जहां मां बगलामुखी विराजमान होती हैं, वहां मन्त्र की तरंग के विज्ञान से अनजान न रहे  & मंत्र जापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता,  उत्तम स्वास्थ्य तथा सामाजिक जीवन में सम्मान & बगुलामुखी पीठ में 12 घण्टे का विशेष यज्ञ दूसरी बार होने की तैयारी & 2024 में इन राशियों पर साढ़ेसाती

15 मई 2024 बुधवार बगलामुखी जयंती के अवसर पर या उससे पूर्व अप्रैल में बगुलामुखी पीठ में 12 घण्टे का विशेष यज्ञ दूसरी बार होने जा रहा है, :जहां मां बगलामुखी विराजमान होती हैं,  वहहा क्षेत्र, वह नगर उनके न्यायिक क्षेत्र में आ जाता है ऊं ह्रीं बगलामुखि, सर्वदुष्टानां वाचं पदस्तंभय! जिंव्हा कीलय बुद्धिं विनाशयहीं ऊँ स्वाहा!!

त्राटक साधना —–त्राटक का सामान्य अर्थ है ‘किसी विशेष दृष्य को टकटकी लगाकर देखना’। मन की चंचलता को शान्त करने के लिये साधक इसे करता है। यह ध्यान की एक विधि है जिसमें किसी वाह्य वस्तु को टकटकी लगाकर देखा जाता है। विधि- त्राटक के लिये किसी भगवान, देवी, देवता, महापुरुष के चित्र, मुर्ति या चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। त्राटक का अभ्यास कम से कम ४ महीने तक करना चाहिए, तभी पूर्ण सिद्धि मिलती है। त्राटक क्रिया का सबसे पुराना और प्रचलित तरीका है दीपक की जलती लौ पर ध्यान लगाना। इसके लिए एक ऐसा कमरा चुनें, जिसमें अंधेरा बहुत हो। कमर सीधी कर दिमाग को शांत करके बैठ जाएं। त्राटक शुरू करने से पहले प्राणायाम करें। अब अपनी नजरों को जलती हुई लौ पर टिका लें। एक मिनट के सेशन के रूप में इसे करें। नकारात्मक विचारों सो मुक्ति मिलती है। त्राटक के दुवारा हम अपने शरीर की विभिन गतिविधियों को धीरे-धीरे ंंनियन्त्रित करके उस अवस्था तक पहुचते हे जिसके बाद हम ध्यान लगाकर हम परम शक्तियों से जुड़ सकते हे। तो ध्यान एक अवस्था हे जिसमे हम त्राटक के ंंमाध्यम से पहुँच सकते हे, अतः दोनो की आपस ंंमे तुलना ंंनही की जा सक्ती।

जहां मां बगलामुखी विराजमान होती हैं, वहां मन्त्र की तरंग के विज्ञान से अनजान न रहे  बुरी परिस्थितियों को टाला जा सकता है। या उसका प्रभाव इतना कम किया जा सकता है। 12 राशियों में 9 ग्रहों के विचरने से 108 प्रकार की शुभ अशुभ स्थितियों का निर्माण होता है जो हर मानव को प्रभावित करती है। हर व्यक्ति यह चाहता है उसके साथ सिर्फ अच्छी परिस्थितियाँ हो , पर बुरी परिस्थितियाँ भी आ जाती है। कलयुग में मन्त्र जप से एक तरंग का निर्माण होता है। जो मन को उर्ध्व गामी बनाते है। जिस तरह पानी हमेशा नीचे की बहता है। उसी तरह मन हमेशा पतन की ओर बढ़ता है। अगर उसे मन्त्र जप की तरंग का बल ना मिले।

