पेगासस जासूसी मामला- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जिसने जासूसी की, वह इसके लिए अधिकृत था या नहीं; शपथपत्र दीजिये

13 Sep 2021; High Light#  केंद्र सरकार को कड़ी फटकार # अदालत ने सरकार को आदेश दिया है कि वह एक शपथपत्र यानी ए़फ़िडेविट दायर कर यह बताए कि इस जासूसी का आदेश किस एजेन्सी ने दिया था और जिसने जासूसी की, वह इसके लिए अधिकृत था या नहीं। # CJI ने कहा कि हमारे सामने पत्रकार, एक्टिविस्ट आदि आए हैं. यह जानने के लिए कि क्या सरकार ने कानून के तहत स्वीकार्य के अलावा किसी अन्य तरीके का इस्तेमाल किया है ? 

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सुप्रीम कोर्ट में पेगासस जासूसी मामले में अदालत की निगरानी में SIT जांच की याचिकाओं पर सुनवाई हुई, जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. अगले दो से तीन दिन में फैसला सुनाया जा सकता है

सुप्रीम कोर्ट वकील एम. एल. शर्मा, माकपा सांसद जॉन ब्रिटस, पत्रकार एन. राम, पूर्व आईआईएम प्रोफेसर जगदीप चोक्कर, नरेंद्र मिश्रा, परंजॉय गुहा ठाकुरता, रूपेश कुमार सिंह, एसएनएम आब्दी, पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित 12  याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।

 फ्रांसीसी मीडिया ग़ैर-सरकारी संगठन ‘फॉरबिडेन स्टोरीज़’ ने स्पाइवेयर पेगासस बनाने वाली इज़रायली कंपनी एनएसओ के लीक हुए डेटाबेस को हासिल किया तो पाया कि उसमें 10 देशों के 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों के फ़ोन नंबर हैं। इनमें से 300 नंबर भारतीयों के हैं। फॉरबिडेन स्टोरीज़ ने 16 मीडिया कंपनियों के साथ मिल कर इस पर अध्ययन किया। इसमें भारतीय मीडिया कंपनी ‘द वायर’ भी शामिल है।  ‘द वायर’ ने कहा था कि एनएसओ के लीक हुए डेटाबेस में सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री के दो लोग एन. के गांधी और टी. आई. राजपूत के फ़ोन नंबर भी शामिल थे। जब इनके फ़ोन नंबर एनएसओ की इस सूची में जोड़े गए तो वे दोनों सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की रिट याचिका सेक्शन में थे। 

सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार पेगासस सॉफ़्टवेअर के बारे में कोई जानकारी नही दे सकती क्योंकि वह नहीं चाहती कि आतंकवादियों को यह पता चले कि हम किस सॉफ़्टवेअर का इस्तेमाल करते हैं।

 नाराज़ जज ने तुषार मेहता से कहा कि सरकार सिर्फ कुछ लोगों के इस दावे पर जवाब दे कि उनकी जासूसी की गई है और इससे उनकी निजता का उल्लंघन हुआ है। 

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “पिछली बार भी राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाया गया था और हमने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा में कोई किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करने जा रहा है। हमने आपसे यह कहा था कि कुछ लोगों ने अपने फ़ोन हैक किए जाने के दावे किए हैं, तो आप इस पर एफ़िडेविट जमा करें कि क्या यह अधिकृत थी।”

हम सिर्फ फ़ोन हैकिंग के मुद्दे पर चिंतित हैं, इस पर कि किस एजेन्सी को इसका अधिकार था और वह अधिकृत थी या नहीं। लोगों का कहना है कि उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। —-जस्टिस सूर्यकांत, जज, सुप्रीम कोर्ट

मेहता ने इस मुद्दे को फिर एक बार लटकाने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “यदि यह निजता के अधिकार के उल्लंघन का मामला है तो गंभीर है। हम इस पर एक कमेटी बनाएंगे।”

 अदालत ने कहा कि ‘कमेटी का गठन कोई मुद्दा नहीं है।’ जज ने कहा, “एफ़िडेविट का मक़सद यह जानना था कि आप कहाँ खड़े हैं। संसद में आपके सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा कि फ़ोन के तकनीकी विश्लेषण के बिना यह पता नहीं चल सकता कि उसे हैक किया गया है या नहीं।” 

जज ने कहा कि हमने सरकार को एफ़िडेविट जमा करने का मौका दिया है, पर वह ऐसा करना ही नहीं चाहती। 

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अन्य ने कहा कि वे भी नहीं चाहते कि सरकार राज्य की सुरक्षा के बारे में कोई जानकारी दे। इन लोगों ने कहा कि यदि पेगासस को एक तकनीक के रूप में इस्तेमाल किया गया तो उन्हें जवाब देना होगा।

इसके पहले केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफ़नामा दायर कर कहा था कि याचिकाओं में लगाए गए सभी आरोप निराधार और बेबुनियाद हैं। 

पेगासस अब संसद और सड़क से निकल कर सुप्रीम कोर्ट में ।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार इस मुद्दे को सनसनीखेज बनाने का जोखिम नहीं उठा सकती. नागरिकों की निजता की रक्षा करना भी सरकार की प्राथमिकता है, लेकिन साथ ही सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को बाधित नहीं कर सकती. ऐसी सब तकनीक खतरनाक होती हैं. इंटरसेप्शन किसी तरह गैर कानूनी नहीं है. इन सबकी जांच एक विशेषण समिति से कराने दें.  इन डोमेन विशेषज्ञों का सरकार से कोई संबंध नहीं होगा. उनकी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट के पास आएगी.

