क्‍या पजाब इस तरह फतह किया केजरीवाल ने ?

यह धारणा बन गयी कि कि अगर यह आदमी मोदी से नहीं डरता वही केजरीवाल की छवि सत्ता के खिलाफ लड़ने वाले शख्स की थी. चुनाव के नतीजे आम आदमी पार्टी के पक्ष में गये तो केजरीवाल की मोदी-विरोधी और मिशन पर निकले एक लड़ाके की छवि लोगों के सर चढ़कर बोलेेगी और केजरीवाल गुजरात के विधान सभा चुनााव में भाजपा को ललकारने की स्‍थिति में आ जायेगे ; आम आदमी पार्टी एलान कर चुकी है कि वह जल्दी ही मोदी के घरेलू मैदान पर लड़ाई छेड़ने वाली है.
पजाब में लोगों के बीच यह धारणा बन गयी कि कि अगर यह आदमी मोदी से नहीं डरता तो फिर बादल को बिना सजा दिए कैसे छोड़ देगा? बादल-विरोधी वोट के बीच लोगों के इसी यकीन ने केजरीवाल की पार्टी को बड़ा फायदा पहुंचाया है. वोटर का विश्वास केजरीवाल पर जमा क्योंकि उनकी छवि सत्ता के खिलाफ लड़ने वाले शख्स की थी.
कांग्रेस के पास अपने चुनाव-अभियान के नेता के तौर पर कैप्टन अमरिन्दर सिंह के रुप में एक मजबूत क्षत्रप मौजूद था लेकिन लोगों को लगा यही कि बादल-परिवार को धूल चटाने के लिहाज से केजरवाल कहीं ज्यादा बेहतर हैं. केजरीवाल की पैठ सिखों के बीच ज्यादा रही, उन सिखों के बीच भी जो सिक्खी को लेकर बाकियों से ज्यादा संजीदा हैं जबकि पंजाबी हिन्दू ज्यादातर कांग्रेस और बीजेपी की तरफ झुका दिखा.
मोदी पर केजरीवाल के बेलगाम हमले का आम आदमी पार्टी को पंजाब के चुनाव-अभियान में फायदा मिला है केजरीवाल ने अपनी छवि एक ऐसे लड़ाके की बनायी है कि लोगों में संदेश गया कि अगर कोई बादल-कुनबे की सियासत को धूल चटा सकता है तो बस आम आदमी पार्टी.
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बादल-परिवार लोगों के दिल से एकदम ही उतर चुका था. बादल-परिवार को कुशासन, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और नशाखोरी को बढ़ावा देने का जिम्मेदार बता वोटर अपने वोट के जरिए उन्हें सत्ता से बेदखल ही नहीं करना चाहता था, उसकी इच्छा बदला लेने की भी थी. वह मन ही मन मानकर चल रहा था कि बादल-परिवार ने पार्टी और निजी फायदे के लिए सत्ता का दुरुपयोग किया है और उसे इस गलती के लिए सबक सिखाना है. चुनाव में वोटर बादल परिवार के खिलाफ खुलकर बोल रहे थे. वे अपनी चिन्ताओं की पूरी फेहरिश्त गिनाते हुए तकरीबन कसम उठाने के अंदाज में कह रहे थे कि बादल-परिवार को सबक सिखाने के लिए वोट डालना है. कई जगहों पर मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेटे और सूबे के उप-मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल और उनके जीजा विक्रमजीत मजीठा के लिए लोगों की जबान से अपशब्द निकल रहे थे.
आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान ने सुखबीर सिंह बादल पर चोट करने करने लिए उनका एक मजाकिया नाम सुक्खा निकाला है. यह नाम लोगों की जबान पर चढ़ गया है. उनकी जुबान से एक आम आरोप यह निकल रहा था कि सुक्खा ने सारे व्यापार पर कब्जा जमा लिया है और नशाखोरी के चलन के पीछे उसके जीजा का हाथ है. आम आदमी पार्टी ने चुनावी के शुरुआती दौर में ही लोगों के इस गुस्से को अपने पाले में कर लिया. बह रही हवा को भांपते हुए भगवंत मान ने बादल-परिवार को अपनी चुटीली तुकबंदी और धारदार व्यंग्य के शीशे में उतार लिया. लेकिन सबसे ज्यादा असरदार साबित हुआ केजरीवाल का वादे के स्वर में बार-बार यह कहना कि बादल और मजीठिया को जेल में डालेंगे.ऐसी धमकियों को लेकर केजरीवाल का रिकार्ड बड़ा बुरा रहा है. वे पहले भी वादा कर चुके हैं कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जेल भेजेंगे और नाते-रिश्तेदारों के बीच सत्ता की रेवड़ी बांटने की रीत के खिलाफ जंग छेड़ेंगे. लेकिन उनकी यह धमकी बस धमकी भर बनकर रह गई.
फिर भी इस साल कई पंजाबी वोटरों ने केजरीवाल के इस वादे को संजीदगी से लिया और बादल-विरोधी मुहिम की उन्हें धुरी मान लिया. भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के मोर्चे पर केजरीवाल का रिकार्ड खराब रहा है लेकिन बीते वक्त में वे एक बात पर अडिग साबित हुए हैं. मोदी पर उन्होंने लगातार हमला बोला है, कड़ी आलोचना की है और इस मोर्चे पर उन्होंने कभी कोई रियायत नहीं बरती.
वोटर के गुस्से और ‘बादल से बदला’ के इस माहौल को अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस ने भी हाथ-पैर मारे. रैली दर रैली कैप्टन अमरिन्दर सिंह कहते नजर आये कि गुरुग्रंथ साहिब को नापाक करने वाले को बख्शा नहीं जायेगा, जिन नेताओं ने रिश्वतखोरी तथा नशाखोरी के चलन को बढ़ावा दिया है उनपर कानून का शिकंजा कसेगा लेकिन वोटर का विश्वास केजरीवाल पर जमा क्योंकि उनकी छवि सत्ता के खिलाफ लड़ने वाले शख्स की थी.

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