योगी की रामलीला ;योगी का असली काम और इम्तिहान अब शुरू

 योगी के ‘अयोध्या कूच’ के कई मायने #योगी आदित्यनाथ का असली काम और इम्तिहान अब शुरू  #हिंदू आस्था के वोटबैंक को बटोर कर रखा जा सके #अयोध्या में बीजेपी ने विकास के रथ पर सवार हो कर राम राज्य लाने की बात#

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देश की आध्यात्मिक नगरी अयोध्या में दीपावली को लेकर भव्य आयोजन किया गया. अयोध्या के सरयू के तट पर रामकथा पार्क में सीएम योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल राम नाईक ने भगवान राम, सीता और लक्ष्मण का माला पहनाकर स्वागत किया, आरती उतारी और राजतिलक भी किया. इसके साथ दीपोत्सव कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ. इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यों को ‘राम राज्य’ स्थापित करने की दिशा में उठाए गए कदम बताया. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार के कार्यों से देश के आम नागरिक को जो सुख मिलेगा, वही ‘राम राज्य’ होगा. जय श्री राम’ के जयकारों के बीच सीएम योगी ने कहा कि अयोध्या के बारे में देश और दुनिया के मन में क्या है. इसकी तस्वीर पेश करने के लिए जरूरी था कि दुनिया को मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने वाली सभी चीजें देने वाली अयोध्या को उसके असल रूप में पेश किया जाए. उसे नकारात्मक चर्चा के बिंदु से उसे सकारात्मकता तक ले जाने का हमारा अभियान है.
सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का मुद्दा है लेकिन बीजेपी करोड़ों हिंदुओं की आस्था को लेकर पर्यटन की आड़ में हिंदुत्व का कार्ड खेलना चाहती है. उस कार्ड के लिए हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता की पहचान रखने वाले योगी आदित्यनाथ से बेहतर कोई और ब्रांड एंबैसेडर नहीं हो सकता. बीजेपी ने यूपी में पहले संत के हाथ में सत्ता सौंपी और अब राम मंदिर के जरिए कोर वोटरों की आस्था बढ़ाने और बरकरार रखने की जिम्मेदारी भी सौंप दी.
कहा जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ का असली काम और इम्तिहान अब शुरू हुआ है. उन्हें उनकी पहचान से जुड़ा काम सौंपा गया है ताकि भगवा राजनीति के आरोपों के बगैर ही हिंदू आस्था के वोटबैंक को बटोर कर रखा जा सके. यही वजह है कि अयोध्या में बीजेपी ने विकास के रथ पर सवार हो कर राम राज्य लाने की बात की. विकास की परिभाषा रामराज्य के नाम से गढ़ी गई.
अयोध्या में योगी की रामलीला के पीछे साल 2019 के लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार की गई है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने 350 से ज्यादा सीटों का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हासिल करने में यूपी की बड़ी भूमिका होगी. तभी बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड के जरिए योगी आदित्यनाथ को असली मिशन सौंप दिया है ताकि यूपी में राम मंदिर के नाम पर मायूस हुआ वोटर पार्टी से छिटके नहीं.
योगी ने अयोध्या में दीपावली पर्व मनाकर जिस तरह से राम भक्तों में भरोसे की लौ जगाई है उससे साफ इशारा है कि योगी सरकार राम मंदिर के एजेंडे पर आगे बढ़ रही है लेकिन उसका मिशन 350+है.

