इनकी साधना से कुण्डलिनी जागृत & इन्द्रियों पर नियंत्रण

सबसे रहसयमई देवी दस महाविद्या में से कौन : सबसे रहसयमई देवी दस महाविद्या में से 6वी महाविद्या मां छिन्नस्तिका है। इनका स्वरूप बहुत विकराल है और केवल कोई योगी साधक ही इनके रहस्य को जान सकता है ।

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इनकी साधना सबसे खतरनाक मानी जाती है ,बाकी नव महाविद्या को छोड़कर। इनकी साधना से सरस्वती सिद्ध हो जाती है।

इनकी भक्ति से मनुष्य जीव भाव को छोड़ शिव भाव में लीन हो जाता है।इनकी साधना से कुण्डलिनी जागृत हो जाती है जिससे मनुष्य का 6 इन्द्रियों पर पूर्णतः नियंत्रण हो जाता है और कामभाव से मुक्त हो जाता है।

इनके रूप को इस तरह देखते है जहां मां कमल पर विराजित है और कामदेव और रति उनके पाव के नीचे कामक्रिया में मग्न है वहीं उनके दोनों तरफ डाकिनी यानी जया और विजया उनकी दो सहचरी उनका रक्त पी रही है।

देवी स्वयं नग्न है जिस कारण उन्हें दिगंबरा की उपाधि मिली,उन्होंने मुंडमाला और रक्त पुष्प की माला धारण की हुए है और काल सर्प उनके गले का आभूषण है। देवी अपना कटा हुआ शीश अपने हाथ में लिए है और स्वयं का रक्त पी रही है। शीश जीवित है जो सबको देख रहा है।देवी का स्वरूप बहुत गोपनीय है जिसे कोई योगी या साधक ही जान सकता है।

हमारे शरीर के मूल में रती इन्द्रियों के ऊपर जो कुण्डलिनी है ,वहा माता का अधिपत्य माना गया है ।

इनके ऐसे रूप के पीछे देवी भागवत,कालिका पुराण,दुर्गा सप्तशती आदि में वर्णन मिलता है कि :-

माता पार्वती अपनी सहचरी के साथ स्नान कर रही थी और अचानक जया और विजया को क्षुधा महसूस हुई। उन्होंने देवी से आग्रह किया और देवी ने प्रतीक्षा करने का कहा लेकिन दोनों को सब्र नहीं हुआ और वे बोली के माता तो अपने भक्तों के कष्ट क्षण में नीवार्ती है,अपने भूखे शिशु का पेट भरने में विलम्ब क्यों ?बस इतना सुनते ही देवी अपना शीश काट देती है और रक्त की तीन धाराएं बेहेने लगी जिसमें से दो उनकी सहाचारियो ने पी और एक धारा का वे स्वय सेवन करने लगी । देवी के इस बलीदान को देख त्रिदेव भी नतमस्तक हुए।

वहीं एसी कथा का भी वर्णन मिलता है जिसमें देवी अपनी योगिनियों के साथ दानवों से युद्ध करती हुई सारी असुर सेना का संहार का देती है लेकिन उनकी दोनों योगिनियों की रक्त तिपासा शांत नहीं होती हुई और उनकी इस तिपसा को शांत करने के लिए देवी अपना शीश काट देती है।

इनके इस रूप को ऐसे भी समझा जा सकता है कि काम से मनुष्य जीवन की उत्पत्ति होती है और जैसे जैसे जीवन आगे बढ़ता है रास्ते में संघर्ष के दंश के साथ कई तरह की मुसीबत का सामना कर जीवन का अंत होता है और जीव कर्मानुसार तीन धाराओं में से किसी एक धारा कि और जाता है आर्थात या तो वो नीली योगिनी आर्थत स्वर्ग या रक्त वर्ण से युक्त योगिनी अर्थात नरक नहीं तो स्वयं मां छिन्नमस्तिका अर्थात मोक्ष को प्राप्त होता है।

देवी का वर्णन बुद्ध धर्म में छीन्नमुंडा वज्रवराही के नाम से भी मिलता है। इनका प्रसिद्ध मंदिर रजरप्पा रांची में स्थित है।

आप समझ गए होंगे कि माता का स्वरूप कितना रहस्यमई है।

दस महाविदया मॉबगुलामुखी श्री पीताम्‍बरा देवी सिद्वपीठ मंदिर बंजारावाला देहरादून में भूमि प्राप्‍त होने के बाद नीव डालने के बाद अप्रैल मई२०२० से निर्माण कार्य में तेजी आयेगी, मॉ पीताम्‍बरा के आशीर्वाद से अगस्‍त तक मंदिर में मूर्ति स्‍थापना तथा माई विराजमान हो जाये, ऐसी प्रार्थना हम कर रहे है- चन्‍द्रशेखर जोशी मुख्‍य सेवक- मंदिर समिति ने बताया कि भव्‍य कार्यक्रम में माई विराजमान होगी, इसके लिए इच्‍छुक सहयोग करने के लिए सम्‍पर्क कर सकते है मो0 9412932030

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