27 जुलाई 2018 ; चंद्रग्रहण का दुर्लभ योग –

27 जुलाई 2018 को पड़नेवाला चंद्रग्रहण सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण है। इस ग्रहण का समय लगभग 4 घंटे का है। यह चंद्रग्रहण इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि इस दिन कई ऐसा संयोग बन रहे हैं जो ज्योतिष की दृष्टि से बेहद खास हैं। 18 साल के बाद गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रहण लगने जा रहा है। दोपहर और मध्यरात्रि का ग्रहण ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, सबसे प्रभावशाली और लंबा होता है। खगोलशास्त्री बताते हैं कि करीब 150 साल बाद ग्रहण ऐसा चंद्रग्रहण लगने जा रहा है। चंद्रग्रहण के दौरान मंगल और केतु के बीच त्रिग्रही योग बनेगा। केतु के साथ मकर राशि में चंद्रमा के होने से भी ग्रहण योग बन रहा है। जब चंद्रमा और केतु किसी राशि में एकसाथ होते हैं तब ऐसा योग बनता है। एक ही साल में यह दूसरा ब्लडमून चंद्रग्रहण होगा। इससे पहले 16 जुलाई 2000 को गुरु पूर्णिमा के दिन ऐसा चंद्रग्रहण लगा था।

ग्रहण के दौरान दुर्गा सप्तशती कवच मंत्र का पाठ करना चाहिए। यह मंत्र इस तरह है- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।  चंद्र ग्रहण 3 घंटे 55 मिनट का है. ग्रहण का सूतक काल शुक्रवार दिन में 2:54 पर लग जाएगा. इसके बाद शुभ कार्य करने की मनाही होती है. चूंकि शुक्रवार को ही गुरु पूर्णिमा भी है, इसलिए पंडितों ने सलाह दी है कि जो भी शुभ काम करने हो सूतक से पहले कर लें. सूतक लगने से पहले घर में पूरे दिन की भोजन सामग्री तैयार कर लें. फिर सभी में तुलसी पत्‍ता डाल दें. दूध-दही में भी तुलसी पत्‍ता डालना चाहिए. सूतक के दौरान भगवान के मंत्रों का जाप करें. भगवान की मूर्ति को स्पर्श नहीं करना चाहिए.   ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।

चंद्रग्रहण का प्रभाव ;;; पूर्णिमा पर चंद्रग्रहण का प्रभाव अच्छा नहीं माना जाता है। करीब 100 साल बाद पूर्णिमा पर आने वाला ग्रहण विनाशकारी साबित हो सकता है क्योंकि ऐसा कहा जा रहा है कि आषाढ़ मास में आने वाला ये ग्रहण भूकंप, चक्रवात, आंधी, तूफान, भूस्खलन को दावत दे सकता है। ग्रहण के सूतक से पहले ही गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाना श्रेष्ठ है। उधर, मंदिरों में ग्रहण के सूतक से पहले आरती हो जाएगी, शाम की आरती दोपहर में होगी क्योंकि ग्रहण काल में पूजा-अर्चना को शुभ नहीं माना जाता है – सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण अग्नि व जल तत्व की दो-दो राशियों को छोड़ शेष सभी पर भारी है. पृथ्वी और वायु तत्व की तो सभी राशियों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है. इस चंद्रग्रहण का सबसे ज्यादा प्रभाव पृथ्वी तत्व की राशि मकर पर होगा क्योंकि इसी राशि में चंद्रग्रहण होगा. करनाल के ज्योतिषी पं. वेद प्रकाश जवाली ने कहा कि ग्रहण के कारण भारतीय राजनीति में जलजला आएगा व नेताओं के दलबदल करने की बड़ी संभावना है।

