13 अप्रैल की सुबह 08:15 बजे तक अष्टमी है-इसके बाद नवमी – राम रक्षास्त्रोत पाठ करे
रामनवमी पर्व को ही श्रीराम के जन्मोत्सव पर्व के रुप में मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी मनाई जाती है। श्रीराम की जन्म तिथि का संयोग इस बार 13 और 14 अप्रैल को बन रहा है। पंचांग में भेद होने की वजह से राम नवमी का पर्व दो दिन मनाया जाएगा। एेसा माना जाता है कि रामनवमी से ही गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना शुरू की थी।
6 अप्रैल से शुरू हुए चैत्र नवरात्र 14 अप्रैल को समाप्त होंगे. नौ दिनों के व्रत करके मां के भक्त अष्टमी और नवमी के दिन अपने घर में कन्या पूजन करते हैं. इस बार 13 और 14 अप्रैल को दो दिन नवमी मनाई जाएगी.
ज्योतिषाचार्य डॉ दीपक शुक्ला के मुताबिक, 13 अप्रैल (शनिवार) को ही महाष्टमी और महानवमी दोनों पड़ रही हैं. 13 अप्रैल की सुबह 08:15 बजे तक अष्टमी है. इसके बाद नवमी शुरू हो जाएगी, जो 14 अप्रैल की सुबह 6 बजकर 05 मिनट तक रहेगी. इसलिए नवमी को ही नवरात्र में होने वाला यज्ञ और पूजा-अर्चना 14 अप्रैल को सुबह 6 बजे के पहले किसी भी समय करना शुभ फलदायी होगा. 12 अप्रैल 2019 को शुक्रवार के दिन सुबह 10:18 बजे से लेकर 13 अप्रैल दिन शनिवार को सुबह दिन में 08:16 बजे तक अष्टमी रहेगी. इस दिन ही कन्या खिलाने के बाद भक्तजन व्रत खोलेंगे.
ऐसे करें पूजा-अर्चना
अष्टमी और महानवमी की पूजा करने के लिए सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. घर को साफ कर घर के पूजा स्थल पर पूजन सामग्री रख लें. धूप दीप जलाकर रामनवमी की पूजा षोडशोपचार करें. इसके साथ ही राम रक्षास्त्रोत का भी पाठ करें. अब नौ कन्याओं को घर में बुलाकर उनको भोजन कराएं और कुछ भेंट देकर खुशी खुशी विदा करें. इसके बाद घर के सभी सदस्यों में प्रसाद बांटकर व्रत का पारण करें.
नवरात्र में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू हो जाता है जो नवमी तक चलता है। कन्या पूजन में कन्याओं को घर बुलाकर उन्हे भोजन कराया जाता है और पूजा की जाती है। कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। इनका आर्शीवाद लिया जाता है। हम आपको कन्या पूजन विधि के बारे में बताते हैं ताकि आपको देवी रूपी कन्याओं का आर्शीवाद मिल सके। कन्या पूजन विधि- कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित करना चाहिए। गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ स्वागत करें और मातृ शक्ति का आवाह्न करें। कन्याओं को स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए। उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए। इसके बाद मां भगवती का ध्यान करके कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं। भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें। कन्याओं की उम्र 2 तथा 10 साल तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए। जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है। जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है। अष्टमी के शुभ मुहूर्त सुबह 11:17 से दोपहर 01:38 तक दोपहर 01:38 से 03:32 तक दोपहर 03:32 से शाम 05:01 तक
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। मां महागौरी का रंग अत्यंत गौरा है इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है। मान्यता के अनुसार अपनी कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। तभी से इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया।
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
अर्थ – मां दुर्गा का आठवां स्वरूप है महागौरी का। देवी महागौरी का अत्यंत गौर वर्ण हैं। इनके वस्त्र और आभूषण आदि भी सफेद ही हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनका स्वभाव अति शांत है। अष्टमी के शुभ मुहूर्त सुबह 11:17 से दोपहर 01:38 तक दोपहर 01:38 से 03:32 तक दोपहर 03:32 से शाम 05:01 तक
महागौरी की आरती
जय महागौरी जगत की माया। जया उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरी वहां निवासा॥
चंद्रकली ओर ममता अंबे। जय शक्ति जय जय माँ जगंदबे॥
भीमा देवी विमला माता। कौशिकी देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती सत हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥
13 अप्रैल, शनिवार की सुबह लगभग 11:45 पर नवमी तिथि शुरू होगी, जो 14 अप्रैल, रविवार की सुबह लगभग 09:50 तक रहेगी। इसलिए राम नवमी की पूजा 13 और 14 अप्रैल को कर सकते हैं। इसके अलावा 14 अप्रैल को सुबह दशमी तिथि की शुरुआत 09:51 मिनट पर होगी और दिनभर दशमी तिथि रहेगी। इसलिए इस दिन जवारे विसर्जन भी कर सकते हैं।
13 अप्रैल के शुभ मुहूर्त
सुबह 11:17 से दोपहर 01:38 तक दोपहर 01:38 से 03:32 तक दोपहर 03:32 से शाम 05:01 तक
14 अप्रैल के शुभ मुहूर्त
सुबह 07:40 से 08:40 तक सुबह 08:40 से 09:50 तक
राम नवमी दो दिन मनाई जाएगी
रामायण के अनुसार, त्रेता युग में श्रीराम का जन्म हिन्दू कैलेंडर के चैत्र माह में नवमी तिथि को हुआ था। इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र था और अन्य ग्रहों की स्थिति भी बहुत शुभ थी। इस बार इस बार पंचांग भेद होने की वजह से रामनवमी पर्व 13 और 14 अप्रैल को मनाया जाएगा। राजा दशरथ बूढ़े हो गए थे तब तक उनकी कोई संतान नहीं थी। इसके बाद राजा दशरथ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ के प्रभाव से ही राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न का जन्म हुआ।
