29 अगस्त; वामन पूजन दिवस – ऋषि, ब्राह्मण, गौ व महिलाओं के शोक को हरने के लिए श्रीहरि विष्णु का वामन अवतार हुआ

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत कल 29 अगस्त दिन शनिवार को रखा जाएगा. यह व्रत भगवान विष्णु के भक्त यानी वैष्णव रखते हैं. भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन 4 महीनों के लिए सो जाते हैं. देवउठनी एकादशी पर उठते हैं # इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं। : भगवान वामन अवतरण दिवस # बिना अस्त्र-शस्त्र के दैत्यों के आतंक से निजात दिलाने की यह पहली घटना थी। जिसमें भगवान वामन ने तीन डगों से तीन लोकों को मापकर राजा बलि को परास्त कर दिए थे और इसके माध्यम से अहिसा का संदेश दिए: परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा

29 अगस्त वामन जयंती पर “हिमालयायूके” संपादक चंद्रशेखर जोशी ने वामन पूजन दिवस पर हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं देते हुए बताया कि ऋषि, ब्राह्मण, गौ व महिलाओं पर जुल्‍म बढने तथा हाहाकार मचने पर भक्तों के शोक को हरने के लिए ब्रह्मा के निवेदन पर श्रीहरि विष्णु वामन के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिए। 

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वामन जयंती हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इसे वामन द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। 2020 में, वामन जयंती 29 अगस्त को मनाई जाएगी। किंवदंतियों के अनुसार, भगवान विष्णु के पांचवे अवतार भगवान वामन का जन्म इसी दिन श्रवण नक्षत्र में हुआ था।

परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इस एकादशी पर श्री हरि शयन करते हुए करवट लेते हैं इसलिए इसे एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसे पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और मनुष्य के समस्त पाप नष्ट होते हैं। यह देवी लक्ष्मी का आह्लादकारी व्रत है इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन करना श्रेष्ठ माना गया है।

29 अगस्त 20 : वामन जयंती पर दक्षिणावर्ती शंख में गाय का दूध लेकर अभिषेक करें। इस दिन चावल, दही और मिश्री का दान करना चाहिए। भगवान वामन का पूजा करें और कथा सुननी चाहिए। किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं। आज वामन पूजन दिवस वामन भगवान ने जैसे राजा बलि के कष्ट दूर किए थे वैसे ही वह भक्तों के कष्टों का भी निवारण करते हैं।

वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है. भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है इसके विषय में वेद पुराण में विस्तार पूर्वक कहा गया. इसमें भगवान की लीला का अद्भुत वर्णन है. श्रीमद्भगवद पुराण में भी इस अवतार का उल्लेख मिलता है.

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रुप में मनाया जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में श्री विष्णु के अन्य रुप भगवान वामन का अवतार हुआ था. इस वर्ष वामन जयंती, 29 अगस्त 2020 को मनाई जाएगी.

वामन जयंती के दिन भगवान विष्णु अपने पांचवें अवतार के अवतार में प्रकट हुए थे। उन्होंने अपने अवतार में एक बोने का रूप धारण किया था। जो बहुत ही अद्भुत था। शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु के इस अवतार की पूजा करने से मनुष्य को जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है तो चलिए जानते हैं वामन जयंती 2020 में कब है

वामन अवतार से जुड़ी कथा

सतयुग में असुर बलि ने देवताओं को पराजित करके स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था। इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के मदद मांगने पहुंचे। तब विष्णुजी ने देवमाता अदिति के गर्भ से वामन रूप में अवतार लिया। इसके बाद एक दिन राजा बलि यज्ञ कर रहा था, तब वामनदेव बलि के पास गए और तीन पग धरती दान में मांगी।

शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी राजा बलि ने वामनदेव को तीन पग धरती दान में देने का वचन दे दिया। इसके बाद वामनदेव ने विशाल रूप धारण किया और एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्गलोक नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने वामन को खुद सिर पर पग रखने को कहा।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिति को वामन जयंती द्वादशी या वामन जयंती के नाम से जाना जाता है। त्रेतायुग में इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में श्री हरि विष्णु मध्याह्न काल में ने अपने पांचवें अवतार के रूप में प्रकट हुए थे और उस समय उन्होंने यह वामन अवतार लिया था। भगवान विष्णु ने यह अवतार राजा बलि से तीन पग धरती मांगने के लिया था। क्योंकि राजा बलि उस समय तीनों लोकों पर अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए यज्ञ कर रहे थे। 

वामनदेव ने जैसे ही बलि के सिर पर पैर रखा, वह पाताल लोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे पाताललोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया।

जिसके बाद भगवान विष्णु ने यह अवतार लेकर दो पगों में ही पूरे ब्राह्मांड को नाप लिया था। वामन जयंती वामन जयंती के दूसरे दिन आती है। यानी इसी दिन वामन जयंती के व्रत का पारण भी किया जाता है। इसी कारण से वामन जयंती का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन जो भी भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करता है। उसके जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसे सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

शालिग्राम जी को भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना जाता है। इसके बाद उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल,ऋतुफल और नैवेद्य आदि अर्पित करें।

एक कथा के अनुसार त्रेतायुग में एक बलि नाम का असुर हुआ करता था। लेकिन वह अत्यंत ही दानी,सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। वह जप और तर सदैव ही करता रहता था। इसी वजह से उसने देवराज इन्द्र को युद्ध में परास्त करके स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया था। सभी देवता इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना की। इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक रूप में राजा बलि के पास गया।  मैनें राजा बलि से याचना की वे मुझे तीन पग धरती दे दें। इससे उन्हें तीनों लोकों के दान का फल मिलेगा।राजा बलि ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और मुझे भूमि दान करने का वचन दिया। जैसे ही राजा बलि ने दान का संकल्प लिया मैने अपना विराट रूप धारण कर लिया। विराट रूप धारण करते ही मैने अपने एक पांव से धरती लोक और दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। जिसके बाद तीसरे पग के लिए कुछ भी शेष नही था । इसलिए राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया और मैने अपना तीसरा पग उनके सिर पर रख दिया। राज बलि की वचन प्रतिबद्धता देखकर मैने उन्हें पाताल लोक दे दिया और कहा कि मैं सदैव तुम्हारे साथ रहुंगा। वामन जयंती के दिन मेरी प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। वामन जयंती पर मैं सोते हुए करवट बदलता हुं।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा

महाभारत काल के समय पाण्डु पुत्र अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी के महत्व का वर्णन सुनाया। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि- हे अर्जुन! अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाली परिवर्तिनी एकादशी की कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो।त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था लेकिन वह अत्यंत दानी,सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। वह सदैव यज्ञ, तप आदि किया करता था। अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा। देवराज इन्द्र और देवता गण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गये। देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की। इसके बाद मैंने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- वामन रूप लेकर मैंने राजा बलि से याचना की- हे राजन! यदि तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा। राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया। दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया। राजा बलि की वचन प्रतिबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया। मैंने राजा बलि से कहा कि, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूँगा।  परिवर्तिनी एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं।

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत और पूजन ब्रह्मा,विष्णु समेत तीनों लोकों की पूजा के समान है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है: एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य को व्रत से एक दिन पूर्व दशमी तिथि पर सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।  व्रत वाले दिन प्रात:काल उठकर भगवान का ध्यान करें और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी का दीप जलाएं। भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल और तिल का उपयोग करें। व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें। शाम को पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं। व्रत के दिन दूसरों की बुराई करने और झूठ बोलने से बचें। इसके अतिरिक्त तांबा, चावल और दही का दान करें।  एकादशी के अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद पारण करें और जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत खोलें।

परिवर्तिनी एकादशी मंत्र :

ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

शांताकारं भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।

विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।

लक्ष्मीकान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा।

ॐ नमो नारायणा।

     1 सितंबर 2020 को शुक्र का कर्क राशि में गोचर होने जा रहा है, जिसका प्रभाव सभी राशियों के जातको पर पड़ेगा।

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