माँ वाराही का अदभूत दरबार- पुजारी के मंत्र की अदभूत शक्‍त‍ि यहां देखे- मंत्र से बकरे की रक्तहीन बलि‍ & दुनिया का सबसे पुराना कार्यात्मक मंदिर

मा वाराही का अदभूत दरबार-# माता की मूर्ति ऐसी भव्य है जिस पर नजर अधिक देर तक टिक नहीं सकती है.# बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तो पुजारी अक्षत (चावल के दाने) को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं। बकरा तत्क्षण अचेत, मृतप्राय हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तो बकरा उठ खड़ा होता है।  मंदिर अपने आप में कई अनुभवी आध्यात्मिक स्वरूपों को छिपाये हुए है, बस आवरण नहीं उठ रहा है। इस मंदिर में केवल हिंदू ही नहीं अन्य धर्मों के लोग भी बलि देने आते हैं और आंखों के सामने चमत्कार होते देखते हैं। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि मां मुंडेश्वरी सच्चे मन से मांगी हर मनोकामना को पूरी करती हैं # कहते हैं कि मुगलकाल में बादशाह आैरंगजेब द्वारा इस मंदिर को तोड़ने की कोशिश विफल रही थी।

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HIGH LIGHT #बिहार के भभुआ के मुंडेश्वरी माता मंदिर # पटना से 200 किमी दूर सासाराम के बाद #  5वीं शताब्दी के आसपास का  माता मंदिर # मंदिर  रक्तहीन बलि के लिए भी जाना जाता है # मुंडेश्वरी माता मंदिर में  मंत्रों से बकरा  बेहोश # गर्भगृह में मां मुंडेश्वरी की प्रतिमा के चरणों के नीचे ही बकरे को लिटा देते हैं# पुजारी द्वारा मंत्र पढ़े जाते हैं, इसके बाद बकरा बेहोश #मां की पूजा के बाद वो बकरा खुद खड़ा हो जाता है। यही उसकी बलि होती है # बकरे को छोड़ देते हैं।  मां मुंडेश्वरी मंदिर न्यास समिति के कोषाध्यक्ष गोपाल कृष्ण बताते हैं कि 635 ईसा पूर्व जब इलाके के चरवाहे पहाड़ियों पर आते थे, उसी दरम्यान यह मंदिर देखा गया।

इस मंदिर को शक्ति पीठ भी कहते हैं जिसके बारे में कई बातें प्रचलित हैं जो इस मंदिर के विशेष धार्मिक महत्व को दर्शाता है. यहां कई ऐसे रहस्य भी हैं जिसके बारे में अब तक कोई नहीं जान पाया. यहां बिना रक्त बहाए बकरे के बलि दी जाती है और पांच मुख वाले भगवान शंकर की प्राचीन मूर्ति की जो दिन में तीन बार रंग बदलती है. पहाड़ों पर मौजूद माता के मंदिर पर पहुंचने के लिए ह लगभग 608 फीट ऊंचे पहाड़ की चढ़ाई करनी पड़ती है. यहां प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 389 ईस्वी के आसपास का है जो इसके प्राचीनतम होने का सबूत है.

मान्यता के अनुसार, यहां चंड और मुंड नाम के दो असुर रहा करते थे। ये लोगों को प्रताड़ित करते थे, जिनकी पुकार सुन मां ने दोनों असुरों का वध किया। माता ने सबसे पहले चंड का वध किया। यह देख मुंड मां से युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया। पर देवी मां ने इस पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध किया। इसी के बाद से यह जगह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

कहते हैं कि औरंगजेब के शासनकाल में इस मंदिर को तोड़वाने का प्रयास किया गया। मजदूरों को मंदिर तोडऩे के काम में भी लगाया गया। लेकिन इस काम में लगे मजदूरों के साथ अनहोनी होने लगी। तब वे काम छोड़ कर भाग गये। भग्न मूर्तियां इस घटना की गवाही देती हैं। तब से इस मंदिर की चर्चा होने लगी। यह देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में शुमार होता है।

मंदिर धार्मिक लिहाज़ के साथ साथ रहस्य के लिए भी देश और दुनिया में प्रसिद्ध है  अद्भुत इस मंदिर का संबंध मार्कंडेय पुराण से जुड़ा है. कहते हैं कि माता के द्वार पर आकर जो भक्ति का प्रसाद मिलता है वो अनोखा अहसास है. मंदिर में तो ऐसे सालों भर भक्त आते रहते हैं, लेकिन नवरात्र के मौके पर मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं और माता की भक्ति में डूब जाते हैं.

