PMGSY UK; एक हजार करोड़ घोटाले का आरोप लगाया था

ताकि सनद रहे- एक्‍सक्‍लूसिव आलेख-  हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल;by Chandra Shekhar Joshi- Editor 

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाइ) में  भारतीय जनता पार्टी उत्‍तराखण्‍ड ने उत्‍तराखण्‍ड की तत्‍कालीन काग्रेस सरकार पर प्रदेश में पीएमजीएसवाइ योजना के तहत एक हजार करोड़ लागत की सड़कों के टेंडर में बड़े घोटाले का आरोप लगाया था  #उत्तराखंड में  34 प्रतिशत गांव आज भी पक्की सड़कों का इंतजार

उत्तराखंड में सड़कों को लेकर आंदोलन रोज की बात है। हाल यह है कि राज्य में 34 प्रतिशत गांव आज भी पक्की सड़कों का इंतजार कर रहे हैं। यह तब है, जबकि पहाड़ में सड़क लाइफ लाइन मानी जाती है। संपर्क का एकमात्र जरिया भी सड़क ही है।उत्तराखंड गठन के 15 साल बाद राज्य में अब भी पांच हजार से ज्यादा गांव ऐसे हैं जहां लाइफ लाइन कही जाने वाली पक्की सड़कें तक नहीं हैं। उत्तराखंड में करीब 34 फीसदी गांव हैं, जिनको पक्की सड़क का इंतजार है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) का 2016-17 का स्टेट फोकस पेपर इसकी तस्दीक कर रहा है। नाबार्ड की इस रिपोर्ट से जाहिर है कि प्रदेश में पर्वतीय जिलों के हाल और भी ज्यादा खराब हैं। चंपावत जैसा जिला भी उत्तराखंड में ही है, जहां 62 प्रतिशत गांव अभी पक्की सड़क का इंतजार कर रहे हैं।

वही दूसरी ओर जोगथ उत्‍तरकाशी जनपद में अधूरी सड़कें ग्रामीणों की परेशानी का कारण बनने लगी है, स्थिति इतनी भयावह है की इन सड़को पर चलाना और पैदल चलना काफी खतरनाक हो गया है. कार्यो की गति काफी घटिया होने के साथ ही काम काफी धीमा चलता रहा है. सालो से इन सड़कों का निर्माण पूर्ण नही हो पाया, परन्तु हर साल बजट ठिकाने लगाया जाता रहा है, सड़क की स्थिति दयनीय होने की शिकायत मिलने के बाद भी इसकी जांच करने की जरूरत महसूस नही की गयी, शायद काजल की कोठरी में कैसा भी सयाना जाओ, वाली कहावत सही चरितार्थ होतीहै,

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शत-प्रतिशत केंद्र द्वारा प्रायोजित प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना 25 दिसम्बर, 2000 को शुरू की गई। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क-सम्पर्क से वंचित गांवों को बारह मासी सड़कों से इस प्रकार जोड़ना है ताकि 500 या इससे अधिक जनसंख्या वाला गांव (पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में 250 व्यक्ति) भारत निर्माण के अंतर्गत, 2009 तक समयबद्ध तरीके से, मैदानी क्षेत्रों में 1000 से ज्यादा जनसंख्या वाले क्षेत्र और पहाड़ी व जनजातीय क्षेत्रों में 500 या ज्यादा की जनसंख्या वाले क्षेत्रों को संयोजन प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया। विद्यमान ग्रामीण सड़क नेटवर्क का क्रमबद्ध उन्नयन भी इस योजना का समाकल घटक है। इस कार्य योजना में, विद्यमान ग्रामीण सड़क नेटवर्क के उन्नयन/ नवीकरण भी परिलक्षित हैं।
एक वक्त था जब दूर दराज के इलाकों में लोग संपर्क की कमी से त्रस्त थे। इस कमी को दूर करने की कोशिश के तहत प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 500 और 250 लोगो वाली जन्संख्या की बसावटो को जोडने का काम बड़ी ही शिद्दत से किया गया। योजना की मांग और सफलता को देखते हुए जल्द ही सरकार पहाड़ी क्षेत्रों, रेगिस्तानी तथा जनजातीय क्षेत्रों को जोड़ने के लिए पीएमजीए सेवाएं 2 को लागू करने जा रही है।
उत्‍तराखण्‍ड में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान बीजेपी ने प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में घोटाले का आरोप लगाते हुए सी0बी0आई0 जांच की मांग को लेकर हंगामा किया था

