मां त्रिपुरा सुंदरी प्रतिष्ठा महोत्सव में मोदी-योगी, 12CM शामिल होंगे

सात मई #विशेष तांत्रिक महत्व #अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त शक्तिपीठ # माता का महात्म ; “निष्प्राण में फूंके प्राण, पीड़ितों का करे परित्राण; मां त्रिपुरा सुंदरी (काली माँ)#विशिष्ट शक्ति साधकों का प्रसिद्ध उपासना केन्द्र # वाग्वरांचल में शक्ति उपासना की चिर परम्परा रही है। साढ़े ग्यारह स्वयं भू-शिवलिंगों के कारण लघुकाशी कहलाने वाला यह वाग्वर प्रदेश शक्ति आराधना के कारण ब्राहाी, वैष्णवी और वाग्देवी नगरी के रूप में लब्ध प्रतिष्ठित है। जगतज्जननी त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ के कारण यहां की लोक सत्ता प्राणवंत, ऊर्जावान और शक्ति सम्पन्न है; केवल हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड की रिपोर्ट www.himalayauk.org (Web & Print Media) CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR

इस विशाल धार्मिक कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे सहित देश के 12 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे। इसके अलावा विभिन्न साधु संत और श्रद्धालु भी इस आयोजन के साक्षी बनेंगे। इस इष्ट देवी परम्परा को बाबूजी स्व. हरिदेव जोशी प्रणीत उसी परम्परा के संरक्षण को बीड़ा अब वसुन्धरा राजे सिन्धिया ने उठाया है

तीनों पुरियों में स्थित देवी त्रिपुरा के गर्भगृह में देवी की विविध आयुध से युक्त अठारह भुजाओं वाली श्यामवर्णी भव्य तेजयुक्त आकर्षक मूर्ति है। इसके प्रभामण्डल में नौ-दस छोटी मूर्तियां है जिन्हें दस महाविद्या अथवा नव दुर्गा कहा जाता है। मूर्ति के नीचे के भाग के संगमरमर के काले और चमकीले पत्थर पर श्री यंत्र उत्कीण है, जिसका अपना विशेष तांत्रिक महत्व हैं। मंदिर के पृष्ठ भाग में त्रिवेद, दक्षिण में काली तथा उत्तर में अष्ट भुजा सरस्वती मंदिर था, जिसके अवशेष आज भी विद्यमान है। यहां देवी के अनेक सिद्ध उपासकों व चमत्कारों की गाथाएं सुनने को मिलती हैं।

राजस्थान में बांसवाड़ा से लगभग 14 किलोमीटर दूर तलवाड़ा ग्राम से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर ऊंची रौल श्रृखलाओं के नीचे सघन हरियाली की गोद में उमराई के छोटे से ग्राम में माताबाढ़ी में प्रतिष्ठित है मां त्रिपुरा सुंदरी। कहा जाता है कि मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे। शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा। यह स्थान कितना प्राचीन है प्रमाणित नहीं है। वैसे देवी मां की पीठ का अस्तित्व यहां तीसरी शती से पूर्व का माना गया है। गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुन्दरी के उपासक थे। गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह की यह इष्ट देवी रही। ख्याति लब्ध भूपातियों की इस इष्ट देवी परम्परा को बाबूजी स्व. हरिदेव जोशी प्रणीत उसी परम्परा के संरक्षण को बीड़ा अब वसुन्धरा राजे सिन्धिया ने उठाया है। मां की उपासना के बाद ही वे युद्ध प्रयाण करते थे। कहा जाता है कि मालव नरेश जगदेश परमार ने तो मां के श्री चरणों में अपना शीश ही काट कर अर्पित कर दिया था। उसी समय राजा सिद्धराज की प्रार्थना पर मां ने पुत्रवत जगदेव को पुनर्जीवित कर दिया था।
मंदिर का जीर्णोद्धार तीसरी शती के आस-पास पांचाल जाति के चांदा भाई लुहार ने करवाया था। मंदिर के समीप ही भागी (फटी) खदान है, जहां किसी समय लोहे की खदान हुआ करती थी। किंवदांती के अनुसार एक दिन त्रिपुरा सुंदरी भिखारिन के रूप में खदान के द्वार पर पहुंची, किन्तु पांचालों ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया। देवी ने क्रोधवश खदान ध्वस्त कर दी, जिससे कई लोग काल के ग्रास बने। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए पांचालों ने यहां मां का मंदिर तथा तालाब बनवाया। इस मंदिर का 16 वीं शती में जीर्णोद्धार कराया। आज भी त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर की देखभाल पांचाल समाज ही करता है। यहां अनेक मंदिरों के ध्वसांवशेष मिले है।
सन्‌ 1982 में खुदाई के दौरान यहां शिव पार्वती की मूर्ति निकली थी, जिसके दोनों तरफ रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश व कार्तिकेय भी हैं। प्रचलित पौराणिक कथानुसार दक्ष-यज्ञ तहस-नहस हो जाने के बाद शिवजी सती की मृत देह कंधे पर रख कर झमने लगे। तब भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए योगमाया के सुदर्शन चक्र की सहयता से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर भूतल पर गिराना आरम्भ किया। उस समय जिन-जिन स्थानों पर सती के अंक गिरे, वे सभी स्थल शक्तिपीठ बन गए। ऐसे शक्तिपीठ 51 हैं और उन्हीं में से एक शक्तिपीठ है त्रिपुरा सुंदरी।

