“कलयुग केवल नाम आधारा,सुमिर-सुमिर नर उतरई पारा”

High Light # कलियुग की समाप्ति से पूर्व चौंकाने वाली चीजें धरती पर घटित हो रही होंगी;कलयुग में राजा रक्षा करने में असमर्थ हो जाएंगे # कलियुग सबसे आखिरी युग है इसलिए हमें अपने सभी कर्मों का फल इसी युग में भुगतने पड़ेंगे।जब कलियुग की समाप्ति होगी तो निश्चित रूप से चौंकाने वाली चीजें धरती पर घटित हो रही होंगी।बेमौसम बारिश, आंधी-तूफान जल संकट ये सब इसका संकेत भी हैं। # कलयुग में राजा रक्षा करने में असमर्थ हो जाएंगे  # कलियुग में विवाह को धर्म नहीं माना जाएगा # कोई किसी कुल में पैदा ही क्यूं न हुआ जो बलवान होगा वही कलियुग में सबका स्वामी होगा # मनुष्य अपने को ही पंडित समझेंगे और बिना प्रमाण के ही सब कार्य करेंगे #  मनुष्य वर्तमान पर विश्वास करने वाले,शास्त्रज्ञान से रहित,दंभी और अज्ञानी होंगे # भारी वर्षा,प्रचंड आंधी और जोरों की गर्मी पड़ेगी : #Himalayauk Newsportal & Daily Newspaper, publish at Dehradun & Haridwar: CS JOSHI- EDITOR Mob 9412932030 Mail; himalayauk@gmail.com

विशेष- भगवान शिव और मछुआरे औरत की कहानी आप जानते है?

 कलियुग में केवल भगवान का संकीर्तन करने मात्र से ही सारी आसक्तियाँ छूट जाती है और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। सतयुग में भगवान का ध्यान करने से,और द्वापर में विधिपूर्वक उनकी पूजा-सेवा से जो फल मिलता है वह कलियुग में केवल भगवन्नाम का कीर्तन करने से ही प्राप्त हो जाता है। कलियुग के प्रभाव से बचने के लिए भगवान के नाम का संकीर्तन करना चाहिए,तभी हम कलियुग की कालिमा से बच पाएंगे। “कलयुग केवल नाम आधारा,सुमिर-सुमिर नर उतरई पारा।”

कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व हुआ था।श्रीमद्भागवत पुराण और भविष्यपुराण में कलियुग के अंत का वर्णन मिलता है।  सतयुग (दिव्य वर्ष) 17,28,000 (सौर वर्ष)  त्रेतायुग 3600 (दिव्य वर्ष) 12,96,100 (सौर वर्ष) द्वापरयुग 2400 (दिव्य वर्ष) 8,64,000 (सौर वर्ष) कलियुग 1200 (दिव्य वर्ष) 4,32,000 (सौर वर्ष) कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ था, जब पांच ग्रह; मंगल,बुध,शुक्र,बृहस्‍पति और शनि,मेष राशि पर 0 डिग्री पर हो गए थे।इसका मतलब 3102+2016= 5118 वर्ष कलियुग के बीत चुके हैं 

जैसे-जैसे कलयुग अंत कि ओर बढ़ेगा मनुष्य का जीवनकाल घटकर मात्र 12 साल तक रह जाएगा और शरीर 4 इंच सिकुड़ जाएगा।  पृथ्वी जब विनाश के करीब होगी तब हर जगह का पानी रहस्यमयी तरह से सूखने लगेगा।इसके अलावा किसी के भीतर भावनाएं नहीं रह जाएगी।मां,बाप,गुरू किसी के लिए भी मनुष्य के दिल में कोई भावना नहीं रहेगी।  लोगों के लिए पैसा इतना जरूरी हो जाएगा कि उसके लिए वो किसी का भी खून करने को तैयार हो जाएगा।  कलियुग के 5,000 साल बाद पवित्र गंगा नदी उल्टी बहने लगेगी और वापस बैकुंठ लौट जाएगी।माना जाता है कि कलयुग के 10,000 साल बाद सभी देवी-देवता पृथ्वी का पवित्र स्थान छोड़कर जाने लगेंगे। कलयुग का अंत आते-आते पृथ्वी पूरी तरह बंजर हो जाएगी।न धरती पर फिर कोइ फसल उग पाएगी और न ही फूलों से धरती लहलहा पाएगी।पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जंतु तक निर्जीव हो जाएंगे।

कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ। दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥9