द्रोणाचार्य की गौरवशाली धरती देहरादून में मां बगलामुखी ने देहरादून में विराजमान होने के लिए चन्द्रशेखर जोशी को निमित बनाया, 15 मई 2024 बुधवार बगलामुखी जयंती के अवसर पर या उससे पूर्व अप्रैल में बगुलामुखी पीठ में 12 घण्टे का विशेष यज्ञ दूसरी बार होने जा रहा है, इस महान यज्ञ में आपका विशेष सहयोग अपेक्षित है- हवन में प्रायः शुद्ध देशी घी, धार ,अगर तगर ,शहद ,चन्दन की लकड़ी और बुरादा, सप्त्म्रित्तिका ,सप्त्धन, रोली सिंदूर, कपूर ,मौली, दूध दही, हल्दी, इत्र ,तिल का तेल, केसर ,भोजपत्र ,नैवेद्य ,गुग्गुल कमलगट्टा , जटामांसी पीली सरसो  आदि का प्रयोग मुख्यतः होता है।

शास्त्रों के अनुसार मां बगलामुखी वह शक्ति हैं, जो रोग एवं शत्रु द्वारा कराये अधिकार को दूर कर देती हैं। दूसरा नाम बगलामुखी मां का दूसरा नाम पीतांबरा भी है। मां बगलामुखी ने देहरादून में विराजमान होने के लिए चन्द्रशेखर जोशी को निमित बनाया,  द्रोणाचार्य की गौरवशाली धरती देहरादून में अनेक आध्यात्मिक शक्तियां श्रद्धा का केंद्र ही नहीं बल्कि वरदान भी है  बगलामुखी को अग्नि पुराण में दस महा विद्याओं में सिद्ध विद्या कहा गया है-  यह साधक को भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है। दतिया की इस शक्तिपीठ पर मंत्रों द्वारा उन लोगों के असाध्य रोगों का उपचार भी होते देखा गया है, जिनको विशेषज्ञ चिकित्सकों ने लाइलाज घोषित कर दिया था।

जिस शहर में मां बगलामुखी विराजमान होती हैं, वह नगर वह क्षेत्र माता पर श्रद्वाभाव भक्ति रखता है तो संकटो से सदैव मुक्त रहता है। 

मान्यता है कि जिस शहर में मां बगलामुखी विराजमान होती हैं, वह नगर वह क्षेत्र माता पर श्रद्वाभाव भक्ति रखता है तो संकटो से सदैव मुक्त रहता है।  दतिया पुराना नाम दंतेश्वरी के इस मंदिर में माँ बगुलामुखी विराजमान हैं, जो दश महाविद्यायों में एक हैं। पूरी दुनिया में मां बगलामुखी के द्वापरयुगीन स्वयंभू सिद्धपीठ केवल तीन हैं—पहला नलखेड़ा शाजापुर मप्र में, दूसरा नेपाल में और तीसरा बिहार में। ये सभी अघोरी तांत्रिकों की तपस्थली है। प्रतिमा महाभारतकालीन है। यहां युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर कौरवों पर विजय पाने के लिए मां की आराधना की थी। यहां आज भी चमत्कार होते रहते हैं। देश का ऐसा ही एक अनुष्ठान स्थल ‘पीतांबरा पीठ’ दतिया में है, जो संपूर्ण भारत वर्ष में जन-मन का श्रद्धा केंद्र ही नहीं बल्कि तंत्र-साधकों को सिद्धि प्रदान करनेवाला अनुपम शक्ति सिद्ध पीठ है। इस क्षेत्र की ऐतिहासिक महत्ता को सभी स्वीकारते हैं। यहां आकर दर्शनार्थी मन वांछित फल पाते हैं । इनके दरबार में सच्चे ह्रदय से की गयी प्रत्येक प्रार्थना सुनी जाती है।

