कोरोना ;हालात बेकाबू -सावधानी टूथब्रश बदल दे ,नाक खुश्क न रहे
7 May 2021: Himalayauk Bureau
देश में कोरोना वायरस (Corona Virus) के कारण हालात बेकाबू हो गए हैं। हर दिन संक्रमण का आंकड़ा चार लाख के पार जा रहा हैं। साथ ही नए कोविड स्टैन भी सामने आने लगे हैं। हालांकि बीते दिनों पहले वैज्ञानिकों ने स्पष्ट कर दिया कि कोरोना इंसानों से इंसानों में फैलता है। वह कोविड-19 (Covid-19) से ठीक होने के बाद व्यक्ति दोबारा इसके चपेट में आ सकता है। कोरोना वैक्सीन संक्रमण से लड़ने कारगार साबित हो रही है।
कोविड संक्रमण से बचने लोगों को एहतियात बरतना बेहद जरूरी है। वहीं दांतों के डॉक्टरों ने भी कोरोना पर बेहद महत्वपूर्ण जानकारी दी है। डेंटिस्टों का कहना है कि जो शख्स कोरोना को हराकर घर लौटा है उसे तुरंत अपना टूथब्रश (Toothbrush) बदल देना चाहिए। ऐसा करने पर वो न केवल फिर से पॉजिटिव होने से बचते हैं। साथ ही अपने परिजनों को भी संक्रमित होने से बचा सकते हैं, क्योंकि लोग घर में एक ही वॉशरूम का इस्तेमाल करते हैं।
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज नई दिल्ली के एचओडी डेंटल सर्जरी डॉक्टर प्रवेश मेहरा ने बताया कि टूथब्रश बदलने से कोरोना से बचा जा सकता है। वहीं आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की कंसल्टेंट डॉ. भूमिका मदान ने भी इस बात पर सहमति जताई। कहा कि वो मरीजों को टूथब्रश और टंग क्लीनर बदलने की सलाह देती हैं, जो फ्लू, खांसी और सर्दी से ठीक हो गए हैं। डॉ. मदान ने कहा, ‘हम कोविड संक्रमितों को सलाह दे रहा है कि पहले लक्षण मिलने के 20 दिनों बाद अपना ब्रश और टंग क्लीनर बदल लें।’ हम माउथवॉश और बीटाडीन गार्गल करने को कहते है, जो मुंह में वायरस को कम करने में सहायक है। उन्होंने कहा कि माउथवॉश नहीं होने पर गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करना चाहिए। जबकि दिन में दो बार ब्रश जरूर करना चाहिए।
वही दूसरी ओर
कोरोना से संक्रमित डायबिटीज के रोगी इलाज के दौरान एक फंगस का शिकार हो रहे हैं, जो उनकी आंखों की रोशनी तक खत्म कर दे रहा है। जयपुर में 15 दिनों के भीतर 52 ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें कोरोना से संक्रमित डायबिटीज रोगियों की आंखों की रोशनी चली गई। ये सरकारी अस्पतालों से मिले आंकड़े हैं। अभी सामने आए मामलों में रोगियों को कोरोना के बाद म्यूकोरमाइकोसिस नाम की बीमारी हो गई। नतीजतन उनकी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई।
जैन ENT के CEO डॉ. अजय जैन और जैन ENT हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. सतीश जैन का कहना है कि
आंंख की नसों के पास में फंगस जमा हो जाता है, जो सेंट्रल रेटाइनल आर्टरी का ब्लड फ्लो बंद कर देता है। इससे आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाती है।
कोरोना में दिए जाने वाले स्टेराॅयड इम्युनिटी को और भी कम कर देते हैं। ऐसे में दवा का साइड इफेक्ट होने लगता है और व्यक्ति को म्यूकोरमाइकोसिस हो जाता है।
नाक खुश्क होती है। नाक की परत अंदर से सूखने लगती है व सुन्न हो जाती है। चेहरे व तलवे की त्वचा सुन्न हो जाती है। चेहरे पर सूजन आती है। दांत ढीले पड़ते हैं।
इस फंगस व इंफेक्शन को रोकने के लिए एकमात्र इंजेक्शन लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी आता है। कीमत 5 हजार रुपए है। मरीज को 6 लगते हैं। यदि इंफेक्शन बढ़ जाए तो पहले ऑपरेशन कर नाक-आंख के बीच के गले हुए हिस्से को निकाला जाता है और फिर दवाएं चलती हैं। ऑपरेशन भी काफी जटिल होता है।
सात से आठ दिन में ही इलाज न हो और फंगस न निकाला जाए तो ब्रेन तक फंगस इंफेक्शन फैलना तय है। इसके बाद व्यक्ति को बचाना लगभग नामुमकिन है।
कम से कम 4-5 दिन बाद डायबिटीज पेशेंट का फीडबैक लेकर संतुलित मात्रा में स्टेराॅयड देने चाहिए। शुरुआती लक्षण बहुत सामान्य हैं, लोग ध्यान नहीं देते।
अहमदाबाद सिविल डेंटल कॉलेज के डीन गिरीश परमार ने कहा कि म्यूकोरमाइकोसिस जैसे खतरनाक रोग का सबसे ज्यादा खतरा डायबिटीज के उन मरीजों को है, जिन्होंने कोरोना में स्टेराॅयड लिया है। सिविल अस्पताल में 80 में 60 मरीज ऐसे ही हैं। इनमें 9 की मौत हो गई और 3 की आंखों की रोशनी चली गई है।
डॉ. परमार ने कहा कि इस बीमारी में आंख, कान और दांत में इंफेक्शन होने लगता है। चेहरे पर सूजन आने लगती है। धीरे-धीरे इसका असर मस्तिष्क, दांतों, आंख और नाक पर होता है। पहली लहर में भी ऐसे मामले सामने आए थे, लेकिन तब संख्या बहुत कम थी। तब 5-7 मामले ही सामने आए थे और समय पर इलाज मिलने के चलते सभी स्वस्थ भी हो गए थे।
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