केंद्र ने कहा कि हम हलफनामे के जरिए ये जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते. अगर मैं कहूं कि मैं किसी विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग नहीं रहा हूं या इसका उपयोग नहीं कर रहा हूं तो यह आतंकवादी तत्वों को तकनीक का काट लाने का मौका देगा. केंद्र ने कहा कि हम हलफनामे के जरिए ये जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते. अगर मैं कहूं कि मैं किसी विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग नहीं रहा हूं या इसका उपयोग नहीं कर रहा हूं तो यह आतंकवादी तत्वों को तकनीक का काट लाने का मौका देगा.

इस मामले की सुनवाई CJI एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मुद्दे पर केंद्र सरकार से नाराजगी जताई है. CJI रमना ने कहा  कि आप बार-बार उसी बात पर वापस जा रहे हैं.  हम जानना चाहते हैं कि सरकार क्या कर रही है. हम राष्ट्रीय हित के मुद्दों में नहीं जा रहे हैं. हमारी सीमित चिंता लोगों के  के बारे में है. समिति की नियुक्ति कोई मुद्दा नहीं है. हलफनामे का उद्देश्य यह होना चाहिए ताकि पता चले कि आप कहां खड़े हैं. संसद में आपके अपने आईटी मंत्री के बयान के अनुसार कि फोन का तकनीकी विश्लेषण किए बिना आकलन करना मुश्किल है.

CJI ने 2019 में तत्कालीन आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद के बयान का हवाला दिया. उसमें भारत के कुछ नागरिकों की जासूसी का अंदेशा जताया गया था. मेहता ने वर्तमान आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के संसद में दिए बयान का हवाला दिया. सरकार ने किसी भी तरह की जासूसी का खंडन किया है. सीजेआई ने आगे कहा कि हमने केंद्र को हलफनामे के लिए बार-बार मौका दिया. अब हमारे पास आदेश जारी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.समिति नियुक्त करना या जांच करना यहां सवाल नहीं है अगर आप हलफनामा दाखिल करते हैं तो हमे पता चलेगा कि आपका स्टैंड क्या है. याचिकाकर्ता एन राम के लिए कपिल सिब्बल  ने कहा कि ये सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो जवाब दे . नागरिकों की निजता का संरक्षण करने सरकार का कर्तव्य है. स्पाइवेयर पूरी तरह अवैध है. अगर सरकार अब कहती है कि हलफनामा दाखिल नहीं करेगी तो माना जाना चाहिए कि पेगासस का अवैध इस्तेमाल हो रहा है.

पिछली सुनवाई में केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इस संबंध में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने पर विचार किया जा रहा है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. पीठ ने कहा था कि वह मामले के सभी पहलुओं को देखने के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाने के केंद्र के प्रस्ताव की जांच करेगी. कोर्ट वकील एमएल शर्मा, माकपा सांसद जॉन ब्रिटास, पत्रकार एन राम, पूर्व आईआईएम प्रोफेसर जगदीप चोककर, नरेंद्र मिश्रा, परंजॉय गुहा ठाकुरता, रूपेश कुमार सिंह, एसएनएम आब्दी, पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित 12  याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है . वहीं,  केंद्र सरकार का बार-बार यह कहना था कि सुरक्षा उद्देश्यों के लिए फोन को इंटरसेप्ट करने के लिए किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया. इसका सार्वजनिक तौर पर खुलासा नहीं किया जा सकता. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि सुरक्षा और सैन्य एजेंसियों द्वारा राष्ट्रविरोधी और आतंकवादी गतिविधियों की जांच के लिए कई तरह के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है.

उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार यह सार्वजनिक नहीं करेगी कि वह किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रही है ताकि आतंकी नेटवर्क अपने सिस्टम को मॉडिफाई कर सकें और ट्रैकिंग से बच सकें.  मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार, निगरानी के बारे में सभी तथ्यों को एक विशेषज्ञ तकनीकी समिति के समक्ष रखने के लिए तैयार है, जो अदालत को एक रिपोर्ट दे सकती है . शीर्ष अदालत के उस सवाल पर कि क्या केंद्र एक विस्तृत हलफनामा दायर करने के लिए तैयार है, मेहता ने कहा कि दायर दो पृष्ठ का हलफनामा याचिकाकर्ता एनराम और अन्य द्वारा उठाई गई चिंताओं का पर्याप्त रूप से जवाब देता है.

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि पिछली बार हमने स्पष्ट किया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में किसी की दिलचस्पी नहीं है. हम आपसे केवल यही सीमित हलफनामा दाखिल करने की उम्मीद कर रहे थे. हमारे सामने ऐसे नागरिक हैं जो अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं. ये सभी मुद्दे अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाने वाले नागरिकों के वर्ग तक सीमित हो सकते हैं. CJI रमना  ने कहा कि हम फिर दोहरा रहे हैं कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में नहीं जाएंगे. हम केवल उन दावों से चिंतित हैं कि कैसे लोगों के के फोन हैक किए गए थे. किस एजेंसी के पास शक्तियां हैं और वह अधिकृत हैं या नहीं. लोगों के नागरिक अधिकार का उल्लंघन किया गया या नहीं. मसला तो सीमित है . हम यह मानते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा इससे एक अलग भाग है . हमारी चिंता सरकार पर लगे आरोप को लेकर है. नवंबर, 2019 में संसद में मंत्री ने बयान रखा था इस रिपोर्ट के साथ कि एक मालवेयर व्हाट्सऐप में आया है. CJI ने कहा कि  हम फिर दोहरा रहे हैं कि सुरक्षा या रक्षा से जुड़े मामलों को जानने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है. हम केवल चिंतित हैं, जैसा कि अभी कहा, हमारे सामने पत्रकार, एक्टिविस्ट आदि आए हैं. यह जानने के लिए कि क्या सरकार ने कानून के तहत स्वीकार्य के अलावा किसी अन्य तरीके का इस्तेमाल किया है ? 

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