द्रौपदी बोली, घोर से घोर विपत्ति भी आए तो रिश्तेदार की शरण में मत जाना & पितृ कौन होते हैं? & कब काल बुद्धि मलिन कर देता हैं & किसका ध्यान करते हैं ; माता ने भगवान भोलेनाथ से प्रश्न किया & रोग, शोक, डिप्रेशन सभी को दूर भगाए?

भविष्य में कभी तुम पर घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना। सीधे भगवान की शरण में जाना।

& पितृ कौन होते हैं? हमारे शरीर के अन्दर दो शरीर और होती है। जिसे सूक्षम शरीर और कारण शरीर कहते हैं। अर्थात इस जगत में जो दृश्यमान शरीर है, उसे स्थूल शरीर कहते हैं। इसके अंदर दूसरी पर्त है, उसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं और शरीर की तीसरी पर्त को कारण शरीर कहते हैं।

& बुरे समय की छाया  में काल बुद्धि मलिन कर देता हैं

 आप किसका ध्यान करते हैं ; माता सती ने भगवान भोलेनाथ से प्रश्न किया 

BY CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR ;9412932030

अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाड़ू लगा रही थी तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, “पुत्री भविष्य में कभी तुम पर घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना। सीधे भगवान की शरण में जाना।” उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली, “आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता ?”

द्रौपदी बोली, “क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है। जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए। फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया। मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे। पितामह भीष्म, द्रोण धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा, वह सभी आँखें झुकाए आँसू बहाते रहे। सबसे निराशा होकर मैंने श्रीकृष्ण को पुकारा, “आपके सिवाय मेरा और कोई भी नहीं है, तब श्रीकृष्ण तुरंत आए और मेरी रक्षा की।”

जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्री कृष्ण बहुत विचलित होते हैं। क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था। रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है। रूकमणि बोलती हैं, “आप जाएँ और उसकी मदद करें।” 

श्री कृष्ण बोले, “जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे जा सकता हूँ। एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूँगा। तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई थी। उस समय “मेरी सभी पत्नियाँ वहीं थी। कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई। मगर उस समय मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बाँध दिया। आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है, लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं जा नहीं सकता।” अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े गए।

यदि मरणोपरांत आत्मा को अपने कर्मों के अनुसार शरीर प्राप्त हो जाता है, तो पितृ कौन होते हैं?

हमारे शरीर के अन्दर दो शरीर और होती है। जिसे सूक्षम शरीर और कारण शरीर कहते हैं। अर्थात इस जगत में जो दृश्यमान शरीर है, उसे स्थूल शरीर कहते हैं। इसके अंदर दूसरी पर्त है, उसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं और शरीर की तीसरी पर्त को कारण शरीर कहते हैं।

सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, मन और इन्द्रिय होता है। इसी सूक्षम शरीर के अन्दर आत्मा का निवास होता है। कारण शरीर प्रकृति (कच्चे माल)की भान्ति है। स्थूल शरीर मास्क (आवरण) की तरह है। आत्मा केवल आवरण बदलती है यानि स्थूल शरीर त्यागती है और सूक्ष्म शरीर के साथ प्रकृति में विलीन हो जाती है।

अर्थात दिवंगत आत्माओं का अस्तित्त्व सूक्ष्म शरीर के रूप में रहता है। इस सूक्ष्म शरीर में जन्म- जन्मान्तर की स्मृतियाँ इच्छाओं के रूप में समाहित रहती हैं। इन्हीं इच्छाओं को पूरा करने के लिए जीव बार -बार जन्म -मरण के चक्रव्यूह में फँसा रहता है।

अतः मरणोपरांत सूक्ष्म शरीर के रूप में विद्यमान अपने पूर्वजों को पितृ कहते हैं।

शरीर के रहस्य को योगी जन ध्यान के माध्यम से अनुभव/समझ/देख सकते हैं। ध्यान की परम अवस्था समाधि में पहूँचने पर सूक्ष्म शरीर के पाँच कोशों के अन्दर आत्म का साक्षात्कार प्राप्त किया जा सकता है।

बुरे समय की छाया  में काल बुद्धि मलिन कर देता हैं

रामचरितमानस के अनुसार जब रावण को पता चला कि श्री राम ने समुद्र पर सेतु बांध लिया है तो उसने अपने दस मुख से कौन सा दोहा बोला था?

जब हनुमान जी लंका जला गए और सीता माता की खोज खबर ले गए तथा रावण के दरबार मे उसे ज़लह दे गए कि श्री राम भगवान विष्णु का अवतार है अप्य जाकर अपने कुकृत्य के लिए माफी मांग लो और सीता माता को आदर ज़ाहित वापिस कर दो तो वे तुम्हे माफ कर देंगे।इन सबके बाद हनुमान जी ठीक तरह वापिस लौट गए फिर यही से रावण की चिंता शुरू हो गयी और उसने श्री राम की गतिविधियों की हर समय खबर देने के लिए अपने जसुस सक्रिय कर दिए।

