शांति, विनाश, समय, योग, ध्यान, नृत्य, प्रलय और वैराग्य के देवता, सृष्टि के संहारकर्ता और जगतपिता
चंद्रशेखर जोशी मुख्य संपादक हिमालयायूके — सनातनधर्मावलंबियों में पांच देवों को प्रमुख माना गया है, जिनमें श्री गणेश, श्री हरि विष्णु, मां दुर्गा, देवों के देव महादेव व सूर्य देव हैं। इन पांच देवों में से कलयुग में केवल सूर्य देव को ही दृश्य देव माना गया है। बाकि सभी देवों को कलयुग में अदृश्य देव माना गया है। इन आदि पंच देवों में से एक भगवान भोलेनाथ भी हैं। जिन्हें संहार का देवता माना जाता है। वहीं इनके आसानी से प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान प्रदान करने के चलते इन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता हैं भोलेनाथ यायिन भगवान शिव यूं ही भोले और औढर दानी नहीं कहलाते हैं। तभी तो एक पुरातन कथा के अनुसार एक लकड़हारा जब किसी कारणवश एक बेल के पेड़ पर चढ़ा तो कुछ पत्तियां टूट कर शिव-लिंग पर गिर गई। वहीं इसी दौरान उसका पानी से भरे लोटे का पानी भी पेड़ से ही शिव-लिंग पर जा गिरा, ऐसे में भगवान शिव ने इसे पूजा मानकर उसके सारे दु:ख दूर कर देते हैं।
मान्यता के अनुसार भोलेनाथ की कृपा इन भक्तों पर ही नहीं रही बल्कि देवताओं और अन्य जीवों पर भी रहती है। उनके गले में नाग, जटा में गंगा, सिर पर चंद्रमा और हाथ में त्रिशूल-डमरू इसी बात का प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप भगवान शिव के इन्हें धारण करने का उद्देश्य और रोचक किस्से के बारे में जानते हैं, क्योंकि कई चीजें ऐसी भी हैं, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं…
भोलेनाथ : हाथों में त्रिशूल…
सृष्टि के आरंभ से ही भोलेनाथ के हाथों में त्रिशूल का जिक्र मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब शिव जी प्रकट हुए तो उनके साथ ही सत, तम और रज ये तीन गुण भी उत्पन्न हुए, जो कि त्रिशूल के रूप में बदल गए। क्योंकि इन गुणों में सामंजस्य बनाए रखना बेहद आवश्यक था, तो भोलेनाथ ने इन तीनों गुणों को त्रिशूल रूप में अपने हाथ में धारण किया।
भगवान शिव ने जिस तरह से सृष्टि में सामंजस्य बनाए रखने के लिए सत, रज और तम गुण को त्रिशूल रूप में धारण किया था। ठीक उसी प्रकार सृष्टि के संतुलन के लिए उन्होंने डमरू धारण किया था।
एक कथा के अनुसार जब देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ तो उन्होंने वीणा के स्वरों से सृष्टि में ध्वनि का संचार किया। लेकिन कहा जाता है कि वह ध्वनि सुर और संगीत हीन थी। तब भोलेनाथ ने नृत्य किया और 14 बार डमरू बजाया। मान्यता है डमरू की उस ध्वनि से ही संगीत के धुन और ताल का जन्म हुआ। डमरू को ब्रह्मदेव का भी स्वरूप माना जाता है।
भगवान शिव : नागराज वासुकी…
भगवान शिव के गले में लिपटे हुए नाग को देखकर कई बार आपके मन में भी ख्याल आता होगा कि आखिर क्यों शिवजी उसे अपने गले में स्थान देते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार नागराज वासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे।
वह सदैव ही उनकी भक्ति में लीन रहते थे। इसी बीच सागर मंथन का कार्य शुरू हुआ तब रस्सी का काम नागराज वासुकी ने किया। उनकी भक्ति को देखकर भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने वासुकी को उसे अपने गले से लिपटे रहने का वरदान दिया। इस तरह नागराज वासुकी अमर भी हो गए और भगवान शिव के गले से लिपट कर रहने लगे।
शुक्ल यजुर्वेद संहिता के अंतर्गत रुद्र अष्टाध्याई के अनुसार सूर्य इंद्र विराट पुरुष हरे वृक्ष, अन्न, जल, वायु एवं मनुष्य के कल्याण के सभी हेतु भगवान शिव के ही स्वरूप है भगवान सूर्य के रूप में वह शिव भगवान मनुष्य के कर्मों को भली-भांति निरीक्षण कर उन्हें वैसा ही फल देते हैं आशय यह है कि संपूर्ण सृष्टि शिवमय है मनुष्य अपने अपने कर्मानुसार फल पाते हैं अर्थात स्वस्थ बुद्धि वालों को वृष्टि जल अन्य आदि भगवान शिव प्रदान करते हैं और दुर्बुद्धि वालों को व्याधि दुख एवं मृत्यु आदि का विधान भी शिवजी करते हैं।
भोलेनाथ : जटा में धारण की गंगा…
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए गंगा का पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया। इससे मां गंगा प्रसन्न हुईं और वह पृथ्वी पर आने को तैयार हो गईं। लेकिन उन्होंने भागीरथ से कहा कि उनका वेग पृथ्वी सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी।
