एफसीआरए-पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों की संख्या 16,907 & तीसरी लहर लाई पलायन का दौर & देवी का यह मंदिर अजीबोगरीब रीति-रिवाज & Top News 7 Jan 2022

7 JAN 2022; Himalayauk Web & Print Media; High Light# एफसीआरए-पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों की संख्या 16,907 # मोदी ने सार्वजनिक तौर पर देश को क्यों बताया? # मुंबई प्रवासी मजदूर डेरा जमाए हैं –  UP-बिहार की ये ट्रेनें कोरोना की सुपर स्प्रेडर बन सकती हैं। # कोविड प्रोटोकॉल का कोई पालन नहीं करता है — प्रशांत किशोर # देवी का यह मंदिर इसी अजीबोगरीब रीति-रिवाज की वजह से फेमस #####

हाल ही में गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा जिन 6,000 गैर सरकारी संगठनों का एफसीआरए रजिस्ट्रेशन का नवीनीकृत नहीं हुआ है, उनमें तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी), रामकृष्ण मिशन और शिरडी के श्री साईबाबा संस्थान ट्रस्ट (एसएसएसटी) भी शामिल हैं।  आंध्र प्रदेश में प्रसिद्ध तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर और रामकृष्ण मिशन हिंदू धार्मिक संगठनों के रूप में पंजीकृत हैं, जबकि एसएसएसटी विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) की “धार्मिक (अन्य)” श्रेणी के अंतर्गत आता है।

विदेश से धन प्राप्त करने के लिए एफसीआरए रजिस्ट्रेशन गृह मंत्रालय में कराना होता है। रजिस्टर्ड संस्था सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए विदेशी योगदान प्राप्त कर सकते हैं। एमएचए ने अभी तक इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि तीन हिन्दू धार्मिक संगठनों के एफसीआरए पंजीकरण का नवीनीकरण क्यों नहीं किया गया है। कुछ दिनों पहले, रिपोर्ट सामने आने के बाद कि नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी के एफसीआरए पंजीकरण का नवीनीकरण नहीं किया गया था, एमएचए ने 27 दिसंबर को एक बयान जारी किया कि उसने संगठन के नवीनीकरण से इनकार कर दिया था। उस संस्था के बारे में “कुछ प्रतिकूल इनपुट मिले थे।”

वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 22 दिसंबर, 2021 को टीटीडी द्वारा दायर एक वार्षिक रिटर्न के अनुसार, इसके नामित विदेशी योगदान बैंक खाते में ₹ 13.4 करोड़ थे, जिसमें से ₹ ​​13.3 करोड़ विदेशी तीर्थयात्रियों द्वारा दान किए गए थे, जो मंदिर गए थे। . एसएसएसटी ने 31 दिसंबर को अपना वार्षिक रिटर्न दाखिल करते हुए कहा कि उसके विदेशी योगदान खाते में ₹5 करोड़ से अधिक है। 

महाराष्ट्र में पंजीकृत रामकृष्ण मिशन ने जुलाई में अपना रिटर्न दाखिल किया, यह घोषणा करते हुए कि उसके नामित विदेशी योगदान बैंक खाते में ₹1.3 करोड़ थे। पश्चिम बंगाल, बिहार और देश के अन्य हिस्सों में पंजीकृत अन्य रामकृष्ण मिशन आश्रमों के एफसीआरए पंजीकरण का भी नवीनीकरण नहीं किया गया है।

