सात द्वीप नौ खण्ड में, गुरु से बड़ा न कोय |करता करे न कर सकै, गुरु करे सो होय :गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई 2023: इस कलि काल में सच्चा गुरु -अनंत पुण्य से मिलते हैं

आषाढ़ पूर्णिमा 2023 तिथि# गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई 2023: गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं की पूजा करने का विधान है; गुरु पूर्णिमा पर बन रहा शुभ योग: इस दिन प्रार्थना सीधे महागुरु तक पहुंचती है और उनका आशीर्वाद शिष्य के जीवन से अंधकार और अज्ञान को दूर करता है:# कैलेंडर के अनुसार, इस साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि​ 02 जुलाई रविवार को रात 08 बजकर 21 मिनट पर प्रारंभ हो रही है. इस तिथि का समापन अगले दिन सोमवार को शाम 05 बजकर 08 मिनट पर होगा. उदयातिथि के आधार पर आषाढ़ पूर्णिमा व्रत और स्नान-दान 3 जुलाई को किया जाएगा.

‘ गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा: गुरु साक्षात परम ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नम:।‘ यानी  हे गुरु, आप देवताओं के समान हैं. आप ही भगवान ब्रह्मा हैं, आप ही भगवान विष्णु हैं और आप ही शिव हैं. आप देवताओं के भी देवता हैं. हे गुरुवर आप सर्वोच्च प्राणी हैं और मैं नतमस्तक होकर आपको नमन करता हूं.

कोई गुरु नहीं हो तो देवों के देव महादेव को अपना गुरु मानकर अपनी पूजा आरम्भ कर सकते हैं .शास्त्रों में भी लिखा हुआ है कि “कलौ चंडीमहेश्वरः” अर्थात कलयुग में चंडी (माँ दुर्गा) और महेश्वर (शिव) बहुत प्रभावी हैं . वो जल्द ही प्रसन्न होकर साधक की हर अभिलाषा पूरी कर देते हैं ,इसमें तनिक भी संदेह नहीं करना चाहिए . गुरु न होने पर मंत्र साधना कैसे की जाये ? शिव को आदि गुरु कहा गया है गुरु और शिव मे कोई भेद नहीं होता इसलिए जिस मंत्र का जाप करना हो उस मंत्र को भोजपत्र अष्ट गंध से लिख कर किसी शिवलिंग पर रखें शिवलिंग का पूजन करें और भाव ये रखें की वो आप के गुरु है गुरु रूप पूजन करके प्रार्थना करें की आप को गुरु रूप मान कर जो मंत्र आप ने लिखा है वो आप ( शिव / गुरु ) से प्राप्त हुआ है आप इस मंत्र का जाप करने की आज्ञा प्रदान करें मेरा मार्गदर्शन करें और आशीर्वाद दें की मुझको मंत्र जाप का पूर्ण फल प्राप्त हो ।शिवलिंग के पास ही बैठ कर मंत्र पहले तीन बार उच्चारण करें फिर उसी स्थान पर बैठ कर उस मंत्र की 11 माला जाप कर शिव को अर्पण कर दें । और उस मंत्र जितना आप जाप करना चाहते है उतने जाप संख्या का संकल्प लें । संकल्प पूर्ण होने पर जप को शिव चरणों मे अर्पित कर दें ।

By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Web & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030 — कलयुग तारक मन्त्र- राधे राधे

इस दिन गुरु पूजा के साथ भगवान विष्णु की पूजा करके गुरु को मजबूत कर सकते हैं। विष्‍णु पुराण में भी यह बताया गया है कि पूर्णिमा तिथि भगवान विष्‍णु की पूजा करने के लिए सर्वश्रेष्‍ठ तिथियों में से एक है। इस दिन सत्‍यनारायण भगवान की कथा सुनने की मान्‍यता काफी समय से चली आ रही है। इसे सुनने से आपके कष्‍ट दूर होते हैं और घर में आर्थिक समृद्धि बढ़ती है।भगवान को विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोग लगाएं और प्रणाम करें। भोग को प्रसाद स्वरूप सभी लोगों में वितरित कर दें।

शास्त्रों में गु का अर्थ तिमिर बताया गया है और रू का अर्थ निरोधक बताया है अर्थात गुरु का अर्थ अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर लाने वाला या अज्ञान का अंधकार खत्म करने वाला है। गुरु महिमा का बखान अनेकों सन्तों ने किया है। जीवन रूपी भवसागर को गुरु रूपी नौका के बिना पार करना असम्भव है। परम् आदरणीय कबीर साहेब जी ने गुरु महिमा का अद्वितीय बखान किया है।

कबीर, सात द्वीप नौ खण्ड में, गुरु से बड़ा न कोय | करता करे न कर सकै, गुरु करे सो होय ||

बिना गुरु धारण किया मनुष्य चौरासी लाख योनियों में जाता है एवं मनुष्य जन्म में किए धर्म (पुण्य-दान) को कुत्ते या अन्य योनियों में वह भोजन आदि सुविधाओं के रूप में प्राप्त कर लेता है। यदि उस प्राणी ने मानव शरीर में गुरु बनाकर धर्म (दान-पुण्य) यज्ञ की होती तो वह या तो मोक्ष प्राप्त कर लेता। यदि भक्ति पूरी नहीं हो पाती तो मानव जन्म अवश्य प्राप्त होता तथा मानव शरीर में वे सर्व सुविधाएं भी प्राप्त होती जो कुत्ते के जन्म में नही होती। मानव जन्म में यदि फिर कोई साधु सन्त-गुरु मिल जाता और वह अपनी भक्ति पूरी करके मोक्ष का अधिकारी बनता। इसलिए कहा है कि यज्ञों का वास्तविक लाभ प्राप्त करने के लिए पूर्ण गुरु धारण करना अनिवार्य है।

