तंत्रमंत्र तथा राजसत्‍ता की देवी मां बगलामुखी-पीताम्बराअवतरण दिवस

Baglamukhi Jayanti 2021 : पंचांग के अनुसार 20 मई बृहस्पतिवार का दिन विशेष है. इस दिन मां बगलामुखी जयंती है. इस दिन वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि है. दोपहर 12 बजकर 25 मिनट के बाद नवमी की तिथि का आरंभ होगा : वे चाहें तो शत्रु की जिव्हा ले सकती हैं और भक्तों की वाणी को दिव्यता का आशीष दे सकती हैं। #चालीसा: श्री बगलामुखी माता (Shri Baglamukhi Mata)# माँ बगलामुखी अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम् (Maa Baglamukhi Ashtottara Shatnam Stotram) # चन्‍‍‍‍‍‍‍द्रशेखर जोशी की एक्‍सक्‍लूसिव  रिपोर्ट

HIGH LIGHT #मां पीतांबरा राजसत्ता की देवी # मुराद जरूर पूरी होती है# शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी # राजसत्ता का सुख जरूर मिलता है # माता साधना हवन पूजन करते ही तुरंत जाग्रत # जब-जब देश के ऊपर विपत्तियां आती हैं तब-तब कोई न कोई न कोई गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ-हवन अवश्य ही कराते हैं#  नेहरू जी को चमत्‍कार दिखाया था माई ने # पीताम्बरा देवी की मूर्ति के हाथों में मुदगर, पाश, वज्र एवं शत्रुजिव्हा# यह शत्रुओं की जीभ को कीलित कर देती हैं# मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला # इनकी आराधना करने से साधक को विजय प्राप्त होती है# शुत्र पूरी तरह पराजित हो जाते हैं# #इस शक्ति के सूत्र विज्ञान से हजारों मील दूर बैठे व्यक्ति का आकर्षण किया जा सकता है#माँ पीताम्बरा बगलामुखी शक्तिपीठ का भूमि पूजन पहली बार बजारावाला देहरादून में हुआ था # मॉई- की प्रेरणा से- बंजारावाला में राणा परिवार ने मॉ बगुलामुखी पीताम्‍बरा मंदिर के लिए भूमि दान दी-  #पर शक्‍तिपीठ के संरक्षक स्‍व0 प्रकाश पंत तत्‍कालीन कैबिनेट मंत्री के असमय प्रयाण तथा मुझे पत्‍नी शोक से कार्य लम्‍बित होता गया-   # चन्‍‍‍‍‍‍‍द्रशेखर जोशी मुख्‍य सम्‍पादक की एक्‍सक्‍लूसिव  रिपोर्ट

# देहरादून में माई का पहला मंदिर जरूर बनेगा- इस अपेक्षा के साथ- आपका   चन्‍द्रशेखर जोशी- उपासक

बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुल्हन। कुब्जिका तंत्र के अनुसार, बगला नाम तीन अक्षरों से निर्मित है व, ग, ला; ‘व’ अक्षर वारुणी, ‘ग’ अक्षर सिद्धिदा तथा ‘ला’ अक्षर पृथ्वी को संबोधित करता है। अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है। सर्वप्रथम देवी की आराधना ब्रह्मा जी ने की थी, तदनंतर उन्होंने बगला साधना का उपदेश सनकादिक मुनियों को किया, कुमारों से प्रेरित हो देवर्षि नारद ने भी देवी की साधना की। देवी के दूसरे उपासक स्वयं जगत पालन कर्ता भगवान विष्णु हुए तथा तीसरे भगवान परशुराम। इनकी साधना सप्तऋषियों ने वैदिक काल में समय समय पर की है।

हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं।  देवी तामसी गुण से संबंध भी रखती हैं। आकर्षण, मारण तथा स्तंभन कर्म आदि तामसी प्रवृति से संबंधित कर्म भी किए जाते हैं, 

मंत्र; ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा। इन 36 अक्षरों वाले मंत्र में अद्‍भुत प्रभाव है।

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आज मां बगलामुखी अवतरित हुई थी- – 20 मई  वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि : वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष गुरुवार, 20 मई 2021 को मां बगलामुखी जयंती मनाई जा रही है। माता का एक अन्य नाम देवी पीताम्बरा भी है।

