आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्चैव महेश्वरी, वायो: सूर्य: क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिप:- श्रीगणेश अंक में लिखा है

19 July 20: Himalayauk (Newsportal & Print Media) Chandra Shekhar Joshi- Editor in Chief.

पंचतत्वों में पृथ्वी तत्व के देवता हैं शिव # श्री गणेश अंक में लिखा है कि-

आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्चैव महेश्वरी।वायो: सूर्य: क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिप:॥

इस श्लोक का सरल अर्थ यह है कि पंचतत्वों में आकाश तत्व के देवता विष्णु, अग्रि तत्व देवी दुर्गा, वायु तत्व के सूर्य, पृथ्वी तत्व के शिव और जल तत्व के देवता गणेशजी हैं। गर्मी में पृथ्वी से जल वाष्प बनकर उड़ जाता है, और सावन में पृथ्वी तत्व यानी की शिवजी पर पुन: जल तत्व वर्षा द्वारा अभिषेक करता है। पृथ्वी जल से तृप्त हो जाती है। पृथ्वी तत्व होने के कारण ही शिव का पार्थिव पूजन किया जाता है।

चन्‍द्रशेखर जोशी मुख्‍य सम्‍पादक.हिमालयायूके वेब एण्‍ड प्रिन्‍ट मीडिया & General Secretary: Kurmanchal Parishad Dehradun & President Uttrakhand: IFSMN (National Federation) – मो0 9412932030

शिवरात्रि पर इस बार 4 वक्री ग्रहों का योग भी बन रहा है. शिवरात्रि पर 4 ग्रहों की चाल उल्टी-   ज्योतिषाचार्य डॉ. अरुणेश कुमार शर्मा के मुताबिक, शनि, गुरु, राहु और केतु की उल्टी चाल सितंबर तक 6 राशियों (मेष, वृषभ, मिथुन, सिंह, मकर और कुंभ) को धन लाभ देगी.  

ये महीना 3 अगस्त तक रहेगा। इस साल सावन माह में गुरु, शनि, राहु और केतु चारों ग्रह एक साथ वक्री रहेंगे। 2020 से पहले ऐसा योग 558 साल पहले 1462 में बना था।  उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक 558 साल पहले 1462 में भी गुरु, शनि, राहु-केतु एक साथ वक्री थे और सावन आया था। गुरु स्वयं की राशि धनु में वक्री, शनि अपनी राशि मकर में वक्री, राहु मिथुन में और केतु धनु राशि में वक्री था। ऐसा ही योग 2020 में भी बना है। उस समय सावन 21 जून से 20 जुलाई 1462 तक था।

इस साल सावन माह में चतुग्रर्ही वक्री योग बना है। गुरु, शनि, राहु और केतु चारों ग्रह एक साथ वक्री रहेंगे।इस साल सावन माह में चतुग्रर्ही वक्री योग बना है। गुरु, शनि, राहु और केतु चारों ग्रह एक साथ वक्री रहेंगे। सोमवार से शुरू और सोमवार को ही सावन खत्म होने से इस माह का महत्व और अधिक बढ़ गया है। राहु-केतु तो वक्री रहते हैं, लेकिन उन्हीं के साथ गुरु और शनि भी वक्री हो गए हैं, सावन में यह दुर्लभ योग है। गुरु स्वयं की राशि धनु में वक्री, शनि अपनी राशि मकर में वक्री, राहु मिथुन में और केतु धनु राशि में वक्री हैं।  हरियाली अमावस्या 20 को, हरियाली तीज 23 को, विनायकी चतुर्थी व्रत 24 को, नाग पंचमी 25 को, पुत्रदा एकादशी 30 को और रक्षा बंधन तीन अगस्त को मनाया जाएगा। तीज पर देवी पार्वती, चतुर्थी पर गणेशजी, पंचमी पर नागदेवता, एकादशी पर विष्णुजी, अमावस्या पर पितर देवता और पूर्णिमा पर चंद्रदेव की विशेष पूजा करनी चाहिए। शनिवार, 25 जुलाई को नाग पंचमी है।

सावन माह में लगातार बारिश होती है। इस कारण कई तरह के छोटे-छोटे जीवों की उत्पत्ति होती है। कई प्रकार की विषैली नई घास और वनस्पतियां उगती हैं। जब दूध देने वाले पशु इन घासों को और वनस्तपतियों को खाते हैं तो पशुओं का दूध विष के सामान हो जाता है। ऐसा कच्चा दूध पीने से हमारे स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। इसीलिए इस माह में कच्चे दूध के सेवन से बचना चाहिए। शिवजी ने विषपान किया था, इस कारण सावन माह में शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया जाता है। इस माह हरी सब्जियां खाने से बचना चाहिए, क्योंकि सब्जियों में भी कई तरह के हानिकारक सूक्ष्म कीटाणु चिपके रहते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस समय ऐसा भोजन करें जो जल्दी पच सके।