तांत्रिक साधना के लिए मध्य प्रदेश में उज्जैन और दतिया के बाद तीसरा प्रमुख स्थान है- शाजापुर जिले में नलखेड़ा का सिद्ध बगलामुखी मंदिर!  नलखेड़ा कस्बे की पूरब दिशा में श्री बड़लावदा हनुमान मंदिर, मध्य में पंचमुखी हनुमान मंदिर और कस्बे के बाहर बुद्धि के प्रतीक श्रीगणेश का मंदिर है। महाभारतकालीन मंदिर पीतांबरा पीठ को एक समर्थ शक्ति पीठ रूप में देशव्यापी प्रतिष्ठा हासिल कराने का परम् पूज्यवाद ब्रह्मलीन अनंत श्री विभूषित स्वामी जी महाराज को है! सन् १९२९ में उनका दतिया में आगमन हुआ। कहा जाता है कि महाराज (स्वामीजी) बनारस होते हुए धौलपुर (राजस्थान) से यहां आये थे। उस समय यहां पांच हजार वर्ष पुराना महाभारतकालीन और बलि देकर स्थापित किया गया था। मंदिर के बारे में किदवंती है कि यह अश्वत्थामा द्वारा स्थापित है। पहले यह स्थान घोरतम वाम मार्ग यानि तांत्रिकों का था। इसके अत्यंत उप स्वभाव के कारण रात के समय किसी का यह आ पाना संभव नहीं था। महाराजजी ने दतिया आने के पश्चात उक्त स्थल पर मां पीतांबरा का ध्यान किया था। तत्पश्चात महाराजजी को उनके दी हुए। बस जिस कुटिया में उन्हें दर्शन हुए, उसी स्थान पर ज्येष्ठ कृष्ण गुरुवार पंचमी सन् १९३४-३५ में महाराजजी ने मां-पीतांबरा देवी की स्थापना की। यह आज भी उसी स्थान पर यथावत् स्थापित है, तभी से यह स्थान पीतांबरा पीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

दतिया की माँ पीताम्बरा की 36 खास बातें  ३६ अक्षरों का मंत्र बगलामुखी का मंत्र ….३६ अक्षर का होता है। उन्हें ३६ की संख्या प्रिय है। अतः ३६००, ३६००० इसी क्रम से मंत्र जाप के अनुष्ठान विशेष प्रकार से फलदायक माने जाते हैं!  शत्रु-विनाश, मारण, मोहन, उच्चाटन और वशीकरण के लिए बगलामुखी देवी की आराधना की जाती है!  बगलामुखी की साधना वीर रात्रि (मकर रात्रि में सूर्य के होने पर चतुर्दशी, दिन मंगलवार) में विशेष प्रकार से सिद्धिप्रद मानी गयी है।  भगवती को पीत रंग विशेष प्रिय है । यही कारण है कि वह पीतांबर धारण करती हैं और उपासक भी पीले वस्त्र धारण कर पीले कनेर या पीले फूल लेकर उपासना करते हैं!

अनुष्ठान से व्यक्तिगत लाभ के अतिरिक्त यहां राष्ट्र तथा विश्व कल्याण के लिए भी अनुष्ठान होते हैं । सन् १९६२ में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया था और भारतीय सेना दबाव में थी, तब राष्ट्र-कर्तव्य को सर्वोपरि माननेवाले परम् पूज्य श्री स्वामीजी महाराज ने राष्ट्र रक्षा के लिए वूहद् अनुष्ठान किया था। दिन में सहस्र चंडी यज्ञ और अनुष्ठान के मंत्रों का जाप होता था तथा रात्रि में १० बजे से प्रातः (ब्रह्ममुहूर्त) तक देवी धूमावती का अनुष्ठान होता था। इससे चमत्कारिक प्रभाव यह हुआ कि जिस दिन यज्ञ की पूर्णाहुति हुई उसी दिन शाम को चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुलाने की घोषणा कर दी और युद्ध समाप्त हो गया।

