आगे अशांत समय है- अग्निपरीक्षा के मुहाने पर खड़ी सरकार- किसने किया इशारा-

नई दिल्ली: मोदी सरकार चार साल में सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा के मुहाने पर खड़ी है. विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ संसद में पहला अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर ली है. एनडीए के पुराने साथियों के भी सुर बदल रहे हैं. आज हंगामे की वजह से लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं हो सका.

इस बीच संसद और सरकार के हालात पर ‘बागी’ सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्विटर के जरिए बड़ा बयान दिया है. शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा, “हम सीट बांधने का सुधाव देते हैं क्योंकि आगे अशांत समय है. हमने पहले ही बिना कामकाज वाले संसद सत्र का अनुमान लगाया था. संसद सत्र में हमारे लोगों के जाम की वजह से कठिन दिन हमारी ओर घूर रहे हैं.” 

उन्होंने आगे लिखा, ”बहुत लोगों को लगता है कि ये आखिरी संसद सत्र है, मैं प्रार्थना करता हूं कि ये सत्र पूरा चले. ”काम ना करने वाली संसद में बहुत से जरूरी काम हो रहे हैं, जहां विपक्ष जीतने की स्थित में है.”

मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दल अविश्वास प्रस्ताव लाने में सफल होगी या नहीं यह बड़ा सवाल बना हुआ है? आज भी लोकसभा में तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी), वाईएसआर कांग्रेस और एआईएडीएमके के सांसदों के हंगामे की वजह से सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई. इससे पहले दोपहर 12 बजे तक के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी. हालांकि सरकार का कहना है कि वह अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तैयार है. 

इस बीच वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी ने सरकार पर आरोप लगाया है कि अविश्वास प्रस्ताव को रोकने के लिए एआईएडीएमके के सांसद जानबूझकर कावेरी जल विवाद के मुद्दे पर हंगामा कर रहे हैं. वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में पेश करना चाहती है. दोनों दलों को कांग्रेस, टीएमसी, आरजेडी, एनसीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, वामदल समेत अन्य पार्टियों ने साथ देने का वादा किया है. अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार की सहयोगी शिवसेना ने कहा है कि वह अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के समय अनुपस्थित रहेगी. साफ है कि शिवसेना न तो सरकार का और न ही विपक्ष का साथ देने के मूड में है. 

लोकसभा चुनाव नजदीक आने के बाद उत्तर प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दलों के बीच खींचतान बढ़ती दिख रही है। योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में शामिल सहयोगी दल भारतीय समाज पार्टी(भासपा) के मुखिया ओम प्रकाश राजभर ने बागी रुख अख्तियार करना शुरू किया है। रह-रहकर योगी सरकार को नसीहत दे रहे हैं।  ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि विधानसभा चुनाव में 325 सीटों की जीत के नशे में भाजपा अभी पागल है। उन्होंने आगामी 23 मार्च को होने जा रहे राज्यसभा चुनाव का बहिष्कार करने की बात कही। उन्होंने कहा कि गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में पार्टी ने कोई राय नहीं ली। न ही राज्यसभा चुनाव को लेकर बीजेपी के किसी नेता उनसे बात की है। राजभर ने बीजेपी पर धोखा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि वह अपने सहयोगी दल को भरोसे में नहीं ले रही है।

 

 योगी सरकार के मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभरने आगमी राज्यसभा चुनावों में बीजेपी को समर्थन करने के सवाल पर कहा कि जब तक बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से बात नहीं होगी तब तक इस विषय पर कुछ नहीं कह सकता हूं. उन्होंने कहा कि योगी सरकार हमारे साथ सौतेला व्यवहार कर रही है. राजभर ने कहा कि राज्यसभा उम्मीदवारों पर योगी सरकार ने खुद ही फैसला कर लिया हमसे कोई बातचीत नहीं की गई है. योगी सरकार की पहली वर्षगांठ के बारे में कहा, ‘‘उन्हें जश्न मनाने दीजिये. जब तक राशन कार्ड, आवास, शिक्षा, दवा और अन्य मुद्दों से जुड़े सवालों का जवाब नहीं मिलता, तब तक मैं इसमें हिस्सा नहीं लूंगा.’’  राजभर ने आगाह किया कि अगर ‘बड़ा भाई‘ यानी भाजपा सुभासपा की समस्याओं को नहीं सुलझाएगी तो वह आगामी राज्यसभा चुनाव का बहिष्कार करेगी.

