7 Nov. दिवाली; 21 गांठें बनाकर श्री गणेश को दूर्वा चढ़ायेे

HIGH LIGHTS;  #दिवाली 2018 लक्ष्मी पूजन शुभ मुहूर्त # शाम 07:30 बजे से रात 12:15 बजे तक # भगवान विष्णुु के बांयी ओर रखकर देवी लक्ष्मी की पूजा करें #

दिवाली 2018 इस बार 7 नवम्बर 2018 यानि बुधवार को मनाई जा रही है। दिवाली के दिन गणेश पूजन में दूर्वा घास चढ़ाने का खास महत्व है। गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है। गणेश जी भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र है। उन्हें सर्व कार्य सिद्ध करने का वरदान प्राप्त है।

भगवान गणेश को लड्डू पसन्द है लेकिन क्या आप ये जानते है कि भगवान गणेश को दूर्वा घास अत्यंत प्रिय है। दिवाली की रात जो कोई श्रद्धालु भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाते है। भगवान गणेश सदा अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखते है।  सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी का  मंत्र बोलें-

गजाननम्भूतगणादिसेवितं  कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।  उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

 

दिवाली 2018 इस बार 7 नवंबर, मंगलवार की मनाई जा रही है। दिवाली कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन माता महालक्ष्मी का पूजन करने से देवी लक्ष्मी घर का दारिद्रय दूर कर घर में धन रूप में वास करती है। इसलिए दिवाली की रात सभी श्रद्धालु ये प्रयास करते है कि देवी लक्ष्मी को किसी भी प्रकार प्रसन्न कर घर में धन लक्ष्मी का आगमन हो सके। 

लक्ष्मी पूजन करने के लिए सबसे पहले हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले। अब उसे देवी लक्ष्मी की मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में नीचे लिखा मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़क कर स्वयं को, पूजा की सामग्री को और अपने आसन को पवित्र कर लें।

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।  यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

जिस जगह आसन बिछाया है। उस जगह को साफ कर पवित्र कर लें। फिर इस मंत्र को पढ़े-

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

 

एक प्राचीन कथा के अनुसार प्राचीनकाल में अनलासुर नाम का एक राक्षस था। उसके कोप से स्वर्ग-धरती पर हाहाकार मचा हुआ था। अनलासुर मुनि-ऋषियों और साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था। इस दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर इंद्र सहित सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि भगवान महादेव से प्रार्थना करने जा पहुंचे। उन्होंने यह प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का खात्मा करें। महादेव ने समस्त देवी-देवताओं और मुनि-ऋषियों की प्रार्थना सुन उनसे कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं। श्री गणेश ने अनलासुर को निगल लिया, तब उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। 

इस परेशानी से निपटने के लिए कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्री गणेश को खाने को दीं। यह दूर्वा श्री गणेशजी ने ग्रहण की, तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई। ऐसा माना जाता है कि श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई। इसलिए भगवान गणेश के पूजन में दिवाली की रात उन्हें दूर्वा अवश्य चढ़ाएं। ऐसा करने से दिवाली पर उनकी विशेष कृपा बरसती है।

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रंगोली में लोग साधारण चित्र और आकृतियां बनाते हैं। या फिर देवी-देवताओं की आकृतियां। रंगोली में स्वस्तिक, कमल का फूल, लक्ष्मी जी के पदचिह्न भी बनाए जाते हैं। खासतौर पर दिवाली पर तो लक्ष्मी जी के पैर अवश्य बनाए जाते हैं।

रंगोली के ये चिह्न समृद्धि और मंगलकामना का संकेत हैं। दिवाली पर घरों में लक्ष्मी पैर उकेरना शुभ माना जाता है।  ऐसा माना जाता है कि दिवाली के दिन मां लक्ष्मी सबके घरों में विचरण करती हैं। इसलिए लक्ष्मी के पैरों को घरों में माता के विचरण के तौर पर देखा जाता है। इसीलिए घरों, देवालयों में हर दिन रंगोली बनाई जाती है। घर की महिलाएं बडे़ प्रेम के साथ इस भावना से रंगोली बनाती हैं कि यह भी ईश्वर की पूजा है।

