सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जाँच करेगा & दोनों सरकारों को नोटिस

सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण क़ानूनों की वैधता की जाँच करेगा

सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण क़ानूनों की वैधता की जाँच करेगा। कोर्ट ने इस पर दोनों राज्यों की सरकारों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट का यह फ़ैसला ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण क़ानून के ख़िलाफ़ दायर कई याचिकाओं पर आया है। इस क़ानून के आने से पहले ही इस पर विवाद होता रहा है। इस क़ानून को भारत के संवैधानिक प्रावधानों के ख़िलाफ़ बताया जाता रहा है। 

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सुप्रीम कोर्ट में जो याचिकाएँ दायर की गई हैं उनमें भी दावा किया गया है कि वे संविधान के बुनियादी ढांचे को तोड़ते-मरोड़ते हैं। याचिकाओं में मांग की गई है कि क्योंकि वे धर्मनिरपेक्षता, समानता और गैर-भेदभाव का उल्लंघन करते हैं इसलिए उन्हें रद्द किया जाए। एक याचिका में कहा गया है कि यह क़ानून समाज में विभाजन को बढ़ावा देने वाला है, इसलाम व मुसलिम समुदाय के प्रति संदेह उत्पन्न करता है और समुदायों के बीच दुश्मनी पैदा करता है।

सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा कि हम नोटिस जारी कर रहे हैं और इस मामले में चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई करने को अनिच्छुक था और इसने याचिकाकर्ताओं को संबंधित हाई कोर्ट जाने की सलाह दी थी। 

बता दें कि यह वही क़ानून है जिसको ‘लव जिहाद’ क़ानून कहकर आलोचना की जा रही है। यह इसलिए कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक नवंबर को ‘लव जिहाद’ का ज़िक्र करते हुए कहा था कि जो कोई भी हमारी बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगा उसकी ‘राम नाम सत्य है’ की यात्रा अब निकलने वाली है। उनके इस बयान के क़रीब महीने भर के अंदर योगी सरकार ग़ैर क़ानूनी धर्मांतरण पर अध्यादेशले आई। इस क़ानून को ही ‘लव जिहाद‘ से जोड़कर देखा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश के इस क़ानून के तहत अपराधों के लिए अधिकतम 10 साल तक सज़ा मिल सकती है। अध्यादेश कहता है कि कोई भी व्यक्ति ग़लत बयानी, ज़बरदस्ती, खरीद फरोख्त, धोखेबाजी कर या शादी के ज़रिए दूसरे को धर्मांतरित करने का प्रयास नहीं करेगा। यदि कोई व्यक्ति उस धर्म में वापस धर्मान्तरित होता है जिसमें वह हाल तक था तो उसे धर्मांतरण नहीं माना जाएगा। कोई भी पीड़ित व्यक्ति शिकायत दर्ज कर सकता है, और सबूत पेश करने की ज़िम्मेदारी अभियुक्त या उस व्यक्ति की रहेगी जिसने धर्मांतरण किया है। उत्तर प्रदेश के बाद उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे बीजेपी शासित राज्यों में भी ऐसे ही ‘लव जिहाद’ का भूत खड़ा किया गया।

हाल ही में कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा था कि यदि अलग-अलग धर्मों के लोगों के विवाह में कोई महिला अपना धर्म बदल कर दूसरा धर्म अपना लेती है और उस धर्म को मानने वाले से विवाह कर लेती है तो किसी अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। 

इसके पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में कहा था कि धर्म की परवाह किए बग़ैर मनपसंद व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार किसी भी नागरिक के जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का ज़रूरी हिस्सा है। संविधान जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इसी तरह एक दूसरे मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी कहा था कि किसी व्यक्ति का मनपसंद व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार उसका मौलिक अधिकार है, जिसकी गारंटी संविधान देता है। 

अदालत के फ़ैसले से अलग जिस ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता रहा है, वह दरअसल बहुत ही विवादास्पद शब्द है। इसको लेकर सरकारी तौर पर ऐसी कोई रिपोर्ट या आँकड़ा नहीं है जिससे इसके बारे में कोई पुष्ट बात कही जा सके। सरकार ने फ़रवरी में संसद को बताया था कि इस शब्द को मौजूदा क़ानूनों के तहत परिभाषित नहीं किया गया और किसी भी केंद्रीय एजेंसी द्वारा कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था। लेकिन अधिकतर दक्षिणपंथी और ट्रोल इन शब्दों के माध्यम से यह बताने की कोशिश करते रहे हैं कि मुसलिम एक साज़िश के तहत हिंदू लड़कियों को फँसा लेते हैं, उनसे शादी करते हैं और फिर धर्म परिवर्तन करा लेते हैं।

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