इस यज्ञ से उत्पन्न अग्नि मनुष्य को 10 फीट तक सुरक्षा कवच प्रदान करती है- अग्निहोत्र के अनुनायी युगों से इस ज्ञान की रक्षा कर रहे हैं- आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत

अग्निहोत्र क्या है ?#अग्निहोत्र का अर्थ है कि, ऐसा होम (आहुति) जिसे प्रतिदिन किया जा सकता है तथा उसकी अग्नि को बुझने नहीं दिया जाता है. महाभारत आश्वमेधिक पर्व के अंतर्गत अध्याय 92वें में अग्निहोत्र की महत्ता का वर्णन किया गया है. यज्ञ में इंसान द्वारा आहुति देकर भगवान की आराधना की जाती हैं. इस यज्ञ के बारे में वेदों में भी बताया गया है & : हिंदू धर्म वेदों में पाँच प्रकार के यज्ञों के बारे में बताया गया है – ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेवयज्ञ और अतिथियज्ञ. इसमें से देव यज्ञ जो सत्संग या अग्निहोत्र से कर्म द्वारा किया जाता है. इसमें वेदी बनाकर अग्नि प्रज्ज्वलित कर होम किया जाता है. इसी को अग्निहोत्र यज्ञ के नाम से जाना जाता है. # इस संसार में परमेश्वर ने हमें सब कुछ प्रदान किया है, कृतज्ञतावश हमें प्रतिदिन अग्निहोत्र करने के लिए समय निकालना चाहिए. इस यज्ञ को स्वयं करना चाहिए व दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. #

अग्निहोत्र यज्ञ का वर्णन ‘यजुर्वेद’ में किया गया है. अग्निहोत्र का अर्थ है कि, ऐसा होम (आहुति) जिसे प्रतिदिन किया जा सकता है तथा उसकी अग्नि को बुझने नहीं दिया जाता है. महाभारत आश्वमेधिक पर्व के अंतर्गत अध्याय 92वें में अग्निहोत्र की महत्ता का वर्णन किया गया है. यज्ञ में इंसान द्वारा आहुति देकर भगवान की आराधना की जाती हैं. इस यज्ञ के बारे में वेदों में भी बताया गया है. सर्वप्रथम दयानंद सरस्वती ने इस यज्ञ को अपनी पंच महायज्ञ विधि में प्रस्तुत किया था. यहीं से इस यज्ञ की महत्ता बढ़ गई, और आमजनों के बीच इस यज्ञ ने प्रसिद्धि हासिल की. इस यज्ञ को करने से ‘देव ऋण’ चुकता है. यह यज्ञ आपातकालीन स्थिति के लिए ही नहीं बल्कि प्रतिदिन करने के लिए भी उपयुक्त है. हिंदू धर्म में पौराणिक मान्यता है कि, अग्निहोत्र यज्ञ से उत्पन्न अग्नि से ‘रज और तम’ कणों का नाश होता है. इस यज्ञ से उत्पन्न अग्नि मनुष्य को 10 फीट तक सुरक्षा कवच प्रदान करती है. इस हवन में प्रयोग किया जाने वाला पात्र विशेष आकृति और तांबे का होता है. इस यज्ञ में शुद्ध और साबूत चावलों का प्रयोग करना चाहिए. गाय के गोबर से बने उपलों का इस्तेमाल करना चाहिए.

By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Web & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030 — कलयुग तारक मन्त्र- राधे राधे

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत रविवार को काशी पहुंचे थे. इस दौरान चेत सिंह किले में एक कार्यक्रम में उन्होंने वैदिक ज्ञान की प्रशंसा की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आने वाला समय भारत और सनातन धर्म का है. उन्होंने कहा, लगातार होने वाले हमलों से खासतौर पर उत्तर भारत में वैदिक ज्ञान को बहुत नुकसान हुआ है. वेदों में ज्ञान का खजाना है.  भागवत ने कहा, वेद हमारे ज्ञान का भंडार हैं. इसमें सब कुछ शामिल है. खासतौर से उत्तर भारत में होने वाले लगातार आक्रमणों के चलते वैदिक ज्ञान को नुकसान उठाना पड़ा. अग्निहोत्र के अनुनायी युगों से इस ज्ञान की रक्षा कर रहे हैं. संघ प्रमुख ने कहा कि इस परंपरा को विस्तार किए जाने की जरूरत है. अग्निहोत्र परंपरा के अनुयायियों के काम की तारीफ करते हुए आरएसएस सर संघ चालक ने कहा, आप अपना काम करिए. आपकी सुरक्षा के लिए हिंदू समाज है. ये समय सनातन धर्म और भारत के उत्थान का है. भारत को पूरी दुनिया को धर्म का ज्ञान देना है. धर्म के मूल में सत्य है. उन्होंने कहा, आज पूरा विश्व वेदों के बारे में सोच रहा है. हमारे पास जानकारी है, लेकिन पूरी तरह नहीं जानते. आज भी हमारे अध्यात्म की रक्षा के लिए आप लोग कार्य कर रहे हैं. आपके दर्शन पाकर मैं धन्य हूं.