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राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर- बिहार – तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध – मंदिर में मूर्तियां आपस में बातें करती हैं।
तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध बिहार के इकलौते राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर में साधकों की हर मनोकामना पूरी होती है। देर रात तक साधक इस मंदिर में साधना में लीन रहते हैं। बताया जाता है कि मंदिर में साधकों की हर साधना पूरी होती है। मंदिर में प्रधान देवी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी के अलावा बंगलामुखी माता, तारा माता के साथ दत्तात्रेय भैरव, बटुक भैरव, अन्नपूर्णा भैरव, काल भैरव व मातंगी भैरव की प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर में काली, त्रिपुर भैरवी, धुमावती, तारा, छिन्न मस्ता, षोडसी, मातंगड़ी, कमला, उग्र तारा, भुवनेश्वरी आदि दस महाविद्याओं की भी प्रतिमाएं हैं, जिस कारण तांत्रिकों की आस्था इस मंदिर के प्रति अटूट है। प्रसिद्ध तांत्रिक भवानी मिश्र द्वारा लगभग 400 वर्ष पहले इस मंदिर की स्थापना की गई थी। तब से आजतक इस मंदिर में उन्हीं के परिवार के सदस्य पुजारी बनते रहे हैं। तत्कालीन पुजारी किरण शंकर प्रकाश ने बताया कि इस मंदिर में कलश स्थापना का विधान नहीं है। तंत्र साधना से ही यहा माता की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। तांत्रिक कारणों से ही यहां कलश स्थापित नहीं होता है। भक्त यहां सप्तशती का पाठ कर मन्नत मांगते हैं। बताया जाता है कि इस मंदिर में सूखे मेवे का प्रसाद ही चढ़ाया जाता है। राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर की सबसे अनोखी मान्यता यह है कि निस्तब्ध निशा में यहां स्थापित मूर्तियों से बोलने की आवाजें आती हैं। मध्य-रात्रि में जब लोग यहां से गुजरते हैं तो उन्हें आवाजें सुनाई पड़ती हैं। मंदिर के पुजारी किरण मिश्र ने इस बात की पुष्टि की है। नगर के कई लोगों ने भी रात में मंदिर से बुदबुदाने की आवाज सुनने की बात कही है। ऐसा लगता है मानो मूर्तियां आपस में बातें करती हैं।
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राजस्थान में आदिवासी बहुल बांसवाडा जिले में अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त शक्तिपीठ त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर में सात मई से आयोजित होने वाले स्वर्ण शिखर प्रतिष्ठा महोत्सव की तैयारियां को इन दिनों अंतिम रुप दिया जा रहा हैं। आधुनिक युग में भारत का यह प्रथम मंदिर हैं जिसके निर्माण में लगी प्रत्येक शिला का हवनात्मक पूजन एवं प्राण प्रतिष्ठा हुआ हो। इस मंदिर के पुराने स्वरूप वाले मंदिर का शिखर उत्थापन 30 अप्रैल 2011 को किया गया। वर्तमान मंदिर के नींव में कूर्मशिलाओं की स्थापना 3 जून 2011 को हुआ। पंचाल समाज ने अर्थ संग्रह कर विभिन्न शिला पूजन समारोहों द्वारा नवीन मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण किया। प्रथम शिला पूजन समारोह 23 जून 2011 में हुआ। अब तक कुल 58 शिला पूजन समारोहों के माध्यम से 24 अप्रैल 2016 तक 1223 दान दाताओं ने कुल 1889 शिलाओं का हवनात्मक पूजन कर मंदिर में प्रतिष्ठित किया।
शिखर प्रतिष्ठा समिति के अध्यक्ष अशोक पंचाल ने बताया कि छह दिवसीय प्रतिष्ठा महोत्सव के तहत प्रथम दिन सात मई को हिम्मतनगर के प्रवीण रावत द्वारा गुजराती भजन संध्या, दूसरे दिन होने वाले गरबा रास में अहमदाबाद की भूमि पंचाल द्वारा गरबे गाए जाएंगे।
इसी प्रकार नौ मई को मध्यप्रदेश के जनकरामायणी समूह द्वारा माताजी के भजन तथा मोंटी नटराजन ग्रुप दिल्ली द्वारा धार्मिक नृत्य नाटिका प्रस्तुत की जाएगी। दस मई को उज्जैन की मनीषा विश्वकर्मा द्वारा देवी भागवत सार का ज्ञान प्रवाह होगा। ज्ञारह मई को जालौर के बाल कलाकार सुरेश लौहार द्वारा मारवाड़ी भजनों की प्रस्तुति होगी।
पंचाल समाज चौदह चौखरा के कोषाध्यक्ष अम्बालाल पंचाल ने बताया कि इस विशाल धार्मिक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द, मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सहित देश के बारह राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे।
इसके अलावा विभिन्न साधु संत और श्रद्धालु भी इस आयोजन के साक्षी बनेंगे। आधुनिक युग में भारत का यह प्रथम मंदिर हैं जिसके निर्माण में लगी प्रत्येक शिला का हवनात्मक पूजन एवं प्राण प्रतिष्ठा हुआ हो। इस मंदिर के पुराने स्वरूप वाले मंदिर का शिखर उत्थापन 30 अप्रैल 2011 को किया गया। वर्तमान मंदिर के नींव में कूर्मशिलाओं की स्थापना तीन जून 2011 को हुआ। पंचाल समाज ने अर्थ संग्रह कर विभिन्न शिला पूजन समारोहों द्वारा नवीन मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण किया। प्रथम शिला पूजन समारोह 23 जून 2011 में हुआ। अब तक कुल 58 शिला पूजन समारोहों के माध्यम से 24 अप्रैल 2016 तक 1223 दान दाताओं ने कुल 1889 शिलाओं का हवनात्मक पूजन कर मंदिर में प्रतिष्ठित किया।

