अमेरिका में बसे वकील ने वरूण की शिकायत मोदी से की

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद वरुण गांधी ने विदेशी एस्कॉर्ट महिलाओं तथा वेश्याओं के साथ खिंचीं उनकी तस्वीरों के ज़रिये ब्लैकमेल किए जाने पर हथियार निर्माताओं को रक्षा मामलों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दीं. यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय (पीएमओ) को लिखे एक खत में कही गई है.

16 सितंबर को की गई यह शिकायत अमेरिका में बसे वकील सी. एडमंड्स एलेन ने की है, और उनका कहना है कि विवादास्पद हथियार विक्रेता अभिषेक वर्मा ने वरुण गांधी को इस्तेमाल किया, ताकि वह (वरुण) भारत सरकार से सौदे हासिल करने में जुटे हथियार निर्माताओं को रक्षा संबंधी विवरण दें. दरअसल, वर्ष 2012 में एक दूसरे से अलग हो जाने से पहले तक अभिषेक वर्मा तथा सी. एडमंड्स एलेन व्यापारिक साझीदार रहे हैं. अब सी. एडमंड्स एलेन का कहना है कि संसदीय रक्षा समिति के सदस्य के रूप में अपने पास मौजूद जानकारी के बूते वरुण गांधी ने ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता किया…’
वरुण गांधी ने कहा, “मैं इतनी हास्यास्पद और बेवकूफाना बात का क्या जवाब दूं…? क्या इन आरोपों का कोई भी सबूत मौजूद है…? इनमें से किसी भी बात का क्या सबूत है…?” उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सांसद वरुण गांधी ने बताया कि वह पिछले 15 साल से भी ज़्यादा वक्त से अभिषेक वर्मा से नहीं मिले हैं, संसदीय रक्षा समिति की जिन बैठकों का ज़िक्र सी. एडमंड्स एलेन ने किया है, उनमें उन्होंने शिरकत ही नहीं की थी, उन्हें इस तरह ‘फुसलाया जाता हुआ’ दिखाने वाली तस्वीरें असली नहीं हैं, और ये आरोप उन पर इसलिए लगाए जा रहे हो सकते हैं, ताकि उन्हें आने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को कोई भूमिका निभाने से रोका जा सके. (कुछ बीजेपी कार्यकर्ताओं का मानना है कि वरुण गांधी को पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया जाना चाहिए)

सी. एडमंड्स एलेन तथा अभिषेक वर्मा के बीच साझीदारी जनवरी, 2012 में खत्म हुई थी, और उस वक्त दोनों ने ही एक दूसरे पर मनी-लॉन्डरिंग, गबन और धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इसके बाद सी. एडमंड्स एलेन लगातार भारतीय जांचकर्ताओं को अभिषेक वर्मा के खिलाफ कागज़ात देते रहे.

अभिषेक वर्मा को जेल भी भेजा गया था, और कई मामलों में जांच भी हुई, जिनमें नेवी वॉर रूम लीक मामला भी शामिल है, जिसके तहत नौसेना से जुड़े संवेदनशील गोपनीय दस्तावेज ऐसे गुट द्वारा बेचे गए थे, जिसमें पूर्व तथा मौजूद सैन्याधिकारी शामिल थे. इस मामले में अभिषेक वर्मा को वर्ष 2008 में ज़मानत दी गई थी.

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