महामाई के साधक – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुलदेवी नौवीं महाविद्या देवी मातंगी का पूजन करने मोढेरा गांव पहुंचे & गुजरात में चुनावी बिगुल फूंका

HIGH LIGHT#9 OCT 2022 #प्रधानमंत्री ने मोढेरा को देश का पहला 24 घंटे सौर ऊर्जा से चलने वाला गांव घोषित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोढेरा के मोधेश्वरी माता मंदिर में पूजा की। इसके बाद पीएम मोदी मोढेरा के मशहूर सूर्य मंदिर गये और यहां 3-डी मैपिंग प्रोजेक्शन और हेरिटेज लाइटिंग का शुभारंभ किया। 

#मोढेरा स्थित मोढेश्वरी माता मंदिर में विराजित मां मातंगी (मोढेश्वरी देवी)। #प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सूर्य मंदिर (Sun Temple) के साथ कुलदेवी की भी पूजा करेंगे # मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की उँचाइयो को छु सकते है । मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख ,शत्रुओ का नाश, भोग विलास,आपार सम्पदा,वाक सिद्धि, कुंडली जागरण ,आपार सिद्धियां, काल ज्ञान ,इष्ट दर्शन आदि प्राप्त होते ही है #ऋषियों ने कहा है – ” मातंगी मेवत्वं पूर्ण मातंगी पुर्णतः उच्यते ” #मां मातंगी जी की प्रतिमा अगर आपको वो नहीं मिलती तो आप सुपारी को ही मां का रूप समझ कर उन्हें किसी भी तांबे या कांसे की थाली में अष्ट दल बना कर उस पर स्थापित करे ओर #नौवीं महाविद्या मातंगी है। मातंगी देवी प्रकृति की देवी हैं। कला संगीत की देवी हैं। तंत्र की देवी हैं। वचन की देवी हैं। यह एकमात्र ऐसी देवी हैं जिनके लिए व्रत नहीं रखा जाता है #जनश्रुतियों के आधार पर कहा जाता है, रावण वध के बाद श्रीराम ब्रह्म हत्या के पाप और बोझ से उऋण होना चाहते थे. उन्होंने अपने कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ से इसका उपाय पूछा और कोई ऐसा स्थान बताने के लिए कहा, जहां जाकर आत्मिक शांति मिल सके. कहते हैं कि श्री राम गुरु के बताए अनुसार मोढेरा ही आए थे. यहां मंदिर परिसर के आगे जो कुंड बना है वह रामकुंड इसीलिए कहा जाता है

#दस महाविद्याएं: काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। इन देवियों को दस महाविद्या कहा जाता हैं। इनका संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से हैं। मसलन भगवान श्रीराम को तारा का तो श्रीकृष्ण को काली का अवतार माना जाता हैं।

दस महाविद्याएं:काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। इनदेवियोंको दस महाविद्या कहा जाता हैं। इनका संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से हैं। मसलन भगवान श्रीराम को तारा का तो श्रीकृष्ण को काली का अवतार माना जाता हैं। ज्ञात हो कि दसम महाविद्याओ में से मातंगी जहां मोदी जी की कुलदेवी है वही बगलामुखीका मंदिर नंदा देवी एनक्‍लेव, बंजारावाला, देहरादून में निर्माणाधीन है, जिसकी प्रेरणा महामाई के साधको ने चन्‍द्रशेखर जोशी को वर्ष 2015 में दी, चन्‍द्रशेखर जोशी को भूमि दान में मिलने के पश्‍चात उत्‍तराखण्‍ड के तत्‍कालीन वित्‍त मंत्री श्री प्रकाश पंत ने महामाई मदिर निर्माण में  पूर्ण सहयोग का आश्‍वासन चन्‍द्रशेखर जोशी को दिया, तभी 17 मार्च 2017 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी के संसद भवन कार्यालय से चन्‍द्रशेखर जोशी को महायोगी जी गुरू महाराज को लेकर दिल्‍ली आने का संदेश दूरभाष से दिया गया, जहां चन्‍द्रशेखर जोशी ने बगलामुखी मंदिर नंदा देवी एनक्‍लेव, बंजारावाला, देहरादून में निर्माणाधीन के बारे में बताया, परन्‍तु उसके बाद ही स्‍थिति बदल गयी, चन्‍द्रशेखर जोशी को पत्‍नी शोक हुआ, और श्री प्रकाश पंत जी स्‍वर्गवासी हो गये, जिससे मंदिर का कार्य लब्‍बित होता गया, आखिर कार,वर्ष 2022 में बीजेपी के धरमपुर देहरादून के स्‍थानीय विधायक विनोद चमोली जो महामाई के भक्‍त है, ने चन्‍द्रशेखर जोशी को हरसम्‍भव सहयोग का आश्‍वासन दिया और आज 9 अक्‍टूबर 22 को जब मोदी जी अपनी कुलदेवी दसम महाविद्याओ में 9पी मातंगी को पूजने पहुंच रहे हैं, बंजारावाला देहरादून में निर्माणाधीन दसम महाविद्या श्री बगुलामुखी पीताम्‍बरा महामाई का मंदिर भी पूर्ण होने जा रहा है, जिसके बारे में चन्‍द्रशेखर जोशी ने श्री पंकज मोदी जी को अवगत कराया था, तो श्री पंकज मोदी जी ने प्राण प्रतिष्‍ठा समारोह में आने का पूर्ण आश्‍वासन दिया गया

