आपकी मौजूदा हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी कोविड-19 खर्च को शायद कवर नहीं करे -हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी में अब बड़ा बदलाव

कोविड-19 की वैक्‍सीन पर आने वाले खर्च को शायद आपकी मौजूदा हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी कवर नहीं करे. इंडस्‍ट्री के एग्‍जीक्‍यूटिव और एक्‍सपर्ट्स ने यह बात कही है. उनका कहना है कि केवल चुनिंदा ओउटपेशंट डिपार्टमेंट (ओपीडी) मेडिकल पॉलिसी जिन्‍हें कॉम्प्रिहेंसिव कवर में राइडर के तौर पर दिया जाता है, वे वैक्‍सीन के खर्च को रीइंबर्स कर सकती हैं.

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आईसीआईसीआई लोम्‍बार्ड में चीफ (अंडरराइटिंग, रीइंश्‍योरेंस, क्‍लेम्‍स और एक्‍चुरियल) संजय दत्‍ता ने बताया, ”ओपीडी कॉस्‍ट को कवर करने वाली इंश्‍योरेंस पॉलिसियां ही केवल वैक्‍सीन के खर्च को शामिल कर सकती हैं.” उन्‍होंने कहा कि ऐसी पॉलिसी धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही हैं. लेकिन, अभी बहुत ज्‍यादा लोगों के पास नहीं हैं. वर्तमान में तीन वैक्‍सीन टेस्टिंग के एडवांस स्‍टेज में हैं. बुधवार को दिग्‍गज अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर के साथ बायोएनटेक ने एलान किया था कि उनकी वैक्‍सीन ने ट्रायल में करीब 95 फीसदी सफलता दिखाई है.

रूस की स्‍पुतनिक V को भी 92 फीसदी सफलता मिली है. वहीं, ब्रिटेन की मॉडर्ना ने कहा है कि उसकी आरएनए आधारित वैक्‍सीन का सक्‍सेस रेट 95 फीसदी है. ये खबरें भारत के मेडिकल सेक्‍टर के लिए काफी उत्‍साहित करने वाली हैं. पहले से ही देश के मेडिकल सेक्‍टर पर जरूरत से ज्‍यादा दबाव है. इन तमाम घटनाक्रमों के बीच इस बात को लेकर अनिश्चितता है कि कैसे कुछ सफल वैक्‍सीनों को भारतीय नागरिकों को उपलब्‍ध कराया जाएगा. एक्‍सपर्ट्स को उम्‍मीद है कि 2021 तक कोरोना की कम से कम दो संभावित वैक्‍सीन उपलब्‍ध हो जाएंगी. जहां सरकार कम आय वाले वर्ग को सब्सिडी दे सकती है. वहीं, इस बात की संभावना बहुत कम है कि केंद्र टीके का पूरा खर्च अपने ऊपर ले. इंडस्‍ट्री के एक अधिकारी के अनुसार, इंश्‍योरेंस इंडस्‍ट्री आगे आ सकती है और सामूहिक वैक्‍सीनेशन के लिए कुछ कवर उपलब्‍ध करा सकती है. बीमारी की रोकथाम में भी इंश्‍योरेंस की भूमिका है. भर्ती होने की दर घटना बीमा कंपनियों के लिए फायदेमंद है. इससे इंडस्‍ट्री पर क्‍लेम का बोझ कम होगा.

जीआईसी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, कोरोना की महामारी के चलते 6,836 करोड़ रुपये के करीब 4.45 लाख क्‍लेम आए हैं. इनमें से इंश्‍योरेंस कंपनियों ने 3.02 क्‍लेम को निपटाया है. इनकी लागत 2,914 करोड़ रुपये की है.इस बीच बीमा कंपनियों का कहना है कि मौजूदा पॉलिसी की शर्तों के अनुसार, कंपनियां ऐसी कॉस्‍ट को कवर करने के लिए जिम्‍मेदार नहीं हैं. यहां तक कि अगर सरकार टीकाकरण को अन‍िवार्य करती है तो भी उन पर यह दबाव नहीं डाला जा सकता है. ऐसा तभी होगा जब बीमा नियामक इरडा की ओर से निर्देश आए.स्‍टार हेल्‍थ एंड एलाइड इंश्‍योरेंस के एमडी डॉ एस प्रकाश ने कहा कि दो से तीन हफ्तों के अंतराल में दो से तीन वैक्‍सीन शॉट्स की जरूरत पड़ सकती है. हालांकि, ऐसा नहीं लगता कि प्रति व्‍यक्ति खर्च 1,000 रुपये से ज्‍यादा आएगा. पॉलिसी बाजार के हेड-हेल्‍थ बिजनेस अमित छाबड़ा के अनुसार, ओपीडी क्‍लेम को कवर करने वाली ज्‍यादातर इंश्‍योरेंस पॉलिसियों को वैक्‍सीनेशन के खर्च को रीइंबर्स करना चाहिए. उन्‍होंने कहा, ”मेरा अनुमान है कि ओपीडी के खर्च को कवर करने वाली पॉलिसियां वैक्‍सीनेशन को भी कवर करेंगी. कारण है कि इन पॉलिसियों के तहत ज्‍यादातर वैक्‍सीनेशन का क्‍लेम किया जा सकता है. हालांकि, इसे लेकर और स्‍पष्‍टता की जरूरत है.”