 

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने आज मोदी सरकार पर करारा हमला बोलते हुए विपक्षी दलों की एकता पर जोर दिया और 2019 तक ‘‘मोदी मुक्त भारत’ बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि देश नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के झूठे वादों से ऊब चुका है। मोदी मुक्त भारत बनाने की खातिर सभी विपक्षी दलों को एक साथ आना चाहिए।

वही दूसरी ओ तेलगांना सीएम के. चंद्रशेखर राव गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेसी तीसरा मोर्चा बनाने की जुगत में है।  तेलांगना के मुख्यमंत्री केसी राव ने बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कोलकाता में मुलाकात की। इस मुलाकात को लोकसभा चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले विपक्षी खेमे में गोलबंदी तेज हो गयी है। कांग्रेस के महाधिवेशन से एक दिन पहले सोनिया गांधी ने डिनर पार्टी का आयोजन कर सभी पार्टियों को चौंका दिया है। वहीं 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा बनाये जाने की चर्चा जोरों पर है। 2019 के आम चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी चाहती है कि तमाम विपक्षी दल कांग्रेस का सहयोग करे। वहीं तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख के चंद्रशेखर राव ने तीसरा मोर्चा के लिए बिगुल फूंका है। 

अखिलेश यादव के कार्यकाल के आखिरी साल में भी यूपी के विकास की रफ्तार केंद्र के विकास की रफ्तार से ज्यादा थी.

एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि यदि राज्य में भी उसी पार्टी की सरकार बने जिसकी केंद्र में सत्ता हो तो राज्य का तेज आर्थिक विकास किया जा सकता है. मोदी के इस दावे पर उत्तर प्रदेश की जनता ने भरपूर यकीन किया और 2017 के विधानसभा चुनावों में प्रदेश में बीजेपी को पूर्ण बहुमत दिया.  इसके बाद उम्मीद लगाई गई कि उत्तर प्रदेश में आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार में बड़ा इजाफा देखने को मिलगा. अब सीएम योगी के सामने चुनौती है कि वो पीएम की इस बात को साबित करें और यूपी की विकास की रफ्तार को तेज करें.  अखिलेश यादव के कार्यकाल के आखिरी साल में भी यूपी के विकास की रफ्तार केंद्र के विकास की रफ्तार से ज्यादा थी. वित्त वर्ष 2016-17 में उत्तर प्रदेश की आर्थिक विकास दर देश की आर्थिक विकास दर से अधिक रही. यह ग्रोथ प्रदेश में समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार के आखिरी वर्ष में दर्ज हुई थी. यह दावा खुद मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में किया. गौरतलब है कि विधानसभा में कांग्रेस नेता आराधना मिश्र ने योगी सरकार से सवाल किया था, ‘क्या यह सही है कि प्रदेश की विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से कम है ? यदि हाँ, तो सरकार द्वारा इसे बढ़ाने की कोई कार्ययोजना है?’