बंजारावाला देहरादून में निर्माणाधीनदसम महाविद्या श्री बगुलामुखी पीताम्‍बरा महामाई का मंदिर उत्‍तराखण्‍ड में दूसरा तथा देहरादून जनपद में प्रथम है, जिसका भक्‍तजन बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं,

ज्ञात हो कि महामाई के सेवक चन्‍द्रशेखर जोशी उत्‍तराखण्‍ड के प्रथम सम्‍पादक है जिनको अपने गुरूजी योगी जी महाराज के साथ माननीय प्रधानमंत्री से मुलाकात हेतु संसद भवन पीएमओ में दिनांक 17 मार्च 2017 को  आमंत्रि‍त किया गया था और गुरूजी योगी जी महाराज ने चन्‍द्रशेखर जोशी के सामाजिक धार्मिक कार्यो का 5 पेज का बायो डाटा माननीय प्रधानमंत्री जी को दिया था,  परन्‍तु तभी चन्‍द्रशेखर जोशी दुख और अवसाद में लम्‍बे समय तक व्‍यस्‍त रह गये, जिससे तारतम्‍य नही रह पाया, गुरूजी योगी जी महाराज विलक्षण प्रतिभा के धनी है और वर्तमान डेरा मॉ विध्‍यवासिनी में आश्रम है

Surya Mandir Modhera: गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित है गांव मोढेरा. मोढेरा में स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण 1026 ई. में सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम द्वारा करवाया गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोढेरा में स्थित कुलदेवी (clan deity) के दर्शन किये । मोढेरा गांव स्थित श्री मातंगी (Matangi ) मोढेश्वरी (Modheswari) माता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके परिवार की कुलदेवी हैं। मां मातंगी का यह मंदिर 16वीं सदी में बना था। ऐसी मान्यता है कि मोढेश्वरी माता ने अपनी 18 भुजाओं के साथ कर्नाट (Karnat) नाम के राक्षण का नाश किया था और लोगों को भय से मुक्ति दिलवाई थी। मोढेश्वरी माता के हर हाथ एक-एक हथियार था। इनमें त्रिशूल, खडगा, तलवार समेत दूसरे हथियार शामिल थे। मोढेश्वरी माता मंदिर में उनका यही रूप विराजित है। मोढश्वरी माता का यह ऐतिहासिक मंदिर सन टेंपल (Sun Temple) के पास ही है। मोढेश्वरी माता मंदिर में बाहर के श्रद्वालुओं के रुकने की भी व्यवस्था है। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान श्री राम ने भी यहां पूजा की थी। इसी मंदिर में एक धर्म वाव भी है। इतिहासकार कहते हैं कि पुराने समय में आज के मोढेरा का नाम मोहरकपुर ( Moherkpur) था।

दस महाविद्याओं में से नौवीं महाविद्या देवी मातंगी ही है। मातंगी देवी को प्रकृति की स्वामिनी देवी बताया गया है। माता मातंगी के कुछ प्रसिद्ध नाम हैं- सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, राज-मातंगी, कर्ण-मातंगी, चंड-मातंगी, वश्य-मातंगी, मातंगेश्वरी आदि। गुप्त नवरात्रि में नवमी तिथि को देवी मातंगी की पूजा और साधना होती है।

मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की उँचाइयो को छु सकते है । मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख ,शत्रुओ का नाश, भोग विलास,आपार सम्पदा,वाक सिद्धि, कुंडली जागरण ,आपार सिद्धियां, काल ज्ञान ,इष्ट दर्शन आदि प्राप्त होते ही है ।