15 साल बाद अयोध्या की धरती पर यूपी के किसी सीएम के पांव पड़े. एक साथ दो वनवास खत्म हुए. पहला 15 साल में किसी सीएम का अबतक अयोध्या न आना था तो दूसरा था अयोध्या में पहली दफे भव्य तरीके से दीपावली का मनाना. अयोध्या में त्रेता युग को जीवंत करने की कोशिश हुई तो विकास के नाम पर रामराज्य का उद्घोष हुआ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्रीराम और लक्ष्मण का राज्याभिषेक किया. ये प्रतीकात्मक राज्याभिषेक फिर से उस अयोध्या को जीवंत करने के लिए जरूरी था जिसकी पहचान हालात ने बदलकर कर रख दी थी. 25 साल से सूनी रही सरयू में लाखों दीपक जगमगाए. एक नई उम्मीद की रोशनी दिखी. वो उम्मीद जो 6 दिसंबर, 1992 के बाद बोझिल हो चुकी थी. अयोध्या के दामन पर बाबरी विध्वंस का दाग़ लगा था तो गोधरा के बाद भड़की हिंसा का आरोप भी. अयोध्या से ही लौटने वाले कारसेवक साबरमती एक्सप्रेस में सवार थे जो गोधरा कांड के शिकार बन गए थे.
अयोध्या उस विडंबना का नाम बन गया था जो कभी राजनीतिक दलों के लिए जरूरी तो बाद में अछूत भी बन गया था. वही अयोध्या सियासत में मुद्दा थी तो यूपी प्रशासन के लिए कानून-व्यवस्था का सिरदर्द भी. अयोध्या अपनी ही जनता के लिए भय और आशंका का सबब बन गई थी. कर्फ्यू और सांप्रदायिक तनाव उसकी नियति बन चुका था.
श्रीराम की भूमि अयोध्या राजनीति का अखाड़ा बन चुकी थी. अब उसी अखाड़े में बीजेपी ने सबसे बड़ा दांव खेला है. विरोधी चित नज़र आ रहे हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उन्हें उबरने का मौका नहीं दिया. खुले मैदान में बीजेपी की सियासत का पुराना ‘राम-रथ’ कई पड़ावों के उतार-चढ़ाव, घुमावदार, कंटीले-पथरीले रास्तों से गुज़रते हुए 28 साल बाद अयोध्या पहुंच चुका है.
इस बार यहां कारसेवकों का हुजूम नहीं है. यहां ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ जैसे नारों का शोर नहीं है. बदली-बदली सी है अयोध्या. सूबे का मुखिया उस जगह दीपावली मनाने पहुंचा जिस नगर ने पूरे देश को दीपपर्व दिया. लेकिन राजनीति ने इसी नगर को वनवास के अंधेरे में धकेल दिया था. चिराग़ तले अंधेरा का नाम बन चुकी थी अयोध्या. इस बार फिर से पुरानी रौनक से गुलज़ार दिखी अयोध्या.
अयोध्या की तरह ही योगी के लिए भी ये दिवाली खास है. अयोध्या में भव्य राम मंदिर के आंदोलनों का खुद योगी हिस्सा रहे हैं. इस बार यहां दीपावली मना कर उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से उन सवालों पर पूर्णविराम लगा दिया जो कि राम को काल्पनिक अवतार बताते थे. पूर्वर्ती यूपीए सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट के मामले में अदालत को दिए हलफनामे में श्रीराम को महज़ कोरी कल्पना बताया गया था. लेकिन योगी ने राम का राज्याभिषेक कर ये जता दिया कि अयोध्या की आत्मा में राम बसते हैं तो फिर मंदिर तो बहुत छोटी सी बात है. उन्होंने राम-राज्य की कल्पना को साकार करने का आह्वान करते हुए राम मंदिर की बहुप्रतीक्षित नींव का आधार तो रख ही दिया
भले ही सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का मुद्दा है लेकिन बीजेपी करोड़ों हिंदुओं की आस्था को लेकर पर्यटन की आड़ में हिंदुत्व का कार्ड खेलना चाहती है. उस कार्ड के लिए हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता की पहचान रखने वाले योगी आदित्यनाथ से बेहतर कोई और ब्रांड एंबैसेडर नहीं हो सकता. बीजेपी ने यूपी में पहले संत के हाथ में सत्ता सौंपी और अब राम मंदिर के जरिए कोर वोटरों की आस्था बढ़ाने और बरकरार रखने की जिम्मेदारी भी सौंप दी.
कहा जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ का असली काम और इम्तिहान अब शुरू हुआ है. उन्हें उनकी पहचान से जुड़ा काम सौंपा गया है ताकि भगवा राजनीति के आरोपों के बगैर ही हिंदू आस्था के वोटबैंक को बटोर कर रखा जा सके. यही वजह है कि अयोध्या में बीजेपी ने विकास के रथ पर सवार हो कर राम राज्य लाने की बात की. विकास की परिभाषा रामराज्य के नाम से गढ़ी गई.

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