तीनों लोकों में बहने वाली “त्रिपथगा” गंगा

आज पृथ्वी पर अवतरित – गंगा नदी; आवास- कैलाश पर्वत, देवलोक – गंगा ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, तिथि दशमी, दिन मंगलवार, हस्त नक्षत्र पर अवतरित हुई। मंत्र : ॐ हिलि हिलि मिली मिली गंगा देवी नमः ;  

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गंगा एकमात्र ऐसी नदी है जो तीनों लोकों में बहती है-स्वर्ग, पृथ्वी, तथा पाताल। इसलिए संस्कृत भाषा में उसे “त्रिपथगा” (तीनों लोकों में बहने वाली) कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि सरस्वती नदी के समान ही, कलयुग (वर्तमान का अंधकारमय काल) के अंत तक गंगा पूरी तरह से सूख जायेगी और उसके साथ ही यह युग भी समाप्त हो जायेगा। उसके बाद सतयुग (अर्थात सत्य का काल) का उदय होगा।
गंगा नदी को पवित्र हिंदुओं द्वारा देवी रूपी इस नदी की पूजा की जाती है क्योंकि उनका विश्वास है कि इसमें स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। तीर्थयात्री गंगा के पानी में अपने परिजनों की अस्थियों का विसर्जन करने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करते हैं ताकि उनके प्रियजन सीधे स्वर्ग जा सकें। हरिद्वार, इलाहबाद और वाराणसी जैसे हिंदुओं के कई पवित्र स्थान गंगा नदी के तट पर ही स्थित हैं।

गंगा की उत्पत्ति के विषय में हिंदुओं में अनेक मान्यताएँ हैं। एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के कमंडल का जल गंगा नामक युवती के रूप में प्रकट हुआ था। एक अन्य (वैष्णव) कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरणों को आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में एकत्र कर लिया। एक तीसरी मान्यता के अनुसार गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मीना की पुत्री हैं, इस प्रकार वे देवी पार्वती की बहन भी हैं। प्रत्येक मान्यता में यह अवश्य आता है कि उनका पालन-पोषण स्वर्ग में ब्रह्मा जी के संरक्षण में हुआ।
कई वर्षों बाद, सगर नामक एक राजा को जादुई रूप से साठ हज़ार पुत्रों की प्राप्ति हो गयी। एक दिन राजा सगर ने अपने साम्राज्य की समृद्धि के लिए एक अनुष्ठान करवाया। एक अश्व उस अनुष्ठान का एक अभिन्न हिस्सा था जिसे इंद्र ने ईर्ष्यावश चुरा लिया। सगर ने उस अश्व की खोज के लिए अपने सभी पुत्रों को पृथ्वी के चारों तरफ भेज दिया। उन्हें वह पाताललोक में ध्यानमग्न कपिल ऋषि के निकट मिला। यह मानते हुए कि उस अश्व को कपिल ऋषि द्वारा ही चुराया गया है, वे उनका अपमान करने लगे और उनकी तपस्या को भंग कर दिया। ऋषि ने कई वर्षों में पहली बार अपने नेत्रों को खोला और सगर के बेटों को देखा। इस दृष्टिपात से वे सभी के सभी साठ हजार जलकर भस्म हो गए।
अंतिम संस्कार न किये जाने के कारण सगर के पुत्रों की आत्माएं प्रेत बनकर विचरने लगीं। जब दिलीप के पुत्र और सगर के एक वंशज भगीरथ ने इस दुर्भाग्य के बारे में सुना तो उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे गंगा को पृथ्वी पर लायेंगे ताकि उसके जल से सगर के पुत्रों के पाप धुल सकें और उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके।
भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या की। ब्रह्मा जी मान गए और गंगा को आदेश दिया कि वह पृथ्वी पर जाये और वहां से पाताललोक जाये ताकि भगीरथ के वंशजों को मोक्ष प्राप्त हो सके। गंगा को यह काफी अपमानजनक लगा और उसने तय किया कि वह पूरे वेग के साथ स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेगी और उसे बहा ले जायेगी। तब भगीरथ ने घबराकर शिवजी से प्रार्थना की कि वे गंगा के वेग को कम कर दें।
गंगा पूरे अहंकार के साथ शिव के सिर पर गिरने लगी। लेकिन शिव जी ने शांति पूर्वक उसे अपनी जटाओं में बांध लिया और केवल उसकी छोटी-छोटी धाराओं को ही बाहर निकलने दिया। शिव जी का स्पर्श प्राप्त करने से गंगा और अधिक पवित्र हो गयी। पाताललोक की तरफ़ जाती हुई गंगा ने पृथ्वी पर बहने के लिए एक अन्य धारा का निर्माण किया ताकि अभागे लोगों का उद्धार किया जा सके। गंगा एकमात्र ऐसी नदी है जो तीनों लोकों में बहती है-स्वर्ग, पृथ्वी, तथा पाताल। इसलिए संस्कृत भाषा में उसे “त्रिपथगा” (तीनों लोकों में बहने वाली) कहा जाता है।
भगीरथ के प्रयासों से गंगा के पृथ्वी पर आने के कारण उसे भगीरथी भी कहा जाता है; और दुस्साहसी प्रयासों तथा दुष्कर उपलब्धियों का वर्णन करने के लिए “भगीरथी प्रयत्न” शब्द का प्रयोग किया जाता है।
गंगा को जाह्नवी नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी पर आने के बाद गंगा जब भगीरथ की तरफ बढ़ रही थी, उसके पानी के वेग ने काफी हलचल पैदा की और जाह्नू नामक ऋषि की साधना तथा उनके खेतों को नष्ट कर दिया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने गंगा के समस्त जल को पी लिया। तब देवताओं ने जाह्नू से प्रार्थना की कि वे गंगा को छोड़ दें ताकि वह अपने कार्य हेतु आगे बढ़ सके। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर जाह्नू ने गंगा के जल को अपने कान के रास्ते से बह जाने दिया। इस प्रकार गंगा का जाह्नवी” नाम (जाह्नू की पुत्री) पड़ा।

