सेना प्रमुख के रिटायर से चार दिन पहले नया नाम

संसद सत्र 16 तारीख को खत्म हो रहा है. लेकिन सेना प्रमुख का पद तो गैर-राजनैतिक पद है फिर उसमें देरी क्यों. कहीं ऐसा तो नहीं अब पाकिस्तान की तरह ही सेना प्रमुख के रिटायर से चार दिन पहले ही नए नाम की घोषणा की जायेगी. ऐसे में साफ है कि प्रधानमंत्री के मन में क्या चल रहा है सिर्फ वही जानते हैं. तब तक सिर्फ ‘वेट एंड वॉच’ के सिवाय किसी के पास कोई चारा नहीं है. और तब तक कयासों का दौर जारी रहेगा.

पिछले महीने ही (25 नबम्बर को) रक्षा राज्यमंत्री सुभाषराव भामरे ने संसद में एक सवाल के जवाब पर लिखित बयान दिया था कि सीडीएस की पोस्ट “सभी राजनैतिक पार्टियों से सलाह-मशवहिरा के बाद ही बनाई जायेगी. ये काम पूरा नहीं हो पाया है क्योंकि सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपनी राय इस पर अबतक नहीं दी है.” रक्षा राज्यमंत्री ने ये भी संसद को बताया कि नरेश चंद्रा कमेटी ने वर्ष 2012 में स्थायी चैयरमैन, चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओएससी) के पद की अनुशंसा की थी. इन “दोनों सिफारिशों (सीडीएस और सीओएससी) पर सरकार एक साथ विचार कर रही है.”
सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह के रिटायर होने में बीस दिन से भी कम का समय बचा है. लेकिन अभी तक नए नाम की घोषणा नहीं की गई है. इसको लेकर राजधानी दिल्ली के साउथ-ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्रालय और सेना मुख्यालय में कयासों का दौर चल रहा है. कयास नए सेना प्रमुख के नाम को लेकर. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय ने तीन सबसे सीनियर सैन्य अधिकारियों के नाम की फाइल पीएमओ भेजी है. ये हैं पूर्वी कमान के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीन बख्शी, सह-सेनाध्यक्ष (यानि ‘वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ’) लेफ्टिनेंट जनरल विपिन रावत और दक्षिणी कमान के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल पीएम हैरिज़. इन तीनों में प्रवीन बख्शी सबसे सीनियर हैं, ऐसे में सभी को लग रहा था कि वे ही नए सेनाध्यक्ष होंगे. लेकिन जिस तरह से नाम की घोषणा में देरी हो रही है, उससे सभी के जेहन में सवाल कौंधने लगा है कि क्या इस बार कुछ अलग होने जा रहा है.
हाल के सालों में शायद ये पहला मौका है कि नए सेना प्रमुख के नाम को लेकर इतनी सुगबुगाहट देश के ‘पॉवर-सेंटर’ (यानि साउथ ब्लॉक) से लेकर देश की सीमाओं तक है. क्योंकि पहली बार नए सेना प्रमुख के नाम की घोषणा को लेकर चली आ रही पुराने ‘परंपरा’ टूट गई है. परंपरा ये कि सरकार, नए सेनाध्यक्ष के नाम की घोषणा दो महीने पहले कर देती है. लेकिन इस बार 20 दिन से भी कम समय बचा है. क्या इस बार कुछ ‘हटकर’ होने जा रहा है, बस इसी बात को लेकर खलबली मची हुई है.