ॐ नमः शिवाय मंत्र का अर्थ है कि ‘मैं भगवान शिव को नमन करता हूँ। ये शिव मंत्रों में सबसे प्रसिद्ध मंत्र है। मान्यता के अनुसार सावन में प्रतिदिन इसका जाप भगवान शिव को तुरंत प्रसन्न करता है, वहीं शिवरात्रि के दिन इसका 108 बार जप करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस मंत्र का सही उच्चारण शांत मानसिकता, आध्यात्मिकता का आह्वाहन कर आत्मा की शुद्धि करता है…
शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है। शंंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय [मृत्यु पर विजयी], त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति [पार्वती के पति], काल भैरव, भूतनाथ, ईवान्यन [तीसरे नयन वाले], शशिभूषण आदि। भगवान शिव को रूद्र नाम से जाता है रुद्र का अर्थ है रुत दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है। रुद्राष्टाध्याई के पांचवी अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूप वर्णित है रूद्र देवता को स्थावर जंगम सर्व पदार्थ रूप सर्व जाति मनुष्य देव पशु वनस्पति रूप मानकर के सराव अंतर्यामी भाव एवं सर्वोत्तम भाव सिद्ध किया गया है इस भाव से ज्ञात होकर साधक अद्वैत निष्ठ बनता है।
रूद्र मंत्र…
ॐ नमो भगवते रुद्राय।।
इस मंत्र का अर्थ है कि ‘ मैं पवित्र रूद्र को नमन करता हूँ। माना जाता है कि इस मंत्र के जाप से आपकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। भगवान शिव का अपार आशीर्वाद आपके ऊपर बना रहता है। इस मंत्र को रूद्र मंत्र के जाप से भी जाना जाता है।
रूद्र गायत्री मंत्र…
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।।
अर्थात ॐ, मुझे अपना सारा ध्यान सर्वव्यापी भगवान शिव पर केंद्रित करने दो। मुझे ज्ञान का भंडार दो और मेरे हृदय में रूद्र रूपी प्रकाश भर दो। गायत्री मंत्र हिन्दू मंत्रो में सबसे शक्तशाली मंत्रो में से एक है। वैसे ही ये रूद्र गायत्री मंत्र भी बेहद शक्तिशाली है। माना जाता है कि इस मंत्र का जाप मन की शांति और ज्ञान का अपार प्रकाश आपको स्थिर मानसिकता प्रदान करता है।
महा मृतुन्जय मंत्र…
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि-वर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनं मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
अर्थात, ‘ॐ’ हम आपको मानते और आपकी पूजा करते है। ‘हे शिव’ आप खुशहाली और जीवन की सुगंध हो। जो हमारा संचालन करता है, हमें निरोगी काया प्रदान करता है। और हमे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। जिस तरह ककड़ी का तना कमज़ोर होने से वह टूट कर बेल से मुक्त हो जाती है। उसी प्रकार हमे भी मृत्यु के भय से मुक्त कर अमरता का आशीर्वाद प्रदान करें।
इस मंत्र का जाप तब किया जाता है जब किसी एकाएक अनहोनी का डर मन को विचलित करने लगता है। ऐसे में इसके जाप से आपको अनजान भय से मुक्ति मिलती है। मन में शक्ति का आह्वान होता है। कई विद्वान इस मंत्र को शारीरिक, मानसिक और स्वास्थय के लिए बेहद फायदेमंद मानते है।
दारिद्र्य दहन स्तोत्रम…
वशिष्ठेन कृतं स्तोत्रम सर्वरोग निवारणं, सर्वसंपर्काराम शीघ्रम पुत्रपौत्रादिवर्धनम।।इस मंत्र का अर्थ है कि ‘ हमारे सभी रोगों से मुक्ति मिले। साथ ही स्मृति की प्राप्ति हो और एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकें। मान्यता के अनुसार इस मंत्र के जाप से आपको धन और अच्छे भविष्य की प्राप्ति होगी। ये बुराई, गरीबी और रोगों को दूर करने का मंत्र है। कहा जाता है कि इस मंत्र के जाप से आपको और आपके बच्चों को रोगो से मुक्ति और घर में शांति बनी रहेगी।
भगवान शिव : सिर पर चंद्रमा को किया धारण…
शिव पुराण में एक कथा आती है, जिसके अनुसार भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा धारण किया। कथा के अनुसार महाराज दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था। लेकिन चंद्रमा रोहिणी से अत्यधिक प्रेम करते थे। दक्ष की पुत्रियों ने इसकी शिकायत की। तब दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रसित होने का शाप दिया।इससे बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की पूजा की। भोलेनाथ चंद्रमा के भक्ति भाव से प्रसन्न हुए और उनके प्राणों की रक्षा की। साथ ही चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया। लेकिन आज भी चंद्रमा के घटने-बढ़ने कारण महाराज दक्ष का शाप ही माना जाता है।