2020-21 में हजारों एनजीओ का पंजीकरण नवीनीकरण के लिए था और 31 दिसंबर, 2021 की पहले की समय सीमा 31 मार्च, 2022 तक बढ़ा दी गई थी क्योंकि आवेदन लंबित हो सकते हैं। एमएचए के एक अधिकारी ने पिछले हफ्ते कहा था कि मंत्रालय ने 179 गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए पंजीकरण को नवीनीकृत करने से इनकार कर दिया था, जबकि 5,789 एनजीओ ने 31 दिसंबर की समय सीमा से पहले नवीनीकरण के लिए आवेदन नहीं किया था। विस्तारित समय सीमा केवल उन गैर सरकारी संगठनों पर लागू होगी जिन्होंने 31 दिसंबर से पहले आवेदन किया था और उनके आवेदन को अब तक अस्वीकार नहीं किया गया था। अब एफसीआरए-पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों की संख्या 22,762 से घटकर 16,907 रह गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक तौर पर देश को क्यों बताया कि उनकी जान पर ख़तरे की स्थिति पैदा की गयी? पंजाब के अधिकारियों से अपने सीएम को कहने के लिए उन्होंने कहा- “थैंक्स कहना, मैं जिंदा लौट आया”।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे पर हुई कथित सुरक्षा चूक की जांच कर रहा केन्द्र का एक दल आज फिरोजपुर (Firozpur) पहुंचा.  केंद्र ने बठिंडा के एसएसपी (SSP) को नोटिस जारी कर एक दिन के भीतर जवाब मांगा है. केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने आठ जनवरी की शाम 5 बजे तक जवाब देने के लिए कहा है कि पीएम की सुरक्षा में हुई चूक को लेकर क्यों नहीं कार्रवाई की जाए. केंद्रीय टीम पहले फिरोजपुर के पास प्यारेयाना फ्लाईओवर पहुंची और पंजाब पुलिस (Punjab Police) और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत की. पैनल का नेतृत्व कैबिनेट सचिवालय के सचिव (सुरक्षा) सुधीर कुमार सक्सेना कर रहे हैं और इसमें खुफिया ब्यूरो के संयुक्त निदेशक बलबीर सिंह और विशेष सुरक्षा समूह के आईजी एस सुरेश शामिल हैं.

प्रधानमंत्री सीधे मुख्यमंत्री से भी बात कर सकते थे। प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया

आख़िर वो कौन-सी परिस्थितियाँ पैदा हुईं जिसके बाद प्रधानमंत्री ने महसूस किया कि उनकी जान जा सकती थी या उनकी जान बच गयी है? हवाई रूट छोड़कर सड़क मार्ग से जाने का फ़ैसला खुद प्रधानमंत्री का था न कि सीएम चरणजीत सिंह चन्नी का? पंजाब के किसान नरेंद्र मोदी की यात्रा का विरोध कर रहे थे और सड़क पर थे। इस बात की जानकारी रहने के बावजूद सड़क मार्ग को चुना गया। सुरक्षा घेरे को तोड़े जाने जैसी भी कोई घटना नहीं घटी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब के फिरोजपुर दौरे के दौरान सुरक्षा में हुई चूक के मामले में पंजाब सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट सौंप दी है। पंजाब के मुख्य सचिव अनिरुद्ध तिवारी ने इस रिपोर्ट में सुरक्षा में हुई चूक से जुड़े सभी बिंदुओं को शामिल किया है। पंजाब सरकार ने 2 सदस्यों वाली एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया था।  यह रिपोर्ट राज्य पुलिस के आला अफसरों के साथ बातचीत और विचार करने के बाद तैयार की गई है।  सूत्रों के मुताबिक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए अतिरिक्त संख्या में पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी। पंजाब सरकार ने कहा है कि इस दौरान हो रहे विरोध प्रदर्शन स्वत: स्फूर्त थे। 9 किसान संगठनों ने एलान किया था कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे का विरोध करेंगे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे को लेकर सुरक्षा में हुई चूक के मामले में एक नया वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में कुछ बीजेपी कार्यकर्ता हाथों में झंडे लेकर प्रधानमंत्री की गाड़ी के बिल्कुल पास पहुंचते दिख रहे हैं। उस दौरान प्रधानमंत्री की गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है और उसे चारों ओर से एसपीजी के सुरक्षाकर्मी घेरे रहते हैं। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने इस दौरान जमकर नारेबाजी भी की। 