यह केवल मन और वचन से ही तृप्त हो जाती हैं। भगवान शंकर और पार्वती के भोज्य की शक्ति के रूप में मातंगी देवी का ध्यान किया जाता है। मातंगी देवी को किसी भी प्रकार के इंद्रजाल और जादू को काटने की शक्ति प्रदत्त है। देवी मातंगी का स्वरूप मंगलकारी है। वह विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री हैं। पशु, पक्षी, जंगल, आदि प्राकृतिक तत्वों में उनका वास होता है। वह दस महाविद्याओं में नौवें स्थान पर हैं।  तोते हर समय उनके साथ रहते हैं जो वाणी और वाचन के प्रतीक हैं।

  कहा जाता है कि चांडाल महिलाओं ने एक बार देवी पार्वती की पूजा आराधना करके अपना ही जूठन भोग में लगा दिया। यह देखकर सभी देवी देवता नाराज हो गए पर माता पार्वती ने उनकी भक्ति से प्रभावित होकर मातंगी रूप धारण किया और भोग को ग्रहण किया। अतः तभी से माता को मातंगी नाम से संबोधित किया जाने लगा। तभी से मां को जूठन का भोग अर्पित किया जाता है।

मां मातंगी जी की प्रतिमा अगर आपको वो नहीं मिलती तो आप सुपारी को ही मां का रूप समझ कर उन्हें किसी भी तांबे या कांसे की थाली में अष्ट दल बना कर उस पर स्थापित करे ओर मां से प्रार्थना करे के मां मैं आपको नमस्कार करता हूं आप इस सुपारी को अपना रूप स्वीकार करे।

ऋषियों ने कहा है – ” मातंगी मेवत्वं पूर्ण मातंगी पुर्णतः उच्यते ” इससे यह स्पष्ट होता है की मातंगी साधना पूर्णता की साधना है । जिसने माँ मातंगी को सिद्ध कर लिया फिर उसके जीवन में कुछ अन्य सिद्ध करना शेष नहीं रह जाता । माँ मातंगी आदि सरस्वती है,जिसपे माँ मातंगी की कृपा होती है उसे स्वतः ही सम्पूर्ण वेदों, पुरानो, उपनिषदों आदि का ज्ञान हो जाता है ,उसकी वाणी में दिव्यता आ जाती है ,फिर साधक को मंत्र एवं साधना याद करने की जरुरत नहीं रहती ,उसके मुख से स्वतः ही धाराप्रवाह मंत्र उच्चारण होने लगता है ।दस महाविद्याओं में मातंगी महाविद्या नवम् स्थान पर स्थित है।

जब वो बोलता है तो हजारो लाखो की भीड़ मंत्र मुग्ध सी उसके मुख से उच्चारित वाणी को सुनती रहती है । साधक की ख्याति संपूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल जाती है ।कोई भी उससे शास्त्रार्थ में विजयी नहीं हो सकता,वह जहाँ भी जाता है विजय प्राप्त करता ही है । मातंगी साधना से वाक सिद्धि की प्राप्ति होते है, प्रकृति साधक से सामने हाँथ जोड़े खडी रहती है, साधक जो बोलता है वो सत्य होता ही है । माँ मातंगी साधक को वो विवेक प्रदान करती है की फिर साधक पर कुबुद्धि हावी नहीं होती,उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है और ब्रह्माण्ड के समस्त रहस्य साधक के सामने प्रत्यक्ष होते ही है ।

9 OCT 22 – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को गुजरात में मेहसाणा के मोढेरा (Modhera)  गांव पहुंचे. यहां पीएम मोदी ने कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया. पीएम मोदी ने कहा कि मोढेरा गांव सूर्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, अब इसे सौर ऊर्जा वाले गांव के तौर पर भी जाना जाएगा.   इस दौरान पीएम मोदी ने मोढेरा को भारत का पहला सौर ऊर्जा से चलने वाला गांव भी घोषित किया. पीएम मोदी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज मोढेरा के लिए, मेहसाणा के लिए और पूरे नॉर्थ गुजरात के लिए विकास की नई ऊर्जा का संचार बना है. उन्होंने कहा कि बिजली, पानी से लेकर रोड, रेल, डेयरी से लेकर कौशल विकास और स्वास्थ्य से जुड़े अनेक प्रोजेक्ट्स का आज लोकार्पण और शिलान्यास हुआ है. पीएम मोदी ने कहा कि बीते कुछ दिनों से सूर्य ग्राम और मोढेरा को लेकर पूरे देश में चर्चा चल पड़ी है. यहां के लोग कहते हैं कि कभी सोचा भी नहीं था कि ये सपना हमारी आंखों के सामने ये सपना भी साकार हो सकता है. उन्होंने आगे कहा, “जिस मोढेरा को सदियों पहले मिट्टी में मिलाने के लिए आक्रांताओं ने क्या कुछ नहीं किया, जिस मोढेरा पर भांति-भांति के अत्याचार हुए, वो मोढेरा अब अपनी पौराणिकता के साथ-साथ आधुनिकता के लिए भी दुनिया में मिसाल बन रहा है.”