अग्निहोत्र क्या है ? अग्निहोत्र एक वैदिक हवन पद्धति है। वर्तमान में जब सम्पूर्ण विश्व इस प्रकार के भौतिक प्रदूषण पर शीघ्र ही रोक लगाने हेतु उपाय ढूंढने हेतु प्रयत्नशील है। पवित्र अथर्ववेद (11:7:9)में एक सरल धार्मिक विधि का उल्लेख है। जिसका विस्तृत वर्णन यजुर्वेद संहिता और शतपथ ब्राह्मण(12:4:1)में है। इससे प्रदूषण में कमी आएगी तथा वातावरण भी आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होगा। जो व्यक्ति यह पवित्र अग्निहोत्र विधि करते हैं,वे बताते हैं कि इससे तनाव कम होता है,शक्ति बढती है तथा मानव को अधिक स्नेही बनाती है। ऐसा माना जाता है कि अग्निहोत्र पौधों में जीवन शक्ति का पोषण करता है तथा हानिकारक विकिरण और रोगजनक जीवाणुओं को उदासीन बनाता है। जल संसाधनों की शुद्धि हेतु भी इसका उपयोग किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि यह नाभिकीय विकिरण के दुष्प्रभावों को भी न्यून कर सकता है। वर्तमान प्रदूषित वातावरण में वायु की शुद्धता तथा विषैली वायु और विकिरण से रक्षा करनेवाली ‘अग्निहोत्र’ विधि अवश्य करें। पर्यावरण की शुद्धि के लिए किए जाने वाले अग्निहोत्र को आज कई लोग सीखकर अपने घरों में भी करने लगे हैं। अग्निहोत्र एक ऐसी-हवन पद्धति है जिसमें समय भी कम लगता है तथा इसे आसानी से किया भी जा सकता है। इस संसार में ईश्वर ने हमें सब कुछ प्रदान किया है, कृतज्ञता स्वरुप में प्रतिदिन अग्निहोत्र करने के लिए समय निकालना चाहिए। इस यज्ञ को स्वयं करना चाहिए व अन्यों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। 

घी का ही प्रयोग करें और अग्नि प्रज्ज्वलित करने के लिए मुँह से न फूंकें. इस प्रक्रिया के दौरान अनेक मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है, जैसे – आचमन करने के लिए, ईश्वर की स्तुति के मन्त्र, दीपक जलाने का मन्त्र, अग्नि प्रज्ज्वलित करने का मन्त्र, समिधा रखने का मन्त्र आदि से आहुति दी जाती है.

अग्निहोत्र से वनस्पतियों को वातावरण से पोषण द्रव्य मिलते हैं और वे प्रसन्न होती हैं। अग्निहोत्र के भस्म का भी कृषि और वनस्पतियों की वृद्धि पर उत्तम परिणाम होता है। परिणामस्वरूप अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट अनाज,फल,फूल और सब्जियों की उपज होती है तथा चैतन्यप्रदायी और औषधीय वातावरण उत्पन्न होता है। अग्निहोत्र के लाभ का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण उदाहरण है,भोपाल में दिसंबर,1984 में हुई गैस त्रासदी। इसमें लगभग 15,000 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए,तबाही की इस काली रात में हजारों परिवारों के बीच भोपाल में कुशवाहा परिवार भी था। कुशवाहा परिवार में प्रतिदिन सुबह और शाम अग्निहोत्र यज्ञ होता था। इसलिए उस काली रात में भी कुशवाहा परिवार ने अग्निहोत्र यज्ञ करना जारी रखा। इसके बाद लगभग 20 मिनट के अंदर ही उनका घर और उसके आस-पास का वातावरण’मिथाइल आइसो साइनाइड गैस’से मुक्त हो गया।

संत-महात्मा, ज्योतिषी आदि के मतानुसार आपातकाल प्रारंभ हो चुका है और इसकी भीषणता बढती जाएगी । इस काल में समाज को कई आपत्तियों का सामना करना पडेगा । आपातकाल में अपनी, अपने परिजनों की तथा देशबंधुआें की रक्षा एक बडी चुनौती होती है आपातकाल में यातायात के साधनों के अभाववश रोगी को चिकित्सालय पहुंचाना, डॉक्टर अथवा वैद्य से संपर्क करना तथा हाट से (बाजार से) औषधियां प्राप्त करना कठिन होता है । आपातकाल में आनेवाली समस्याआें एवं विकारों का सामना करने की पूर्वतैयारी के एक भाग के रूप में सनातन संस्था आगामी आपातकाल के लिए संजीवनी यह ग्रंथमाला तैयार कर रही है । दिनांक २०.११.२०१६ तक इस ग्रंथमाला में अंतर्भूत १२ ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं । इसी ग्रंथमाला के अग्निहोत्र’ ग्रंथ का परिचय इस लेख द्वारा करा रहे हैं ।

