भगवान भोलेनाथ यहां निवास करते हैं; स्कंद पुराण

स्कंद पुराण के अनुसार भगवान भोलेनाथ यहां निवास करते हैं व देवी-देवता उनके दर्शन-पूजन के लिए यहीं पर आते हैं। गुफा में चित्रित हंस को ब्रह्मा जी के हंस से जोड़ा जाता है। जनमेजय के नागयज्ञ के हवन कुंड को भी यहीं बताया जाता है। कहा जाता है अपने पिता परीक्षित को श्रापमुक्त करने के लिए जनमेजय ने सारे नाग मार डाले लेकिन तक्षक नामक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतारा। नागयज्ञ के कुंड के ऊपर इसी नाग का चित्र है।
भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्‍वर की गुफ़ा के सामने पत्थरों से बना एक-एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है। किंवदन्ती है कि यहाँ पर पाण्डवों ने तपस्या की और कलियुग में आदि शंकराचार्य ने इसे पुनः खोजा। www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) Leading Web & print media; HARI KISHAN KIMOTHI ; REPORT; 
पौराणिक महत्व
स्कन्दपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहाँ आते हैं। यह भी वर्णन है कि त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफ़ा में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इस गुफ़ा के भीतर महादेव शिव सहित 33 करोड देवताओं के साक्षात दर्शन किये। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु शंकराचार्य का 822 ई के आसपास इस गुफ़ा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया। इसके बाद चन्द राजाओं ने इस गुफ़ा के विषय में जाना। और आज देश विदेश से सैलानी यहां आते हैं। और गुफ़ा के स्थपत्य को देख दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं। मनुस्मृति में कहा गया है कि भगवान शंकर कैलाश में सिर्फ तपस्या करते थे। उनके समय बिताने के लिए विष्णुजी ने उनके लिये यह स्थान चुना। मान्यताएं चाहे कुछ भी हो पर एकबारगी गुफ़ा में बनी आकृतियों को देख लेने के बाद उनसे जुड़ी मान्यताओं पर भरोसा किये बिना नहीं रहा जाता।

पाण्डवों के एक वर्ष के प्रवास के दौरान का दृश्य, उनके द्वारा जुए में हारना, सतयुग से कलयुग आने का चित्रण व कई प्राचीन शिल्प कला के दृष्य देखने को मिलते हैं। कुमाऊँ एक धार्मिक स्थल के साथ ही रोमांचक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है।
भारत का प्राचीन स्कन्द पुराण ग्रन्थ और टटोलिये मानस खण्ड के 103वें अध्याय के 273 से 288 तक के श्लोकों में गुफ़ा का वर्णन पढ़ कर उपरोक्त प्रतिकात्मक मूर्तियां मानो साक्षात जागृत हो जाएंगी और आप अपने 33 करोड़ देवी-देवताओं के दर्शन कर रहे होंगे।
शृण्यवन्तु मनयः सर्वे पापहरं नणाभ्‌ स्मराणत्‌ स्पर्च्चनादेव,
पूजनात्‌ किं ब्रवीम्यहम्‌ सरयू रामयोर्मध्ये पातालभुवनेश्‍वरः [3]

(अर्थात व्यास जी ने कहा मैं ऐसे स्थान का वर्णन करता हूं जिसका पूजन करने के सम्बन्ध में तो कहना ही क्या, जिसका स्मरण और स्पर्च्च मात्र करने से ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं वह सरयू, रामगंगा के मध्य पाताल भुवनेश्‍वर है)।
103वें अध्याय के श्लोक 21 से 27 के अनुसार ये भूतल का सबसे पावन क्षेत्र है। पाताल भुवनेश्‍वर वहाँ जागरूक है और उनका पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ से हज़ार गुणा फल प्राप्त होता है अतः उससे बढ़कर कोई दूसरा स्थान नहीं है। चार धाम करने का यश यहीं प्राप्त हो जाता है। श्‍लोक 30-34 के अनुसार पाताल भुवनेश्‍वर के समीप जाने वाला व्यक्ति एक सौ कुलों का उद्धार कर शिव सायुज्य प्राप्त करता है।

