18-44 के वैक्सीनेशन पर सुप्रीम कोर्ट की 3 तल्ख टिप्पणियां- & बिहार की सियासत में गरमाहट

2 JUNE 2021: Himalayauk Newsportal & Print Media Bureau #

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र से अहम सवाल पूछे  #  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैक्सीनेशन के लिए आपने 35 हजार करोड़ का बजट रखा है, अब तक इसे कहां खर्च किया। कोर्ट ने केंद्र से वैक्सीन का हिसाब भी मांगा और ये भी पूछा कि ब्लैक फंगस इन्फेक्शन की दवा के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एलएन राव और जस्टिस एसआर भट्ट की बेंच ने केंद्र की वैक्सीनेशन पॉलिसी को अतार्किक बताया। 

& बिहार की सियासत में गरमाहट  #  बिहार में सियासी उलटफेर होने की  अटकले

केंद्र से मांगे 6 जवाब

वैक्सीनेशन का फंड कैसे खर्च किया

वैक्सीनेशन सबसे जरूरी चीज है। केंद्र सरकार के सामने ये अकेली सबसे बड़ा काम है। केंद्र ने इस साल वैक्सीनेशन के लिए 35 हजार करोड़ का बजट रखा है। केंद्र यह स्पष्ट करे कि अब तक ये फंड किस तरह से खर्च किया गया है। यह भी बताए कि 18-44 आयुवालों के मुफ्त टीकाकरण के लिए इसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया।

कितनों को वैक्सीन लगी, पूरा डेटा बताइए

पहले, दूसरे और तीसरे चरण में कितने लोग वैक्सीन लगवाने के लिए एलिजबल थे और इनमें से अब तक कितने प्रतिशत लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। इनमें सिंगल डोज और डबल डोज दोनों शामिल कीजिए। इनमें ग्रामीण इलाकों और शहरी इलाकों में कितनी आबादी को वैक्सीन लगी, इसका आंकड़ा भी दीजिए।

वैक्सीन का हिसाब-किताब दीजिए

कोवीशील्ड, कोवैक्सीन और स्पूतनिक-V की अब तक कितनी वैक्सीन खरीदी गई है। वैक्सीन के ऑर्डर की डेट बताइए, कितनी मात्रा में वैक्सीन का ऑर्डर किया है और कब तक इसकी सप्लाई होगी, ये भी बताइए।

बची हुई आबादी का वैक्सीनेशन कैसे

केंद्र ने कहा है कि इस साल के अंत तक देश की सारी वैक्सीनेशन योग्य आबादी को टीका लग जाएगा। हमें बताइए सरकार कब और किस तरह पहले, दूसरे और तीसरे चरण में बची हुई जनता को वैक्सीनेट करना चाहती है।

राज्य मुफ्त टीकाकरण पर स्टैंड साफ करें

केंद्र ने कहा था कि राज्य सरकारें अपनी आबादी को मुफ्त टीका लगवा सकती हैं। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि राज्य सरकारें इस संबंध में कोर्ट के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करें कि वो ऐसा करने जा रही हैं या नहीं। अगर राज्य अपनी जनता के फ्री वैक्सीनेशन के लिए राजी होते हैं तो ये मूल्यों का मामला बन जाता है। ऐसे में राज्यों के जवाब में उनकी इस पॉलिसी को बताया जाना चाहिए ताकि उनके राज्य की जनता को ये भरोसा हो सके कि वैक्सीनेशन सेंटर पर उन्हें फ्री वैक्सीनेशन का अधिकार मिलेगा। राज्य हमें दो हफ्ते में इस बारे में अपनी स्थिति बताएं और अपनी-अपनी पॉलिसी रखें।

कोविड वैक्सीनेशन पॉलिसी पर केंद्र की सोच को दर्शाने वाले सभी जरूरी दस्तावेज कोर्ट के सामने रखे जाएं।

18-44 के वैक्सीनेशन पर 3 तल्ख टिप्पणियां

वैक्सीनेशन के शुरुआती दो फेज में केंद्र ने सभी को मुफ्त टीका उपलब्ध कराया। जब 18 से 44 साल के एज ग्रुप की बारी आई तो केंद्र ने वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों पर डाल दी। उनसे ही इस एज ग्रुप के टीकाकरण के लिए भुगतान करने को कहा गया। केंद्र का यह आदेश पहली नजर में ही मनमाना और तर्कहीन नजर आता है।

सुप्रीम कोर्ट ने उन रिपोर्ट्स का हवाला भी दिया, जिसमें यह बताया गया था कि 18 से 44 साल के लोग न केवल कोरोना संक्रमित हुए, बल्कि उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में भी रहना पड़ा। कई मामलों में इस एज ग्रुप के लोगों की मौत भी हो गई।