भावार्थ:-कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रस लिया, सद्ग्रंथ लुप्त हो गए,दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत से पंथ प्रकट कर दिए॥

श्रीमद्भागवत के द्वादश स्कंध में कलयुग के धर्म के अंतर्गत श्रीशुकदेवजी परीक्षितजी से कहते हैं,

ज्यों-ज्यों घोर कलयुग आता जाएगा,त्यों-त्यों उत्तरोत्तर धर्म,सत्य,पवित्रता,क्षमा,दया,आयु,बल और स्मरणशक्ति का लोप होता जाएगा।

पुत्रः पितृवधं कृत्वा पिता पुत्रवधं तथा। निरुद्वेगो वृहद्वादी न निन्दामुपलप्स्यते।।

म्लेच्छीभूतं जगत सर्व भविष्यति न संशयः। हस्तो हस्तं परिमुषेद् युगान्ते समुपस्थिते।।

पुत्र,पिता का और पिता पुत्र का वध करके भी उद्विग्न नहीं होंगे।अपनी प्रशंसा के लिए लोग बड़ी-बड़ी बातें बनायेंगे किन्तु समाज में उनकी निन्दा नहीं होगी।उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जाएगा- इसमें संयम नहीं।एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा।

महाभारत : महाभारत में कलियुग के अंत में प्रलय होने का जिक्र है, लेकिन यह किसी जल प्रलय से नहीं बल्कि धरती पर लगातार बढ़ रही गर्मी से होगा।महाभारत के वनपर्व में उल्लेख मिलता है कि कलियुग के अंत में सूर्य का तेज इतना बढ़ जाएगा कि सातों समुद्र और नदियां सूख जाएंगी।

संवर्तक नाम की अग्रि धरती को पाताल तक भस्म कर देगी।वर्षा पूरी तरह बंद हो जाएगी।सब कुछ जल जाएगा, इसके बाद फिर बारह वर्षों तक लगातार बारिश होगी। जिससे सारी धरती जलमग्र हो जाएगी।

महर्षि व्यासजी के अनुसार कलियुग में मनुष्यों में वर्ण और आश्रम संबंधी प्रवृति नहीं होगी।वेदों का पालन कोई नहीं करेगा।कलियुग में विवाह को धर्म नहीं माना जाएगा। शिष्य गुरु के अधीन नहीं रहेंगे।

पुत्र भी अपने धर्म का पालन नहीं करेंगे।कोई किसी कुल में पैदा ही क्यूं न हुआ जो बलवान होगा वही कलियुग में सबका स्वामी होगा।सभी वर्णों के लोग कन्या बेचकर निर्वाह करेंगे।कलियुग में जो भी किसी का वचन होगा वही शास्त्र माना जाएगा।

लोग ऋण चुकाए बिना ही हड़प लेंगे तथा जिसका शास्त्र में कहीं विधान नहीं है ऐसे यज्ञों का अनुष्ठान होगा। मनुष्य अपने को ही पंडित समझेंगे और बिना प्रमाण के ही सब कार्य करेंगे।तारों की ज्योति फीकी पड़ जाएगी,दसों दिशाएं विपरीत होंगी।

पुत्र पिता को तथा बहुएं सास को काम करने भेजेंगी। कलयुग में समय के साथ-साथ मनुष्य वर्तमान पर विश्वास करने वाले,शास्त्रज्ञान से रहित,दंभी और अज्ञानी होंगे।

जब जगत के लोह सर्वभक्षी हो जाएं,स्वंय ही आत्मरक्षा के लिए विवश हो तथा राजा उनकी रक्षा करने में असमर्थ हो जाएंगे तब मनुष्यों में क्रोध-लोभ की अधिकता हो जाएगी।

कलियुग के अंत के समय बड़े-बड़े भयंकर युद्ध होंगे।भारी वर्षा,प्रचंड आंधी और जोरों की गर्मी पड़ेगी। लोग खेती काट लेंगे,कपड़े चुरा लेंगे,पानी पीने का सामान और पेटियां भी चुरा ले जाएंगे।

चोर अपने ही जैसे चोरों की संपत्ति चुराने लगेंगे।हत्यारों की भी हत्या होने लगेगी,चोरों से चोरों का नाश हो जाने के कारण जनता का कल्याण होगा। युगान्त्काल में मनुष्यों की आयु अधिक से अधिक तीस वर्ष की होगी।लोग दुर्बल, क्रोध-लोभ,तथा बुढ़ापे और शोक से ग्रस्त होंगे।उस समय रोगों के कारण इन्द्रियां क्षीण हो जाएंगी।