रंगोली शब्द संस्कृत के एक शब्द ‘रंगावली’ से लिया गया है। इसे अल्पना भी कहा जाता है। भारत में इसे सिर्फ त्योहारों पर ही नहीं, बल्कि शुभ अवसरों, पूजा आदि पर भी बनाया जाता है। इससे जहां आने वाले मेहमानों का स्वागत होता है, वहीं भगवान के प्रसन्न होने की कल्पना भी की जाती है। 

रंगोली के बारे में एक प्राचीन कथा है। एक बार शंकर जी हिमालय दर्शन के लिए चल पड़े। जाते समय पार्वती जी से कहा- जब मैं घर वापस लौटूं तो मुझे घर और आंगन मन को प्रसन्न करने वाला मिलना चाहिए। अगर ऐसा ना हुआ तो मैं दुबारा हिमालय लौट जाऊंगा। यह सुन कर माता पार्वती चौंकी। उधर शंकर जी हिमालय की ओर चले गए। पार्वती जी ने घर में साफ-सफाई की और उसे स्वच्छ-सुंदर बनाने के लिए पूरा आंगन गोबर से लीपा भी। घर अभी पूरी तरह से सूखा भी नहीं था कि शंकर भगवान के आने की सूचना उनके पास पहुंची। पार्वती जी फूल हाथ में लिए उनके स्वागत के लिए जल्दी-जल्दी चलने के कारण वहीं फिसल गईं और उनके महावर लगे पैरों की सुंदर आकृति की छाप वहां बन गई। लाल रंग के महावर पर गिरे फूलों ने वहां का दृश्य अद्भुत बना दिया।  तभी भगवान शंकर वहां आ पहुंचे और उसे देख कर मंत्रमुग्ध हो उठे। बड़ी प्रसन्नता से उन्होंने कहा कि जिन-जिन घरों में रंगोली से सुंदरता उत्पन्न होगी, वहां-वहां मेरा वास रहेगा और हर प्रकार की समृद्धि वहां हमेशा विराजमान रहेगी।

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धन प्राप्ति के इष्ट माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर को माना जाता है। कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। धन की देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए तो अक्सर लोग उपाय कर लेते है। धन के राजा कुबेर को मनाना सबके बस की बात नहीं होती है। कुबेर यदि मनुष्य पर अपनी कृपा दृष्टि बनाएं तो कोई भी व्यक्ति कितना ही दरिद्र क्यों न हो। अवश्य ही धन की प्राप्ति करता है। धन के राजा कुबेर की कृपा का धन प्राप्ति मंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥–

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महालक्ष्मी की कृपा आपके घर पर बनी रहे तो सूर्यास्त के बाद मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं। दीपक जलाते समय हमारा भाव होना चाहिए कि ये दीपक देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए है। शाम के समय महालक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और जिन घर के द्वार पर देवी के स्वागत के लिए दीपक जलाएं जाते हैं, वहां वे निवास करती हैं। ऐसी मान्यता है। रोज सुबह घर में गौमूत्र का छिड़काव करना चाहिए। गौमूत्र की गंध से वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है, घर का वातावरण पवित्र होता है। घर के वास्तु दोष भी दूर होते हैं। जिन घरों में गौमूत्र का छिड़काव किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा बनी रहती है। रोज मुख्य दरवाजे के सामने रंगोली बनानी चाहिए।

रंगोली से घर सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। रंगोली देवी-देवताओं के सम्मान और स्वागत के लिए बनाई जाती है।  लक्ष्मी को भोग में खीर या मीठा दूध चढ़ाएं। ये सम्पन्नता और शक्ति का प्रतीक हैं। कार्य कुशलता में सम्पन्न और शक्ति से परिपूर्ण इंसान ही लक्ष्मी का अर्जन कर सकता है।  रोज श्रीसूक्त या लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें। ये नियम के प्रतीक हैं, ये पाठ आपको समझाते हैं कि लक्ष्मी को पाने के लिए कई नियमों को फॉलो करना होता है, तभी लक्ष्मी टिकती हैं।  गाय को रोटी खिलाएं। सुबह तुलसी को जल चढ़ाएं, शाम को दीपक लगाएं।

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