त्रिकालज्ञानी संतों ने बताया ही है कि भीषण आपातकाल आनेवाला है तथा उसमें संपूर्ण विश्‍व की प्रचंड जनसंख्या नष्ट होनेवाली है । वास्तव में आपातकाल आरंभ हो चुका है । आपातकाल में तीसरा महायुद्ध भडक उठेगा । द्वितीय विश्‍वयुद्ध की तुलना में वर्तमान में विश्‍व के लगभग सभी राष्ट्रों के पास महासंहारक परमाणु अस्त्र हैं । ऐसे में वे एक-दूसरे के विरुद्ध प्रयुक्त किए जाएंगे । इस युद्ध में सुरक्षित रहना हो, तो उसके लिए परमाणु अस्त्रों को निष्क्रिय करने के प्रभावी उपाय करने चाहिए । साथ ही इन आण्विक अस्त्रों से निर्गमित किरणों को नष्ट करने के भी उपाय चाहिए । इसमें स्थूल उपाय उपयोगी सिद्ध नहीं होंगे; क्योंकि बम की तुलना में अणुबम सूक्ष्म है । स्थूल (उदा. बाण मारकर शत्रु का नाश करना), स्थूल और सूक्ष्म (उदा. मंत्र का उच्चारण कर बाण मारना), सूक्ष्मतर (उदा. केवल मंत्र बोलना) एवं सूक्ष्मतम (उदा. संतों का संकल्प) इस प्रकार के उत्तरोत्तर प्रभावी चरण होते हैं । स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म कई गुना अधिक प्रभावशाली है । इस कारण अणुबम जैसे प्रभावी संहारक के विकिरण को रोकने के लिए सूक्ष्मदृष्टि से कुछ करना आवश्यक है । इसलिए ऋषि-मुनियों ने यज्ञ के प्रथमावतार रूपी अग्निहोत्र का उपाय बताया है । यह करने में अति सरल तथा अत्यल्प समय में होनेवाला; किंतु प्रभावी रूप से सूक्ष्म परिणाम साधने में सहायक उपाय है । अग्निहोत्र से वातावरण चैतन्यमय बनता है तथा सुरक्षा-कवच भी निर्मित होता है ।

अग्निहोत्र से उत्पन्न अग्नि, रज-तम कणों को विघटित करती है तथा वायुमंडल में दीर्घकाल तक बनी रहती है । इसलिए इस प्रक्रिया को कार्यान्वित करते रहने से यह अग्नि मनुष्य के सर्व ओर १० फुट तक का सुरक्षा-कवच निर्मित करती है । यह कवच तेज संबंधी वस्तुमात्र के स्पर्श के प्रति अत्यंत संवेदनशील होता है । सूक्ष्मरूप से यह कवच ताम्रवर्ण का दिखाई देता है ।

रज-तमात्मक तेजकण कर्कश स्वरूप में आघात की निर्मिति करते हैं । इसलिए उनके समीप आने के संबंध में मनुष्य के सर्व ओर निर्मित सुरक्षा-कवच को पहले से ही बोध हो जाता है और वह स्वयं से प्रतिक्षिप्त क्रिया (प्रतिक्रिया) के रूप में अनेक तेजतरंगें तेज गति से ऊत्सर्जित कर, रज-तमात्मक तेजकणों के कर्कश नाद को ही नष्ट करता है तथा नाद उत्पन्न करनेवाले तेजकणों को भी नष्ट कर देता है । फलस्वरूप उन तरंगों का तेज आघात करने में असमर्थ हो जाता है । अर्थात बम से आघातात्मक विघातक स्वरूप में ऊत्सर्जित होनेवाले ऊर्जा के वलय पहले ही नष्ट कर दिए जाने से बम विकिरण की दृष्टि से निष्क्रिय हो जाता है । इस कारण बम फेंके जानेपर भी आगे होनेवाला जनसंहार कुछ मात्रा में टल जाता है । कदाचित बम का विस्फोट हो जाए, तो भी उसमें से तेज गति से निकलनेवाली तेजरूपी रज-तमात्मक तरंगें, वायुमंडल के सूक्ष्मतर रूपी इस अग्निकवच से टकराकर उसी में विघटित हो जाती हैं । उसका सूक्ष्म-परिणाम भी वहीं समाप्त हो जाता है, जिससे वायुमंडल संभावित प्रदूषण के संकट से मुक्त रहता है ।