 मंत्र जाप का प्रभाव सूक्ष्म किन्तु गहरा होता है। जब लक्ष्मणजी ने मंत्र जप कर सीताजी की कुटीर के चारों तरफ भूमि पर एक रेखा खींच दी तो लंकाधिपति रावण तक उस लक्ष्मणरेखा को न लाँघ सका। हालाँकि रावण मायावी विद्याओं का जानकार था,  मंत्रजप से पुराने संस्कार हटते जाते हैं। जापक में सौम्यता आती जाती है। और उसका आत्मिक बल बढ़ता जाता है। मंत्रजप से चित्त पावन होने लगता है। रक्त के कण पवित्र होने लगते हैं। दुःख, चिंता, भय, शोक, रोग आदि निवृत होने लगते हैं। सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलने लगती है। जैसे, ध्वनि-तरंगें दूर-दूर जाती हैं। ऐसे ही नाद-जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहरे उतर जाती है। तथा पिछले कई जन्मों के पाप मिटा देती हैं। इससे हमारे अंदर शक्ति-सामर्थ्य प्रकट होने लगता है। और बुद्धि का विकास होने लगता है। अधिक मंत्र जप से दूरदर्शन, दूरश्रवण आदि सिद्धयाँ आने लगती  अंतिम लक्ष्य परमात्म-प्राप्ति में ही निरंतर संलग्न रहे। मंत्रजापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता तथा सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है। मंत्रजप मानव के भीतर की सोयी हुई चेतना को जगाकर उसकी महानता को प्रकट कर देता है। यहाँ तक की जप से जीवात्मा ब्रह्म-परमात्मपद में पहुँचने की क्षमता भी विकसित कर लेता है। इसलिए रोज़ मन्त्र का हो सके उतना अधिक से अधिक जाप करने की अच्छी आदत अवश्य विकसित करें।

माँ मंगलग्रह से संबंधित समस्याओं की समाधान देवी हैं। बगलामुखी जयंती, बगलामुखी माता के अवतार दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। जिन्हें माता पीताम्बरा या ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहा जाता है। उसके पास पीले रंग के कपड़े के साथ माथे पर सुनहरे रंग का चंद्रमा है। माँ की पूजा दुश्मन को हराने, प्रतियोगिताओं और अदालत के मामलों को जीतने के लिए जानी जाती हैं। पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती हैं।

६४ योगिनी ६४ तन्त्र की अधिष्ठात्री देवी

चौसठ योगिनी इनको आदिशक्ति मां काली का अवतार बताया है  ६४ योगिनी ६४ तन्त्र की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। एक देवी की भी कृपा हो जाये तो उससे संबंधित तन्त्र की सिद्धी मानी जाती है। ब्रह्म वैवर्त पुराण में भी इन योगिनियों का वर्णन है लेकिन इस पुराण के अनुसार ये ६४ योगिनी कृष्ण की नासिका के छेद से ये प्रगट हुई है। इनकी संख्या 64 होने के पीछे भी कुछ तथ्य हैं । स्त्री के बिना पुरूष अधूरा है, वही पुरुष के बिना स्त्री अधूरी है । एक संपूर्ण पुरुष 32 कलाओ से युक्त होता है वही एक संपूर्ण स्त्री भी 32 कलाओ से युक्त होती है , दोनों के मिलन से बनते है 32 + 32 = 64, तो ये माना जा सकता है 64 योगिनी शिव और शक्ति जो सम्पूर्ण कलाओ से युक्त हैं उनके मिलन से प्रगट हुई हैं ।

चौसठ योगिनियों की पूजा करने से सभी देवियों की पूजा हो जाती है। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतार रूप हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।

समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं। प्रमुख रूप से आठ योगिनियां हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं

. सुर-सुंदरी योगिनी 2. मनोहरा योगिनी

3. कनकवती योगिनी 4. कामेश्वरी योगिनी

5. रति सुंदरी योगिनी 6. पद्मिनी योगिनी

7. नटिनी योगिनी 8. मधुमती योगिनी

सभी चौंसठ योगिनियों के नाम

इन चौंसठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं – 1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।

