अदभूत, अलौकिक-भगवान जगन्नाथ मुस्लिम भक्त सालबेग की मजार पर दर्शन देने जाते हैं

प्रभु जगन्नाथ का सबसे बड़ा मुस्लिम भक्त;  एक मुस्लिम की मज़ार के आगे क्यों रुकता है रथ ; हिमालयायूके वेब एण्‍ड प्रिन्‍ट मीडिया के लिए चन्‍द्रशेखर जोशी सम्‍पादक की रिपोर्ट- सालबेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनकी मजार पर दर्शन देने के लिए आएंगे।

प्रभु जगन्नाथ का सबसे बड़ा मुस्लिम भक्त;  एक मुस्लिम की मज़ार के आगे क्यों रुकता है .कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा 18 जून को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पर रोक लगाई गई थी। इस आदेश को वापस लेने के लिए 21 लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। इनमें एक 19 वर्षीय मुस्लिम छात्र है, जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। दरअसल इस युवक की तुलना इतिहास के एक मुस्लिम भक्त से की जा रही है, जिसे प्रभु जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। यही वजह है कि प्रत्येक वर्ष जब भगवान की रथ यात्रा मंदिर से निकलती है तो खुद ब खुद अपने सबसे बड़े भक्त की मजार पर कुछ देर के लिए रुक जाती है।

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भगवान जगन्नाथ की जब रथ यात्रा निकलती है तब मजार पर अपने मुस्लिम भक्त सालबेग को दर्शन देने जाते हैं। हर साल सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रथ को रोका जाता है। ऐसी परम्परा तब शुरू हुई जब सालबेग की मौत के बाद जब पहली बार रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी मशक्कत की लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला।

ऐसी मान्यता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद जब रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी कोशिश की, लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब एक व्यक्ति ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि वह भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाएं। उस व्यक्ति की सलाह मानकर जैसे ही सालबेग का जयघोष हुआ, रथ अपने आप चल पड़ा। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान जगन्नाथ की इच्छा अनुरूप उनकी सालाना आयोजित होने वाली तीन किलोमीटर लंबी नगर रथ यात्रा को कुछ देर के लिए उनके भक्त सालबेग की मजार पर रोका जाता है।

हिमालयायूके न्यूस्पोर्टल & प्रिन्‍ट मीडिया की एक्‍सक्‍लूसिव प्रस्‍तुति-

कौन थे महान सालबेग; जिनसे मिलने भगवान जगन्नाथ स्वंय उनकी मजार पर जाते है आज भी महान सालबेग जैसे मानव धरातल पर मौजूद है, बस, हमे उनकी क़द्र नही है, विधाता को है, लखनऊ में डॉक्टर मो0 कामरान महान सालबेग की जीती जागती मिसाल है,

भगवान जगन्नाथ की जब रथ यात्रा निकलती है तब मजार पर अपने मुस्लिम भक्त सालबेग को दर्शन देने जाते हैं। हर साल सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रथ को रोका जाता है। ऐसी परम्परा तब शुरू हुई जब सालबेग की मौत के बाद जब पहली बार रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी मशक्कत की लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला और,, एक्सएकलुसिव आलेख

कोरोना संकट के बीच मंगलवार को भगवान जगन्नाथ मंदिर से बाहर आएंगे और रथ पर सवार होकर अपने भक्तों को दर्शन देंगे। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पुरी रथ यात्रा को जब इजाजत मिली तो हर किसी ने जय जगन्नाथ का जयघोष किया। सुप्रीम कोर्ट में रथ यात्रा की इजाजत के लिए केंद्र सरकार, मंदिर समिति के अलावा ओडिशा के नयागढ़ जिले के 19 साल के मुस्लिम छात्र आफताब हुसैन ने भी पुनर्विचार की अपील की थी। रथयात्रा को लेकर अदालत का रुख करने वाले हुसैन नयागढ़ ऑटोनॉमस कॉलेज में बीए अर्थशास्त्र के तृतीय वर्ष के छात्र हैं। उसे सोशल मीडिया पर राज्य का दूसरा सलाबेग कहा जा रहा है।

सलाबेग मुस्लिम था लेकिन वह भगवान जगन्नाथ का बड़े भक्त था। मुख्य तीर्थ से गुंडिचा मंदिर तक की तीन किलोमीटर की यात्रा के दौरान सम्मान के रूप में ग्रैंड रोड पर स्थित सलाबेग की कब्र के पास स्वामी का रथ कुछ देर के लिए रुकता है। मुगल सूबेदार के पुत्र सलाबेग ओडिशा के भक्ति कवियों के बीच विशेष स्थान रखते हैं क्योंकि उन्होंने अपना जीवन भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर दिया था। वह 17वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुए थे। कहते हैं एक बार सालबेग मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव ठीक नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव ठीक हो चुके थे।

