चुंदरी वाले माताजी के नाम से प्रसिद्ध जॉनी जिनके सामने विज्ञान फेल- कल हुआ प्रयाण

HIGH LIGHT# गुजरात के अहमदाबाद के अंबाजी इलाके में रहने वाले  प्रह्लाद जॉनी उर्फ चुंदरी वाले माताजी 5 साल से बगैर जल-भोजन के और बिना मल-मूत्र त्याग किये प्रह्लाद जॉनी उर्फ चुंदरी वाले माताजी का 90 की अवस्था में निधन ; दुनिया में कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जिनको लेकर आज का विज्ञानं भी असमंजस में पड़ जाता है। ऐसा ही एक मामला गुजरात का है जहाँ मेडिकल साइंस के लिए प्रह्लाद जॉनी उर्फ चुंदरी वाले माताजी पहेली बने रहे। 

वह दावा किया करते थे कि उन्हें अन्न-जल ग्रहण करने की इसलिए जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि देवी मां ने उन्हें जीवित रखा है। इस बीच, जानी का पार्थिव शरीर बनासकांठा जिले में अंबाजी मंदिर के समीप उनके आश्रम सह गुफा में ले जाया गया है।

90 वर्षीय जॉनी ने 75 वर्ष से न तो कुछ खाया है, और ना ही जल ग्रहण किया। वे बगैर भोजन-पानी के जिंदा रहे। इन दावों के बाद अहमदाबाद के स्टर्लिंग हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के सहयोग से यह जानने के लिए शोध भी किया था कि कोई व्यक्ति इतने वर्ष से बगैर कुछ खाये-पिये और बिना मल-मूत्र का त्याग किये कैसे जीवित रह सकता है। लेकिन चिकित्सकों के हाथ कुछ भी नहीं लगा था। यहाँ तक कि जॉनी को 15 दिनों तक 24 घंटे कैमरे की निगरानी में भी रखा गया था।

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योगी प्रह्लाद जानी ने 14 साल की उम्र में ही अन्न-जल छोड़ दिया था। साल 2010 में डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोलोजी ऐंड एलाइड साइंससेज के डॉक्टरों की टीम ने भी उनके इस दावे की 15 दिन तक जांच की थी।

अहमदाबाद के स्टर्लिंग अस्पताल के चिकित्सकों ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के सहयोग से यह जानने के लिए शोध भी किया था कि कोई व्यक्ति इतने साल से बगैर कुछ खाए-पिए और बिना मल-मूत्र का त्याग किए कैसे जिंदा रह सकता है? लेकिन चिकित्सकों के हाथ कुछ भी नहीं लगा था. जॉनी को 15 दिन तक 24 घंटे कैमरे की निगरानी में रखा गया था.

    देवी मां अंबे में अटूट विश्वास रखने वाले जानी हर समय चुनरी पहना करते थे और महिला की तरह रहते थे। इसके कारण वह चुनरीवाला माताजी के नाम से चर्चित थे। उनका दावा था कि उन्होंने अपने जीवन के 76 साल बिना भोजन और पानी के गुजारे। उन्होंने आध्यात्मिक अनुभव की तलाश में बहुत ही कम उम्र में अपना घर छोड़ दिया था। उनके अनुयायियों का दावा है कि महज 14 साल की उम्र में उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया था। जानी ने बहुत कम उम्र में अंबाजी मंदिर के समीप एक छोटी सी गुफा को अपना घर बना लिया था। बाद में, वह एक ऐसे योगी के रूप में लोकप्रिय हो गए, जो बस हवा पर जीवित रहते थे।

मेडिकल साइंस के लिए पहेली बने रहे प्रह्लाद जॉनी उर्फ चुंदरी वाले माताजी का मंगलवार को निधन हो गया. गुजरात के अहमदाबाद के अंबाजी इलाके में रहने वाले 90 साल के जॉनी पिछले कुछ दिनों से कफ की शिकायत से पीड़ित थे. उनका कोरोना टेस्ट भी कराया गया था, जिसकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी. उन्होंने मंगलवार की सुबह गांधीनगर के चरवड़ा गांव में अंतिम सांस ली.

जॉनी का पार्थिव शरीर गांधीनगर से अहमदाबाद के अंबाजी स्थित उनके आश्रम लाकर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए रखा गया है. दो दिन बाद जॉनी के पार्थिव शरीर को समाधि दी जाएगी. गौरतलब है कि चुंदरी वाले माताजी के नाम से प्रसिद्ध जॉनी जीवन भर मेडिकल साइंस के लिए पहेली बने रहे. श्रद्धालुओं का दावा है कि 90 साल के जॉनी ने 75 साल से न तो कुछ खाया है, और ना ही जल ग्रहण किया. वे बगैर भोजन-पानी के जिंदा रहे.

इस दौरान यह दावा सही पाया गया था. 15 दिन में एक बार भी जॉनी कुछ खाते-पीते नजर नहीं आए थे. यह मानव शरीर के सिस्टम के लिहाज से किसी से चमत्कार से कम नहीं था. चिकित्सकों को उम्मीद थी कि ऐसा क्यों और कैसे हो रहा है, यदि इसकी जानकारी मिल जाए तो यह अंतरिक्ष यात्रियों के साथ ही दुर्गम स्थलों पर देश की सरहदों की सुरक्षा कर रहे सैनिकों के लिए बड़े काम की हो सकती है. लेकिन रिसर्च के बावजूद चिकित्सक इसका पता नहीं लगा पाए।

इन दावों के बाद अहमदाबाद के स्टर्लिंग अस्पताल के चिकित्सकों ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के सहयोग से यह जानने के लिए शोध भी किया था कि कोई व्यक्ति इतने साल से बगैर कुछ खाए-पिए और बिना मल-मूत्र का त्याग किए कैसे जिंदा रह सकता है? लेकिन चिकित्सकों के हाथ कुछ भी नहीं लगा था. जॉनी को 15 दिन तक 24 घंटे कैमरे की निगरानी में रखा गया था.

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हालांकि, इस दौरान यह दावा सही पाया गया था. 15 दिन में एक बार भी जॉनी कुछ खाते-पीते नजर नहीं आए थे. यह मानव शरीर के सिस्टम के लिहाज से किसी से चमत्कार से कम नहीं था. चिकित्सकों को उम्मीद थी कि ऐसा क्यों और कैसे हो रहा है, यदि इसकी जानकारी मिल जाए तो यह अंतरिक्ष यात्रियों के साथ ही दुर्गम स्थलों पर देश की सरहदों की सुरक्षा कर रहे सैनिकों के लिए बड़े काम की हो सकती है. लेकिन रिसर्च के बावजूद चिकित्सक इसका पता नहीं लगा पाए.

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