स्कंद पुराण जैसे हिंदू ग्रंथों के अनुसार, देवी गंगा कार्तिकेय (मुरुगन) की सौतेली माता हैं; कार्तिकेय वास्तव में शिव और पार्वती का एक पुत्र है।
पार्वती ने अपने शारीरिक दोषों से गणेश (शिव-पार्वती के पुत्र) की छवि का निर्माण किया, लेकिन गंगा के पवित्र जल में डूबने के बाद गणेश जीवित हो उठे। इसलिए कहा जाता है कि गणेश की दो माताएं हैं-पार्वती और गंगा और इसीलिए उन्हें द्विमातृ तथा गंगेय (गंगा का पुत्र) भी कहा जाता है।[1]
ब्रह्म वैवर्त पुराण 2.6.13-95 के अनुसार, विष्णु की तीन पत्नियां हैं जो हमेशा आपस में झगड़ती रहती हैं, इसलिए अंत में उन्होंने केवल लक्ष्मी को अपने साथ रखा और गंगा को शिव जी के पास तथा सरस्वती को ब्रह्मा जी के पास भेज दिया।
हिन्दुओं के महाकाव्य महाभारत में कहा गया है कि वशिष्ठ द्वारा श्रापित वसुओं ने गंगा से प्रार्थना की थी कि वे उनकी माता बन जाएँ। गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं और इस शर्त पर राजा शांतनु की पत्नी बनीं कि वे कभी भी उनसे कोई प्रश्न नहीं करेंगे, अन्यथा वह उन्हें छोड़ कर चली जाएगी. सात वसुओं ने उनके पुत्रों के रूप में जन्म लिया और गंगा ने एक-एक करके उन सबको अपने पानी में बहा दिया, इस प्रकार उनके श्राप से उनको मुक्ति दिलाई। इस समय तक राजा शांतनु ने कोई आपत्ति नहीं की। अंततः आठवें पुत्र के जन्म पर राजा से नहीं रहा गया और उन्होंने अपनी पत्नी का विरोध किया, इसलिए गंगा उन्हें छोड़कर चली गयीं। इस प्रकार आठवें पुत्र के रूप में जन्मा द्यौस मानव रूपी नश्वर शरीर में ही फंसकर जीवित रह गया और बाद में महाभारत के सर्वाधिक सम्मानित पात्रों में से एक भीष्म (देवव्रत) के नाम से जाना गया।

गंगा का उल्लेख हिंदुओं के सबसे प्राचीन और सैद्धांतिक रूप से सबसे पवित्र ग्रंथ ऋग्वेद में निश्चित रूप से आता है। गंगा का उल्लेख नदीस्तुति (ऋग्वेद 10.75) में किया गया है, जिसमे पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों के बारे में बताया गया है। आरवी (ऋग्वेद) 6.45.31 में भी गंगा का उल्लेख किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यहां नदी को ही संदर्भित किया गया है।
आरवी (ऋग्वेद) 3.58.6 में लिखा गया है “आपका प्राचीन घर, आपकी पवित्र मित्रता, हे वीरों, आपकी संपत्ति जाह्नवी (जाह्नवियम) के तट पर है”। यह छंद संभवतः गंगा की तरफ इशारा करता है। आरवी 1.116.18-19 में जाह्नवी तथा गंगा की डॉल्फ़न का उल्लेख लगातार दो छंदों में किया गया है।
गंगा की स्मृति छाया में सिर्फ लहलहाते खेत या माल से लदे जहाज ही नहीं, बल्कि वाल्मीकि का काव्य, बुद्ध-महावीर के विहार, अशोक, हर्ष जैसे सम्राटों का पराक्रम तथा तुलसी, कबीर और नानक की गुरुवाणी। सभी के अंकित है। गंगा किसी धर्म, जाति या वर्ग विशेष की न होकर, पूरे भारत की अस्मिता और गौरव की पहचान बनी रही है। इस अद्वितीय महत्ता के कारण ही भारत का समाज युगों-युगों से एक अद्वितीय तीर्थ के रूप में गंगा का गुणगान करता आया है- न माधव समो मासो, न कृतेन युगं समम्‌। न वेद सम शास्त्र, न तीर्थ गंगया समम्‌।

##गंगा नदी हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और अनेक धर्म ग्रंथों में गंगा के महत्व का वर्णन प्राप्त होता है गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं जो गंगा जी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करने में सहायक है. इसमें एक कथा अनुसार गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनों की बूँदों से हुआ गंगा के जन्म की कथाओं में अतिरिक्त अन्य कथाएँ भी हैं. जिसके अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ.
एक मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया और एक अन्य कथा अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जिसे ब्रह्मा जी ने उसे अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ था.

गंगा जयंती महत्व
शास्त्रों के अनुसार बैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग लोक से शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है. जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है.
गंगा जयंती के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का क्षय होता है. मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है. विधिविधान से गंगा पूजन करना अमोघ फलदायक होता है.
पुराणों के अनुसा गंगा विष्णु के अँगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के प्रयास से कपिल मुनि के शाप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों का उद्धार करने के लिए हुआ था तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार संभव हो सका इसी कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा.

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