प्रधानमंत्री हुसैनीवाला में स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक की ओर बढ़ रहे थे। इस मामले में कुछ और वीडियो सामने आए हैं जिनमें कुछ किसान नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फिरोजपुर रैली का विरोध करने की बात कह रहे हैं।  किसान संगठनों ने पहले भी एलान किया था कि वे प्रधानमंत्री मोदी की रैली का विरोध करेंगे। लेकिन इस ताज़ा वीडियो से पता चलता है कि निश्चित रूप से प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक हुई है। 

अब यह मामला केंद्र और राज्य सरकार, बीजेपी और कांग्रेस के बीच से निकलकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में पंजाब सरकार और केंद्र सरकार की ओर से अपनी-अपनी दलीलें रखी गई हैं।  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र व पंजाब सरकार सोमवार तक इस मामले में कोई कार्रवाई ना करें। मामले में अगली सुनवाई सोमवार को होगी।

मौसम ख़राब होने की वजह से 14 फ़रवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूद्रपुर रैली में शिरकत करने नहीं पहुंच पाए थे। फिर भी उन्होंने मोबाइल फोन से रैली को संबोधित किया और सशरीर उपस्थित नहीं रहने के लिए उपस्थित दर्शकों से माफी मांगी थी। पुलवामा हमले की सूचना के बावजूद पीएम मोदी ने वह मोबाइल संबोधन दिया था, हालाँकि उस बारे में बताया यह गया कि तब तक नेटवर्क की खराबी के कारण सूचना नहीं पहुंच सकी थी। क्या इसी तर्ज पर पंजाब के फिरोजपुर में 5 जनवरी की रैली को प्रधानमंत्री संबोधित नहीं कर सकते थे? रूद्रपुर और फिरोजपुर की रैलियों में बड़ा फर्क यही था कि रूद्रपुर में बारिश के बावजूद भीड़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंतज़ार कर रही थी, जबकि फिरोजपुर में भीड़ नदारद थी। जब प्रधानमंत्री का काफिला किसानों के विरोध प्रदर्शन के कारण ट्रैफिक में फंसा और प्रधानमंत्री ने रैली नहीं करने का फ़ैसला किया, उस वक़्त कैप्टन अमरिंदर सिंह सभा को संबोधित कर रहे थे और महज सैकड़ों की भीड़ थी। संभवत: यही वह स्थिति थी कि प्रधानमंत्री ने रैली को मोबाइल से संबोधित करने के विकल्प पर भी विचार नहीं किया।

स्मृति ईरानी के नेतृत्व में केंद्र सरकार और बीजेपी के नेता कांग्रेस पर हमलावर हो गये। कांग्रेस को नरेंद्र मोदी की जान का दुश्मन बताया जाने लगा। गांधी परिवार पर हमले का दस्तूर बीजेपी ने इस घटना में भी जारी रखा। यह बात तो स्पष्ट है कि पंजाब की सियासत में बीजेपी अभी बहुत पीछे है और इन हथकंडों से वहां की सियासी सूरत नहीं बदलने वाली है। ऐसा लग रहा है मानो पंजाब से उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश की सियासी आग में घी डाले जा रहे हों।

गृह मंत्रालय ने भी तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई है जो इसकी जांच करेगी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से बात की है।

पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि पंजाब में एक भी आदमी ऐसा नहीं होगा जिससे प्रधानमंत्री की जान को खतरा हो। सिद्धू ने कहा कि प्रधानमंत्री केवल भारतीय जनता पार्टी के नहीं बल्कि सब के प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने यह कहकर कि यहां उनकी जान को खतरा था, पंजाब और पंजाबियत का अपमान किया है। सिद्धू ने कहा कि ऐसा कहना एक ड्रामा है। 