सूर्य ऊर्जा देता और लेता है । इस कारण प्रदूषण नष्ट करने के लिए आवश्यक और पोषक स्थिति अपनेआप निर्मित होती है । इससे पृथ्वी को शांत स्थिति प्राप्त होती है । अग्निहोत्र जनित्र (जनरेटर) है और उसकी अग्नि की लपटें यंत्र (टर्बाईन) हैं । गाय का गोबर, गाय का घी एवं अक्षत (चावल) इन घटकों का अग्नि के माध्यम से परस्पर संयोग होकर ऐसा कुछ अपूर्व-सा उत्पन्न होता है कि वह आस-पास की वस्तु से टकराकर उनके सर्व ओर फैलता है तथा उन में निहित घातक ऊर्जाओं को निष्क्रिय करता है, जिससे वातावरण पोषक बनता है । तत्पश्‍चात उस वातावरण में सेंद्रिय द्रव्य उत्पन्न होना, बढना एवं उनके विस्तार के लिए पोषक तत्त्वों की आपूर्ति करना, इस प्रकार अग्निहोत्र प्रक्रिया वायुमंडल की प्रत्यक्षरूप से क्षतिपूर्ति करती है

गाय के गोबर के चपटे आकार के पतले उपले थापें और सूर्यप्रकाश में सुखाएं । सूखे उपलों से अग्निहोत्र के लिए अग्नि तैयार करें । (उत्तर और दक्षिण अमरीका के निवासी, स्कॅन्डिनेवियन देश, पूर्व और पश्‍चिम यूरोप, अफ्रीका एवं एशिया संस्कृति में गोवंश का गोबर एक औषधीय पदार्थ माना जाता है ।)

अखंड तथा पॉलिश रहित चावल में आकृष्ट हुए ईश्‍वर के मूलतत्त्व टिके रहते हैं । चावलों को पॉलिश करने से उसमें विद्यमान मूल ईश्‍वरीय तत्त्व लुप्त हो जाते हैं तथा उन्हें कृत्रिमता प्राप्त होती है । इसलिए उनका उपयोग न करें । चावल का दाना टूटने पर उसमें निहित सूक्ष्म ऊर्जा की अंतर्रचना अस्त-व्यस्त हो जाती है; इसलिए वह चैतन्यप्रदाता अग्निहोत्र के लिए अपात्र सिद्ध होता है । इसी कारण अक्षत’ अर्थात चावल के अखंड दानों का ही उपयोग करना चाहिए ।

गाय के दूध से निकला मक्खन मंद अग्नि पर तपाएं । सतह पर श्‍वेत रंग का पदार्थ दिखाई देने लगे, तो उसे छलनी से छान लें । इसी द्रव्य को घी कहते हैं । यह घी प्रशीतक में (फ्रिज में) रखे बिना भी बहुत समय तक अच्छा रहता है । घी विशेष औषधीय पदार्थ है । अग्निहोत्र की अग्नि में हव्य पदार्थ के रूप में इसका उपयोग करने पर यह वहन प्रतिनिधि के नाते सूक्ष्म ऊर्जा वहन करने का कार्य करता है । गाय के दूध से बने घी में शक्तिशाली ऊर्जा समाई होती है ।

अग्नि प्रज्वलित करने की विधि : हवनपात्र के तल में उपले का एक छोटा टुकडा रखें । उस पर उपले के टुकडों को घी लगाकर उन्हें इस प्रकार रखें (उपलों के सीधे-आडे टुकडोें की २-३ परतें) कि भीतर की रिक्ति में वायु का आवागमन हो सके । पश्‍चात उपले के एक टुकडे को घी लगाकर उसे प्रज्वलित करें तथा हवनपात्र में रखें । कुछ ही समय में उपलों के सब टुकडे प्रज्वलित होंगे । अग्नि प्रज्वलित होने के लिए वायु देने हेतु हाथ के पंखे का उपयोग कर सकते हैं; परंतु मुंह से फूंककर अग्नि प्रज्वलित न करें । ऐसा करने से मुंह के कीटाणु अग्नि में जाएंगे । अग्निप्रज्वलित करने के लिए मिट्टी के तेल जैसे ज्वलनशील पदार्थों का भी उपयोग न करें । अग्नि निर्धूम प्रज्वलित रहे अर्थात उससे धुआं न निकले ।

अग्निहोत्र करना यह नित्योपासना है । यह एक व्रत ही है । ईश्‍वर ने हमें यह जीवन दिया है । इसलिए वह हमें प्रतिदिन पोषक सब कुछ देता रहता है । इस हेतु प्रतिदिन कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए प्रतिदिन अग्निहोत्र करना, यह हमारा कर्तव्य है तथा वह साधना के रूप में प्रतिदिन करना भी आवश्यक है ।

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