व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज

नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।

उद्धर्त्तुकामो सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्॥

“नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपञ्च (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।” डमरु के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियाँ निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का प्रकाट्य हुआ।

इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज को माना जाता है। प्रसिद्धि है कि महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण का आधार बना। माहेश्वर सूत्रों की कुल संख्या १४ है जो निम्नलिखित है।

जो इस प्रकार है। १. अ इ उ ण्। २. ॠ ॡ क्। ३. ए ओ ङ्। ४. ऐ औ च्।

५. ह य व र ट्। ६. ल ण् ७. ञ म ङ ण न म्। ८. झ भ ञ्। ९. घ ढ ध ष्। १०. ज ब ग ड द श्।

११. ख फ छ ठ थ च ट त व्। १२. क प य्। १३. श ष स र्। १४. ह ल्।

मां ने आल्हा को उनकी भक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर अमर होने का वरदान दिया

मैहर मंदिर के महंत पंडित देवी प्रसाद बताते हैं कि अभी भी मां का पहला श्रृंगार आल्हा ही करते हैं और जब ब्रह्म मुहूर्त में शारदा मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा की हुई मिलती है। मैहर माँ शारदा मंदिर में सुबह अपने आप जो दीपक जलता है उनको आल्हा और ऊदल दो भाई ही जलाते है मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। माना जाता है कि यहां मां सती का हार गिरा था इसीलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है। करीब 1,063 सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता के दर्शन होते हैं। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है।

आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्‍वीराज चौहान के साथ लड़ी थी। मां शारदा माई के भक्त आल्हा आज भी करते हैं मां की पूजा और आरती। मां ने आल्हा को उनकी भक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर अमर होने का वरदान दिया था। लोगों की मानेंं तो आज भी रात 8 बजे मंदिर की आरती के बाद साफ-सफाई होती है और फिर मंदिर के सभी कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बावजूद जब सुबह मंदिर को पुन: खोला जाता है तो मंदिर में मां की आरती और पूजा किए जाने के सबूत मिलते हैं।

निद्रा का स्तम्भन – हाँक परी महाकाली की निद्रा देबी जाये

 साधना के समय नींद आने लगती है।खासकर रात्रि कालीन साधनाओं में ऐसी समस्या होना आम बात है। वैसे तो रात्रि कालीन साधना अगर चल रही हो तो दिन में सो जाना चाहिए।पर कुछ साधनाओं में दिन में सोना तक वर्जित होता है।और यदि साधना में हलकी सी भी नींद लग जाये तो साधना खंडित होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है.ऐसी समस्याओं से मुक्ति हेतु प्रस्तुत है एक दिव्य प्रयोग।जिससे साधना में निद्रा से आप मुक्ति पा सकते है।परन्तु पहले इसे सिद्ध करना आवश्यक है।

शुक्रवार की रात्रि को उत्तर की और मुख कर बैठ जाये सामने महाकाली का कोई भी चित्र लाल वस्त्र पर स्थापित करे।आपके आसन वस्त्र भी लाल हो।गणेश पूजन,गुरु पूजन संपन्न करे।महाकाली का सामान्य पूजन करे।लोबान की अगरबत्ती जलाये,दूध से बनी कोई मिठाई का भोग लगाये।शुद्ध घी का दीपक हो। एक नारियल भी माँ के पास रखे।अब रुद्राक्ष माला से मंत्र की ९ माला जाप करे।अगले दिन मिठाई स्वयं खा ले।नारियल देवी मंदिर में अर्पण कर दे।इस प्रकार मात्र एक रात्रि में ये मंत्र सिद्ध हो जाता है। अब जब भी आपको रात्रि में साधना करना हो दोनों नेत्रों पर अपने हाथ रखे और मंत्र को २१ बार पड़कर माँ से प्रार्थना कर ले जब तक आपकी साधान चलेगी आपकी निद्रा का स्तम्भन हो जायेगा।साधना के बाद माँ से प्रार्थना करके आँखों में पानी के छीटे मारे इससे पुनः नींद आने लगेगी।