पीएम के संबोधन की अहम बातें; आज मोढेरा के लिए मेहसाणा के लिए और पूरे उत्तर गुजरात के लिए विकास की नई ऊर्जा का संचार हुआ है। कौन भूल सकता है मोढेरा के सूर्य मंदिर को ध्वस्त करने के लिए, मिट्टी में मिलाने के लिए आक्रांताओं ने क्या कुछ नहीं किया। जिस मोढेरा पर भांति-भांति के अत्याचार हुए।  बिजली पानी से लेकर रोड, रेल तक डेयरी से लेकर कौशल विकास और स्वास्थ्य से जुड़े अनेक परियोजनाओं का आज लोकार्पण और शिलान्यास हुआ है।   बीते कुछ दिनों से सूर्य ग्राम को लेकर, मोढेरा को लेकर, पूरे देश में चर्चा चल रही है। कोई कहता है कभी सोचा नहीं था कि सपना हमारी आंखों के सामने साकार हो सकता है। आज सपना सिद्ध होता देख रहे हैं। हमारी पुरानी आस्था और नई तकनीक का नया संगम यहां नजर आ रहा है। वो मोढेरा अब अपनी पौराणिकता के साथ-साथ आधुनिकता के लिए भी दुनिया में मिसाल बन रहा है।

सूर्य मंदिर की क्या है विशेषता

गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित है गांव मोढेरा. मोढेरा में स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण 1026 ई. में सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम द्वारा करवाया गया था. यह मंदिर ग्याहरवीं शताब्दी का है. इस मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के समय तक इसपर सूर्य की किरणें पड़ती हैं. यह एक पहाड़ी पर स्थित है. इस मंदिर के गर्भगृह की दीवारों पर बहुत सुंदर नक्काशी की गई है. इसकी दीवारों पर नक्काशी से पौराणिक कथाओं का चित्रण किया गया है. यह मंदिर तीन हिस्सों में विभाजित है. इस मंदिर में सूर्य कुंड, सभा मंडप और गूढ़ मंडप बना है, कुंड में जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है.

प्राचीन काल में मोढेरा नगरी ‘धर्मारण्य’ नाम से जानी जाती थी। मोढेरा, जो कि मोढेरा मातंगि का कुल स्थान है, यहाँ माताजी का प्रसिद्ध मंदिर है। दूर-दूर से माताजी को मानने वाले भक्त यहाँ उनके दर्शन करने की अभिलाषा लेकर आते हैं। मंदिर परिसर बहुत बड़ा है, जहाँ रहने और खाने की उत्तम व्यवस्था है। भक्तगण अपने मन्नतें मानते हैं और उनके पूर्ण होने पर पुन: आने की कहकर जाते हैं।

मोढेरा में मातंगी मोधेश्वरी मंदिर मोधेश्वरी माता को समर्पित है और विश्व प्रसिद्ध और विरासत मोढेरा सूर्य मंदिर के पास है। देवी मोधेश्वरी कुलदेवी हैं – मोध समुदाय की प्रमुख देवता। देवी की पूजा महान संत मतंगा मूनी ने की थी इसलिए इसे मातंगी मोधेश्वरी भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि दानव कर्नत इस क्षेत्र में ब्राह्मणों को उनकी प्रार्थना के दौरान प्रताड़ित करते हैं। इस प्रकार सुरक्षा के लिए सभी संतों ने श्री माता मोधेश्वरी की पूजा की। देवी ने प्रार्थना की और उनके मुंह से आग फेंकनी शुरू कर दी और इससे देवी मातंगी प्रकट हुईं। देवी के इस अवतार की अठारह भुजाएँ हैं, प्रत्येक के पास एक शस्त्र है। देवी मातंगी ने राक्षस का वध किया और संतों और लोगों को दानव के दर्द से मुक्त किया। चैत्र नवरात्रि के दौरान और हर महीने की पूर्णिमा पर, मंदिर में विशेष पूजा-अनुष्ठान और धार्मिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।