बगलामुखी जयंती तिथि: 20 मई 2021 पूजा का शुभ समय: सुबह 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक. पूजा की कुल अवधि: 55 मिनट.: दीपक की बाती को हल्दी या पीले रंग में लपेट कर सुखा लें।

देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है, क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्ररूपिणी हैं। इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसीलिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।

20 मई बृहस्पतिवार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि मां बगलामुखी जयंती – दोपहर 12 बजकर 25 मिनट के बाद नवमी की तिथि का आरंभ – आज नक्षत्र मघा है और चंद्रमा सिंह राशि में गोचर कर रहा है. मां बगलामुखी को प्रसन्न करने के लिए आज का दिन उत्तम है.  इसी तिथि को मां बगलामुखी अवतरित हुई थीं. अष्टमी तिथि पर मां बगलामुखी की विधि पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है. वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी मां बगलामुखी को समर्पित है.

मां बगलामुखी को 10 महाविद्याओं में से एक माना गया है. ये 10 महाविद्याओं के क्रम में 8वीं महाविद्या है. परंपरा के अनुसार वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मां बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है.

मां बगलामुखी कौ तांत्रिकों की देवी माना हैं, परंतु सामान्यजन भी इनकी पूजा अर्चना कर सकते हैं।  देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां बगलामुखी को पीला रंग अधिक प्रिय है। इस दिन मां बगलामुखी की पूजा में पीले रंग के फूल, पीला चंदन और पीले रंग के वस्त्र अर्पित करने की मान्यता है।

मां बगलामुखी की पूजा हर प्रकार की बाधा और कष्ट को दूर करती है. मां बगलामुखी की पूजा उस स्थिति में अधिक लाभकारी मानी गई है जब व्यक्ति किसी गंभीर परेशानी में जकड़ा हो. गंभीर परेशानी होने पर मां की भक्तिभाव के साथ पूजा करने से राहत मिलती है और बाधा दूर होती है.

कथा- मां देवी बगलामुखीजी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा। इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेक लोग संकट में पड़ जाते हैं और संसार की रक्षा करना असंभव हो जाता है। यह तूफान सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था जिसे देखकर भगवान विष्णुजी चिंतित हो गए।

देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य की जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, देवी के इस जिव्हा पकड़ने का तात्पर्य यह है कि देवी वाक् शक्ति देने और लेने के लिए पूजी जाती हैं। वे चाहें तो शत्रु की जिव्हा ले सकती हैं और भक्तों की वाणी को दिव्यता का आशीष दे सकती हैं। 

इस समस्या का कोई हल न पाकर वे भगवान शिव का स्मरण करने लगे। तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में ही जाएं। तब भगवान विष्णु हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंचकर कठोर तप करते हैं। भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुन्दरी को प्रसन्न किया तथा देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुईं और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करतीं महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुईं। त्र्यैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर विष्णुजी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका।

 तीन ही शक्तिपीठ हैं: भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है।

मां बगलामुखी को दुर्गा मां का आंठवां अवतार माना जाता है। मान्यता है कि देवी मां की पूजा करने जीवन की समस्याओं का अंत हो जाता है।  मान्यता है कि मां बगलामुखी की साधना करने से गंभीर बीमारियों से छुटकारा मिलता है।   प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। 1. काली 2. तारा 3. षोड़षी 4. भुवनेश्वरी 5. छिन्नमस्ता 6. त्रिपुर भैरवी 7. धूमावती 8. बगलामुखी 9. मातंगी 10. कमला। मां भगवती श्री बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है।    बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। कहा जाता है कि देवी के सच्चे भक्त को तीनों लोक मे अजेय है, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है। पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती हैं। 

तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है।  मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।  सिर्फ 3 मंदिर है पूरे विश्व में

नंदा देवी एनक्‍लेव, बंजारावाला देहरादून में मां बगलामुखी पीताम्‍बरी माई के धाम का भूमि पूजन माई के सत्‍य साधक पं0 बिजेन्‍द्र पाण्‍डे जी महाराज जी के कर कमलो से किया गया था जिसमें भव्‍य भंडारा किया गया था तथा अदभूत प्रसन्‍नता थी कि – देहरादून में पहली बार माई विराजेेगी # ज्ञात हो कि मनोकामना पूर्ण करने का स्‍थान होता है माई का स्‍थान, मान्‍यता है कि माई जहां विराजती है, उस क्षेत्र विशेष से संकट दूर रहता है # और राजस्‍थान में मॉ की साढे पांच फीट ऊची दिव्‍य मूर्ति का निर्माण शुरू करा दिया गया था # सलंग्‍न  मूर्ति  चित्रकार ने भेजी थी और भूमि पूजन में श्री विनोद चमोली को विशेष आशीर्वाद सत्‍यसाधक गुरूदेव ने दिया था # सत्‍य साधक परम आदरणीय श्री बिजेन्‍द्र पाण्‍डे जी महाराज की प्रेरणा से बनाये जा रहे इस मदिर / धाम के भूमि पूजन के लिए 1 फरवरी 2016 प्रात- 10 बजे से रात्रि 10बजे तक सैकडो लोगो ने भण्‍डारा छका था, है

माई के सत्‍य साधक पं0 बिजेन्‍द्र पाण्‍डे जी महाराज जी के जप और तप के बारे में अनेक लोग जानते हैं, कालीमठ से दुर्गम स्‍थान कालीशिला में 35 दिन की निराहार तपस्‍या तथा बागेश्‍वर भद्र काली मंदिर में 35 दिन की निराहार तपस्‍या वर्ष 2016 में महाराज जी कर चुके हैं, महाराज जी के जप तथा तप के कारण बंजारावाला देहरादून में बनने जा रहा माई का मंदिर शीघ्र ही एक सिद्ध पीठ के रूप में विख्‍यात होगा। महाराज जी के बारे में जितना कहा जाये उतना कम है, 

देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को चमत्‍कार दिखाया था- 

माँ पीताम्बरा बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है। पीताम्बरा पीठ मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था। तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा। उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले। स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक यज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया। यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था तथा पूर्णाहुति डाली जा रही थी, उसी समय ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है। मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है।

ये शिवमृत्युञ्जय की शक्ति

विश्व की रक्षा करने वाली हैं,साथ जीव की जो रक्षा करती हैं,वही बगलामुखी हैं।स्तम्भन शक्ति केसाथ ये त्रिशक्ति भी हैं।अभाव को दूर कर,शत्रु से अपने भक्त की हमेशा जो रक्षा करती हैं।दुष्टजन,ग्रह,भूत पिशाच सभी को ये तत्क्षण रोक देती हैं।आकाश को जो पी जाती हैं,ये विष्णुद्वारा उपासिता श्री महा त्रिपुर सुन्दरी हैं। ये पीत वस्त्र वाली,अमृत के सागर मे दिव्य रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं।ये शिवमृत्युञ्जय की शक्ति हैं।ये अपने भक्तों के कष्ट पहुँचाने वाले को बाँध देती हैं,रोक देती है।ये उग्रशक्ति के साथ,बहुत भक्त वत्सला भी हैं,परम करूणा के साथ भक्त के प्रत्यक्ष या गुप्त शत्रु कोरोक देती हैं।ये वैष्णवी शक्ति हैं,ये शीघ्र प्रभाव दिखाती है,इस लिए इन्हें सिद्ध विद्या भी कहाजाता हैं।गुरू,शिव जब कृपा करते है तो ही इनकी साधना करने का सौभाग्य प्राप्त हो पाता हैं।

मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है। इसी रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं। राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं। मां पीतांबरा शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी है और राजसत्ता प्राप्ति में मां की पूजा का विशेष महत्व होता है।
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा के मंदिर में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी हो या फिर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही क्यों न हो, और बात करें फिल्म अभिनेता संजय दत्त की, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, दिगि्वजय सिंह, उमाभारती की, यह फेहरिस्त बहुतं लंबी है, सब यहां माता के दरबार में पुकार लगा चुके हैं।
मां पीतांबरा देवी अपना दिन में तीन बार अपना रुप बदलती हैं मां के दशर्न से सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया काा जब राजनीतिक संकट चल रहा था तब वसुंधरा यहां मां से आर्शीवाद लेने आई थी उन्होंने सकंट कट जाए इसलिए यहां यज्ञ भी करवाया था। इस मंदिर को चमत्कारी धाम भी माना जाता है।
इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। ये चमत्कारी धाम स्वामीजी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है। भक्तों को मां के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से ही होते हैं।

माता साधना हवन पूजन करते ही तुरंत जाग्रत हो जाती है-
बात उन दिनों की है जब भारत और चीन का युद्ध 1962 में प्रारंभ हुआ था। बाबा ने फौजी अधिकारियों एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर देश की रक्षा के लिए मां बगलामुखी की प्रेरणा से 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था। परिणामस्वरूप 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। उस समय यज्ञ के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी है। यहां लगी पट्टिका पर इस घटना का उल्लेख है। जब-जब देश के ऊपर विपत्तियां आती हैं तब-तब कोई न कोई न कोई गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ-हवन अवश्य ही कराते हैं। मां पीतांबरा शक्ति की कृपा से देश पर आने वाली बहुत सी विपत्तियां टल गई हैं। इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मां बगलामुखी ने देश की रक्षा की। सन् 2000 में कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच पुनः युद्ध हुआ, किंतु हमारे देश के कुछ विशिष्ट साधकों ने मां बगलामुखी की गुप्त रूप से पुनः साधनाएं एवं यज्ञ किए जिससे दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी। ऐसा कहा जाता है कि यह यज्ञ तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बीहारी वाजपेयी के कहने पर यहां कराया गया था।

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चालीसा: श्री बगलामुखी माता (Shri Baglamukhi Mata)

॥ दोहा ॥

सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज ॥ कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय श्री बगला माता । आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥
बगला सम तब आनन माता । एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥

शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी । असतुति करहिं देव नर-नारी ॥
पीतवसन तन पर तव राजै । हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥ 4 ॥
तीन नयन गल चम्पक माला । अमित तेज प्रकटत है भाला ॥
रत्न-जटित सिंहासन सोहै ।  शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥
आसन पीतवर्ण महारानी ।  भक्तन की तुम हो वरदानी ॥
पीताभूषण पीतहिं चन्दन ।  सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥ 8 ॥
एहि विधि ध्यान हृदय में राखै ।  वेद पुराण संत अस भाखै ॥
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा ।  जाके किये होत दुख-नाशा ॥
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै ।  पीतवसन देवी पहिरावै ॥
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन ।  अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥ 12 ॥
माल्य हरिद्रा अरु फल पाना ।  सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥
धूप दीप कर्पूर की बाती । प्रेम-सहित तब करै आरती ॥
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे ।  पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥
मातु भगति तब सब सुख खानी ।  करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥ 16 ॥
त्रिविध ताप सब दुख नशावहु ।  तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥
बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं ।  अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥
पूजनांत में हवन करावै ।  सा नर मनवांछित फल पावै ॥
सर्षप होम करै जो कोई ।  ताके वश सचराचर होई ॥ 20 ॥
तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै ।  भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥
दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई ।  निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥
फूल अशोक हवन जो करई ।  ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥
फल सेमर का होम करीजै ।  निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥ 24 ॥
 गुग्गुल घृत होमै जो कोई । तेहि के वश में राजा होई ॥
गुग्गुल तिल संग होम करावै ।  ताको सकल बंध कट जावै ॥
बीलाक्षर का पाठ जो करहीं ।  बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥
एक मास निशि जो कर जापा ।  तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥ 28 ॥
घर की शुद्ध भूमि जहं होई ।  साध्का जाप करै तहं सोई ॥
सेइ इच्छित फल निश्चय पावै ।  यामै नहिं कदु संशय लावै ॥
अथवा तीर नदी के जाई ।  साधक जाप करै मन लाई ॥
दस सहस्र जप करै जो कोई ।  सक काज तेहि कर सिधि होई ॥ 32 ॥
जाप करै जो लक्षहिं बारा ।  ताकर होय सुयशविस्तारा ॥
जो तव नाम जपै मन लाई ।  अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥
सप्तरात्रि जो पापहिं नामा ।  वाको पूरन हो सब कामा ॥
नव दिन जाप करे जो कोई ।  व्याधि रहित ताकर तन होई ॥ 36 ॥
ध्यान करै जो बन्ध्या नारी ।  पावै पुत्रादिक फल चारी ॥
प्रातः सायं अरु मध्याना ।  धरे ध्यान होवैकल्याना ॥
कहं लगि महिमा कहौं तिहारी ।  नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥
पाठ करै जो नित्या चालीसा । तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥ 40 ॥

॥ दोहा ॥

सन्तशरण को तनय हूं,   कुलपति मिश्र सुनाम ।  हरिद्वार मण्डल बसूं ,  धाम हरिपुर ग्राम ॥
उन्नीस सौ पिचानबे सन् की,  श्रावण शुक्ला मास । चालीसा रचना कियौ,  तव चरणन को दास ॥

माँ बगलामुखी अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम् (Maa Baglamukhi Ashtottara Shatnam Stotram)

ओम् ब्रह्मास्त्र-रुपिणी देवी, माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च, ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ॥ 1 ॥

महा-विद्या महा-लक्ष्मी, श्रीमत् -त्रिपुर-सुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता, पार्वती सर्व-मंगला ॥ 2 ॥
ललिता भैरवी शान्ता,  अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छिन्नमस्ता च,  तारा काली सरस्वती ॥ 3 ॥
जगत् -पूज्या महा-माया, कामेशी भग-मालिनी ।
दक्ष-पुत्री शिवांकस्था, शिवरुपा शिवप्रिया ॥ 4 ॥
सर्व-सम्पत्-करी देवी,  सर्व-लोक वशंकरी ।
वेद-विद्या महा-पूज्या, भक्ताद्वेषी भयंकरी ॥ 5 ॥
स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च, दुष्ट-स्तम्भन-कारिणी ।
भक्त-प्रिया महा-भोगा, श्रीविद्या ललिताम्बिका ॥ 6 ॥
मेना-पुत्री शिवानन्दा, मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च,  नृपाराध्या नरोत्तमा ॥ 7 ॥
नागिनी नाग-पुत्री च, नगराज-सुता उमा ।
पीताम्बरा पीत-पुष्पा च, पीत-वस्त्र-प्रिया शुभा ॥ 8 ॥
पीत-गन्ध-प्रिया रामा, पीत-रत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्ध-चन्द्र-धरी देवी,  गदा-मुद्-गर-धारिणी ॥ 9 ॥
सावित्री त्रि-पदा शुद्धा,  सद्यो राग-विवर्द्धिनी ।
विष्णु-रुपा जगन्मोहा,  ब्रह्म-रुपा हरि-प्रिया ॥ 10 ॥
रुद्र-रुपा रुद्र-शक्तिद्दिन्मयी,  भक्त-वत्सला ।
लोक-माता शिवा सन्ध्या,  शिव-पूजन-तत्परा ॥ 11 ॥
धनाध्यक्षा धनेशी च, धर्मदा धनदा धना ।
चण्ड-दर्प-हरी देवी,  शुम्भासुर-निवर्हिणी ॥ 12 ॥
राज-राजेश्वरी देवी, महिषासुर-मर्दिनी ।
मधु-कैटभ-हन्त्री च, रक्त-बीज-विनाशिनी ॥ 13 ॥
धूम्राक्ष-दैत्य-हन्त्री च,  भण्डासुर-विनाशिनी ।
रेणु-पुत्री महा-माया, भ्रामरी भ्रमराम्बिका ॥ 14 ॥
 ज्वालामुखी भद्रकाली,  बगला शत्र-ुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्र-पूज्या च, गुह-माता गुणेश्वरी ॥ 15 ॥

वज्र-पाश-धरा देवी, जिह्वा-मुद्-गर-धारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी, बगला परमेश्वरी ॥ 16 ॥
फल- श्रुति   अष्टोत्तरशतं नाम्नां, बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिप-ुबाधा-विनिर्मुक्तः, लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात्॥ 1 ॥
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, ग्रह-पीड़ा-निवारणम् ।
राजानो वशमायाति, सर्वैश्वर्यं च विन्दति ॥ 2 ॥
नाना-विद्यां च लभते, राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् ।
भुक्ति-मुक्तिमवाप्नोति, साक्षात् शिव-समो भवेत् ॥ 3 ॥
॥ श्रीरूद्रयामले सर्व-सिद्धि-प्रद श्री बगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ॥

आपसे निवेेदन है कि मेरे इस आलेख को पढकर आप भी बंजारावाला, देहरादून में बनाये जाने वाले माई के धाम के निर्माण में सहयोग करें-* चन्‍द्रशेखर जोशी- सम्‍पादक- मोबा0 9412932030 मेल- csjoshi_editor@yahoo.in 

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