ऋषि ऋष्यश्रृंग ने करवाया था पुत्रकामेष्ठि यज्ञ
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, राजा दशरथ जब काफी बूढ़े हो गए तो संतान न होने के कारण वे काफी चिंतित रहने लगे। तब उन्हें ब्राह्मणों ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाने के लिए कहा। महर्षि वशिष्ठ के कहने पर राजा दशरथ ने ऋषि ऋष्यश्रृंग को इस यज्ञ के लिए आमंत्रित किया। ऋषि ऋष्यश्रृंग के माध्यम से ही ये यज्ञ संपन्न हुआ। इस यज्ञ के फलस्वरूप ही भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ था।
यज्ञ से मिला देवताओं द्वारा बनाई खीर का प्रसाद
पुत्रकामेष्टि यज्ञ पूर्ण होने पर यज्ञ में अग्निदेव प्रकट हुए। उनके हाथ में सोने का एक कुंभ यानी घड़ा था। जिसका ढक्कन चांदी का था। उस घड़े में पायस यानी खीर थी। अग्निदेव ने वो घड़ा राजा दशरथ को देते हुए कहा कि ये खीर देवताओं द्वारा बनाई गई है। इस पायस को आप अपनी रानियों को खिलाएं। जिससे सर्वगुण संपन्न और हर तरह के ज्ञान से पूर्ण संतान आपको प्राप्त होगी। अग्निदेव के कहने पर राजा दशरथ ने वो खीर से भरा घड़ा ले लिया और अपनी रानियों को यज्ञ स्थल पर बुलाया। इसके बाद घड़े की आधी खीर कौशल्या को दी। कौशल्या को दी हुई खीर में से आधा भाग कौशल्या के द्वारा ही सुमित्रा को दिलवाया। इसके बाद घड़े में बची हई खीर कैकई को दी गई और कैकई को दी हुई खीर का आधा हिस्सा कैकई के हाथों से ही सुमित्रा को दिलवाई। इस तरह तीनों रानियों ने अपना प्रसाद अलग-अलग ग्रहण किया।
पुत्रकामेष्टि यज्ञ के एक साल बाद हुआ राम जन्म
पुत्रकामेष्टि यज्ञ के एक साल बाद चैत्र माह के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि पर पुनर्वसु नक्षत्र में रानी कौशल्या ने एक तेजस्वी बच्चे को जन्म दिया। वहीं सुमित्रा के गर्भ से जुड़वा बच्चे हुए और कैकई ने एक पुत्र को जन्म दिया। इन बच्चों के जन्म के बारह दिनों बाद कुल पुरोहित वशिष्ठ जी ने कौशल्या के बेटे का नाम राम रखा। कैकई के बेटे का नाम भरत और सुमित्रा के दोनों बच्चों का नाम लक्ष्मण और शत्रुध्न रखा। इसके बाद समय-समय पर सभी पुत्रों के संस्कार पूरे किए गए।
राम नवमी पर पुनर्वसु नक्षत्र में श्रीराम का जन्म हुआ था। श्रीराम के जन्म समय के दौरान ग्रहों की स्थिति बहुत शुभ थी। इस दिन पांच ग्रह – सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि अपनी उच्च राशि में स्थित थे। इन ग्रहों के शुभ प्रभाव से त्रेता युग में राजा दशरथ के यहां भगवान विष्णु के अवतार यानी मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में ज्ञानी, तेजस्वी और पराक्रमी पुत्र का जन्म हुआ।
- राम जन्म की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम का अवतार त्रेता युग में हुअा था। अयोध्या के राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया और यज्ञ से प्राप्त खीर की। दशरथ ने अपनी प्रिय पत्नी कौशल्या को दे दिया। कौशल्या ने उसमें से आधा हिस्सा कैकेयी को दिया इसके बाद दोनों ने अपने हिस्से से आधा-आधा खीर तीसरी पत्नी सुमित्रा को दे दिया। इस खीर के सेवन से चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में माता कौशल्या की कोख से भगवान श्री राम का जन्म हुअा। इसी तरह कैकेयी से भरत तो सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।
- राम नवमी ऐसे मनाते हैं
रामनवमी पर सुबह जल्दी उठकर सूर्य को जल चढ़ाया जाता है। इसके बाद पूरे दिन नियम और संयम के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम का व्रत किया जाता है। इसके साथ ही राम दरबार यानी भगवान श्रीराम के सहित लक्ष्मण, माता सीता और हनुमान जी की पूजा और आरती की जाती है। राम जन्मोत्सव की खुशी पर ब्राह्मणों और अन्य लोगों को भोजन करवाया जाता है और प्रसाद बांटते हैं। इस दिन रामचरित मानस का पाठ करवाया जाता है। मान्यता है कि राम नवमी के दिन उपवास रखने से सुख समृद्धि आती है और पाप और बुराइयों का नाश होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थीं. मगर तीनों रानियों में से किसी को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई थी. तब ऋषि मुनियों से सलाह लेकर राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. इस यज्ञ से निकली खीर को राजा दशरथ ने अपनी बड़ी रानी कौशल्या को खिलाया. इसके बाद चैत्र शुक्ल नवमी को पुनरसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में माता कौशल्या की कोख से भगवान श्रीराम का जन्म हुआ. उसी दिन से राम नवमी का पर्व मनाया जाता है. हिन्दू मान्यताओं में भगवान राम को सृष्टि के पालनहार श्रीहरि विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है. कहा जाता है कि श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने जिस राम चरित मानस की रचना की थी, उसका आरंभ भी उन्होंने इसी दिन से किया था.
राम रक्षा स्तोत्र : धन व समृद्धि के लिए — इससे मंगल का कुप्रभाव समाप्त होता है.
– मान्यता है कि इसके प्रभाव से व्यक्ति के चारों और सुरक्षा कवच बनता है, जिससे हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा होती है. – इसके पाठ से भगवान राम के साथ पवनपुत्र हनुमान भी प्रसन्न होते हैं.