ग्रहण का राशियो पर असर-  चारों राशि वाले जातकों की मौज रहेगी

यह खग्रास चंद्रग्रहण उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र तथा मकर राशि में लग रहा है। इसलिए जिन लोगों का जन्म उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र और जन्म राशि मकर या लग्न मकर है उनके लिए ग्रहण अशुभ रहेगा। मेष, सिंह, वृश्चिक व मीन राशि वालों के लिए यह ग्रहण श्रेष्ठ, वृषभ, कर्क, कन्या और धनु राशि के लिए ग्रहण मध्यम फलदायी तथा मिथुन, तुला, मकर व कुंभ राशि वालों के लिए अशुभ रहेगा।  खग्रास चंद्रग्रहण चार राशियों मेष, सिंह, वृश्चिक और मीन के लिए श्रेष्ठ रहेगा। ग्रहण का प्रभाव ग्रहण के दिन से आगामी तीन महीने तक रहता है। अतः इस अवधि में इन चारों राशि वाले जातकों की मौज रहेगी। इनके जीवन से संकटों का नाश हो जाएगा। जो भी कार्य करेंगे उनमें सफलता निश्चित रूप से मिलेगी, कोई काम अटकेगा नहीं। पारिवारिक और सामाजिक जीवन में मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। नौकरीपेशा लोगों को इस दौरान प्रमोशन मिलेगा।  वृश्चिक – साहस और पराक्रम बढ़ाएगा ग्रहण प्रभाव. आर्थिक एवं वाणिज्यिक लाभ के संकेत है. जल तत्व प्रधान यह राशि विस्तार पर जोर देने वाली है. अति उत्साह से बचें. सूचना एवं संपर्क हितकर रहेगा. आगे आने वाले समय में आपको तरक्की के कई अवसर मिलेंगे। गुड़, मसूर, मूंगा, भवन, लालवस्त्र एवं फल का दान करें.  मीन- जल तत्व यह राशि ग्रहण से लाभांवित होगी. कार्य व्यापार विस्तार की योजनाएं सफल हो सकती हैं. आर्थिक पक्ष को बल मिल सकता है. प्रतिस्पर्धा में प्रभावपूर्ण रहेंगे. मित्रों का साथ समर्थन रहेगा. अप्रत्याशित सफलता संभव. घी स्वर्ण पीले अन्न फल और विद्या का दान करें.

वृषभ, कर्क, कन्या और धनु राशि के जातक ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने और शुभ प्रभावों में वृद्धि के लिए ग्रहणकाल के दौरान विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते रहें। ग्रहण के बाद भी प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करते रहेंगे तो ग्रहण का कुप्रभाव नहीं होगा। 

यह चंद्रग्रहण मिथुन, तुला, मकर व कुंभ राशि वाले जातकों के लिए अशुभ रहेगा। इनके चलते हुए कामों में अड़चन आएगी। आर्थिक प्रगति पूरी तरह रूक जाएगी। मानसिक रूप से काफी विचलित रहेंगे। काम अटकने से मानसिक कष्ट में रहेंगे। इन चार राशि वालों के लिए तीन महीने बाद का समय अति शुभ  है। ग्रहण के अशुभ प्रभाव कम करने और सर्वत्र रक्षा के लिए ग्रहणकाल के दौरान एक जगह बैठकर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान आदि करके गरीबों को भरपेट भोजन करवाएं। ग्रहण काल के दौरान अपने साथ चांदी का चंद्र यंत्र रखें और ग्रहण के बाद इसे बहते जल में प्रवाहित कर दें।

27 जुलाई को रात के समय चंद्र ग्रहण तो दिखाई देगा ही साथ ही आकाश में एक अन्य लाल रंग का चमकता हुआ पिंड मंगल भी अपना विशेष प्रभाव छोड़ने जा रहा है। दरअसल उस दिन मंगल ग्रह सूर्य के लगभग विपरीत दिशा में होगा और इसलिए यह ग्रह पृथ्वी के करीब होगा। उस दौरान लाल ग्रह मंगल और लाल रंग का चंद्रमा रात के आकाश में चकाचौंध पैदा करेंगे। चंद्रग्रहण काल के दौरान मंगल पृथ्वी के बेहद करीब होगा। इस संयोग के कारण ज्योतिषी इस ग्रहण को काफी प्रभावशाली मान रहे हैं और कहते हैं कि इससे प्राकृतिक आपदाओं का भय रहेगा।
इस बार गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण लग रहा है। यह एक दिव्य संयोग माना जा रहा है।ग्रहण के दिन गुरु पूर्णिमा भी है। इसलिए गुरु पूजन और इससे जुड़े सभी धार्मिक कार्य जैसे गुरु दीक्षा और मंत्र ग्रहण इत्यादि दोपहर 2 बजकर 54 मिनट से पहले कर लेना ही सही होगा। इससे पूर्व 16 साल पहले वर्ष 2000 में ऐसा संयोग बना था। इस अवसर पर स्नान और दान-पुण्य का लाभ सामान्य दिनों से कई गुना अधिक प्राप्त होगा। शास्त्रों के दिशानिर्देश के अनुसार, ग्रहण के मौके पर दान करने के लिए सबसे उत्तम समय वह माना गया है, जब ग्रहण का मोक्ष काल समाप्त हो जाता है। 27-28 जुलाई की रात को पड़नेवाले ग्रहण का समाप्ति काल 28 तारीख की सुबह 3 बजकर 49 मिनट पर है। ऐसे में सुबह स्नान के बाद ग्रहण का दान देना अति शुभ फलदायी होगा।