सिद्धू ने कहा कि जितने तिरंगे आपकी पार्टी, आपने और संघ ने नहीं फहराए होंगे उतने तिरंगे पंजाब के सपूतों की लाशों पर लपेटे जाते हैं। सिद्धू ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फिरोजपुर रैली में 70000 कुर्सियों पर 500 लोग थे।  सिद्धू ने सवाल पूछा कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा क्या पंजाब की पुलिस तक सीमित है क्या इसमें आईबी, रॉ और केंद्रीय एजेंसियों के लोग शामिल नहीं होते हैं। सिद्धू ने कहा कि प्रधानमंत्री का सड़क से जाने का कोई प्लान नहीं था लेकिन अचानक उनका प्लान कैसे बदल गया। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि बीजेपी इससे पहले भी ऐसा कर चुकी है। उन्होंने कहा कि दिल्ली का किसान साल डेढ़ साल तक अपना हक मांगने के लिए दिल्ली के बॉर्डर पर खड़ा रहा और वहां आपने हमारी पगड़ी हमारे किसानों को आतंकवादी का नाम दिया, खालिस्तानी, मवाली और आंदोलनजीवी का नाम दिया।

भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के प्रमुख सुरजीत सिंह फूल ने कहा कि हमें पीएम के सड़क से जाने की जानकारी मिली लेकिन हमने सोचा कि यह सड़क को खाली कराने का झांसा भर है. सुरजीत सिंह फूल के नेतृत्व वाले संगठन ने पियारेना गांव के पास फिरोजपुर-मोगा सड़क को अपने प्रदर्शन की वजह से जाम किया था.

फूल ने कहा, ”हमने शुरू में सोचा था कि वे हमें झांसा दे रहे हैं. प्रधानमंत्री नहीं आएंगे. अगर वह आते तो वह हवाई मार्ग से आएंगे क्योंकि वहां एक हेलीपैड बनाया गया था.”

फूल ने कहा कि उन्हें लगा कि रैली के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं की बसों को जाने का रास्ता देने के वास्ते सड़क को खाली कराने के लिए पुलिस की यह चाल है.  यह पूछे जाने पर कि किस पुलिस अधिकारी ने उन्हें बताया कि प्रधानमंत्री आ रहे हैं, फूल ने कहा कि फिरोजपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) ने यह बताया था.

किसान मजदूर संघर्ष समिति और भारतीय किसान संघ (क्रांतिकारी) सहित कुछ किसान संगठनों ने पहले मोदी के दौरे का विरोध करने की घोषणा की थी. वे सरकार से लंबित मांगों को पूरा करने की मांग कर रहे थे, जिसमें फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए एक कानून लाना और कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेने वाले किसानों के विरूद्ध दर्ज आपराधिक मामले वापस लेना शामिल है.

मुंबई प्रवासी मजदूर डेरा जमाए हैं –  UP-बिहार की ये ट्रेनें कोरोना की सुपर स्प्रेडर बन सकती हैं।

प्रवासी मजदूर हैरान हैं कि लोगों की हिफाजत के लिए जिम्मेदार पुलिस आखिर किस गलती के लिए डंडे बरसा रही है। लोगों के डर और पलायन का यह सिलसिला जारी है। अगर लॉकडाउन की स्थिति बनती है, तो स्टेशन पर ऐसी कोई भी व्यवस्था नजर नहीं आई, जो आपात स्थिति से निपट सके। न डॉक्टर मौजूद थे, न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था और न ही मजदूरों की टेस्टिंग का कोई इंतजाम था।

मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूर डेरा जमाए हैं। यहीं से उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली ज्यादातर ट्रेनें रवाना होती हैं। मुंबई के प्रवासियों में बड़ी संख्या इन्हीं इलाके के लोगों की है। गुरुवार रात से ही मुंबई के लोकमान्य तिलक स्टेशन पर प्रवासियों की भीड़ उमड़ने लगी थी। तीसरी लहर में कैसे घर जाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं लोग

रेलवे स्टेशन पर प्रवासियों को पुलिस के डंडे खाने पड़े, ट्रेन का टिकट भी नहीं मिला। इसके बावजूद वे वहां से नहीं हिले। वजह साफ थी.. अगर मुंबई में लॉकडाउन लग गया, तो वे भूखे मर जाएंगे। ऐसे में सबकी कोशिश है कि कैसे भी लॉकडाउन से पहले अपने गांव-अपने घर पहुंच जाएं। मुंबई में पिछले 24 घंटे में कोरोना के 20 हजार से ज्यादा केस मिले हैं। ऐसे में लॉकडाउन की आशंका से प्रवासी और खासतौर पर मजदूर बेहद डरे हुए हैं।

