पार्टी के अंदर भी हाथरस मामले को लेकर घमासान -आरएलडी, भीम आर्मी को ऑक्सीजन

उत्तर प्रदेश में दलितों की बड़ी आबादी को देखते हुए योगी सरकार नहीं चाहती कि वह इस समुदाय की नाराजगी मोल ले। लेकिन हाथरस मामले में दलित समुदाय पीड़िता के लिए इंसाफ़ चाहता है। और अगर ऐसा नहीं होता है तो बीजेपी के सत्ता में लौटने की संभावनाओं को धक्का लग सकता है।  उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सवा साल का वक्त बचा है। राम मंदिर के शिलान्यास के बाद ख़ुद को हिंदू मतदाताओं के मतों का स्वाभाविक दावेदार बता रही बीजेपी को हाथरस मामले से झटका लगा है क्योंकि यहां दलित और कथित उच्च जाति के लोग आमने-सामने हैं।

योगी सरकार पर अभियुक्तों के सवर्ण जाति से होने के कारण उन्हें बचाने का आरोप लग रहा है और इससे दलित समुदाय के भीतर नाराज़गी बढ़ने की चर्चा है। क्योंकि दलित समुदाय अभियुक्तों के लिए सजा चाहता है जबकि सवर्ण समुदाय उन्हें निर्दोष बताने पर आमादा है।   हाथरस मामलाबीजेपी के गले की फांस बन गया है। योगी सरकार इसे लेकर बुरी तरह घिर गयी है क्योंकि उसने इस मामले में पैदा हुए आक्रोश को यह कहकर दबाने की कोशिश की कि प्रदेश में जातीय हिंसा कराने की साज़िश रची जा रही थी। उसके सलाहकारों का कहना था कि इसके लिए इसलामिक देशों से 100 करोड़ की फंडिंग हो रही थी। 

लेकिन यह ‘थ्योरी’ तो गिर गई। क्योंकि ‘इंडिया टुडे’ की रिपोर्ट के अनुसार ईडी ने फंडिंग की बात को ग़लत बताया है। अब सरकार को सांप सूंघ गया है। यह तो है बाहर की मुसीबत। पार्टी के अंदर भी हाथरस मामले को लेकर घमासान मचा हुआ है। 

इस मामले में बीजेपी के पूर्व विधायक राजवीर सिंह पहलवान और सांसद राजवीर दिलेर और उनकी बेटी मंजू दिलेर आमने-सामने हैं। दिलेर से ज़्यादा मंजू दिलेर मुखर हैं। पहलवान अभियुक्तों के समर्थन में ताल ठोककर खड़े हैं और उनका कहना है कि पीड़िता की हत्या उसकी मां और भाई ने की है। पहलवान इसे लेकर गांव के सवर्ण समाज की पंचायत भी बुला चुके हैं। 

दूसरी ओर, सांसद राजवीर दिलेर और उनकी बेटी मंजू दिलेर पीड़िता के पक्ष में हैं और उसके लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ रहे हैं। मंजू दिलेर बीजेपी में अच्छे कद की नेता हैं, वह राज्य बीजेपी में सचिव रह चुकी हैं और राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की सदस्य हैं। 

आरएलडी को भी ऑक्सीजन दे दी — हाथरस में बीती 14 सितंबर को एक युवती के साथ हुई दिल दहला देने वाली घटना के बाद युवाओं और किसानों का सत्ता के ख़िलाफ़ आक्रोश खुलकर सामने आ गया है। इसी के साथ सियासी समीकरण बन भी रहे हैं और उधड़ भी रहे हैं। राहुल-प्रियंका पीड़ित परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए हाथरस पहुंचे तो एसपी ने भी जगह-जगह लाठीतंत्र के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए। इसी बीच, राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी पर लाठियां बरसाईं गईं, जिसकी गूंज अब जाटलैंड के साथ पूरे देश में सुनाई दे रही है। लंबे समय से आक्रोशित युवाओं, नाराज किसानों और सत्ताधारियों की कथनी और करनी के अंतर ने उत्तर प्रदेश के सियासी समुद्र में मंथन की प्रक्रिया को तेज कर दिया है और निस्तेज पड़ी आरएलडी को भी ऑक्सीजन दे दी है। 

पहलवान का आरोप है कि हाथरस मामले में मंजू दिलेर पीड़िता के परिवार का पक्ष ले रही हैं क्योंकि पीड़िता और दिलेर दोनों एक ही जाति से संबंध रखते हैं। पहलवान कहते हैं कि अभियुक्तों को बेवजह फंसाया जा रहा है और लोग उन्हें सबक सिखाएंगे।