13 जून 2016 में उत्तराखंड बीजेपी ने तत्‍कालीन कांग्रेस राज्य सरकार के मंत्रियों व कुछ अधिकारियों पर केन्द्र सरकार की वित्त पोषित योजना ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ में 1000 करोड़ से अधिक के टेंडरों में घोटाला करने के आरोप लगाए थे। बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान का कहना था कि टेडरों के माध्यम से एक बहुत बड़े घोटाला किया गया है जिसमें कई अधिकारी व कई मंत्री भी शामिल हैं।
मुन्ना सिंह ने कहा था कि अधिकारी व मंत्रियों ने फर्जी तरीके से टेंडर देकर राजस्व को सैकड़ों करोड़ रूपए का चूना लगाया है। उन्होंने घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग करते हुए कहा था कि इस घोटाले का लेखा-जोखा वो सूबे के सीएम और राज्यपाल से सामने भी रखेंगे।
उत्तराखंड में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) में करोड़ों रुपये के घोटाले का आरोप लगाते हुए बीजेपी ने इन अनियमितताओं की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी। बीजेपी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने देहरादून में मीडिया से कहा था, ‘राज्य में केंद्र पोषित योजनाओं खासतौर से प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ है। अधिकारियों की मिलीभगत से नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ठेके दिए गए हैं।’
बीजेपी नेता ने कहा था कि उनकी पार्टी करोड़ों रुपये की इन अनियमितताओं के मामले में सीबीआई जांच की मांग करती है।
इस संबंध में विभिन्न उदाहरण देते हुए चौहान ने कहा था कि केबीएम कंस्ट्रक्शन नाम की एक कंपनी को प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत कई काम आवंटित कर दिए गए जबकि अनुभवहीन होने के अलावा वह लोक निर्माण विभाग के साथ पंजीकृत भी नहीं थी। उन्होंने कहा कि केंद्र पोषित योजना में मॉडल बिड डाक्यूमेंट के तहत टेंडर प्रक्रिया होती है, मगर केबीएम कंस्ट्रक्शन को 3.33 करोड़ के दो पुलों के निर्माण का ठेका दे दिया गया, जबकि उक्त कंपनी सेतु निर्माण के लिए पंजीकृत नहीं है।
उन्होंने कहा कि इसी कंपनी से 4.91 करोड़ की सड़कों के सर्वे व डीपीआर का काम भी दे दिया गया, जबकि यह कंपनी इस काम के लिए पंजीकृत ही नहीं है। किल्बोखाल-टिकोलीखाल मार्ग पर उक्त कंपनी को 150 लाख का फर्जी भुगतान की पुष्टि भी विभागीय जांच में हो चुकी है। पंजीकरण न होने के बावजूद उक्त कंपनी से जुड़े व्यक्ति को 2.31 करोड़ की सड़कों की डीपीआर का कार्य दे दिया गया। केबीएम कंस्ट्रक्शन के इंजीनियर से पंजीकरण न होने पर भी 9.74 करोड़ की डीपीआर बनवाई, जो घोर अनियमितता है। विभागीय अफसरों ने उन सड़कों के भी टेंडर अवार्ड कर दिया, जिनकी फारेस्ट क्लीयरेंस भी नहीं हुई थी। नियमों को ताक पर रखकर 113 में से 75 काम (225 करोड़ लागत) सिंगल बिड के आधार पर ही आवंटित कर दिए। सड़कों के एस्टीमेंट में भूस्खलन के मलबा निस्तारण जैसे कुछ ऐसे काम भी जोड़ दिए गए जो 80-90 फीसद फर्जी हैं। गत 3-4 वर्षों में हुए घोटालों में करीब 300 करोड़ की चपत सरकारी खजाने को लगाई गई। इस घोटाले में सरकार के मंत्री से लेकर अफसर व ठेकेदार संलिप्त रहे हैं। लिहाजा, इस पूरे घोटाले की जांच सीबीआइ से कराई जानी चाहिए।

अब इसके उपरांत सतता परिवर्तन हुआ, उत्‍तराखण्‍ड में भाजपा सरकार विराजमान हुई, मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेन्द्र सिंह रावत विराजमान हुए, और मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में समय समय पर सचिवालय में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की प्रगति के संबंध में बैठक हुई परन्‍तु भाजपा सरकार के मुखिया भूल गये कि भाजपा ने कितना सनसनीखेज आरोप तत्‍कालीन कांग्रेस सरकार पर लगाया था। और बाते होने लगी जीरो टोलरेंस की और बाकी बाते सब भुला दी गयी । भाजपा सरकार के मुखियामुख्यमंत्री जी कहने लगे कि कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में लगी सभी निर्माण एजेंसियों को आपस में समन्वय बनाकर कार्य करना होगा, तभी इस लक्ष्य को समय पर पूरा किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि पीएमजीएसवाई के अवशेष लक्ष्यों को वर्ष 2019 तक पूर्ण करने के लिए अन्य निर्माण एंजेंसियों जैसे केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग, ग्रामीण निर्माण विभाग आदि से भी सहयोग लिया जाए।