दरअसल, थलसेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह इसी महीने के आखिर में रिटायर हो रहे हैं. उनकी जगह नए सेना प्रमुख के नाम की घोषणा अभी तक नहीं हुई है. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर पहले ही साफ कर चुके हैं कि वे ‘संभावित नामों को (पीएमओ) भेज चुके हैं.’ एबीपी न्यूज को सूत्रों से जानकारी मिली है कि सेनाध्यक्ष के नाम वाली ‘फाइल पीएमओ में अटकी’ हुई है. क्या पीएम के ‘मन’ में नए सेनाध्यक्ष को लेकर कुछ चल रहा है, इसी को लेकर कयासों का दौर जारी है. क्योंकि पीएम के ‘मन की बात’ का पता लगाना किसी के लिए भी आसान नहीं है. और देश की सुरक्षा से जुड़ा फैसला हो तो अच्छे-अच्छे ‘जनरल और कर्नल’ भी उनके सामने पस्त हो जाते हैं. दरअसल, थलसेना प्रमुख के रिटायर से करीब 3-4 महीने पहले रक्षा मंत्रालय तीन संभावित नाम पीएमओ को भेजता है. पीएमओ के बाद इन नामों को कैबिनेट कमेटी ऑफ अप्वाइंटमेंट (एसीसी) में भेजा जाता है और वहां से क्लीयर होने के बाद नए सेना प्रमुख के नाम की घोषणा कर दी जाती है. हालांकि माना जाता है कि पीएमओ ही इस नाम को तय करते है और एसीसी इस नाम पर महज स्टैंप लगाती है. अमूमन इन तीनों नामों में से सबसे सीनियर को ही अबतक पीएमओ चुनता आया है. ऐसे में मौजूदा परिस्थितियों में लग रहा था कि प्रवीन बख्शी ही नए सेनाध्यक्ष बन जाएंगे. लेकिन फिर देरी के पीछे वजह क्या है. क्या सरकार विपिन रावत को नया सेना प्रमुख बनाने जा रही है. अगर हां तो क्या सीनियोरिटी को दरकिनार कर दिया जायेगा.
दरअसल, इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि प्रवीन बख्शी आरमर्ड (टैंक रेजीमेंट) के अधिकारी हैं और विपिन रावत इंफेंट्री अधिकारी हैं (पैदलसवारों की रेजीमेंट). सेना में अधिकतर इंफेंट्री के अधिकारी ही सेना-प्रमुख बनाए जाते रहे हैं. इसलिए क्या हो सकता है कि सरकार वरिष्ठता की बजाए इंफेंट्री को तजब्बों देनी जा रही है. लेकिन जानकारों की मानें तो सेना में इंफेंट्री और आर्म्ड दोनों को ही ‘कॉम्बेट आर्म’ यानि लड़ाकू-यूनिट मानी जाती है. ऐसे में इंफ्रेंट्री और आर्म्ड में भेदभाव करना सही नहीं है.
साथ ही, पूर्व में कई सेनाध्यक्ष आरमर्ड और (आर्टलरी) से भी आए हैं. जनरल वी एन शर्मा (1988-90), जनरल बी सी जोशी (1993-94) और जनरल शंकर रॉय चौधरी (1994-97), सभी आरमर्ड कोर के अधिकारी थे. ऐसे में ये कहना कि आरमर्ड-अधिकारी सेनाध्यक्ष के पद के लिए सही नहीं है किसी के गले नहीं उतर रहा है.
साथ ही प्रवीन बख्शी को इस वक्त के सबसे काबिल (और सबसे सीनियर) सैन्य अधिकारियों में गिनती होती है. वे इस वक्त सेना की दो सबसे बड़ी (और ऑपरेशनल कमान) में से एक पूर्वी कमांड के प्रमुख हैं. पूर्वी कमान के अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश में चीन सीमा की रखवाली और पूरा उत्तर-पूर्व का इलाका शामिल है.
इससे पहले वे दूसरी सबसे महत्वपूर्ण, जम्मू-कश्मीर स्थित उत्तरी कमान में चीफ ऑफ स्टाफ के पद पर भी रह चुके हैं. यानि उन्हें दोनों ऑपरेशनल कमानों में काम करना का अनुभव है. लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि प्रवीन बख्शी को अभी तक सेना-मुख्यालय में किसी बड़े पद पर काम करने का अनुभव नहीं है. जबकि उनके जूनियर विपिन रावत इस साल सितंबर से ही सेना मुख्यालय में सह-सेनाध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे हैं, जिसका उन्हें सेना-प्रमुख की रेस में ‘फायदा’ मिल सकता है.
लेकिन विपिन रावत को दोनों में से किसी भी एक ऑपरेशनल-कमान में किसी बड़े पद पर काम करने का अनुभव नहीं है. ये बात जरुर है कि मौजूदा पोस्टिंग से पहले वे दक्षिणी कमान के कमांडर रह चुके हैं. इस पद पर फिलहाल रेस के तीसरे ‘महारथी’, लेफ्टिनेंट जनरल, पीएम हैरिज़ तैनात हैं.
अभी तक की सैन्य-परंपरा के मुताबिक, थलसेना का नया प्रमुख सबसे सीनियर लेफ्टिनेंट-जनरल ही बनता आया है. सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है कि सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी को दर-किनार करते हुए कनिष्ठ को देश का सेनापति बनाया गया हो. 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा की जगह एएस वैद्य को सेना प्रमुख बनाया था.