भक्ति करन बैठे माई, निद्रा देबी सताए,

हाँक परी महाकाली की निद्रा देबी जाये ||

2024 में इन राशियों पर  साढ़ेसाती इन उपायों से मिलेगी राहत

सन 2024 में शनि कुम्भ राशि में भ्रमणशील रहेंगे। शनि कुंभ राशि में 17 जनवरी 2023 से ही आकाशमण्डल में गतिमान हैं। अतः इनकी साढ़ेसाती वर्ष 2024 में मकर, कुम्भ और मीन राशि वाले लोगों पर रहेगी, जबकि वृश्चिक और कर्क राशि वालों पर शनि की ढैय्या रहेगी। कुंभ राशि वालों को मध्य की साढ़ेसाती शनि के प्रभाव से परिश्रम अधिक करना पड़ेगा। सही दिशा में परिश्रम करने से परिणाम स्वरूप लाभ प्राप्त होगा, शनि के अतिरिक्त जन्मकुण्डली में स्थित अन्य ग्रहों के अनुसार साढ़ेसाती के शुभाशुभ फलों में परिवर्तन संभव है। इसलिए जन्मपत्री की ग्रहदशा के अनुसार शुभाशुभ फलों का आकलन करें। मात्र अपनी राशि पर शनि की साढ़ेसाती अथवा ढैय्या देखकर भयभीत न हों। मीन राशि वालों पर साढ़ेसाती चढ़ रही है। इस चढ़ती हुई साढ़ेसाती के प्रभाव से गलत निर्णय ले सकते हैं, इसके लिए इससे बचने का प्रयास करना चाहिए। आप से कोई गलत फैसला न हो इसका उपाय अवश्य करें वर्ना गंभीर नुकसान झेलना पड़ सकता है।

शनि ग्रह सन 2024 ई. में 29 जून से 15 नवम्बर तक कुंभ राशि में वक्री रहेंगे और इसी अवस्था में कुंभ राशि में भ्रमण करेंगे। इस अवधि में प्रतिदिन शनि चालीसा का पाठ करना अत्यन्त कल्याणकारी रहेगा। शनि से पीड़ित व्यक्ति वैदिक मंत्रों से शनि की शांति कराएं जो वैदिक मंत्रों का जाप किसी कारणवश न करा पाएं, वे काले घोड़े की नाल का छल्ला शनिवार के दिन बनवाकर तेल में चेहरा देखकर शनि का दान कर धारण करें,

किसी के सिर पर साढ़ेसाती चढ़ती है किसी के पैरों सेसाढ़ेसाती उतर जाती है कुछ लोगों के मध्य पेट में साडेसाती रहती है मध्य पेट में साढ़ेसाती रोग देती है  ग्रह नक्षत्रम् शोध संस्थान प्रयागराज के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार मकर राशि वालों पर उतरती हुई साढ़ेसाती के प्रभाव से जन्मकुण्डली के अन्य ग्रह अच्छे होने पर अथवा जन्मकुण्डली में शुभ दशा के प्रभाव से व्यापार में उन्नति के संकेत प्राप्त हो रहे हैं। हालांकि मकर राशि वालों को शनिवार के दिन शनि के निमित्त किसी गरीब व्यक्ति को भोजन आदि अवश्य कराना चाहिए।

ज्योतिष के अनुसार मनुष्य के जीवन पर ग्रहों और उनकी चाल पर गहरा असर पड़ता है। इसमें सबसे अधिक प्रभावी ग्रहों में गुरु, शुक्र, सूर्य और शनि का नाम आता है। इसमें भी मान्यता यह है कि शनि की दृष्टि से कोई व्यक्ति रंक से राजा और कोई राजा से रंक बन सकता है। साथ ही शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का डर तो अक्सर लोगों में होता है।

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