बीजेपी के लिए बड़ा झटका

कर्नाटक में चुनाव से ऐन पहले सियासी मास्‍टर स्‍ट्रोक खेलते हुए कांग्रेस ने लिंगायतों को अलग धार्मिक अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के रूप में मान्‍यता दे दी है. इसको बीजेपी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्‍योंकि 17 प्रतिशत आबादी वाला यह समुदाय परंपरागत रूप से बीजेपी का वोटर रहा है. 10 साल पहले जब पहली बार कर्नाटक में ‘कमल’ खिला था तो यही कहा गया था कि इसी समुदाय की बीजेपी को सत्‍ता में पहुंचाने की अहम भूमिका रही. कर्नाटक में बीजेपी का सीएम चेहरा बीएस येद्दियुरप्‍पा भी इसी समुदाय से ताल्‍लुक रखते हैं. बीजेपी का मानना है कि इस समुदाय के रूप में उसके हिंदू वोट बैंक को तोड़ने के लिए कांग्रेस ने यह ‘कार्ड’ खेला है. वैसे तो लिंगायतों का एक तबका पिछले एक दशक से अलग धार्मिक समुदाय की मांग करता रहा है लेकिन पिछले एक साल से इस मांग में बढ़ोतरी हुई है. बीजेपी इसके पीछे पहले ही कांग्रेस की शह का आरोप लगाती रही है. इस पृष्‍ठभूमि में बड़ा सवाल यह है कि अलग धर्म की मांग करने वाले लिंगायत आखिर कौन हैं? क्यों यह समुदाय राजनीतिक तौर पर इतनी अहमियत रखता है? दरअसल भक्ति काल के दौरान 12वीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था. उन्होंने वेदों को खारिज कर दिया और मूर्तिपूजा की मुखालफत की. उन्होंने शिव के उपासकों को एकजुट कर वीरशैव संप्रदाय की स्थापना की. आम मान्यता ये है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही होते हैं. लेकिन लिंगायत लोग ऐसा नहीं मानते. उनका मानना है कि वीरशैव लोगों का अस्तित्व समाज सुधारक बासवन्ना के उदय से भी पहले से था. वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं. वैसे हिंदू धर्म की जिन बुराइयों के खिलाफ लिंगायत की स्थापना हुई थी आज वैसी ही बुराइयां खुद लिंगायत समुदाय में भी पनप गई हैं. राजनीतिक विश्‍लेषक लिंगायत को एक जातीय पंथ मानते हैं, न कि एक धार्मिक पंथ. राज्य में ये अन्य पिछड़े वर्ग में आते हैं. अच्छी खासी आबादी और आर्थिक रूप से ठीकठाक होने की वजह से कर्नाटक की राजनीति पर इनका प्रभावी असर है. अस्सी के दशक की शुरुआत में रामकृष्ण हेगड़े ने लिंगायत समाज का भरोसा जीता. हेगड़े की मृत्यु के बाद बीएस येदियुरप्पा लिंगायतों के नेता बने. 2013 में बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो लिंगायत समाज ने भाजपा को वोट नहीं दिया. नतीजतन कांग्रेस फिर से सत्ता में लौट आई. अब बीजेपी फिर से लिंगायत समाज में गहरी पैठ रखने वाले येदियुरप्पा को सीएम कैंडिडेट के रूप में आगे रख रही है. अगर कांग्रेस लिंगायत समुदाय के वोट को तोड़ने में सफल होती है तो यह कहीं न कहीं बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित होगी.  समुदाय के भीतर लिंगायत को हिंदू धर्म से अलग मान्यता दिलाने की मांग समय-समय पर होती रही है. लेकिन पिछले दशक से यह मांग जोरदार तरीके से की जा रही है. 2011 की जनगणना के वक्त लिंगायत समुदाय के संगठनों ने अपने लोगों के बीच यह अभियान चलाया कि वे जनगणना फर्म में अपना जेंडर न लिखें.  

बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को लिंगायत समुदाय का तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जनता दल (सेक्‍युलर) के एचडी कुमारस्वामी को वोक्कालिगा समुदाय का नेता माना जाता है. राज्य में इन दोनों जातियों की आबादी क्रमश 17 और 12 फीसदी मानी जाती है. राज्य में करीब 17 फीसदी अल्पसंख्यक भी हैं जिसमें 13 फीसदी मुसलमान और चार फीसदी ईसाई हैं. अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग की तादाद काफी अधिक है. ये पूरी आबादी का 32 प्रतिशत हैं.

राज्य की राजनीति में लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों जातियों का दबदबा है. सामाजिक रूप से लिंगायत उत्तरी कर्नाटक की प्रभावशाली जातियों में गिनी जाती है. राज्य के दक्षिणी हिस्से में भी लिंगायत लोग रहते हैं. सत्तर के दशक तक लिंगायत दूसरी खेतिहर जाति वोक्कालिगा लोगों के साथ सत्ता में बंटवारा करते रहे थे. वोक्कालिगा, दक्षिणी कर्नाटक की एक प्रभावशाली जाति है. कांग्रेस के देवराज उर्स ने लिंगायत और वोक्कालिगा लोगों के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ दिया. अन्य पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और दलितों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर देवराज उर्स 1972 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने.

अस्सी के दशक की शुरुआत में लिंगायतों ने रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया. जब लोगों को लगा कि जनता दल राज्य को स्थायी सरकार देने में नाकाम हो रही है तो लिंगायतों ने अपनी राजनीतिक वफादारी वीरेंद्र पाटिल की तरफ़ कर ली. पाटिल 1989 में कांग्रेस को सत्ता में लेकर आए. लेकिन वीरेंद्र पाटिल को राजीव गांधी ने एयरपोर्ट पर ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और इसके बाद लिंगायतों ने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया.

 

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