बढ़ते तनाव पर अमेरिका लगातार नजर रखे हुए

भारत-चीन सीमा  :अमेरिका ने भारत-चीन सीमा पर बढ़ती तल्खी पर चिंता जताई है। अमेरिका विदेश विभाग की स्पोक्सपर्सन हीदर नॉअर्ट ने कहा, “भारत-चीन बॉर्डर पर बढ़ते तनाव पर अमेरिका लगातार नजर रखे हुए है। हमें भरोसा है कि दोनों पक्ष शांति के लिए एकसाथ मिलकर कोई रास्ता निकालेंगे।” भारत के पास टोटल एक्टिव मिलिट्री पर्सनल्स की संख्या 13.62 लाख है, उधर 22.60 लाख चीन के पास है। रिजर्व मिलिट्री की बात करें तो भारत के पास 28.44 लाख और चीन के पास 14.52 लाख है।
चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री ने कहा- हम भारत से मांग करते हैं कि वो सिक्किम से फौरन अपनी फौज हटाए, ताकि वहां तनाव ज्यादा ना बढ़े। चीन ने ये भी कहा है कि वो इस मुद्दे पर दूसरे देशों की एम्बेसीज को जानकारी दे रहा है। दूसरी ओर, भारत ने कहा है कि वो चीन से लगने वाली सीमा पर बेहद जरूरी 73 सड़कें बना रहा है।
लड़ाई शुरू करना चीन की बड़ी गलती होगी, क्योंकि भारत 1962 से काफी अलग है। भारतीय सेनाएं कई जंग लड़ चुकी हैं और जीत भी हासिल कर चुकी है। इंडियन आर्मी वेल डिसिप्लिन्ड और वेल ट्रेन्ड है।” विदेश मामलों के एक्सपर्ट रहीस सिंह कहते हैं- “जंग के आसार नहीं हैं। जंग शुरू करना चीन के लिए बड़ी गलती होगा। इससे जितना नुकसान भारत को होगा, उतना ही चीन को होगा। चीन दुनिया की बड़ी इकोनॉमी है। उसके लिए जरूरी है कि वो पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते बनाकर चले। चीन भारत पर घुसपैठ का आरोप लगाकर इंटरनेशनल प्लैटफॉर्म पर अपनी डिप्लोमेसी मजबूत रखना चाहता है।”

डिफेंस एक्सपर्ट और मेजर जनरल (रिटायर्ड) पीके सहगल कहते हैं- “दोनों ही देश मेच्योर हैं। जंग अब नहीं हो सकती, क्योंकि दोनों ही देश जानते हैं कि इससे इकोनॉमी और डेवलपमेंट पर असर पड़ेगा। दूसरी बात 1962 के मुकाबले भारत चीन से कहीं आगे है। 1962 में भी भारत की सेनाएं तैयार होतीं और आज जैसे सियासी हालात होते तो नतीजे अलग होते। आज इंटरनेशनल लेवल पर भारत की पोजिशन अलग है। उसके दोस्तों की तादाद भी चीन के मुकाबले काफी ज्यादा है। भारत के सभी देशों से अच्छे रिश्ते हैं। इसके उलट चीन का अपने ज्यादातर पड़ोसियों से बॉर्डर विवाद है।”