मोढेरा का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। मोढ़ लोग मोढेश्वरी माँ के आनुयाई हैं, जो अंबे माँ के अठारह हाथ वाले स्वरूप की उपासना करते हैं। इस तरह मोढेरा मोढ़ वैश्य व मोढ़ ब्राह्मण की मातृभूमि है। इस स्थान पर बहुत से देवी-देवताओं के चरण पड़े हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर ही यमराज (धर्मराज) ने 1000 वर्ष तक तपस्या की थी, जिनका तप देखकर देवराज इंद्र को अपने आसन का खतरा महसूस हुआ, लेकिन यमराज ने कहा कि वे तो त्रिलोक के भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप कर रहे हैं। शिव ने प्रसन्न होकर यमराज से कहा कि आज से इस स्थान का नाम तुम्हारे नाम ‘यमराज’ (धर्मराज) पर ‘धर्मारण्य’ होगा।

श्रीराम का आगमन- स्कंदपुराण और ब्रह्मपुराण के अनुसार भगवान श्रीराम भी इस स्थान पर आए थे। मान्यता के अनुसार जब भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध कर दिया, तब वे ब्राह्मण की हत्या से मुक्ति हेतु इस नगर में यज्ञ करने हेतु आए थे। जब राम यहाँ आये, तब एक स्थानीय महिला रो रही थी। सभी ने रोने का कारण जानना चाहा, लेकिन महिला ने कहा कि “मैं सिर्फ प्रभु श्रीराम को ही कारण बताऊँगी।” राम को जब यह पता चला तो उन्होंने उस महिला से कारण जानना चाहा। महिला ने बताया कि इस स्थान से यहाँ के मूल निवासी वैश्य, ब्राह्मण आदि पलायन करके चले गए हैं, उन्हें वापस लाने का उपाय करें। तब श्रीराम ने इस नगर को पुनः बसाया व सभी पलायन किए हुए लोगों को वापस बुलाया और नगर की रक्षा का भार हनुमान को दिया। लेकिन धर्मारण्य की खुशियाँ ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकीं। कान्यकुब्ज राजा कनोज अमराज ने यहाँ की जनता पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। धर्मारण्य की जनता ने राजा को समझाया कि हनुमानजी इस नगरी के रक्षक हैं। आप उनके प्रकोप से डरें, लेकिन राजा ने जनता की बात नहीं मानी। राजा से त्रस्त होकर फिर कुछ लोग कठिन यात्रा कर रामेश्वर पहुँचे, जहाँ हनुमानजी से अनुरोध किया और धर्मारण्य कि रक्षा करने का प्रभु श्रीराम का वचन याद दिलाया। हनुमानजी ने वचन की रक्षा करते हुए राजा को सबक सिखाया और नगर की रक्षा की।

इस मंदिर का न्याधार (स्तंभ के नीचे की चौकी) उल्टे कमल पुष्प के समान है। उल्टे कमल रूपी आधार के ऊपर लगे फलकों पर असंख्य हाथियों की मूर्तियां बनी हुई हैं। इसे गज पेटिका कहा जाता है। इन्हें देख ऐसा प्रतीत होता है, मानो असंख्य हाथी अपनी पीठ पर सूर्य मंदिर को धारण किए हुए हैं। मंदिर की संरचना ऐसी की गई है कि विषवों के समय, यानी 21 मार्च व 21 सितम्बर के दिन सूर्य की प्रथम किरणें गर्भगृह में स्थित मूर्ति के ऊपर पड़ती हैं। यह मंदिर तीन मुख्य भागों में बंटा है। प्रथम भाग है- गर्भगृह तथा एक मंडप से सुसज्जित मुख्य मंदिर, जिसे गूढ़ मंडप भी कहा जाता है। अन्य दो भाग हैं- सभा मंडप और एक बावड़ी। जब मंदिर का प्रतिबिम्ब इस बावड़ी के जल पर पड़ता है, तब वह दृश्य सम्मोहित कर देता है। बावड़ी की सीढ़ियां अनोखे ज्यामितीय आकार में बनाई गई हैं। सीढ़ियों पर छोटे-बड़े 108 मंदिर बने हैं। इनमें कई मंदिर भगवान गणेश और शिव को समर्पित हैं। सूर्य मंदिर के ठीक सामने की सीढ़ियों पर शेषशैया पर विराजमान भगवान विष्णु का मंदिर है। एक मंदिर शीतला माता का भी है। मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है। इसका सभामंडप एक अष्टभुजीय कक्ष है। इसमें 52 स्तंभ हैं, जो वर्ष के 52 सप्ताहों को दर्शाते हैं।

निकटतम हवाई अड्डा अहमदाबाद है। निकटतम रेलवे स्टेशन अहमदाबाद है, जो लगभग 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अहमदाबाद से ही यहां के लिए बस व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।

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