मुंबई के लोकमान्य टर्मिनस पर गुरुवार रात 8 बजे से ही भीड़ बढ़ने लगी थी। इसमें ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग थे, जो शुक्रवार सुबह की ट्रेन के लिए लॉकडाउन के डर से देर रात ही स्टेशन पहुंच जाए थे। उनका कहना था कि यहां रुके तो भूखों मरने की नौबत आ जायेगी। ऐसे में यहां रहकर क्या करें? रात से भीड़ के बढ़ने का सिलसिला जो शुरू हुआ वो सुबह भी जारी रहा। धीरे धीरे रात को भीड़ बढ़ने लगी। सिर पर बोरा, बैग और अटैची, बाल्टी लिए मजदूर लोग लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुंचने लगे। ज्यादातर की ट्रेन सुबह 5.25 बजे या उसके बाद की थीं, लेकिन लोग लॉकडाउन की दहशत के बीच रात को ही स्टेशन पहुंच गए।

स्टेशन के अंदर जाने लगे तो पुलिस ने अंदर नहीं जाने दिया। पुलिस ने उन्हें डंडे का जोर दिखाया और कहा, ‘क्यों चले आते हो बिहार-UP से, जब भागना ही होता है।’ बेबस लाचार मजदूर स्टेशन के सामने बैठ गए। ट्रेन सुबह थी। रात को पहुंचे तो चिंता टिकट की थी। टिकट किसी के पास नहीं। सभी ने प्लान किया की जनरल में चढ़ जाएंगे। TC आएगा तो चालान कटवा लेंगे। यही तय करके मजदूर प्लेटफॉर्म्स की तरफ बढ़े।

जैसे जैसे रात बढ़ती गई लोकमान्य तिलक स्टेशन के बाहर UP-बिहार के सैकड़ों लोगों का डेरा दिखाई देने लगा। भूखे-प्यासे सब इसी चिंता में थे की किसी तरह घर पहुंच जाए। कोई लेटा था, तो कोई बैठा था। सबकी बातों, चेहरों और आंखों में एक ही सवाल था- घर कब पहुचेंगे? इस असमंजस की उनके पास वजहें भी थीं। ज्यादातर मजदूरों के पास न टिकट था और न खाना।

स्टेशन के बाहर हर कोई टिकट और ट्रेन को लेकर उलझन में था। उन्हें हालात के बारे में समझाने वाला कोई नहीं। पुलिस के पास जाएं, तो डंडे पड़ते हैं। प्रवासी मजदूर हैरान हैं कि लोगों की हिफाजत के लिए जिम्मेदार पुलिस आखिर किस गलती के लिए डंडे बरसा रही है। स्टेशन पर भी बस यही ऐलान हो रहा है कि बिना टिकट वाले वापस लौट जाएं।

भूख-प्यास से ऊपर लोगों के चेहरे पर एक ही बात की फिक्र दिखी। लॉकडाउन में न फंसकर घर लौट जाने की। कोई सोया था तो कोई जागा था। कुछ डर के मारे जाग रहे थे कि कोई सामान न ले जाए। जैसे ही भूख और इंतजार के बीच नींद लगी, पुलिस ने आकर डंडे बरसाने शुरू कर दिए और कहा- उठो ये आपका घर नहीं। इसके बाद सब डर के मारे जागते ही रहे।

महामारी मार्च 2022 तक कमजोर पड़ जाएगी

आईआईटी कानपुर के एक प्रोफेसर ने बड़ा दावा किया है। प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली और मुंबई में ओमिक्रोन से संचालित कोरोना मामले जनवरी के मध्य में यानी आज से करीब 10 दिनों में चरम पर पहुंच जाएंगे। यह महामारी मार्च 2022 तक कमजोर पड़ जाएगी। देश के उत्तरपूर्वी हिस्सों में दूसरी लहर के दौरान भी ऐसा ही हुआ था। पीक का मतलब है कि दोनों ही महानगरों में 30 से 50 हजार केस रोज।

