UK; पुष्कर सिंह धामी के सामने तेज फैसले करने तथा कॉकस से बचने की भी चुनौती

7 JULY 2021# Himalayauk Newsportal & Print Media #HIGH LIGHT जब-जब बीच सरकार में मुख्यमंत्री का चेहरा बदला है तब इसका नुकसान ही उठाना पड़ा है और सत्ता में वापसी की राह और कठिन हुई है.

उत्तराखंड में 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और इससे पहले वहां बीजेपी में जबरदस्त उथल-पुथल चल रही है। पार्टी चार महीने के अंदर तीन मुख्यमंत्री दे चुकी है और उसके सामने सत्ता में वापसी की चुनौती है।  राज्य में संवैधानिक संकट से बचने के लिए भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत से इस्तीफा लेकर युवा नेता पुष्कर सिंह धामी को नया मुख्यमंत्री बनाया है। उत्तराखंड विधानसभा का 5 साल का कार्यकाल 17 मार्च 2022 को पूरा हो रहा है। यहां अगले साल फरवरी 2022 में चुनाव होने हैं। पुष्कर सिंह धामी के सामने तेज फैसले करने तथा कॉकस से बचने की भी चुनौती है।

अंतरिम सरकार से अब तक जब भी सीएम का चेहरा बदला गया, सत्ता भी बदली है. 9 नवम्बर 2000 को बने उत्तराखंड के पहले सीएम नित्यानंद स्वामी थे. 2002 के पहले विधानसभा चुनाव करीब आने के साथ ही बीजेपी को लगने लगा था कि स्वामी की अगुवाई में सत्ता में वापसी संभव नही है. ऐसे में हाईकमान ने मात्र 354 दिनों में ही चेहरा बदल कर अंतरिम सरकार की कमान भगत सिंह कोश्यारी को सौंप दी. लेकिन कोश्यारी भी 123 दिन के कार्यकाल में बीजेपी को सत्ता में वापसी नही करा पाए. नतीजा ये रहा कि राज्य बनाने वाली बीजेपी पहले चुनाव में कांग्रेस से बुरी तरह हार गई.

दूसरे विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने सत्ता में वापसी की तो सूबे की कमान बीसी खंडूरी को सौंपी गई. लेकिन खंडूरी के खिलाफ भी बगावत होने लगी आखिरकार 839 दिन के कार्यकाल के बाद खंडूरी की भी छूट्टी हो गई. इसके बाद सूबे का सीएम बनाया गया रमेश पोखरियाल निशंक को. लेकिन निशंक भी तीसरे विधानसभा चुनाव करीब आने के साथ ही काफी विवादों में घिर गए. आखिरकार बीजेपी हाईकमान ने फिर बीसी खंडूरी पर दांव खेला. यही नही तीसरे विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने नारा दिया – खंडूरी हैं जरूरी. लेकिन इस नारे की हवा जनता ने चुनावों में निकाल दी.

2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सत्ता मिली. कांग्रेस ने सूबे की बागडोर विजय बहुगुणा को दी. बहुगुणा का कार्यकाल 690 दिन रहा. कांग्रेस हाईकमान को लगा कि 2013 की आपदा के दाग कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे में बहुगुणा की छुट्टी कर दी गई और सूबे की कमान हरीश रावत को सौंपी गई. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया. हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते हुए दो-दो विधानसभा सीटों से चुनाव हार गए और कांग्रेस के सिर्फ 11 विधायक जैसे-तैस जीत पाए.

