. लेकिए 1 अप्रैल से यही गेस्ट टीचर बेरोजगार होने जा रहे हैं, जिससे गेस्ट टीचर्स में काफी असंतोष है. रोजगार छिनने को लेकर गेस्ट टीचर्स में ही नहीं उनके परिवारों में भी काफी गुस्सा है.
दरअसल हरीश सरकार ने शिक्षा की दशा सुधारने के लिए स्कूलों में छात्रों के भविष्य को देखते हुए गेस्ट टीचरों की नियुक्ति तो की, लेकिन आजतक छात्रों के भविष्य सुधा रहे इन गेस्ट टीचरों का भविष्य अधर में लटका हुआ नजर आ रहा है.
हालांकि नैनीताल हाईकार्ट की एक बेंच ने गेस्ट टीचरों की नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया था. जिसके तहत कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि 31 मार्च तक ही गेस्ट टीचर स्कूलों में अपनी सेवाएं दे सकते हैं. कोर्ट के आदेश के सामने शिक्षा विभाग भी लाचार नजर आ रहा है और गेस्ट टीचरों को उनही के हाल पर छोड दिया है.
माध्यमिक शिक्षा निदेशक आरके कुंवर का कहना कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए गेस्ट टीचर की सेवाएं 31 मार्च के बाद समाप्त की जा रही हैं. आगे जो भी फैसला कोर्ट का होगा उसके हिसाब से विभाग आगे बढेगा. हालांकि गेस्ट टीचर्स का मामला अभी हाईकोर्ट की दो सदस्यीय बेंच के सामने विचाराधीन है. लेकिन क्या एक अप्रैल से आगे अतिथि शिक्षकों को राहत मिलेगी, यह देखना होगा.
एक तरफ 1 अप्रैल से गेस्ट टीचर कोर्ट के आदेश के बाद अपनी सेवाएं देना स्कूलों में बंद कर देंगे, वहीं दूसरी तरफ शिक्षकों के रियाटयरमेंट होने के चलते हाईस्कूल और इंटर कॉलेज में करीब 9000 हजार शिक्षकों के पद खाली हो जाएंगे. ऐसे में सवाल ये उठता है कि शिक्षा विभाग कैसे स्कूलों में कम समय में शिक्षक की कमी को पूरा करेगा.
ऐसा पहले पिछले साल भी गेस्ट टीचरों के सामने राष्ट्रपति शासन के दौरान यह नौबत आई थी. लेकिन बाद में सरकार आते ही 31 मार्च तक गेस्ट शिक्षकों की नियुक्ति के आदेश सरकार ने जारी कर दिए थे. लेकिन अब कोर्ट के आदेश के बाद सरकार और विभाग के पास इसको लेकर कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है, लेकिन मामले में खुद ही गेस्ट टीचर कोर्ट में डबल बेंच पर जाने की बात कर रहे हैं.
वहीं हरीश रावत सरकार में जब गेस्ट टीचर अपनी मांगों को लेकर लड़ रहे थे तो विपक्ष के नाते बीजेपी ने हरीश रावत की सरकार पर गेस्ट टीचरों के बहाने खूब हमले किए थे. लेकिन अब समय बदल गया है और सरकार बीजेपी की आ गई है. ऐसे में गेस्ट टीचरों को बीजेपी सरकार से काफी उम्मीदें हैं कि बीजेपी सरकार कोर्ट में उनकी लड़ाई लड़ेगी और उन्हें न्याय दिलाएगी.
गेस्ट टीचर एसोसिएशन के प्रांतीय महामंत्री कविंद्र कैंतुरा का कहना है कि सरकार ने अगर उनका साथ न दिया तो उनके सामने रोजी रोटी का संकट खाड़ा हो जाएगा. कैंतुरा ने कहा कि अगर गेस्ट टीचर्स को न्याय न मिला तो जल्दी उन्हें आंदोलने शुरू करना पड़ेगा.