:::हरिद्वार में
राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का मंदिर
आदि मां भगवती और उनके पराक्रम से जुड़े हुए हरिद्वार में कई स्थल हैं। इन्हीं में से एक हैं राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का मंदिर। मान्यता है कि ‘त्रिपुरÓ राक्षस का वध कर देवी का नाम त्रिपुर सुंदरी पड़ा था। इस राक्षस का वध कर देवी ने यहीं विश्राम किया था। यह मंदिर भी हरिद्वार के सिद्धपीठों में से एक है।
दक्षनगरी कनखल के जगद्गुरु आश्रम में स्थापित राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी के मंदिर में भी नवरात्रों के दिनों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए आते हैं। मंदिर के पीछे की मान्यता भी सतयुग से ही जुड़ी है। कहते हैं कि त्रिपुर राक्षस का पृथ्वी, आकाश और पाताल लोक में राज था। उसने देवताओं को युद्ध में पराजित कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। तीनों लोकों पर कब्जा होने के कारण ही उस राक्षस को त्रिपुरा नाम से जाना जाता था। देवताओं ने जब देवी का आह्वान किया तो देवी ने देवताओं की रक्षा करने और तीनों लोकों से राक्षस का अधिपत्य मिटाने के लिए त्रिपुरा नामक राक्षस का वध किया। राक्षस का वध करने के पश्चात देवी इसी स्थान पर अंतध्र्यान हुई थीं। त्रिपुर सुंदरी देवी को उस समय त्रिपुरा सुंदरी नाम दिया गया। जिसका अर्थ तीनों लोकों में सबसे सुंदर देवी भी है। देवी की पूजा अर्चना के लिए धर्मनगरी सहित अन्य स्थानों से भी भक्त आते हैं।

अकसर यह सोचा जाता है कि तंत्र विद्या और काली शक्तियों का समय गुजर चुका है। लेकिन कामाख्या में आज भी यह जीवन शैली का हिस्सा है। अम्बुबाची मेला के दौरान इसे आसानी से देखा जा सकता है। इस समय को शक्ति तांत्रिक की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। शक्ति तांत्रिक ऐसे समय में एकांतवास से बाहर आते हैं और अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं। इस दौरान वे लोगों को वरदान अर्पित करने के साथ-साथ जरूरतमंदों की मदद भी करते हैं।

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