बीमा नियामक इरडा ने हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी को कलर कोड देने का प्रस्‍ताव किया है. यह स्‍वागत योग्‍य कदम हो सकता है. लेकिन, इस योजना को अमल में लाने से पहले कुछ गुत्थियों को सुलझाना होगा. इरडा का यह एक और अहम कदम है. उसने हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी को कलर कोडिंग के साथ अलग-अलग करने का प्रस्‍ताव किया है. इस पर बीमा कंपनियों की प्रतिक्रिया मांगी गई है. ग्राहक के लिए प्रोडक्‍ट की पसंद को आसान बनाने के प्रयास के तहत इरडा ने यह सुझाव दिया है. इसमें सभी हेल्‍थ और जनरल इंश्‍योरेंस कंपनियों को कलर कोडिंग के साथ अपनी हेल्‍थ पॉलिसी लाने का प्रस्‍ताव किया गया है. स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस के एमडी डॉ एस. प्रकाश कहते हैं, ”यह प्रोडक्‍ट की जटिलता को कम करने के लिए उठाया गया कदम है. पॉलिसी की शर्तों को न समझ पाना ग्राहकों के असंतोष और क्‍लेम खारिज होने का अक्‍सर कारण बनता है. कलर कोडिंग से प्रोडक्‍ट को चुनने में सहूलियत मिलेगी.”

हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी में अब बड़ा बदलाव दिखाई देगा. बीमा नियामक इरडा के नए नियम लागू हो गए हैं. इनके दायरे में नई और मौजूदा दोनों तरह की पॉलिसियां आएंगी. इन नियमों से हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसियां अधिक स्‍टैंडर्डाइज्‍ड होंगी. इन्‍हें समझना आसान होगा. साथ ही ये ज्‍यादा ट्रीटमेंट और प्रोसीजर कवर करेंगी. हालांकि, कवर का दायरा बढ़ने से ये पॉलिसियां महंगी हो सकती हैं. आइए, यहां छह प्रमुख बदलावों को देखते हैं जो एक अक्‍टूबर से लागू हो गए हैं और कैसे इनका पॉलिसीहोल्‍डर पर असर पड़ेगा. 1. हेल्‍थ इंश्‍योरेंस क्‍लेम रिजेक्‍ट करना होगा मुश्किल अगर आपने लगातार 8 साल प्रीमियम का पेमेंट किया है तो बीमा कंपनियों के लिए हेल्‍थ इंश्‍योरेंस क्‍लेम को रिजेक्‍ट करना मुश्किल होगा. इरडा के दिशानिर्देश कहते हैं कि अगर किसी ने लगातार 8 साल तक पॉलिसी चलाई है तो किसी तरह का बहाना नहीं चलेगा. आठ साल की इस अवधि को मोरेटोरियम पीरियड कहा जाता है. इस पीरियड के खत्‍म होने पर किसी हेल्‍थ क्‍लेम को चुनौती नहीं दी जा सकती है. सिवाय तब जब फ्रॉड साबित हो जाए और पॉलिसी कॉन्‍ट्रैक्‍ट में परमानेंट एक्‍सक्‍लूजन का उल्‍लेख हो.अगर आप लगातार आठ साल तक कवर रहे हैं तो बीमा कंपनियां क्‍लेम रिजेक्‍ट नहीं कर पाएंगी. इसके अलावा पॉलिसी कॉन्‍ट्रैक्‍ट के अनुसार सभी लिमिट, सब-लिमिट, को-पेमेंट, डिडक्‍ट‍िबल लागू होंगे. क्‍लेम के सेटेलमेंट के समय बीमा कंपनी अंतिम दस्‍तावेज पाने के 30 दिनों के अंदर क्‍लेम रिजेक्‍ट या स्‍वीकार कर सकती है. यह मामले पर निर्भर करता है. अगर किसी तथ्‍य को छुपाया जाता है या गलत तरीके से बताया जाता है तो पॉलिसी रद्द हो जाती है. बीमा कंपनी सभी जमा किए गए प्रीमियम को जब्‍त कर लेती है.