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रचंड बहुमत के साथ उत्तराखंड की बागडोर संभाल ली है. उन्हें जनता की कसौटी पर खरा उतरने के लिए आर्थिक, सामाजिक और पार्टी की अंदरूनी चुनौतियों से गुजरना होगा. सवाल ये भी है कि क्या नए निजाम में बेलगाम अफसरशाही पर अंकुश लग पाएगा? अलबत्ता उत्तराखंड में जनाकांक्षाओं की पटरी पर त्रिवेंद्र और मोदी के डबल इंजन का बहुत बड़ा इम्तिहान है. सरकार के सामने अस्पतालों में डॉक्टर और स्कूलों में मास्टर भेजना बड़ी चुनौती है.
9वें मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ठीक वो बात कही जो उनके पहले हुए 8 शपथग्रहण के बाद हर मुख्यमंत्री ने कही थी. लेकिन उनमें कोई एक भी अपने आप को राज्य की अवधारणा की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया. लिहाजा डबल इंजन की नई सरकार से जनमानस को काफी उम्मीदें हैं. साथ ही कुछ चुनौतियां और सवाल भी हैं.
क्या त्रिवेंद्र सरकार सड़क सहित मूलभूत ढांचे को समयबद्ध और नियोजित तरीके से विकसित कर पाएगी. सवाल इसलिए है कि अपने उत्तराखंड बनने के सोलह साल बाद भी 3745 गांव एक अदद सरकारी सड़क से महरूम हैं.
क्या सूबे में बेलगाम रही अफसरशाही की कार्यशैली में कोई बदलाव हो पाएगा? याद दिला दें कि हाईकोर्ट ने पूर्व में अपने हुक्म की नाफरमानी पर एक मौजूदा अपर मुख्य सचिव को सस्पेंड कर दिया था और एक मौजूदा प्रमुख सचिव का मिजाज सही करने के लिए एक महीने ट्रेनिंग कराने के आदेश दिए थे.
क्या सरकारी तंत्र और ठेका प्रक्रिया भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी होने की उम्मीद पाली जाए. ये तभी संभव है जबकि दागी और विवादित अफसर की बजाय अच्छे ईमानदार अफसरों की पोस्टिंग सुनिश्चित होगी.
क्या दूरस्थ पहाड़ी इलाकों के अस्पतालों में डॉक्टर और स्कूलों में मास्टर पहुंचाने का कोई फार्मूला नई सरकार के पास है? क्योंकि यह बड़ी चुनौती रही है. क्या त्रिवेंद्र सरकार उत्तराखंड को हड़ताल प्रदेश की छवि से मुक्ति दिला पाएगी?
कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का कहना है कि हमारे सामने चुनौती बड़ी हैं, लेकिन हम उनसे निपटने का हर संभव प्रयास करेंगे.
उत्तराखंड का जनमानस स्थायी राजधानी और गैरसैंण का स्टेटस निर्धारित होने की बडी उम्मीदें पाले बैठा है. डबल इंजन की मजबूत सरकार बन जाने के बाद अब ऋषिकेष से कर्णप्रयाग तक रेल पहुंचाने में कोई बहाना नहीं चल पाएगा.
सवाल और भी बहुत हैं, लेकिन हमें बेहतरी की उम्मीदें रखनी चाहिए क्योंकि लोकतंत्र की भावना यही कहती हैं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने बड़ी चुनौती अंदरूनी राजनीति से निपटना भी होगा. वजह ये कि उनकी कैबिनेट कमोबेश आधे वो मंत्री हैं जो कांग्रेस छोड़कर आए हैं.
कांग्रेस विधायक गोबिंद सिंह कुंजवाल का कहना है मोदी के वादों को पूरा करने की जिम्मेदारी त्रिवेंद्र सरकार की है. कहने की जरूरत नहीं है कि उनमें कुछेक के आचरण पर तो बीजेपी ने विपक्ष में रहते जमकर हल्ला बोला था.
अलबत्ता उनके लिए राहत की बात ये है कि मौजूदा हालात में विपक्ष पूरी तरह पस्त है. लब्बोलुवाब इतना भर है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को पहले दिन से परफॉर्म करना होगा, क्योंकि डबल इंजन की ताकत वाली सरकार के पास बहाना बनाने के लिए कुछ नहीं होगा.

(www.himalayauk.org) HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND

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