मंदिर में नहीं मिला था सालबेग को प्रवेश

भगवान के चमत्कास से जब सालबेग ठीक हो गए तो वो जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए मंदिर गए लेकिन उन्हें किसी ने मंदिर में दाखिल नहीं होने दिया। सालबेग निराश नहीं हुए और मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, इस सबके बावजूद भी उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर सालबेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनकी मजार पर दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।

मजार पर रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ

सालबेग की मौत के बाद जब पहली बार रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी मशक्कत की लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब रथ यात्रा में शामिल एक शख्स ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाया जाए। उस व्यक्ति की सलाह मानकर राजा ने जैसे ही सालबेग का जयघोष करवाया रथ अपने आप चल पड़ा। दरअसल सालबेग की इच्छा के मुताबिक भगवान जगन्नाथ की जब रथ यात्रा निकलती है तब मजार पर उसे दर्शन देने जाते हैं। तभी से हर साल सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रथ को रोका जाता है।

ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 23 जून 2020 को आयोजित होनी थी। प्रत्येक वर्ष इस रथ यात्रा में देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान का रथ खींचने के लिए आते हैं। भक्तों की इसी भीड़ को कोरोना संक्रमण के लिए बड़ा खतरा मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष रथ यात्रा पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर 21 लोगों ने पुनर्विचार याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओ में ओडिशा के न्यागढ़ जिले का रहने वाला 19 वर्षीय बीए (अर्थशास्त्र) अंतिम वर्ष का छात्र आफताब हुसैन भी शामिल है। सोशल मीडिया पर उसकी तुलना भगवान जगन्नाथ के सबसे बड़े भक्त सालबेग से हो रही है। लोग उसे दूसरा सालबेग बता रहे हैं।

आफताब हुसैन के मुताबिक बचपन से ही वह भगवान जगन्नाथ के भक्त थे। उनके दादा मुल्ताब खान भी भगवान जगन्नाथ के बड़े भक्त थे। उसके दादा ने वर्ष 1960 में इटामाटी (Itamati) में भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश के एक मंदिर का निर्माण कराया था, जिसे त्रिनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। आफताब के अनुसार उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई किताबें पढ़ीं हैं। इसससे भगवान जगन्नाथ के प्रति उनकी आस्था और गहरी हो गई। आफताब बताते हैं कि उनके पिता इमदाद हुसैन, मां राशिदा बेगम और छोटे भाई अनमोल ने कभी उन्हें भगवान जगन्नाथ की अराधना करने से नहीं रोका। मीडिया से बातचीत में आफताब ने बताया कि उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है, इसलिए वह कभी मंदिर के अंदर नहीं गए हैं। आफताब मानते हैं कि ब्रह्माण को बनाने वाले केवल एक हैं भगवान जगन्नाथ, जिसने सबको बनाया है।

सालबेग, 17वीं शताब्दी की शुरूआत में मुगलिया शासन के एक सैनिक थे, जिन्हें भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। सालबेग की माता ब्राह्मण थीं, जबकि पिता मुस्लिम थे। उनके पिता मुगल सेना में सूबेदार थे। इसलिए सालबेग भी मुगल सेना में भर्ती हो गए थे। एक बार मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए सालबेग बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव सही नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव सही हो चुके थे।

इसके बाद सालबेग ने मंदिर में जागर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया। इसके बाद सालबेग मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, बावजूद उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर सालबेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनकी जमार पर दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।

ऐसी मान्यता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद जब रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी कोशिश की, लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब एक व्यक्ति ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि वह भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाएं। उस व्यक्ति की सलाह मानकर जैसे ही सालबेग का जयघोष हुआ, रथ अपने आप चल पड़ा। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान जगन्नाथ की इच्छा अनुरूप उनकी सालाना आयोजित होने वाली तीन किलोमीटर लंबी नगर रथ यात्रा को कुछ देर के लिए उनके भक्त सालबेग की मजार पर रोका जाता है।

मंदिर के पुजारी और शहरवासी बताते हैं कि सालबेग यहीं का रहने वाला था। उसकी मां हिंदू थी और पिता मुस्लिम थे। भक्त सालबेग सारा जीवन मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन की आस लगाए रहता था। वह रोज भगवान की जय-जयकार करता हुआ और भावों से भरा हुआ तुरंत जगन्नाथजी के मंदिर की तरफ उनके दर्शनों के लिए दौड़ पड़ता। मगर मुस्लिम होने के कारण उसे मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता। ऐसे में वह मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान की भक्ति करने लगता है। प्रभु का नाम जपता है और उनके भजन लिखता है। धीरे-धीरे उसके भजन अन्य भक्तों की जुबान पर भी चढ़ने लगते। लोग बताते हैं कि सालबेग के बनाए भगवान के भजन लोगों को आज भी याद हैं।

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