हरी काली रात के बाद भोर की लालिमा का उदय होता है।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लार्निभवति भारत, अभ्युत्थानधर्मस्य तदामात्मानं सृजाम्यहम्।

कलियुग में भगवान कल्कि का अवतार होगा,जो पापियों का संहार करके फिर से सतयुग की स्थापना करेंगे।कलियुग के अंत और कल्कि अवतार के संबंध में अन्य पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है।

 फिर धीरे-धीरे लोग साधु पुरुषों की सेवा,दान,सत्य एवं प्राणियों की रक्षा में तत्पर होंगे।इससे धर्म के एक चरण की स्थापना होगी।उस धर्म से लोगों को कल्याण की प्राप्ति होगी। लोगों के गुणों में परिवर्तन होगा और धर्म से लाभ होने का अनुमान होने लगेगा।फिर श्रेष्ठ क्या है,इस बात पर विचार करने से धर्म ही श्रेष्ठ दिखाई देगा। जिस प्रकार क्रमशः धर्म की हानि हुई थी,उसी प्रकार धीरे-धीरे प्रजा धर्म की वृद्धि को प्राप्त होगी।इस प्रकार धर्म को पूर्णरूप से अपना लेने पर सब लोग सतयुग देखेंगे

भगवान शिव और मछुआरे औरत की कहानी आप जानते है?

भगवान शिव और मछुआरे औरत की विवाह की कहानी प्राचीन है, जिसे आप शिव पुराण में पढ़ सकते हैं।

एक बार मां पार्वती ने शिव से अमर कथा और सृष्टि के आदि रहस्यों को समझने की जिद करने लगी। हारकर शिव को उनकी बात माननी पड़ी। लेकिन शर्त यह थी कि जो भी अमर कथा सुनेगा उसे वह कथा पूरी सुननी पड़ेगी। बीच में वह छोड़ नहीं सकता। शिव ने कथा सुनानी शुरू की, लेकिन इससे पहले की कथा पूरी होती मां को नींद आ गई । पार्वती को सोता देख शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने कहा, “तुम एक आदि शक्ति होकर भी कभी-कभी मनुष्य जैसा व्यवहार करने लगती हो।” यह सुनकर मां को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने शिव से कहा, “अब मुझे प्राप्त करने के लिए आपको मनुष्य योनि में ही जन्म लेना पड़ेगा।” इतना कहने के पश्चात वह अंतर्ध्यान हो गयी। पार्वती के जाने के पश्चात शिव बहुत उदास रहने लगे। कई बार उन्हें याद भी किया लेकिन वह आए तो कैसे उन्होंने एक मछुआरे के मुखिया के घर में जन्म ले लिया था। समय बीतने के साथ-साथ पार्वती अपने बाल्यावस्था से निकलकर युवावस्था में प्रवेश कर गयी। उनकी सुंदरता और बहादुरी बहुत प्रचलित थी। कई नवयुवा उनसे विवाह करने की इच्छा रखते थे।

इधर शिव कई साल विरह में बिताने के बाद पार्वती को वापस लाने की सोची। उन्होंने अपने प्रिय नंदी को याद किया और एक लीला रची। शिव के कहे अनुसार नंदी ने एक विशालकाय मछली का रूप धारण किया और उसी नदी में चले गए जहां वह मछुआरे मछली पकड़ने आया करते थे। वहां नंदी ने मछली रूप में नदी में खूब उपद्रव मचाया। जब कभी भी उधर के मछुआरे मछली पकड़ने जाते या तो नंदी महाराज जाल तोड़ देते या वहां से मछुआरों को ही भगा देते। सारे मछुआरे अपनी गुहार लेकर अपने मुखिया के पास पहुंचे। मुखिया ने उनकी बात सुनी और और ऐलान करवा दिया कि जो कोई भी उस मछली को पकड़कर मेरे सामने लाएगा, मैं उससे पार्वती का विवाह कर दूंगा। इतना सुनने के बाद बहुत सारे नवयुवावों ने प्रयास किया। लेकिन नंदी को पकड़ने में असफल रहे। अंततः शिव ने मनुष्य रूप धारण करके मछुआरे की मुखिया के पास पहुंचे और उस मछली को पकड़ने की अपनी इच्छा जतायी । जैसे वह नदी के पास पहुंचे नंदी ने उन्हें देखते ही समझ गए कि यहीं मेरे इष्ट हैं और खुद को उन्हें समर्पित कर दिया। इस प्रकार शिव और पार्वती का पुनः विवाह हुआ।


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