गंभीर बीमारी के मामले में मिलेगा कवरजो लोग गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं, उन्‍हें बीमा कंपनी सीधे कवर देने से मना नहीं कर सकती हैं. अभी तक कुछ खास तरह के रोगियों को हेल्‍थ पॉलिसी देने से मना कर दिया जाता था. इरडा ने कहा है कि पहले से मौजूद ऐसी 16 बीमारियों को बीमा के दायरे में लाया जाए. इनकी जानकारी देने वाले लोगों को भी हेल्‍थ इंश्‍योरेंस की सुविधा मिलनी चाहिए.हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम अब मासिक, तिमाही, छमाही किस्‍तों में दिए जा सकते हैं. ऐसे में बीमा कंपनियां ग्रेस पीरियड की तय मियाद तय कर सकती हैं. आमतौर पर जिन पॉलिसियों में प्रीमियम का भुगतान सालाना आधार पर किया जाता है, उनमें 30 दिन का ग्रेस पीरियड होता है. वहीं, मंथली प्रीमियम पेमेंट मोड में यह अलग होता है. इंश्‍योरटेक फर्म टर्टलमिंट के सह-संस्‍थापक धीरेंद्र माहयावंशी ने कहा कि हेल्‍थ पॉलिसी के वेटिंग पीरियड को जारी रखने के लिए ग्रेस पीरियड खत्‍म होने से पहले प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है. ऐसा नहीं करने पर पॉलिसी लैप्‍स हो जाती है. साथ ही वेटिंग पीरियड के कंटीन्‍यूटी बेनिफिट का लाभ नहीं मिल पाता है.

हेल्थ पॉलिसी से जुड़ीं कुछ जरुरी बातें.कोरोना संकट के बाद से हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर लोगों में जागरुकता बढ़ी है और लोगो अधिक से अधिक स्वास्थ्य बीमा करा रहे हैं. हेल्थ इंश्योरेंस मुश्किल समय में आपको सही स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराता है.स्वास्थ्य बीमा लेते वक्त यह ध्यान रखें कि ऐसी पॉलिसी ली जाए जिसमें इलाज के दौरान होने वाले सभी खर्चें शामिल हों. जिस पॉलिसी में जितना ज्यादा कवरेज मिलेगा वही पॉलिसी बुरे वक्त में आपको ज्यादा मदद पहुंचाएगी. अधिकतम चीजों को कवर करने वाली पॉलिसी चुनेंहेल्थ पॉलिसी खरीदने से पहले यह जान लें कि उसमें कितना और क्या-क्या कवर होगा. पॉलिसी वही अच्छी होती है ज्यादा से ज्यादा चीजें जैसे टेस्ट का खर्च और एम्बुलेंस का खर्च कवर हो. अधिकतम चीजों को कवर करने वाली पॉलिसी चुनें ताकि आपकी जेब से कम से कम खर्च हो.लिमिट या सब लिमिट वाला प्लान न लेंअस्पताल में प्राइवेट रूम के किराए जैसी लिमिट से बचना चाहिए. आपके लिए यह जरूरी नहीं है कि इलाज के दौरान आपको किस कमरे में रखा जाए. खर्च के लिए कंपनी द्वारा लिमिट या सब लिमिट तय करना आपके लिए ठीक नहीं है.पॉलिसी लेते समय इस बात का ध्यान रखें. सब-लिमिट का मतलब री-इंबर्समेंट की सीमा तय करने से है. उदाहरण के लिए अस्पताल में भर्ती हुए तो कमरे के किराए पर बीमित राशि के एक फीसदी तक की सीमा हो सकती है. इस तरह पॉलिसी की बीमित राशि भले कितनी हो, सीमा से अधिक खर्च करने पर अस्पताल के बिल जेब से चुकाने पड़ सकते हैं.को-पे का ऑप्शन न चुनेंको-पे का मतलब होता है कि क्लेम की स्थिति में पॉलिसी धारक को खर्चों का कुछ फीसदी अपनी जेब से भरना होगा. इस सुविधा को कभी न लें. अक्सर लोग थोड़े पैसे बचाने और प्रीमियम को कम करने के लिए को-पे की सुविधा ले लेते हैं लेकिन यह गलती नहीं करनी चाहिए.सही इंश्योरेंस लें, अपनी जरुरतों को समझेंआप अपनी जरूरतों को समझकर सही हेल्थ इंश्योरेंस को चुनें. इंश्योरेंस कवर की राशि न बहुत ज्यादा और न ही बहुत कम का चुनें. इसके लिए आप एक्सपर्ट की सलाह भी ले सकते हैं.

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