कोर्ट ने कहा कि कोरोना महामारी के बदलते नेचर की वजह से 18 से 44 साल के लोगों का वैक्सीनेशन जरूरी हो गया है। प्रायोरिटी ग्रुप के लिए वैक्सीनेशन के इंतजाम अलग से किए जा सकते हैं।

राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और प्राइवेट हॉस्पिटल्स को 50% वैक्सीन पहले से तय कीमतों पर मिलती है। केंद्र तर्क देता है कि ज्यादा प्राइवेट मैन्युफैक्चर्स को मैदान में उतारने के लिए प्राइसिंग पॉलिसी को लागू किया गया है। जब पहले से तय कीमतों पर मोलभाव करने के लिए केवल दो मैन्युफैक्चरर्स हैं तो इस तर्क को कितना टिकाऊ माना जाए। दूसरी तरफ केंद्र ये कह रहा है कि उसे वैक्सीन सस्ती कीमतों पर इसलिए मिल रही है, क्योंकि वो ज्यादा मात्रा में ऑर्डर कर रहा है। इस पर तो सवाल उठता है कि फिर वो हर महीने 100% डोजेज क्यों नहीं खरीद लेता है।

बिहार की सियासत में गरमाहट  #  बिहार में सियासी उलटफेर होने की  अटकले

लालू यादव के बिहार आते ही बिहार की सियासत में गरमाहट आनी तय है। सियासी परिवर्तन की अटकले लगनी शुरू हो गयी है,  राजद सुप्रीमो की पूरी नजर 5 मुस्लिम विधायक पर है, जो AIMIM से चुने गए हैं। AIMIM के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान कभी RJD के तेज तर्रार विधायक हुआ करते थे। लालू यादव पहले तो औवैसी से मिलकर इस मामले को सुलझाना चाहेंगे, नहीं तो अख्तरुल ईमान से पुराने रिश्तों का हवाला देकर नया दांव खेलेंगे। मुकेश सहनी और मांझी को भी अपने पाले में लाने की कोशिश में कामयाब होते ही तेजस्वी के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी दूर नहीं होगी।

16 मार्च को बिहार विधान परिषद में राज्‍यपाल कोटे की 12 सीटों पर शपथ ग्रहण के दिन मुकेश सहनी अचानक अपनी पार्टी के सभी विधायकों के साथ राज्‍यपाल से मिलने चले गए और हल्‍ला मच गया कि वे सरकार से समर्थन वापस ले सकते हैं। उस दिन मुकेश सहनी ने कहा था कि ऐसी कोई बात नहीं है, लेकिन अगर जरूरत हुई तो वे फैसला लेने में देरी भी नहीं करेंगे।

NDA के अहम सहयोगी हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी व VIP अध्यक्ष मुकेश सहनी के हाल के बयानों ने बिहार की सियासत में गरमाहट ला दी है। मांझी और सहनी के हाल में दिए गए बयान  से सियासी संकट बढना तय है तीश सरकार की स्थिरता पर सवाल खड़े होने लगे हैं। राजनीतिक जानकार बिहार में सियासी उलटफेर होने की बात कह रहे हैं।

24 मई को जीतन राम मांझी ने वैक्सीन सर्टिफिकेट पर PM नरेंद्र मोदी की तस्वीर पर सवाल खड़ा कर दिया। ऐतराज जताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा था कि अगर वैक्सीन सर्टिफिकेट पर तस्वीर है तो कोरोना से होने वाली मौत के डेथ सर्टिफिकेट पर भी प्रधानमंत्री की तस्वीर होनी चाहिए। हालांकि, बाद में मांझी ने इस ट्वीट को हटा दिया था।

कोरोना महामारी की वजह से पंचायत चुनाव नहीं हो सके हैं। 28 मई को मांझी ने पंचायत प्रतिनिधियों के अधिकार को आगे बढ़ाने की मांग की है। उन्होंने कहा था कि पंचायत प्रतिनिधियों के कार्यकाल को 6 महीना बढ़ा दिया जाए।

1 जून को जीतन राम मांझी ने लालू यादव और राबड़ी देवी को शादी की सालगिरह की बधाई दी। इससे भी सियासी गलियारों में गर्माहट बढ़ गई थी। लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं।

29 मई को मुकेश सहनी ने भी पंचायत प्रतिनिधियों के हक में सरकार की नीतियों का विरोध किया। सहनी ने कहा कि पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल बढ़ना चाहिए। अधिकारियों को इनके अधिकार नहीं देना चाहिए।

बिहार सरकार में मंत्री मुकेश सहनी ने 11 मई को पप्पू यादव की गिरफ्तारी का भी विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि जनता की सेवा में लगे पप्पू यादव को गिरफ्तार करना सरकार का अंसवेदनशील रवैया है।

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