कब राम जी को हनुमान ने खबर दी कब श्री राम ने वानर सेना के साथ लंका अभियान की शुरुआत की कब सेना समुद्र तट पर पहुंची, कब पल बना पुल बनवाने में क्या क्या कष्ट हुए और कब श्रीराम की वानर सेना लंका में पुल पर कर प्रवेश की यह सब सूचनाएं उसे जदुसों ने ठीक समय पर दी। शती राम की हर गतिविधि और सेन के सामर्थ्य का भी वर्णन बताया। विभीषण और माल्यवंत ने रावण को भरी सभा मे लंका में भी समझाया और सीता अपहरण की आलोचना की एवम राक्षस कुल के हिट में सीता की सादर वापिसी का सुझाव भी दिया। तब क्रोधित होकर रावण ने विभीषण पर पद प्रहार किया और रावण को क्रुद्ध देख माल्यवंत सभा से खिसक लिया।

श्री रामचरित मानस के अनुसार प्रश्न में जो दोहा पूछा है जिसे रावण ने समुद्र पर सेतु बना लेने की खबर मिलने पर रावण ने कहा था , व्ह निम्न है।

इस अवसर पर रावण क्या बोलता है जब उसे समुद्र पर सेतु बंधने की खबर उसके जासुस देते है? दसमुख अर्थात रावण न कि उसने दस मुखों से दोहा कहा।

बांध्यो बन निधि नीर निधि जलधि सिंधु बारीस। सत्य तोयनिधि कम्पति उदधि पयोधि नदीश।।

यह लंका कांड का पांचवा दोहा है। ये सब खबर सुन कर रावण वेचेंन हो जाता है। उसे यकीन नही होता है कि कोई मानव समुद्र पर सेतु भी इतनी जल्दी बांध सकता है और व्याकुलता में सभा छोड़कर महल को जाता है। अब उसे कहीं भी तसल्ली नही मिलती। वह वास्तव में मन मे घबड़ा जाता है लेकिन उज़क अचम और सीता के लिए मोह उसके बुदफ़ही को नष्ट कर देता है। इतने सब के बाद भी प्रभु के शक्ति को समझ कर भी मानने को राजी नही है। बुरे समय की छाया उस पर पड़ रही है।काल बस है। बुद्धि मलिन हो गयी है।

वहां मंदोदरी यह सुनकर फिर रावण को समझाती है और मधुर वाणी में अच्छी भाषा मे उसके पैर पकड़कर सिर को चरणों मे रखकर विनयपूर्वक रावण से सीता को वापिस करने प्रभु श्री राम से क्षमा मांग लेने को कहती है और मेघनाथ को राज्य सौंपकर वानप्रस्थ अपनाने का अनुरोध करती है।

 आप किसका ध्यान करते हैं ; माता सती ने भगवान भोलेनाथ से प्रश्न किया 

प्रश्न माता सती ने भगवान भोलेनाथ से किया था कि जब आप ही सृष्टि के रचयिता है आप ही सर्वप्रथम है तो फिर आप किसका ध्यान करते हैं

भोलेनाथ ने उत्तर दिया था की त्रेता युग में श्री हरि विष्णु एक अवतार लेंगे श्री रामचंद्र जी का अवतार मैं उन्हीं राम का ध्यान करता हूं मैं पूरी तरह से उन्हीं को समर्पित हूं। और इसीलिए उन्होंने त्रेता युग में अपने 11 रुद्र के रूप में बजरंगबली का रूप लिया इसीलिए तो बजरंगबली श्री राम के सबसे बड़े भक्त हैं क्योंकि वह शिवांश है महादेव के ही ऐसे हैं अन्यथा इतना बड़ा भक्त होना अन्य किसी के लिए संभव कहां हो सकता है । 

ध्यान की मुद्रा में चाहे शिव शंकर हूं या श्री विष्णु वह ध्यान द्वारा इस प्रकृति को इस सृष्टि को संचालित करते हैं और इसमें संतुलन बनाए रखते हैं और इसीलिए वह अधिकतर ध्यान अवस्था में रहते हैं।

रोग, शोक, डिप्रेशन सभी को दूर भगाए?

शक्तिशाली निशुल्क उपाय है, जिसके द्वारा किसी भी व्यक्ति का जीवन में उत्पन्न रोग, शोक, डिप्रेशन, मनोरोग, कष्ट विकार सभी का नाश होगा। उपाय  बहुत कारगर है  श्मशान घाट में  सिर्फ 2 घंटा वहां जाकर बैठ जाएं। जलती चिताओं को देखें। चिताओं की लपटों में खो जाएं। आपको अपनी सारी तकलीफ, चिंता, दुख, परेशानी, कर्ज, झगड़े, बेरोजगारी, बीमारी सब उन चिंताओं की आग में जलती हुई दिखाई देंगी। 1 मिनट के लिए सोचे कि आप से पहले भी आपसे अच्छे लोग आए थे और आप के बाद भी होंगे लेकिन सब की अंतिम अवस्था बस एक लोटा भर राख है, फिर जेब से अपने परिवार की फोटो निकाल कर एक बार सबका चेहरा देखें फिर सोचे कि बाबा भोलेनाथ महादेव ने आपके परिवार के रूप में कितनी कीमती तोहफा आपको दिया है। फिर एक लोटा खरीदें उसमें गंगाजल लेकर अपनी सारी परेशानियों को उस गंगाजल में घोलकर भगवान को अर्पित कर दें। त्रिपुंड लगाकर लौट आएं और भरोसा रखें जो भगवान कामदेव को 1 सेकंड में भस्म कर सकते हैं। वह भोले बाबा आपकी परेशानी को भीभस्म कर देंगे। तो बोलना पड़ेगा ओम नमः शिवाय  

by Chandra Shekhar Joshi Editor Mob 9412932030

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