प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल का अनुमान है कि भारत में इस महीने के अंत तक कोरोना के मामले पीक यानी चरम पर पहुंच जाएंगे। इस दौरान देशबर में 4 से 8 लाख मामले रोज आ सकते हैं। सख्त लॉकडाउन लगाए जाएंगे, जिससे महामारी कंट्रोल में आएगी। इससे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर भी उतना बोझ नहीं पड़ेगा और धीरे-धीरे केस काम होते जाएंगे।

कोविड प्रोटोकॉल का कोई पालन नहीं करता है — प्रशांत किशोर

नई दिल्ली:  चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) ने कहा है कि सभी चुनावी राज्यों में कम से कम 80 फीसदी लोगों को कविड रोधी टीके (Anti Covid Vaccine) की दोनों डोज दिलवाने पर चुनाव आयोग (Election Commission) को जोर देना चाहिए. बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच चुनाव कराए जाने पर प्रशांत किशोर ने कहा है कि यह जोखिमभरा हो सकता है क्योंकि कोविड प्रोटोकॉल का कोई पालन नहीं करता है.

प्रशांत किशोर ने ट्वीट किया है, “चुनाव आयोग को मतदान वाले राज्यों में कम से कम 80% लोगों के लिए वैक्सीन की दोनों खुराक दिलाने पर जोर देना चाहिए.. भयंकर महामारी के बीच #चुनाव कराने का यही एकमात्र सुरक्षित तरीका है. बाकी सब बकबास है.. #कोविड उपयुक्त व्यवहार के लिए दिशा-निर्देश हास्यास्पद हैं जिसका कोई पालन नहीं करता है.”

पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर) में अगले दो महीनों में विधान सभा चुनाव होने हैं लेकिन देश में एक बार फिर से कोरोनावायरस के मामले बढ़ने लगे हैं. देश में आज एक्टिव कोविड मरीजों की संख्या 1 लाख के पार हो गई है. शुक्रवार यानी 7 जनवरी, 2022 की सुबह तक पिछले 24 घंटों में भारत में कोरोनावायरस के मामले 28.8 फीसदी बढ़ गए हैं.

ओमिक्रॉन वेरिएंट के प्रसार के बीच पिछले 24 घंटे में 1,17,100 नए मामले सामने आए हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 24 घंटे में कोरोना के 302 मरीजों की मौत भी हुई है.

देवी का यह मंदिर इसी अजीबोगरीब रीति-रिवाज की वजह से फेमस

कर्नाटक के गुलबर्ज जिले में लकम्मा देवी का मंदिर है. इस मंदिर में हर साल फुटवियर फेस्टिवल का आयोजन होता है. जिसमें दूर दराज के गांवों से लोग माता को चपप्ल चढ़ाने कि लिए आते हैं. इस फेस्टिवल में मुख्य रुप से गोला-बी, नामक गांव के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. कहते हैं कि देवी का यह मंदिर इसी अजीबोगरीब रीति-रिवाज की वजह से फेमस है. 

लकम्‍मा देवी के मंदिर में फुटवियर फेस्टीवल हर साल दिवाली के छठे दिन आयोजित किया जाता है. मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर लोग अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए जूते-चप्पल टांगते हैं. मान्यता यह भी है कि ऐसा करने से घुटनों से जुड़ी समस्या से छुटकारा मिलता है. साथ ही बुरी शक्तियां हमेशा दूर रहती हैं. इसके अलावा इस मंदिर में मांसाहारी और शाकाहारी व्यंजनों का भोग लगाया जाता है. हैरान करने वाली बात है कि इस मंदिर में मनोकामना पूर्ति के लिए न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग भी आते हैं. 

राजराजेश्वर मन्दिर : विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर ,

राजराजेश्वर मन्दिर : विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर , मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है। चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है।

बृहदीश्वर मन्दिर या राजराजेश्वरम् तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था।

Himalayauk News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *