बीजेपी के आंतरिक सर्वे में उत्‍तर प्रदेश, उत्‍तराखण्‍ड में नुक़सान

2022 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें से चार राज्यों में भाजपा की सरकार है और बीजेपी के लिए इन चारों राज्यों में अपनी सरकार को बचाना चुनौतीपूर्ण है।  उत्तराखंड में सत्ता गंवा सकती है बीजेपी – सर्वे में ये सामने आया है कि बीजेपी को उत्तराखंड में बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। उत्तराखंड में पिछले चुनाव के अंदर जोरदार जीत दर्ज करने वाली बीजेपी को 2022 में सत्ता गंवानी पड़ सकती है। उत्तराखंड के अलावा पंजाब में तो बीजेपी की राह कांटो भरी होगी, क्योंकि किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी का पंजाब में खाता तक खुलना भी मुश्किल नजर आ रहा है। Presents by Himalayauk Newsportal & Daily Newspaper

बीजेपी के आंतरिक सर्वे योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में कमी बताते हैं। योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध ब्राह्मणों के आक्रोश का भी इस्तेमाल किया गया है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को लुभाने के लिए जिस तरह से एसपी, बीएसपी और कांग्रेस में होड़ लगी है उसे देखते हुए यह बात साफ़ है कि बीजेपी नेतृत्व ने ब्राह्मणों के योगी विरोध को सही पहचाना है।   योगी-शाह इसी आधार पर राजस्थान वाली ग़लती दोहराना नहीं चाहते। वजह साफ़ है कि यूपी है तो दिल्ली है। यूपी गयी तो समझो दिल्ली भी गयी। यूपी का महत्व राम मंदिर निर्माण से है तो यूपी का महत्व नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी से भी है। यूपी का महत्व 80 लोकसभा सीट भी है और देश का सबसे बड़ी विधानसभा भी यहीं है। ऐसे में महामारी के दौर में योगी आदित्यनाथ के नाम जो अलोकप्रियता आयी है उसके असर से मुक्त होने की चिंता आलाकमान को है। यही कारण है कि यूपी में योगी आदित्यनाथ को चेहरा बनाने से बीजेपी परहेज कर रही है। 

उत्तराखंड में 2017 के विधानसभा चुनाव के अंदर 70 सीटों में से 57 सीटें जीतने वाली बीजेपी को अगले साल होने वाले चुनाव में 70 में 24-30 सीटें मिल सकती हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी को 32-38 सीटें मिल सकती हैं। कांग्रेस को 2017 में सिर्फ 11 सीटें मिली थीं। वहीं उत्तराखंड में पहली बार चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही आम आदमी पार्टी को सिर्फ 2-8 सीटें मिल सकती हैं।

योगी आदित्यनाथ के लिए चुनौती की शुरुआत जनवरी 2021 से हो गयी थी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नज़दीकी अरविंद कुमार शर्मा सेवानिवृत्ति से एक हफ्ते पहले बीजेपी में शामिल हुए। उन्हें यूपी का बड़ा चेहरा बनाकर पेश करने की खुली चर्चा थी। मगर, योगी आदित्यनाथ ने ऐसे तेवर दिखाए कि अरविंद कुमार शर्मा को मुलाक़ात का समय लेने तक के लिए तरसा दिया गया। जेपी नड्डा को संगठन के काम के बहाने लखनऊ आना पड़ा। तभी मुलाक़ात संभव हो सकी।

योगी आदित्यनाथ पर दबाव बढ़ाते हुए अरविंद कुमार शर्मा को एमएलसी बना दिया गया। कैबिनेट में शामिल करने का पूरा दबाव बरकरार रखा गया। उपमुख्यमंत्री बनाने तक की चर्चा हुई। मगर, योगी आदित्यनाथ अड़े रहे। झुकना आलाकमान को पड़ा। अरविंद कुमार शर्मा संगठन के कामकाज से जोड़ दिए गये हैं। यानी अपने विरुद्ध एक अन्य मुहिम की भी हवा निकाल चुके हैं योगी आदित्यनाथ।

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री का चेहरा बनने को बेकरार हैं मगर इस मुद्दे पर उनकी शीर्ष नेतृत्व से खुली तकरार है। यूपी में मंत्रिपरिषद का विस्तार रुका हुआ है। नाम तय हो चुके हैं, लिस्ट बन चुकी है और इन सबके लिए पूरी कवायद यानी योगी आदित्यनाथ का दिल्ली आना-जाना, मोदी-शाह से मिलना सब कुछ हो चुका है। फिर भी, मंत्रिपरिषद का विस्तार नहीं हो रहा है। योगी चाहते हैं एक हाथ दे, एक हाथ ले। तुम मुझे सीएम का चेहरा बताओ, मैं मंत्रिपरिषद को विस्तार दूँगा।

बीजेपी नेतृत्व से योगी आदित्यनाथ को अभयदान मिले हुए दो महीने हो चले हैं लेकिन मंत्रिपरिषद विस्तार को योगी आदित्यनाथ क्यों रोके हुए हैं? स्थिति यह है कि विधानसभा चुनाव की तैयारी भी संगठन के स्तर पर बढ़ रही है। संघ और बीजेपी के नेता मिलकर ब्लॉक स्तर पर लोगों को सक्रिय कर रहे हैं। नये-नये पदाधिकारी मनोनीत हो रहे हैं। ऐसे में मंत्रिपरिषद विस्तार में देरी का कोई औचित्य नहीं दिखता। यह देरी निश्चित रूप से केंद्रीय नेतृत्व की इच्छा के विरुद्ध है और योगी की मर्जी इसमें प्रमुख है। 

बीजेपी जानती है कि पंचायत चुनावों में उसे किसान आंदोलन के कारण खासा नुक़सान हुआ है, ख़ासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन का ख़ासा असर है, ऐसे में नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को फ्रंट फुट पर रखे बिना और बिना तगड़े बूथ मैनेजमेंट के चुनाव में जीत हासिल करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। किसानों ने साफ एलान किया है कि वे उत्तर प्रदेश के हर जिले, हर ब्लॉक और यहां तक कि हर घर तक पहुंचने की कोशिश करेंगे। निश्चित रूप से किसानों की यह मुहिम बीजेपी को इस राज्य के साथ ही पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी नुक़सान पहुंचा सकती है। 

निश्चित रूप से किसानों की यह मुहिम बीजेपी को इस राज्य के साथ ही पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी नुक़सान पहुंचा सकती है। 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खुली प्रशंसा वाराणसी में आकर कर गये हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। मगर, इससे योगी का यूपी चुनाव में चेहरा बनना तय नहीं हो जाता। सीएम के तौर पर मुख्यमंत्री बने रहेंगे योगी आदित्यनाथ- इस फ़ैसले को विस्तार ज़रूर देती है पीएम की प्रशंसा। मगर, योगी इस प्रशंसा भर से खुश नहीं हैं। उन्हें चाहिए अपने नाम की घोषणा। बीजेपी की ओर से अगले मुख्यमंत्री के तौर पर चेहरा बनकर चुनाव लड़ना चाहते हैं योगी आदित्यनाथ।

बीजेपी के लिए पंजाब में चुनाव जीत पाना बहुत ही मुश्किल होगा। सर्वे के मुताबिक, 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा के लिए अगर आज चुनाव हुए तो बीजेपी बमुश्किल खाता खोल पाएगी। उसे सिर्फ 2 सीटें मिलने का अनुमान है।

योगी आदित्यनाथ से मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी ले लेने की पूरी कोशिश हुई थी। एक पूरी मुहिम चली थी कि किसी तरह चुनाव से पहले यूपी में नेतृत्व परिवर्तन हो जाए जैसा कि उत्तराखण्ड में हुआ। ताज़ा उदाहरण कर्नाटक का भी है।  पूरा मई का महीना बीजपी और संघ आलाकमान लखनऊ से दिल्ली तक मशक्कत करता रहा। केंद्रीय नेतृत्व का प्रतिनिधिमंडल लखनऊ में डेरा डाले रहा। एक-एक विधायक से मुलाक़ात की। उन तमाम नेताओं को अहमियत दी जिन्होंने महामारी के दौर में योगी शासन पर सवाल उठाए। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के दो-दो बार दौरे हुए। मगर, योगी भारी पड़े। 

योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध ब्राह्मणों के आक्रोश का भी इस्तेमाल किया गया है।   ब्राह्मण आक्रोश का प्रतीक बन चुके कांग्रेस के दिग्गज नेता जितिन प्रसाद को बीजेपी में शामिल कराया गया। जितिन को बीजेपी में शामिल कराते वक़्त उत्तर प्रदेश का कोई भी नेता दिल्ली में मौजूद नहीं था। जाहिर है कि योगी आदित्यनाथ की सहमति इस पहल में नहीं थी। फिर भी जितिन प्रसाद ने लखनऊ आकर योगी आदित्यनाथ से मुलाक़ात की और तारतम्य बिठाने की कोशिश दिखलायी। सवाल यह है कि क्या योगी आदित्यनाथ जितिन प्रसाद को भाव देंगे? 

2000 में उत्तराखण्ड के अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस और भाजपा 10-10 साल सत्ता में रहे हैं। हालाँकि भाजपा इन 10 वर्षों में 7 मुख्यमंत्री बना चुकी है, जबकि कांग्रेस ने 3 ही मुख्यमंत्री बनाये हैं। भाजपा को इसका नुक़सान भी हो सकता है; क्योंकि बार-बार मुख्यमंत्री बदलने से विकास की गति धीमी होती है। 

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को लुभाने के लिए जिस तरह से एसपी, बीएसपी और कांग्रेस में होड़ लगी है उसे देखते हुए यह बात साफ़ है कि बीजेपी नेतृत्व ने ब्राह्मणों के योगी विरोध को सही पहचाना है। भले ही योगी आदित्यनाथ इसकी परवाह ना करें, लेकिन अगर यूपी में ब्राह्मणों ने बीजेपी से बेरुखी दिखलायी तो इसका असर देशव्यापी होगा। ऐसे में अगर जितिन प्रसाद को योगी अहमियत नहीं देते हैं तो आलाकमान का चिंतित होना लाजिमी है।

केंद्र में मोदी मंत्रिपरिषद का विस्तार हुआ। 7 मंत्री यूपी से शामिल किए गये। मगर, नामों के चयन में योगी आदित्यनाथ की प्रभावी भूमिका नहीं रही। अगर होती तो कौशल किशोर कतई शामिल नहीं होते जिन्होंने महामारी के दौर में योगी आदित्यनाथ के नाम चिट्ठी लिखकर खुले तौर पर व्यवस्था पर सवाल उठाए थे। 

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