मंजू दिलेर ने हाथरस की घटना को लेकर 19 सितंबर को एक फ़ेसबुक पोस्ट लिखकर युवती के साथ बलात्कार व मारपीट होने की बात कही थी और यह भी कहा था कि उन्होंने इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और डीजीपी, उत्तर प्रदेश को अवगत करा दिया है। मंजू ने इस संबंध में हाथरस के एसपी और डीएम से बात कर मुख्य आरोपी संदीप के अलावा बाक़ी अभियुक्तों को भी गिरफ़्तार करने की मांग की थी। 

कुछ दिन पहले ही ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के साथ बातचीत में उत्तर प्रदेश बीजेपी के चार दलित सांसदों ने हाथरस मामले में पुलिस की कार्रवाई की निंदा की थी और परिवार को शामिल किए बिना पीड़िता का दाह संस्कार करने पर भी सवाल उठाए थे। 

सांसदों ने कहा था कि पुलिस में जातिवाद और भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं और राज्य की पुलिस ग़रीबों और दलितों का उत्पीड़न कर रही है। हालांकि इन सांसदों ने पार्टी लाइन से बंधे होने के कारण कहा था कि योगी सरकार दोषियों को कड़ी सजा दिलाएगी, ऐसा उन्हें विश्वास है। 

हाथरस में एक दलित युवती के साथ 14 सितंबर, 2020 को दबंगों ने क्रूरता दिखाई। उसकी जुबान काट ली गई, रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई और शरीर पर इतने जुल्म किए गए कि हैवानियत भी शरमा जाए। पुलिस ने उसे जिला अस्पताल पहुंचाया और संदीप नामक व्यक्ति के ख़िलाफ़ जानलेवा हमला और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया।  19 सितंबर को संदीप को गिरफ्तार कर लिया गया और इसमें छेड़खानी की धारा 354 बढ़ा दी गई। 22 सितंबर को पीड़िता के बयान के आधार पर सामूहिक दुराचार की धारा 374-डी बढ़ाई गई और तीन अन्य व्यक्तियों लवकुश, रवि और रामू को भी नामजद कर लिया गया। 26 सितंबर तक पुलिस ने सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 

अन्याय के ख़िलाफ़ चंदेली इलाके में पीड़ितों की आवाज़ हमेशा गुम होती रही है लेकिन इस बार गैंगरेप के मामले में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गईं। मुख्यमंत्री ने एक तरफ एसआइटी जांच की घोषणा की लेकिन सत्ता के इरादे इस पूरे मामले को ऑनर किलिंग का जामा पहनाने के दिखाई देते हैं। इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा कि एक तरफ सरकार जांच की घोषणा करती है, दूसरी तरफ सत्ता की मशीनरी के पुर्जे ऐसे कृत्य करते नजर आते हैं, जिसमें आरोपियों को बचाने की गंध मिलने लगी। उत्तर प्रदेश के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने कह दिया कि पीड़िता के साथ गैंगरेप हुआ ही नहीं बल्कि उसकी मौत गर्दन में चोट की वजह से हुई। उन्होंने यह भी कह दिया कि मामले को जातीय एंगल देने की कोशिश की जा रही है। गौरतलब है यही बात मुख्यमंत्री योगी ने भी कही। यही नहीं, एडीजी ने युवती के मृत्यु पूर्व दिए बयान को भी नकार दिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि युवती ने पुलिस को दिए बयान में बलात्कार की बात ही नहीं की।  अपनी करतूतों को छिपाने के लिए पुलिस ने धारा 144 की आड़ में दमनकारी रवैया अपनाया और पीड़ित परिवार को उनके ही घर में नजरबंद कर दिया। जब आरएलडी के जयंत चौधरी अनुमति लेकर पहुंचे तो पुलिस ने उन पर निर्दयता से लाठियां भांजी। उनके साथ गए समर्थकों ने उनके चारों तरफ घेरा बनाते हुए लाठियां अपने ऊपर झेलकर उनकी हिफाजत की। 

जाटलैंड के रूप में मशहूर वेस्ट यूपी में जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे। जयंत चौधरी के समर्थन में उतरे लोगों में युवाओं की बड़ी संख्या देखकर सत्तादल के नुमाइंदों को समझ नहीं आ रहा कि आरएलडी के मुखिया अजित सिंह के कृत्यों से जो जाट समुदाय और खासकर युवा बेहद नाराज हो गए थे, वे सरकार के विरोध में कैसे उतर आए! 

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