इनसे कुछ भी छिपाकर करना असंभव ; देवभूमि यू ही नही है उत्‍तराखण्‍ड

सर्वद्रष्टा, सर्वव्यापक वरुणदेव से तो कुछ भी छिपाकर करना असंभव #देवभूमि उत्तराखंड में दैवीय शक्तियां वास करती हैं # अमेरिका की मैसाच्युसेट्स यूनिवर्सिटी से वैज्ञानिकों ने भी इस स्थान पर आकर  रिसर्च करी थी। उन्होंने भी माना यहां पर अदृश्य शक्तियां हैं, जो नज़र नहीं आती लेकिन अपने होने का अहसास करवाती हैं #  भ्रष्‍टाचार पनप रहा है, अपराध पनप रहा है, और जहां गंगा का स्रोत है, वहां भ्रष्‍टाचार की गंगा का स्रोत पनप रहा है, राजनेताओ और नौकरशाहो के गठजोड से देवभूमि उत्‍तराखण्‍ड त्राहिमाम त्राहिमाम कराह रही है #

यस्तिष्ठति चरति यश्च वञ्जति यो निठ्ठायं चरित य: प्रतंकम्। द्वौ सन्निषद्य यंमंत्रयेते राजा तद् वेद वरुणस्तृतीय:।।

पाप से वास्तव में डरने वाले मनुष्य संसार में विरले ही होते हैं। प्राय: लोग पाप करने से नहीं डरते, किन्तु पापी समझे जानें से डरते हैं। जहां कोई देखने वाला न हो वहां अपने कर्तव्य से विमुख हो जाना, कोई पाप कर लेना, साधारण बात है। पाप और अपराध कर्म से बचने की कोई कोशिश नहीं करता, कोशिश तो इस बात की होती है कि हम वैसा करते हुए कहीं पकड़े न जाएं। 

और उत्‍तराखण्‍ड में हम पकडे न जाये, बस इस भावना से राजनेताओ और नौकरशाहो का गठजोड पनप रहा है

यही कारण है कि मनुष्य अपने बहुत से कार्य छिपकर अकेले में करने को प्रवृत्त होता है, परंतु यदि उसे इस संसार के सच्चे, एकमात्र राजा वरुणदेव की जानकारी हो तो वह ऐसे घोर अज्ञान में न रहे। यदि उसे मालूम हो कि जगत के ईश्वर वरुण भगवान सर्वव्यापक और सर्वद्रष्टा हैं तो वह पाप के आचरण करने से डरने लगे, वह एकांत में भी कभी पाप में प्रवृत्त न हो सके।

देवभूमि उत्‍तराखण्‍ड में राजनेताओ और नौकरशाह का ध्‍येय सेवाभाव का नही रहा, यही कारण है कि  समय विशेष में शक्‍तिशाली नौकरशाहा भी दूध में पडे तिनके के समान बाहर होते रहे, राजनेताओ ने गोपनीय रूप से अनेक ऐसे कार्य किये, जिसको सबने जाना समझा, पर तू मेरी न कह, मैं तेरी न कहू, इस भावना पनपती रही, पर वरूण देव से कुछ बचा नही है, देवभूमि में देर है अंधेर नही, शायद यही कारण है कि देवभूमि में पं0 नारायण दत्‍त तिवारी के बाद बनने वाला मंत्रिमण्‍डल अल्‍पायु होता रहा,  त्राहिमाम की स्‍थिति से ग्रस्‍त होने पर फरियाद देवताओ के दरबार में पहुंचते ही चमत्‍कार होता आया है,

यदि हम समझते हैं हम कोई काम गुप्त रूप में कर सकते हैं तो सचमुच हम बड़े धोखे में हैं। उसे सर्वद्रष्टा, सर्वव्यापक वरुणदेव से तो कुछ भी छिपाकर करना असंभव है। जब हम दो आदमी कोई गुप्त मंत्रणा करने के लिए किसी अंधेरी-से-अंधेरी कोठरी में जाकर बैठते हैं और सलाहे करने लगते हैं तो यदि हम समझ रहे होते हैं कि हम दोनों के सिवाय संसार में और कोई इन बातों को नहीं जानता, तथापि इन सब बातों को वह वरुण देव वहीं तीसरा होकर बैठा हुआ सुन रहा होता है। यदि हम वहां से उठकर किसी किले में जा बैठें या किसी सर्वथा निर्जन वन में पहुंच जाएं तो वहां पर भी वह वरुणदेव तीसरा साक्षी होकर पहले से बैठा हुआ होता है। उससे छिपाकर हम कुछ नहीं कर सकते। यदि हम दूसरे किसी आदमी को भी कुछ नहीं बतातें केवल अपने ही मन में कुछ सोचते हैं तो वह वरुण देव उसे भी जानता है, सब सुनता है। हमारे चलने या ठहरने को, हमारी छोटी-से-छोटी चेष्टा को वह जानता है। जब हम दूसरों को धोखा देते हैं, ठग लेते हैं और समझते हैं कि इसका किसी को पता नहीं लगा, तब हम स्वयं कितने भारी धोखे में होते हैं, क्योंकि इस वरुण देव को तो सब-कुछ पता होता है और हमें उसका फल भोगना ही पड़ता है। 