मुंडेश्‍वरी मंदिर, बिहार के कैमूर जिले के रामगढ़ गाँव के पंवरा पहाड़ी पर स्थित है जिसकी ऊँचाई लगभग 600 फीट है वर्ष 1812 ई0 से लेकर 1904 ई0 के बीच ब्रिटिश यात्री आर.एन.मार्टिन, फ्रांसिस बुकानन और ब्लाक ने इस मंदिर का भ्रमण किया था  माँ वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महिष है I इसी के एक भाग में माता की प्रतिमा को दक्षिणमुखी स्वरूप में खड़ा कर पूजा-अर्चना की जाती है। माता की साढ़े तीन फीट की काले पत्थर की प्रतिमा है, जो भैंस पर सवार है। इस मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है I जिस पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित किया गया है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है I मुख्य मंदिर के पश्चिम में पूर्वाभिमुख विशाल नंदी की मूर्ति है, जो आज भी अक्षुण्ण है I यहाँ पशु बलि में बकरा तो चढ़ाया जाता है परंतु उसका वध नहीं किया जाता है बलि की यह सात्विक परंपरा पुरे भारतवर्ष में अन्यत्र कहीं नहीं है

आश्चर्य एवं श्रद्धा चाहे जो कहिए, यहां भक्तों की कामनाओं के पूरा होने के बाद बकरे की बलि चढ़ाई जाती है। पर, माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था पनपती है। जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तो पुजारी अक्षत (चावल के दाने) को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं। बकरा तत्क्षण अचेत, मृतप्राय हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तो बकरा उठ खड़ा होता है। बलि की यह क्रिया माता के प्रति आस्था को बढ़ाती है।

 मां मुंडेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह के अंदर पंचमुखी भगवान शिव का शिवलिंग है जिसकी भव्यता अपने आप में अनोखी है. भोलेनाथ की ऐसी मूर्ति भारत में बहुत कम पायी जाती है , इसी मूर्ति में छुपा हुआ है ऐसा रहस्य जिसके बारे में कोई नही जान या समझ पाया , मंदिर के पुजारी की मानें तो ऐसी मान्यता है कि इसका मूर्ति का रंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है. कब शिवलिंग का रंग बदल जाता है, पता भी नहीं चलता.

 मंदिर के पुजारी ने बताया की इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि की प्रथा है. माता से मांगी हुई मनोकामना पूरी हो जाती है वे इस मंदिर में आकर बकरे की बलि देते हैं. लेकिन, यहां की बलि दूसरी किसी भी जगह की बलि प्रथा से अलग है.

यहां माता के चरण में बलि भी चढ़ जाती है, लेकिन खून का एक कतरा बाहर नहीं निकलता है. पूजा होने के बाद बलि देने के लिए बकरे को मंदिर के भीतर माता के समक्ष लाया जाता है. बकरे को माता के सामने लाने के बाद मंदिर के पुजारी ने बकरे के चारों पैरो को मज़बूती से पकड़ लेता है और माता के चरणों में स्पर्श करने के बाद मंत्र का उच्चारण करता है. बकरे को माता के चरण के सामने रख देता है और फिर बकरे पर पूजा किया हुआ चावल छिड़कता है. जैसे ही वो चावल बकरे पर पड़ता है बकरा अचेत हो जाता है.

कुछ देर तक बकरा अचेत रहता है. जब पुजारी कुछ मंत्र पढ़ते हैं और माता के चरण में पड़े फूल को फिर से बकरे पर फेंकते हैं तो बकरा ऐसा जगता है मानो वो नींद से जागा हो. इस प्रकार बकरे की बलि की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. यही इस बलि की अनोखी परम्परा है जो सदियों से चली आ रही है. इस बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसकी जान नहीं ली जाती है.

कैमूर पटना से 200 किमी और वाराणसी से 100 किमी दूर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 30 कैमूर को आरा के माध्यम से राजधानी पटना से जोड़ता है। इसके अलावा, शहर में कुछ राज्य राजमार्ग भी हैं। # मोहनिया जिला का एकमात्र प्रमुख रेलवे जंक्शन है। आमतौर पर स्टेशन को हावड़ा-न्यू दिल्ली ग्रैंड कार्ड पर भभुआ आ रोड के रूप में जाना जाता है जो मुगलसराय क्षेत्र में स्थित है। # कैमूर में कोई स्वतंत्र हवाई अड्डा नहीं है और जो भी हवा से शहर तक पहुंचाना चाहती है उसे वाराणसी हवाई अड्डे के माध्यम से जोड़ना होगा, जो निकटतम हवाई अड्डा है। वाराणसी कैमूर से 60 किलोमीटर दूर है

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