चंद्रग्रहण मकर राशि में लग रहा है। ग्रहण के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए चंद्रमा के मंत्र- ‘ओम सोम सोमाय नमः’ का जप करें। महामृत्युंजय मंत्र और अपने ईष्टदेवता एवं राशि का मंत्र जपना भी शुभ रहेगा। मकर राशि के देवता शनिदेव हैं इसलिए शनि के मंत्र ‘ओम प्रां प्रीं प्रों स: शनिश्चराय नम:’ का जप भी उत्‍तम हैं।

आषाढ़ मास की पूर्ण‍िमा का हर साल गुरु पूर्ण‍िमा के रूप में मनाया जाता है. इस बार गुरु पूर्ण‍िमा 27 जुलाई 2018 को है और इसके साथ ही चंद्रग्रहण भी लग रहा है. यह चंद्रग्रहण सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण है. भारत में इसे स्‍पष्‍ट रूप से देखा जा सकेगा. 27 जुलाई को लगने वाले चंद्रग्रहण को ज्‍योत‍िष बेहद व‍िशेष मान रहे हैं. ज्‍योत‍िषाचार्यो के अनुसार इस बार बेहद खास संयोग बनने के कारण चंद्रग्रहण व‍िशेष होगा. यह सदी का सबसे लंबी चंद्रग्रहण होगा गुरु पूर्णि‍मा के द‍िन चंद्रग्रहण का लगना खास संयोग है. हालांक‍ि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, 18 साल पहले भी 16 जुलाई 2000 को चंद्रग्रहण गुरु पूर्ण‍िमा के द‍िन लगा था. रात में और दोपहर के समय लगने वाला चंद्रग्रहण सबसे प्रभावशाली होता है. यह लंबा भी होता है. इस बार लगने वाला चंद्रग्रहण करीब 4 घंटे तक रहेगा. ऐसा 150 वर्षों में पहली बार हो रहा है.
इस बार चंद्रग्रहण के वक्‍त पृथ्‍वी मंगल ग्रह के बेहद नजदीक होगी. इसके प्रभाव से प्राकृत‍िक आपदाओं का खतरा रहेगा.

ग्रहण के पश्चात किए गए दान के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि इससे सामान्य दिनों में किए गए दान की अपेक्षा कई गुणा पुण्य प्राप्त होता है। तिल से बनी मिठाइयां, सूखी मिठाइयां, रस वाले मीठे पदार्थ, कांसे के कटोरे में घी भरकर और उसमें एक चांदी का टुकड़ा, चंद्र ग्रहण के अगली सुबह चीटिंयों और मछलियों को भोजन- इनका दान उत्‍तम माना गया है-; गुरु, ब्राह्मण और पुरोहितों को दान-दक्षिणा देने का विशेष महत्व है।

27 जुलाई को दो दुर्लभ खगोलीय घटनाएं देखने को मिल सकती हैं। शुक्रवार, 27 जुलाई को भारतीय मानक समय के अनुसार रात पौने ग्यारह बजे उपछाया क्षेत्र (पेनंब्रा) में चंद्रमा के प्रवेश के साथ चंद्रग्रहण की शुरुआत होगी। इसके ठीक पांच मिनट पहले मंगल ग्रह सामान्य से अधिक चमकदार और बड़ा दिखाई देगा। इस दौरान मंगल ग्रह ऐसी स्थिति में होगा, जिसे खगोल विज्ञान में विमुखता (Opposition) कहते हैं। विमुखता उस स्थिति को कहते हैं, जब मंगल अपनी कक्षा में घूमते हुए पृथ्वी के बेहद नजदीक होता है। इस दौरान सूर्य, पृथ्वी और मंगल लगभग सीधी रेखा में होंगे। पृथ्वी और मंगल दोनों ही इस स्थिति में सूर्य के एक ओर ही होते हैं। ऐसे में मंगल, जिसे लाल ग्रह भी कहते हैं, सामान्य से अधिक चमकदार और बड़ा दिखाई देता है। मंगल की विमुखता की शुरुआत 27 जुलाई को हो जाएगी, पर लाल ग्रह पृथ्वी के सबसे अधिक करीब 31 जुलाई के दिन होगा। सूर्य के इर्द-गिर्द घूमने वाले ग्रहों की कक्षा का वृत्ताकार न होकर अंडाकार होना इसकी प्रमुख वजह होती है। यही कारण है कि विमुखता की विभिन्न स्थितियों के दौरान मंगल और पृथ्वी के बीच की दूरी भी अलग-अलग होती है। यह आकाशीय घटना खगोल विज्ञानियों के लिए एक अद्भुत अवसर की तरह होगी क्योंकि इस दौरान उन्हें टेलीस्कोप के जरिये मंगल के बारे में जानने का मौका मिल सकता है।

शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार और रु का का अर्थ- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। गुरु के प्रति आदर-सम्मान और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है। इस बार यह गुरु पूर्णिमा 27 जुलाई यानी शनिवार को है। भारतीय संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। बहुत से लोग इस दिन व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। बहुत से मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधी की पूजा करते हैं। गुरु को ब्रह्म कहा गया है, क्योंकि जिस प्रकार से वह जीव का सर्जन करते हैं, ठीक उसी प्रकार से गुरु शिष्य का सर्जन करते हैं। हमारी आत्मा को ईश्वर रूपी सत्य का साक्षात्कार करने के लिए बेचैन है और ये साक्षात्कार वर्तमान शरीरधारी पूर्ण गुरु के मिले बिना संभव नहीं है, इसीलिए हर जन्म में वो गुरु की तलाश करती है।
पुराणों के अनुसार, भगवान शिव सबसे पहले गुरु माने जाते हैं। शनि और परशुराम इनके दो शिष्य हैं। शिवजी ने ही सबसे पहले धरती पर सभ्यता और धर्म का प्रचार-प्रसार किया था इसलिए उन्हें आदिदेव और आदिगुरू कहा जाता है। शिव को आदिनाथ भी कहा जाता है। आदिगुरू शिव ने शनि और परशुराम के साथ 7 लोगों को दिया। ये ही आगे चलकर सात ह्मर्षि कहलाए और इन्होंने आगे चलकर शिव के ज्ञान को चारों तरफ फैलाया।
गुरु पूर्णिमा के दिन चन्द्रग्रहण लग रहा है। इस ग्रहण का सूतक दोपहर बाद 2 बजे से लग रहा है। इसलिए सूतक काल से पहले गुरु कु पूजा कर लेना शुभ रहेगा। जो लोग गुरु मंत्र लेना चाहते हैं उनके लिए ग्रहण काल का समय उत्तम रहेगा। मंत्र जप और गुरु मंत्र लेने के लिए ग्रहण काल एक विशेष मुहूर्त माना जाता है। इस समय गुरु मंत्र लेना शास्त्रों के अनुसार बहुत ही उत्तम माना गया है। मेडिटेसन और योग साधना के लिए अति उत्तम समय माना जाता है ग्रहण काल। इसमें साधना करना उत्तम माना गया है। बच्चे की शिक्षा की शुरुआत करना चाहते हैं तो ग्रहण का दिन और समय इसके लिए शुभ रहता है। इस समय स्नान करना शुभ होता है। माना जाता है कि ऐसा करने से उत्तम आरोग्य की प्राप्ति होती है। इस समय मौन साधना का विशेष महत्व है। ग्रहण के समय पूजा-पाठ और भगवान को स्पर्श करने की सख्त मनाही है। धार्मिक आस्था है कि इस समय भगवान का स्पर्श करने से दोष लगता है। हां, घर के मंदिर से अलग स्वच्छ आसान पर बैठकर आप विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर सकते हैं।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। इस महीने गुरु पूर्णिमा 27 जुलाई (शुक्रवार) को है। शास्त्रों में इस दिन को बेहद खास महत्व दिया गया है। कहते हैं कि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के के दिन भगवान वेद व्यास का जन्म हुआ था। उन्होंने वेदों को उसके महत्व के हिसाब से विभाग किए। साथ ही उन्होंने महाभारत की रचना की तथा 18 पुराणों के रचयिता भी उन्हें माना जाता है। उन्होंने वेदांत के सूत्रों का प्रणयन किया। ऐसा कहा जाता है कि संसार में जो भी ज्ञान है वो वेद व्यास के ज्ञान का अंश है। इसीलिए भारतीय परंपरा में उन्हें सर्वोपरि गुरु का दर्जा हासिल है। यही कारण है कि व्यास पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन यदि कोई नीचे दिए गए मंत्र का जाप कर ले तो वो कभी किसी भी क्षेत्र में हार का सामना नहीं करता, उसकी स्मरण क्षमता और ज्ञान अत्यधिक बढ़ जाता है।
“व्यासाय विष्णु रूपाय, विष्णु रूपाय व्यासवे”

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