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प्राचीन काल से ही पाताल भुवनेश्‍वर प्रसिद्ध रहा है। चारों ओर वृक्षों से आच्छादित एक गुफ़ा जो बाहर से किसी गांव के पुराने घर का 4 फुट लम्बा, डेढ़ फुट चौड़ा द्वार यानि एक बड़ी सूई में छोटा सा छेद मालूम होता है, उस द्वार के सामने पहुंच कर एकदम आप उस स्थान विशेष से प्रभावित नहीं होंगे।
यही है सरयू नदी व रामगंगा नदी के मध्य गुपतड़ी नामक स्थान की ऐतिहासिक पाताल भुवनेश्‍वर गुफ़ा। यहां तेतीस करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तिया प्रतिष्ठित हैं। गुफ़ा में मौजूद मंदिर भगवान शिव का है। कहा जाता है कि ब्रह्मा स्वर्ग के दूसरे देवताओं के साथ यहां शिव अराधना के लिए आते हैं। मंदिर के अंदर संकरे पानी की धारा से होते हुए गुफ़ा में जाना होता है।
गंगोलीहाट क्षेत्र में प्राचीन शिव पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा मंदिर धरती के अंदर 8 से 10 फीट गहरी गुफ़ा के अंदर बना हुआ है। जिसमें तरह-तरह की मूर्तियां विद्यमान हैं। यह स्थान सरयु राम गंगा के बीच बसा हुआ है। जिसका मुख उत्तर दिशा है।

हंस की टेड़ी गर्दन वाली मूर्ति
गुफ़ा के अंदर जाने का मुख्य रास्ता भी कई छोटी गुफ़ाओं का रास्ता दिखाता है। इस गुफ़ा में उतरने के लिए कोई पौढ़ियां नहीं है, आपको पच्चीस फुट सीधा उतरने के लिए घुप्प अंधेरा मिलेगा।
वर्षों से लोग उबड़-खाबड़ पत्थरों पर पैर टिका उल्टा या सीधा उतर लकड़ी जलाकर गुफ़ा के दर्शन करते थे। अब कुछ वर्षों पहले भारतीय थल सेना के सौजन्य से जैनरेटर की रोशनी में जन्‍जीर की मदद से उतर कर आप आराम से गुफ़ा को बिजली की रोशनी में देख सकते हैं। केवल जैनरेटर में तेल के खर्चे के लिए आपको पुजारी को 25-30 रु. तक की राशि देनी होगी।
मुख्य द्वार से संकरी फिसलन भरी 80/84 सीढियां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया नुमाया होती है जहां युगों-युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है।
गुफ़ा में बने पत्थरों के ढांचे देख के आध्यात्मिक वैभव की पराकाष्ठा के विषय में सोचने को मजबूर कर देते हैं। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा का प्रवेश द्वार बहुत संकरा है, सीढियों द्वारा लगभग सरक कर नीचे उतरना पडता है। जिसमें एक बार में एक व्यक्ति ही बड़ी मुश्किल से नीचे उतर पाता है। लेकिन गुफ़ा में सीढियां उतरते ही एक बडे कमरे में आप अपने को 33 करोड़ देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक शिलाओं, प्रतिमाओं व बहते हुए पानी के मध्य पाते हैं।
गुफ़ा में घुसते ही शुरुआत में (पाताल के प्रथम तल) नरसिम्हा भगवान के दर्शन होते हैं। कुछ नीचे जाते ही शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है।
आगे बढने पर एक छोटा सा हवन कुंड दिखाई देता है। कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला परंतु तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है।
हवन कुण्ड के आगे गुफ़ा की मौन तन्द्रा को भंग कर पुजारी की आवाज़ गूंजती है कि आप शेष नाग के शरीर की हड्डियों पर खड़े हैं और आपके सिर के उपर शेष नाग का फ़न है तो आपको कुछ समझ नहीं आयेगा परन्तु जैसे ही उस गुफ़ा के चट्टानी पत्थरों पर गहन दृष्टिपात करें तो आपके शरीर में सिरहन सी दौड़ेगी और आप वास्तव में अनुभव करेगें की कुदरत द्वारा तराशे पत्थरों में नाग फ़न फैलाये है।
स्वर्ग से समागत ऐरावत हाथी का शरीर उन चट्टानों में शायद न दिखे पर ज़मीन में बिल्कुल झुक कर भूमि से चन्द ईचों की दूरी पर चट्टानों में हाथी के तराशे हुए पैरों को देख कर आपको मानना ही पड़ेगा कि ईश्‍वर (विश्वकर्मा) के अलावा कोई भी मूर्तिकार इन पैरों को नहीं घड़ सकता है।[1]
शेषनाग के शरीर पर (हड्डियों) पर चल कर गुफ़ा के मध्य तक जाया जा सकता है जहां शिव ने गणेश (गणेशजी की मूर्ति) का सिर काट कर रख दिया था। उनके ऊपर गुफ़ा की छत में चट्टान से बना कमल का फूल है, जिससे पानी टपकते हुए मूर्ति पर पड़ता है। भगवान शंकर की लीला स्थली होने के कारण उनकी विशाल जटांए इन पत्थरों पर नजर आती हैं। शिव जी की तपस्या के कमण्डल, खाल सब नजर आते हैं।
गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है। ये कामधेनु गाय का स्तन है जिससे वृषभेश के ऊपर सतत दुग्ध धारा बहती है। कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है।[2]
आगे जाकर एक मुड़ी गरदन वाला गरुड़ एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखई देता है। माना जाता है कि शिवजी ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन मोड़ दी। (हंस की टेड़ी गर्दन वाली मूर्ति। ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जुठा कर दिया था।)
ब्रह्मा, विष्णु व महेश की मूर्तियां साथ-साथ स्थापित हैं। पर्यटक आश्चर्यचकित होता है कि जब छत के उपर एक ही छेद से क्रमवार पहले ब्रह्मा फिर विष्णु फिर महेश की इन मूर्तियों पर पानी टपकता रहता है, और फिर यही क्रम दोबारा से शुरू हो जाता है।
एक स्थान पर यहाँ चार प्रस्तर खण्ड हैं जो चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन आकारों में कोई परिवर्तन नहीं होता। जबकि कलियुग का पिंड लम्बाई में अधिक है और उसके ठीक ऊपर गुफ़ा से लटका एक पिंड नीचे की ओर लटक रहा है और इनके मध्य की दूरी पुजारी के कथानुसार 7 करोड़ वर्षों में 1 इंच बढ़ती है और पुजारी का कथन सत्य माने तो दोनों पिंडों के मिल जाने पर कलियुग समाप्त हो जायेगा।
गुफ़ा में दाहिनी ओर केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ की तीनों मूर्तियां (बद्रीनाथ, केदारनाथ सहित चारों धामों के प्रतीक) विद्यमान हैं। यहां पर तीनों के दर्शन एक ही दृष्टि में होते हैं। मान्यता है कि पाताल भुवनेश्वर के दर्शन से ही चार धाम के दर्शन के पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। उसी के साथ काल भैरव की जीभ की आकृति दिखाई देती है उनके गर्भ से प्रवेश करके उनकी पूंछ से निकल जायें तो कहा जाता है कि मोक्ष प्राप्त हो जाता है। लेकिन वहां तक मनुष्य अभी तक नहीं पहुंच पाया। पुराण के अनुसार कोई मनुष्य उस स्थान तक पहुंच जाए तो उसका अगला जन्म नहीं होता।
गुफ़ा की शुरुआत पर वापस लौटने पर भगवान शंकर का मनोकामना कुण्ड (झोला) है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज़ पार करने पर मनोकामना पूरी होती है। उसके साथ आसन है तथा काली कमली बीछी है और उसके नीचे बाधम्बर बिछा है वहीं पर पाताल भैरवी है जो मुण्डमाला पहने खड़ी हैं। कुछ आगे ऊंची दीवार पर जटानुमा सफेद संरचना है। यहीं पर एक जलकुण्ड है मान्यता है कि पाण्डवों के प्रवास के दौरान विश्वकर्मा ने उनके लिये यह कुण्ड बनवाया था।