हाल ही में यूपीए सरकार के दौरान भी जब तत्कालीन नौसेनाध्यक्ष एडमिरल डीके जोशी ने इस्तीफा दे दिया था, तब सरकार ने वरिष्ठता को दरकिनार करते हुए सह-नौसेनाध्यक्ष आर के धवन को नौसेना प्रमुख बनाया था. हालांकि एडमिरल धवन के बारे में भी उस वक्त कहा गया था कि उन्होनें अपनी सर्विस में कभी कोई कमांड की कमान नहीं संभाली है.
इस बीच सोशल मीडिया पर इस बात का प्रचार शुरु हो गया है कि ‘नए सेनाध्यक्ष विपिन रावत बना दिए गए हैं और प्रवीन बख्शी को चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) बना दिया गया है.’ ऐसे में चारों तरफ हड़कंप मच गया है कि आखिर ये कैसे हो सकता है. क्या वाकई सरकार एक नए पोस्ट (सीडीएस) बनाने जा रही है ? क्या देश में अब तीन नहीं चार-चार फोर-स्टार जनरल होने जा रहे हैं ? क्या वाकई करगिल रिव्यू कमेटी (और 2001 की ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स) की रिपोर्ट की सबसे अहम सिफारिश (यानि सीडीएस की पोस्ट) को मोदी-सरकार अमली-जामा पहनाने जा रही है ?
इस नई पोस्ट के पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि प्रधानमंत्री तीनों सेनाओं यानि थलसेना, वायुसेना और नौसेना के एकीकरण (‘ज्वाइंटनेस’) पर बेहद जोर देते हैं. पीएम का मानना है कि सेना के तीनों अंगों को मिलजुलकर काम करना चाहिए. अमेरिका और दूसरे कई देशों में इसी लिए सीडीएस की पोस्ट कई सालों से काम कर रही है. ये पद फोर (या फिर फाइव) स्टार जनरल के पास होता है. सीडीएस एक तरह से सरकार के ‘मिलेट्री-एडवाइजर’ (कुछ-कुछ एनएसए यानि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) के तौर पर काम करता है. उसके पास सेनाओं की ऑपरेशनल-कमांड तो नहीं होती, लेकिन वो सलाह-मशवहिरा सेनाओं को दे सकता है. सीडीएस की पोस्ट का वादा मौजूदा बीजेपी सरकार ने अपने 2014 के चुनावी-घोषणापत्र मे भी किया था.
फिलहाल, रक्षा मंत्रालय में एक चीफ ऑफ इंटीग्रेटड स्टाफ कमेटी (सीआईडीएस) का पद बना रखा है. लेकिन उसका मुखिया थ्री-स्टार जनरल होता है. उसके अंतर्गत ही अंडमान निकोबार की बेहद महत्वपूर्ण ट्राई-सर्विस कमांड है. जिसमें तीनों सेनाओं की भागीदारी है. ये विभाग इसीलिए बनाया गया है क्योंकि सीडीएस पर कोई आम सहमति अभी तक नही बन पाई है.
क्या सरकार सीओएसी की स्थायी पोस्ट बनाने जा रही है. क्योंकि अभी तक ये अस्थायी पद है. तीनों सेनाओं (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) के प्रमुखों में से सबसे सीनियर जनरल ही इस पद को संभालता है. उसका काम तीनों सेनाओं से जुड़े साझा मुद्दे सरकार तक पहुंचाने का होता है. जैसे ओआरओपी या फिर सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें (में खामियां) इत्यादि.
ऐसे में इस बात को बल मिलता है कि क्या सरकार सीओएससी के पद पर नई नियुक्ति पर विचार कर रही है और जिसके चलते ही नए सेना प्रमुख के नाम के लिए भी देरी हो रही है. लेकिन रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इतनी बड़ी और संवदेनशील (नई) पोस्ट के लिए कैबिनट की मंजूरी लेना जरुरी ह. और ये तो फिर देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है. फिर अभी तक सीडीएस की पोस्ट के लिए सभी राजनैतिक पार्टियों ने अभी तक अपनी ‘राय’ नहीं दी है. कुछ जानकारों का मानना है कि सरकार संसद के शीतकालीन सत्र के खत्म होने का इंतजार कर रही है.

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