गुरु मानुष कर जानते, ते नर कहिए अंध | होंय दुखी संसार में, आगे यम के फन्द ||

कबीर जी ने सांसारिक प्राणियों को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा है कि जो मनुष्य गुरु को सामान्य प्राणी (मनुष्य) समझते हैं उनसे बड़ा मूर्ख जगत में अन्य कोई नहीं है, वह आंखों के होते हुए भी अन्धे के समान हैं तथा जन्म-मरण के भव-बंधन से मुक्त नहीं हो पाते। विषय ज्ञान देने वाले गुरू से श्रेष्ठ आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला गुरू होता है जो जगत का पालनहार होता है।

असली गुरु कौन है?

असली गुरु वह होता है जो न केवल हमें तत्वज्ञान का उपदेश करे बल्कि हमें जन्म मरण से, बुढ़ापे, बीमारी, दुखों से पीछा छुड़ाने का रास्ता सुझाए। तत्वज्ञान से मनुष्य को यह ज्ञान होता है कि परमात्मा कौन है, कैसा है, कहां रहता है, पृथ्वी पर कब और क्यों आता है? मनुष्य और परमात्मा का क्या संबंध है? ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता कौन हैं? इनकी आयु कितनी है? ऐसा उच्च कोटि का ज्ञान कोई साधारण गुरू नहीं दे सकता। इसके लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 के अनुसार पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की तलाश करनी चाहिए और पूर्ण तत्वदर्शी सन्त के लक्षण अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में बताए गए है, जो उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के सभी भागों को विस्तार से बता दे वह तत्वदर्शी सन्त है।

सच्चा गुरू कौन?

जो मिस्त्री का काम सिखाए वह भी गुरू,जो बाल काटने सिखाए, कपड़ा सिलना सिखाए, जो‌ खाना बनाना सिखाए वह भी गुरु है। माता पिता भी गुरु हैं, अध्यापक शिक्षा का महत्व बताते हैं वे भी गुरु हैं। लेकिन आध्यात्मिक गुरु अन्य ही है जिसका पूर्ण तत्त्वदर्शी सन्त होना पहली शर्त है। जो आपको आर्ट आफ लिविंग सिखाए, योगा सिखाए, कुण्डली साधना सिखाए, यहां वहां का ज्ञान बांचे, ब्रह्म तक की साधना बताएं, मुरली सुनाएं समाज में ऐसे व्यवहारिक गुरूओं की कमी नहीं है। लेकिन इनसे मोक्ष कतई संभव नहीं है।

कबीर, गुरु गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय | मिलै तो दण्डवत बन्दगी, नहीं पलपल ध्यान लगाय ||

कबीर साहेब जी कहते हैं – हे मानव! गुरु और गोविंद को एक समान जानें। गुरु ने जो ज्ञान का उपदेश किया है उसका सिमरन/जाप करें। जब भी गुरु का दर्शन हो अथवा न हो तो सदैव उनका ध्यान करें जिसने तुम्हें गोविंद से मिलाप करने का सुगम मार्ग बताया है। गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। अभी तक हम केवल विद्या देने वाले और‌ व्यावसायिक, व्यावहारिक, ज्ञान देने वाले गुरू को ही सर्वश्रेष्ठ गुरू मानते रहे हैं। परंतु असली गुरू तो वह है जो आत्मा को परमात्मा से मिलवा दे उसे मोक्ष का रास्ता दिखा दे।

इस कलि काल में सच्चा गुरु तो अनंत पुण्य से मिलते हैं। हमारे वेद पुराण मंत्रों से भरे पड़े हैं। इस घोर कलि काल मे गुरु लाएँ कहां से –  इसका समाधान बताते है कि आप श्री हनुमानजी या श्री शुकदेव जी को गुरु महाराज मानकर और इस महामन्त्र की 16-16 माला सुबह शाम जपना शुरू कर दिजिएऔर बाकी काम ठाकुर जी पर छोड़ दिजिये- हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्ण कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे!!— राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्णा कृष्ण राधे राधे, राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे

गुरु बनाना क्यों जरूरी है? भक्ति तो घर पर भी कर सकते हैं।  त्रेता युग  में श्री राम जी, जो विष्णु जी के अवतार थे उन्होंने भी वशिष्ठ गुरु बनाएं और द्वापर युग में फिर विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण रूप में जन्मे, जिन्होंने अक्षर ज्ञान के संदीपनी गुरु तथा आध्यात्मिक गुरु दुर्वासा ऋषि जी को अपना गुरु बनाया था।। कबीर साहिब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हु भी गुरु किन। तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।। हमारे सभी पवित्र शब्द ग्रंथ जैसे :- चारों वेद, श्रीमद्भागवत गीता, 18 पुराण, कुरान, बाइबल, गुरु ग्रंथ साहिब में प्रमाण है कि बिना गुरु के जीव का पूर्ण मोक्ष नहीं हो सकता।

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