डोकलाम इलाके में 33 दिन से भारत और चीन की सैनिक टुकड़ी आमने-सामने है। चीनी सैनिकों के अड़ियल रवैये को देखते हुए इंडियन आर्मी के जवानों ने भी डोकलाम में 9 जुलाई से अपने तंबू गाड़ रखे हैं और वहां से हटने से इनकार कर दिया है। दोनों देशों की 60-70 सैनिकों की टुकड़ी 100 मीटर की दूरी पर आमने-सामने डटी हैं। दोनों ओर की सेनाएं भी यहां से 10-15 km की दूरी पर तैनात हैं। इंडियन डिफेंस मिनिस्ट्री ने कहा है कि जब तक चीन के सैनिक सड़क निर्माण से पीछे नहीं हटते, भारतीय सैनिक नॉन काम्बैट मोड में डोकलाम में डटे रहेंगे। उधर, चीनी मीडिया ने कहा है कि भारत के साथ बातचीत की पूर्व शर्त भारतीय सैनिकों का डोकलाम से पीछे हटना है। इस मामले में मोलभाव के लिए कोई जगह नहीं है।
फॉरेन सेक्रेटरी एस. जयशंकर ने पार्लियामेंट्री पैनल से कहा है कि सिक्किम सेक्टर में स्थित डोकलाम पर चीन का रुख आक्रामक रहा है। वह बॉर्डर को भी गलत तरीके से पेश कर रहा है। जयशंकर ने ये भी कहा कि एंग्लो-चीन एग्रीमेंट के तहत चीन-इंडिया बॉर्डर पर भारत की पोजिशन 1985 से एक जैसी है। न्यूज एजेंसी के मुताबिक संसदीय कमेटी के एक मेंबर ने बताया, “जयशंकर का कहना है कि बॉर्डर मसले पर चीन का रवैया आक्रामक रहता है लेकिन इसमें जटिल कुछ भी नहीं है। कुछ दिनों के अंतर से वह ये मसला उठाता रहता है। इसके लिए हम चीन से डिप्लोमैटिक तरीके से बात करेंगे।” मेंबर ने ये भी बताया, “जयशंकर ने जंग जैसे हालात का जिक्र नहीं किया।”
मंगलवार को जयशंकर विदेश मामलों की एक संसदीय कमेटी को बॉर्डर पर चीन की स्थिति बता रहे थे। कमेटी के करीब 20 मेंबर्स ब्रीफिंग के दौरान मौजूद थे। जयशंकर ने बताया कि भारत, चीन के साथ डिप्लोमैटिक तरीके से तनाव कम करना चाहता है। “बॉर्डर पर भारत ने अपनी पोजिशन तय कर रखी है, चीन की भी अपनी पोजिशन है। लेकिन इसे वह गलत तरीके से बताने की कोशिश करता है।”
मीटिंग के दौरान राहुल गांधी भी मौजूद थे। एक मेंबर के मुताबिक राहुल ने जयशंकर से पूछा कि क्या चीन भूटान को ये मैसेज देने की कोशिश कर रहा है कि भारत उसकी मदद नहीं करेगा? ब्रीफिंग के दौरान शशि थरूर (पैनल चेयरमैन), सीपीएम के मोहम्मद सलीम, टीएमसी के सौगत बोस और बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी मौजूद थे।
भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी बॉर्डर है। ये जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई है। इस बॉर्डर का एक हिस्सा (करीब 220 किलोमीटर) सिक्किम में आता है। इसी इलाके के एक सेक्शन को लेकर विवाद है।
सिक्किम के डोकलाम एरिया में विवाद इसी साल 16 जून को तब शुरू हुआ था, जब इंडियन ट्रूप्स ने वहां चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिया था। हालांकि चीन का दावा है कि वह अपने इलाके में सड़क बना रहा है। दरअसल, ये इलाका एक ट्राई जंक्शन (तीन देशों की सीमाएं मिलने वाली जगह) है। चीन यहां सड़क बनाना चाहता है, लेकिन भारत और भूटान इसका विरोध कर रहे हैं।
चीन जहां सड़क बना रहा है, उसी इलाके में 20 किमी हिस्सा सिक्किम और पूर्वोत्तर राज्यों को भारत के बाकी हिस्से से जोड़ता है। यह ‘चिकेन नेक’ भी कहलाता है। चीन का इस इलाके में दखल बढ़ा तो भारत की कनेक्टिविटी पर असर पड़ेगा। भारत के कई इलाके चीन की तोपों की रेंज में आ जाएंगे। अगर चीन ने सड़क को बढ़ाया तो वह न सिर्फ भूटान के इलाके में घुस जाएगा, बल्कि वह भारत के सिलीगुड़ी काॅरिडोर के सामने भी खतरा पैदा कर देगा। दरअसल, 200 किमी लंबा और 60 किमी चौड़ा सिलीगुड़ी कॉरिडोर ही पूर्वोत्तर राज्यों को भारत के बाकी राज्यों से जोड़ता है। इसलिए भारत नहीं चाहेगा कि यह चीन की जद में आए।
1962 में क्या हुआ था? अक्साई चिन और अरुणाचल बॉर्डर पर अंग्रेजों के वक्त से विवाद था। तिब्बत में बगावत हुई। भारत ने दलाई लामा का सपोर्ट किया। इससे चीन भड़क गया। नतीजा यह रहा कि दोनों देशों में जंग हुई। हमारे 1383 सैनिक शहीद हो गए। तब नेहरू प्रधानमंत्री थे। माओ त्से तुंग चीन के प्रेसिडेंट थे।
डिफेंस रिव्यू करने वाली वेबसाइट globalfirepower.com के मुताबिक, भारत के पास 6,704 आर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल्स हैं। चीन के पास ऐसे 4,788 व्हीकल्स हैं। इस मामले में भारत चीन से आगे है। ये व्हीकल्स हर तरह के इलाकों में काम आते हैं। ये रेगिस्तान में भी कारगर होते हैं और इन्हें सिक्किम जैसे पहाड़ी इलाकों में भी बड़े ट्रांसपोर्ट प्लेन के जरिए पहुंचाया जा सकता है। भारत के पास Towed artillery 7,414 हैं, जबकि चीन के पास ऐसी तोपों की तादाद 6,246 है। भारत में ज्यादातर ऐसी तोपें बोफोर्स हैं। बोफोर्स वही तोप है जो डील होने के वक्त विवादों में रही, लेकिन करगिल की जंग में ऊंचाई वाले इलाकों में यह काफी मददगार साबित हुई थी। भारत अमेरिका से 145 होवित्जर तोपें भी खरीदने जा रहा है। टाइटेनियम से बनी ये हलकी तोपें 25 किलोमीटर तक टारगेट हिट कर सकती हैं। ऐसे में चीन के खिलाफ ये तोपें कारगर साबित हो सकती हैं। भारत के पास एक एक्टिव एयरक्राफ्ट करियर है जो कमीशंड हो चुका है। एक रिजर्व में है और एक का कंस्ट्रक्शन चल रहा है। INS विक्रमादित्य R33 928 फीट लंबा एयरक्राफ्ट करियर है। 45 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा वजन उठा सकता है। इससे पहले INS विराट भी 1987 से भारत को अपनी सर्विस दे रहा था, जिसे इसी साल मार्च में रिटायर कर दिया गया।

www.himalayau.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) 

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