कहा जाता है कि एक दिन भगवान शंकर ने बुधकौशिक ऋषि को स्वप्न में दर्शन देकर, उन्हें रामरक्षास्त्रोत सुनाया था. और प्रातःकाल उठने पर उन्होंने इस स्त्रोत को लिख लिया. ये स्त्रोत संस्कृत में है और इसके पाठ को काफी प्रभावी माना जाता है. यह strotam सपने में lord shiva द्वारा ऋषि बुद्धकोशिक को सुनाया गया है। किसी भी गंभीर बीमारी में कुछ आश्चर्यजनक कंपन, पहचान और संकेत हैं।यह किसी भी तरह की बीमारियों या आपदा के लिए किया जा सकता है। काफी लोगों ने अपने चमत्कार को खुद देखा भी है। इस stotra (mantra ) के बारे में अच्छी बात यह है। जो भी इसे प्रयोग करता है , कभी निराश नहीं जाता है।
यह मंत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए जिनके जीवन खतरे में हैं। जो भी बीमार व्यक्ति बीमारी से पीड़ित हैं। यदि कोई दुश्मन आपको परेशान कर रहा है। अगर आपको चोट का डर है। तो अगर आपको लड़ाई का डर है। यह strotam आपके शरीर के सभी हिस्सों की रक्षा करेगा। सभी प्रकार के रोगो व् परेशानी से सुरक्षा प्रदान करता है। यह मंत्रमुग्ध है।
स्त्रोत:
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् । 1।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ।2।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ।।3।।
रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्। शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ।। 4।।
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति। घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ।।5।।
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः। स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ।।6।।
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित। मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ।।7।।
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः। उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ।।8।।
जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः। पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ।।9।।
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत। स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ।।10।।
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः। न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ।।11।।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन। नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ।।12।।
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्। यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ।।13।।
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत। अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ।।14।।
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः। तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ।।15।।
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्। अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ।।16।।
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ। पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ।।17।।
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ।।18।।
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्। रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ।।19।।
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ। रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ।।20।।
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा। गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ।।21।।
रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली। काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ।।22।।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः। जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः।।23।।
इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः। अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ।।24।।
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम। स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ।।25।।
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम।।26।।
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ।।27।।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम। श्रीराम राम रणकर्कश राम राम। श्रीराम राम शरणं भव राम राम ।।28।।
श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि। श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ।।29।।
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ।।30।।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ।।31।।
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ।।32।।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ।।33।।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम। आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ।।34।।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ।।35।।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्। तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ।।36।।
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः।।37।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।।38।।