शंकर जी का मंदिर प्रवेश द्वार
यहां पर खुले दरवाजों के अन्दर संकरा चार द्वार हैं-
रण द्वार
पाप द्वार
धर्म द्वार
मोक्ष द्वार।
रण द्वार कलियुग में बंद हुआ, धर्म द्वार एवं मोक्ष द्वार खुले हुए हैं। इसके साथ ही ब्रह्मा जी का पाँचवां सिर है जिसे ब्रह्मकपाल कहा गया है। जिसमें उत्तर वाला सिर वह है जिस पर तर्पण करते हैं। जिसमें एक के बाद एक कुण्डों में पानी जमा होता है। पुराणों में लिखा गया है कि उन कुण्डों में पानी के साथ अमृत बहता था। इस गुफ़ा में 33 करोड़ देवताओं के बीच भगवान शिव का नर्मदेश्वर लिंग है जिस पर जितना भी पानी पड़ता है वह उसे सोख लेता है। इसके बाद आकाश गंगा है जिस पर बहुत लम्बी तारों की कतार है। इसके साथ ही सप्त ऋषि मंडल है। 19वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित तांबे मड़ा शिवलिंग भी यहीं स्थित है। माना यह भी जाता है गुफ़ा के आंखिरी छोर पर पाण्डवों ने शिवजी के साथ चौपड़ खेला था। ये सब पाताल भुवनेश्‍वर की महानता है।

हरिकिशन किमोठी की विशेष रिपोर्ट- हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल तथा दैनिक समाचार पत्र- देहरादून तथा हरिद्वार से प्रकाशित- मोबा0 9412932030 मेल; csjoshi_editor@yahoo.in

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