मुख्यमंत्री राहत कोष में दिए गए चंदे को नहीं माना जाएगा सीएसआर: कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय
कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की यह सफाई उसकी इस घोषणा के दो सप्ताह बाद आई है कि कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के लिए स्थापित किए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पीएम केयर्स फंड’ के लिए सभी कॉरपोरेट दान को कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) व्यय माना जाएगा–. साभार- द वायर, सत्यहिन्दी
The Ministry of Corporate Affairs has allowed contributions from companies to state disaster management authorities for fighting COVID-19 to be treated as CSR expenditure.
केंद्र सरकार की तरफ़ से सहायता निधि को लेकर अलग रणनीति आज पूरे देश में हर राज्य जब कोरोना के ख़िलाफ़ एक जंग लड़ रही है तो क्या ऐसे में केंद्र सरकार की तरफ़ से सहायता निधि को लेकर कोई अलग रणनीति चलाई जा रही है? भारत सरकार के कंपनी मामलों के मंत्रालय के एक सर्कुलर को देखें तो कुछ ऐसा ही नज़र आ रहा है कि केंद्र सरकार राज्यों को औद्योगिक घरानों या संस्थान की तरफ़ से मिलाने वाली सहायता राशि पर अड़ंगा लगा रही है। जनरल सर्क्युलर 15 /2020, F. No. CSR -01 /4 /2020 -CSR -MCA तो कुछ यही कहानी कह रहा है। इस सर्क्युलर में यह बात स्पष्ट रूप से लिखी गयी है कि कॉर्पोरेट या औद्योगिक संस्थान द्वारा जो पैसा ‘PM Cares Fund’ में दिया जाएगा उसे ही कंपनी अधिनियम 2013 के प्रावधान क्रमांक (viii) के तहत सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी ख़र्च के तहत योग्य माना जाएगा। यदि कोई कॉर्पोरेट या औद्योगिक संस्थान मुख्यमंत्री सहायता निधि या राज्य सहायता निधि के तहत सहायता राशि देता है तो कंपनी अधिनियम के प्रावधान (vii) के तहत उसे सीएसआर ख़र्च में शामिल नहीं किया जा सकेगा। केंद्र के कंपनी मामलों के मंत्रालय ने यह सर्क्युलर 28 मार्च 2020 को जारी किया है। इस सर्क्युलर में यह भी लिखा गया है कि यदि कोई कॉर्पोरेट या औद्योगिक संस्थान राज्य आपदा प्रबंधन अथॉरिटी को मदद देता है तो वह कंपनी अधिनियम 2013 के प्रावधान (xii) के तहत सीएसआर ख़र्च में शामिल किया जा सकता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र सरकार इस तरह का आदेश जारी कर इस आपदा से लड़ने के लिए प्राप्त निधि या सहायता को केंद्रीकृत करना चाहता है? क्या वह इस आदेश के माध्यम से राज्य सरकारों पर एक अंकुश लगाना चाहता है या निधि तथा सहायता के लिए अपने पास आने को मजबूर करना चाहता है?
भारत के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने साफ किया है कि मौजूदा कानूनों के अनुसार कंपनियां किसी भी ‘मुख्यमंत्री राहत कोष’ या ‘कोरोना वायरस के लिए राज्य राहत कोष’ में वित्तीय योगदान करके उसे ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी’ (सीएसआर) नहीं बता सकती है. कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की यह सफाई उसकी इस घोषणा के दो सप्ताह बाद आई है कि कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के लिए स्थापित किए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पीएम केयर्स फंड’ के लिए सभी कॉरपोरेट दान को सीएसआर व्यय माना जाएगा. अगर कंपनियों को सीएसआर के लिए दावा करना है तो उन्हें राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में दान करना होगा. कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने सीएसआर को लेकर भ्रम की स्थितियां स्पष्ट करने के लिये बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर जारी किया है. मंत्रालय द्वारा जारी जवाब में कहा गया, ‘कोरोना वायरस के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष या राज्य राहत कोष’ कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची-आठ में शामिल नहीं है और इसलिए इस तरह के धन में कोई योगदान स्वीकार्य सीएसआर व्यय के रूप में योग्य नहीं होगा.’ हालांकि, प्रत्येक ‘राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ में किए गए कॉरपोरेट योगदान को सीएसआर व्यय माना जाएगा.
इन प्रतिबंधात्मक नियमों की विपक्षी पार्टी के नेताओं ने आलोचना की है. उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार ने इन नियमों में संशोधन क्यों नहीं किया. वहीं, इसकी वजह से तमिलनाडु जैसे राज्यों को दूसरे तरीके अपनाने पड़े. द हिंदू के अनुसार, तमिलनाडु की के. पलानीस्वामी की सरकार ने मुख्यमंत्री सार्वजनिक राहत कोष (सीएनपीआरएफ) में कोरोना वायरस के लिए आए सभी दान को तमिलनाडु राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) में स्थानांतरित करने का फैसला किया है.
तमिलनाडु सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हमने सीएसआर व्यय के रूप में योग्य बनाने के इरादे से राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में धनराशि हस्तांतरित करने का निर्देश दिया है. माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा है कि सीएम राहत कोष में दान को सीएसआर के रूप में स्वीकार किए जाने की अनुमति देने के लिए कंपनी अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए. बता दें कि, कंपनी अधिनियम 2013 के तहत कंपनियों को अपने पिछले तीन वर्ष के औसत वार्षिक लाभ का कम से कम दो प्रतिशत सीएसआर पर खर्च करना होता है और इसके लिए वे कानूनन बाध्य हैं.
इन सीएसआर फंडों का उपयोग गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए किया जा सकता है, जिसमें गरीबी और भूख को कम करने, कौशल विकास और शिक्षा और आपदा राहत को बढ़ावा देने में मदद करना शामिल है. वर्तमान में 5 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ या 500 करोड़ रुपये के कुल लाभ या 1,000 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली कंपनियों को पिछले तीन वर्षों के अपने औसत शुद्ध लाभ का 2 फीसदी सीएसआर के रूप में खर्च करना होगा.
इसी प्रश्नोत्तर में कर्मचारियों को दी जाने वाली अनुग्रह राशि के बारे में भी स्पष्टीकरण दिया गया है. कंपनियां कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न संकट के मद्देनजर अस्थायी, दिहाड़ी तथा ठेके के आधार पर काम करने वाले कर्मचारियों को जो अनुग्रह राशि देंगी, उन्हें भी कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) खर्च का हिस्सा माना जाएगा. कंपनियों को यह लाभ तभी मिलेगा जब इस तरह की अनुग्रह राशि का भुगतान नियमित पारिश्रामिक के अतिरिक्त किया जाएगा. मंत्रालय ने कहा, ‘यदि कंपनियां अपने अस्थायी, ठेका या दिहाड़ी कर्मचारियों को उनके वेतन-मजूरी के भुगतान के ऊपर या अलग से किसी तरह की अनुग्रह राशि देती हैं तो इसे सीएसआर पर किया गया खर्च माना जाएगा. यह छूट एकबार की होगी जो विशेष तौर पर कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए दी गयी राशि पर लागू होगी.’
इस छूट के साथ यह शर्त होगी कि कंपनी के निदेशक मंडल को इस बारे में एक विस्तृत उद्घोषणा करनी होगी तथा उसे कंपनी के वैधानिक ऑडिटर से प्रमाणित कराना होगा. मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान अस्थायी, ठेका या दिहाड़ी मजदूरों को दिया गया पारिश्रमिक सीएसआर व्यय के दायरे में नहीं आएगा.