वही मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि पीएमजीएसवाई एक बहुत ही महत्वपूर्ण योजना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इसको समयबद्ध तरीके से पूर्ण करना होगा। इसके लिए आवश्यक पदों को शीघ्र भरा जाए। साथ ही वन भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया में भी तेजी लायी जाए। वन भूमि हस्तांतरण में तेजी लाने के लिए जिलाधिकारियों एवं वन संरक्षकों को लगातार समन्वय बनाकर कार्य करना होगा। जिलाधिकारी एवं वनसंरक्षकों के बीच हर 15 दिन के अन्दर बैठक होनी चाहिए। सड़कों के डामरीकरण के बाद उनके रख-रखाव के लिए महिला मंगल दल एवं स्थानीय दलों का सहयोग लिया जाएगा। इसमें सड़कों के किनारे पौधारोपण को भी जोड़ा जाए। इसके लिए नैपियर एवं खसखस आदि के वृक्षों के रोपण पर बल दिया जाए। इससे भूमि कटाव रुक सकेगा। नालियों एवं कलवर्ट की सफाई के साथ साथ झाड़ियों के कटान पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि इस योजना के अंतर्गत बनाए जाने वाले पुलों में नई तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में लगी सभी निर्माण एजेंसियों को आपस में समन्वय बनाकर कार्य करना होगा, तभी इस लक्ष्य को समय पर पूरा किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि पीएमजीएसवाई के अवशेष लक्ष्यों को वर्ष 2019 तक पूर्ण करने के लिए अन्य निर्माण एंजेंसियों जैसे केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग, ग्रामीण निर्माण विभाग आदि से भी सहयोग लिया जाए। योजनारम्भ से फेस 13 तक कुल 1314 कार्य (जिसमें 1196 मार्ग एवं 118 सेतु सम्मिलित हैं) स्वीकृत किए गए थे। इसकी कुल लंबाई 10263 किलोमीटर है। इसमें से 30 जून 2017 तक 969 कार्यों (8058 किलोमीटर का कार्य जिसमें 875 मार्ग 94 सेतु सम्मिलित हैं) को पूर्ण कर लिया गया है। 1 जुलाई 2017 तक अवशेष कार्य 345 हैं, जिसमें 321 मार्ग एवं 24 सेतु (कुल लंबाई 2205 किलोमीटर) सम्मिलित हैं।

वही दूसरी ओर  उत्तराखंड में  34 प्रतिशत गांव आज भी पक्की सड़कों का इंतजार
उत्तराखंड में सड़कों को लेकर आंदोलन रोज की बात है। हाल यह है कि राज्य में 34 प्रतिशत गांव आज भी पक्की सड़कों का इंतजार कर रहे हैं। यह तब है, जबकि पहाड़ में सड़क लाइफ लाइन मानी जाती है। संपर्क का एकमात्र जरिया भी सड़क ही है।
यातायात के अलावा उत्पादों को गांव से मंडियों तक पहुंचाने का जरिया भी सड़क ही है। पर्वतीय जिलों का हाल तो और भी बुरा है। चंपावत में केवल 38 प्रतिशत गांवों को पक्की सड़क मुहैया है। अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ में भी पक्की सड़क के मामले में गांवों के लोगों को हिचकोले खाते हुए सफर करना पड़ रहा है। प्रदेश में सड़क विकास का पैमाना भी है। विधायक निधि से सबसे अधिक प्रस्ताव सड़कों के ही होते हैं। प्रदेश में ग्रामीण सड़कों का दारोमदार प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना पर है।
सरकार के मुताबिक 8599 किलोमीटर सड़क इस योजना के तहत स्वीकृत हैं। इसमें से 4724 किलोमीटर सड़क बनाई जा चुकी हैं। 3135 किलोमीटर सड़क पर काम जारी है और 285 किलोमीटर सड़क पर काम शुरू ही नहीं किया जा सका है। 453 किलोमीटर सड़क पर वन अधिनियम के कारण काम शुरू ही नहीं किया जा सका है।
जिला – गांव जहां हैं पक्की सड़कें (प्रतिशत में)
अल्मोड़ा – 50 बागेश्वर – 50.35 पिथौरागढ़ – 43.64 नैनीताल – 73.60 चंपावत – 38 ऊधमसिंह नगर – 98.48 चमोली – 65.18 पौड़ी – 60.56  रुद्रप्रयाग – 80.25 टिहरी – 71.74 उत्तरकाशी – 52.34 देहरादून – 76.43 हरिद्वार – 95.25

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