सावन पांचवां हिंदी माह है। इसके स्वामी वैकुंठनाथ हैं और श्रवण नक्षत्र में इसकी पूर्णिमा आने से इसे श्रावण या सावन माह कहा जाता है। श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्रदेव हैं। चंद्र का एक नाम सोम भी है। चंद्रवार को ही सोमवार कहते हैं। शिवपुराण के अनुसार शिवजी और पार्वतीजी का विवाह मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, उस दिन सोमवार ही था। इस साल ये तिथि 19 दिसंबर को रहेगी। रोहिणी नक्षत्र के स्वामी भी चंद्र हैं। चंद्रदेव को शिवजी ने अपने मस्तक पर स्थान दिया है। पार्वतीजी के साथ विवाह सोमवार को होने से और चंद्रदेव का वार होने से भी शिवजी को सोमवार विशेष प्रिय है। सोम यानी चंद्र शीतल ग्रह है। शिवजी ने विषपान किया था, जिससे उन्हें बहुत ज्यादा तपन होती है, इसलिए शिवजी शीतलता देने वाली चीजों को पसंद करते हैं। इसलिए उन्होंने चंद्र को मस्तक पर धारण किया है। चंदन, बिल्व पत्र, जलाभिषेक, दूध, दही, घी, शहद ये सभी चीजें भी ठंडक देने वाली हैं। हल्दी गर्म रहती है, इस वजह शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए। जिसके घर पर शिवलिंग न हो, वह आंगन में लगे किसी पौधे को शिवलिंग मानकर या मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उसका पूजन कर सकते हैं। मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूजन करने को ही पार्थिव शिवपूजन कहा जाता है। ये पूजा शुभ फल देने वाली मानी जाती है।

सोमवार, 20 जुलाई को हरियाली अमावस्या है। इस तिथि पर पितर देवता के लिए धूप-ध्यान और श्राद्ध-तर्पण किया जाता है। इस बार सोमवार होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। ये सोमवती अमावस्या भी है।

गुरुवार, 23 जुलाई को हरियाली तीज है। इस तिथि पर दांपत्य सुख और अखंड सौभाग्य के लिए माता पार्वती की पूजा के साथ व्रत और उपवास किया जाता है।

शुक्रवार, 24 जुलाई को विनायकी चतुर्थी है। इस दिन भगवान गणपति के लिए व्रत किया जाता है।

शनिवार, 25 जुलाई को नाग पंचमी है। इस तिथि पर नाग देवता की विशेष पूजा की जाती है। इसके साथ पितरों की पूजा की भी परंपरा है।

गुरुवार, 30 जुलाई को पुत्रदा एकादशी है। इस दिन संतान सुखा के लिए भगवान विष्णु की पूजा के साथ व्रत और उपवास किया जाता है।

शनिवार, 1 अगस्त को प्रदोष व्रत रहेगा। ये आखिरर सावन सोमवार से पहले भगवान शिव की विशेष पूजा का दिन है। इस दिन व्रत करने से हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं।

सोमवार, 3 अगस्त को सावन महीने का आाखिरी दिन रहेगा। इस दिन पूर्णिमा तिथि और श्रवण नक्षत्र के संयोग में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाएगा।

राहु-केतु कब राशि बदलेंगे?

इस राशि राहु-केतु का भी राशि परिवर्तन होगा। ये ग्रह 18 माह में राशि बदलते हैं और हमेशा वक्री रहते हैं। मंगलवार, 22 सितंबर की रात राहु और केतु भी राशि बदलेंगे। राहु राशि बदलकर मिथुन से वृषभ में प्रवेश करेगा और केतु राशि बदलकर धनु से वृश्चिक में जाएगा। वृषभ राहु की मित्र राशि और वृश्चिक केतु की मित्र राशि है। राहु के कुप्रभाव को दूर करने के लिए राहु के मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए. इस मंत्र का जाप रात के समय करना चाहिए और शनिवार से मंत्र जाप आरंभ करने चाहिए.

राहु का वैदिक मंत्र – Vedic Mantra for Rahu
ऊँ कयानश्चित्र आभुवदूतीसदा वृध: सखा । कयाशश्चिष्ठया वृता ।

राहु का तांत्रोक्त मंत्र – Tantrokta Mantra for Rahu

  • ऊँ ऎं ह्रीं राहवे नम:
  • ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
  • ऊँ ह्रीं ह्रीं राहवे नम:

नाम मंत्र – Naam Mantra for Rahu
ऊँ रां राहवे नम:

राहु का पौराणिक मंत्र – Poranik Mantra for Rahu
ऊँ अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम ।।

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