  वरुण हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं। प्राचीन वैदिक धर्म में उनका स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण था पर वेदों में उसका रूप इतना अमूर्त हैं कि उसका प्राकृतिक चित्रण मुश्किल है। माना जाता है कि वरुण की स्थिति अन्य वैदिक देवताओं की अपेक्षा प्राचीन है, इसीलिए वैदिक युग में वरुण किसी प्राकृतिक उपादान का वाचक नहीं है। अग्नि व इंद्र की अपेक्षा वरुण को संबोधित सूक्तों की मात्रा बहुत कम है फिर भी उसका महत्व कम नहीं है। इंद्र को महान योद्धा के रूप में जाना जाता है तो वरुण को नैतिक शक्ति का महान पोषक माना गया है, वह ऋत (सत्य) का पोषक है। अधिकतर सूक्तों में वस्र्ण के प्रति उदात्त भक्ति की भावना दिखाई देती है। ऋग्वेद के अधिकतर सूक्तों में वरुण से किए गए पापों के लिए क्षमा प्रार्थना की गई हैं। वरुण को अन्य देवताओं जैसे इंद्र आदि के साथ भी वर्णित किया गया है। वरुण से संबंधित प्रार्थनाओं में भक्ति भावना की पराकाष्ठा दिखाई देती है। उदाहरण के लिए ऋग्वेद के सातवें मंडल में वस्र्ण के लिए सुंदर प्रार्थना गीत मिलते हैं। उनको “असुर” की उपाधी दी गयी थी, मतलब की वो “देव” देवताओं के समूह से अलग थे। उनके पास जादुई शक्ति मानी जाती थी, जिसका नाम था माया। उनको इतिहासकार मानते हैं कि असुर वरुण ही पारसी धर्म में “अहुरा मज़्दा” कहलाए। बाद की पौराणिक कथाओं में वरुण को मामूली जल-देव बना दिया गया।

 

मकर पर विराजमान मित्र और वरुण देव दोनों भाई हैं और यह जल जगत के देवता है। उनकी गणना देवों और दैत्यों दोनों में की जाती है। भागवत पुराण के अनुसार वरुण और मित्र को कश्यप ऋषि की पत्नीं अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। मित्र देव का शासन सागर की गहराईयों में है और वरुण देव का समुद्र के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन हैं। वेदों में इनका उल्लेख प्रकृति की शक्तियों के रूप में मिलता है जबकि पुराणों में ये एक जाग्रत देव हैं। हालांकि वेदों में कहीं कहीं उन्हें देव रूप में भी चित्रित किया गया है। वरुण देव देवों और दैत्यों में सुलह करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। वेदों में मित्र और वरुण की बहुत अधिक स्तुति की गई है, जिससे जान पड़ता है कि ये दोनों वैदिक ऋषियों के प्रधान देवता थे। वेदों में यह भी लिखा है कि मित्र के द्वारा दिन और वरुण के द्वारा रात होती है। पहले किसी समय सभी आर्य मित्र की पूजा करते थे, लेकिन बाद में यह पूजा या प्रार्थना घटती गई। वेबदुनिया के शोधानुसार पारसियों में इनकी पूजा ‘मिथ्र’ के नाम से होती थी। मित्र की पत्नी ‘मित्रा’ भी उनकी पूजनीय थी और अग्नि की आधिष्ठात्री देवी मानी जाती थी। कदाचित् असीरियावालों की ‘माहलेता’ तथा अरब के लोगों की की ‘आलिता देवी’ भी यही मित्रा थी।

देवभूमि उत्तराखंड में दैवीय शक्तियां वास करती हैं। देवभूमि उत्तराखंड यू ही साधु-संतों से लेकर देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आस्था का केंद्र नही  है। टिहरी ज़िले में खैंट पर्वत पर खैंटखाल मंदिर है, जहां परियां रहती हैं। थात गांव से यह मंदिर 5 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके साथ ही भिलंगना नदी बहती है। अमेरिका की मैसाच्युसेट्स यूनिवर्सिटी से वैज्ञानिकों ने भी इस स्थान पर आकर  रिसर्च करी थी। उन्होंने भी माना यहां पर अदृश्य शक्तियां हैं, जो नज़र नहीं आती लेकिन अपने होने का अहसास करवाती हैं।

वहां के स्थानीय निवासियों का कहना है,  खैंट पर्वत की नौ श्रृंखलाओं में अदृश्य रूप से नौ देवियां वास करती हैं। जो बहनें हैं। इन्हें आछरी या भराड़ी नाम से जाना जाता है।  अनहोनी से बचने के लिए इनकी पूजा करते हैं। जिससे परियां खुश होकर उन पर अपनी कृपा बनाए रखें। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है, जो लोग परियों के मन को भा जाते हैं, वह उन्हें बेहोश करके अपने साथ ले जाती हैं। यहां आकर्षण के मुख्य केंद्र हैं- ऊंची चट्टानों पर उल्टी ओखल, लहसुन की खेती, अखरोट के बागान, नैर-थुनैर नाम के दो पेड़ और भी बहुत कुछ देखा जा सकता है।    कुछ ऐसी बातें हैं जो इस रहस्य को खुद ही बयान करती हैं जैसे अनाज को कूटने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली ओखली वहां जमीन पर ना होकर दीवारों पर बनी है इसके साथ ही सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि जहां पर कुछ फसलें और फल पैदा होते हैं लेकिन वो वही तक इस्तेमाल करने लायक होते हैं वहां के परिसर से बाहर भी चीजें खाने योग्य नहीं रह जाती कहा जाता है यहा परियो  जो लोग पसंद आ जाते हैं उन्हें बेहोश करके अपने साथ ले जाती हैं.  इस स्थान पर तेज आवाज करने और  चिल्लाने पर सख्त प्रतिबंध है इसके साथ ही भड़काऊ और चटक रंग के कपड़े पहनना और बेवजह वाद्ययंत्र बजाना भी पूरी तरह से प्रतिबंधित है खैंट पर्वत एक गुंबद  नुमा आकार का खूबसूरत पर्वत है 

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