2017 में प्रंचड बहुमत के साथ आई बीजेपी ने त्रिवेन्द्र रावत को सीएम बनाया. लेकिन त्रिवेन्द्र रावत कभी भी लोगों के दिलों में वो जगह नही बना पाए, जिससे सत्ता वापसी की राह बने. यही वजह थी कि चुनावी साल में बीजेपी हाईकमान ने 1453 दिनों तक सीएम रहे त्रिवेन्द्र की भी छुट्टी कर दी. सत्ता में वापसी की चाह में तीरथ सिंह रावत को मौका दिया गया, लेकिन वे अब तक के सबसे कम समय के मुख्यमंत्री साबित हुए. तीरथ सिंह रावत की 116वें दिन विदाई हो गई. फिलहाल में बीजेपी हाईकमान ने युवा पुष्कर धामी को सत्ता की बागडोर सौंपी है. लेकिन अब ये देखना दिलचस्प होगा कि चेहरा बदलकर सत्ता गंवाने की परम्परा टूटती है या फिर इतिहास यूं ही बरकरार रहता है.

अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव से ऐन पहले प्रदेश सरकार में हुए नेतृत्व परिवर्तन में भाजपा हाईकमान ने भले ही युवा जोश को तरजीह दी हो, लेकिन सबसे अहम पहलू यह है कि पार्टी के पास वर्तमान में तजुर्बे के तौर पर छह पूर्व मुख्यमंत्रियों की जमात है। ऐसे में माना जा रहा कि मिशन-2022 फतह करने के लिए युवा जोश और अनुभव दोनों को ही पार्टी तरजीह देगी।

उत्तराखंड में आठ माह बाद संभावित विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। इसके लिए हाल में रामनगर में हुए चिंतन शिविर में खाका भी खींचा गया। इसे धरातल पर मूर्त रूप दिया जाना है, लेकिन इससे पहले ही प्रदेश सरकार में नेतृत्व परिवर्तन किया गया है। इसमें भाजपा हाईकमान ने युवा जोश को तवज्जो देते हुए खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी पर भरोसा जताया है। इसके पीछे पार्टी युवा शक्ति का साथ लेने की रणनीति मानी जा रही है।

पार्टी के पास अनुभव की भी कमी नहीं है। वरिष्ठ नेता भगत सिंह कोश्यारी, भुवन चंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, त्रिवेंद्र सिंह रावत व तीरथ सिंह रावत के रूप में छह पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा के हैं। हालांकि इनमें से कोश्यारी अभी महाराष्ट्र के राज्यपाल पद पर हैं। अब जबकि विधानसभा चुनाव के लिए समय कम रह गया है तो माना जा रहा कि चुनावी नैया पार लगाने को युवा जोश के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्रियों के अनुभव का भाजपा लाभ उठाएगी।

भाजपा सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बीच नाराजगी के सुर भी उभर रहे हैं। दूसरी बार के विधायक पुष्कर सिंह धामी को विधायक दल का नेता चुने जाने के फैसले से पार्टी के कुछ वरिष्ठ विधायक नाराज बताए जा रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें कुछ पिछली तीरथ व त्रिवेंद्र सरकार में मंत्री रहे वे विधायक हैं, जो कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं और पिछले कुछ वर्षों के दौरान भाजपा में आए हैं। साथ ही भाजपा पृष्ठभूमि के मंत्री रह चुके कुछ वरिष्ठ विधायक भी इनमें शामिल हैं। नेता चयन से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछली सरकारों में मंत्री रहे दो नेताओं को फोन भी किए। हालांकि, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता मदन कौशिक ने साफ किया कि कहीं भी किसी तरह की नाराजगी नहीं है। सभी विधायक एकजुट हैं और सभी देहरादून में ही मौजूद हैं। 

तीरथ सरकार में पेयजल मंत्री रहे बिशन सिंह चुफाल ने कहा कि उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष के सामने अपनी बात रख दी है। उन्होंने कहा कि अपनी बात रखना उनका अधिकार है। वहीं, दूसरी ओर नैनीताल सांसद अजय भट्ट ने चुफाल को मनाने के लिए उनके देहरादून के यमुना कॉलोनी में स्थित आवास में मुलाकात की।

उपचुनाव को लेकर संवैधानिक अड़चन को देखते हुए भाजपा नेतृत्व ने तीन दिन पहले मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की विदाई की पटकथा लिख दी थी। तीरथ ने बीते रोज अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया। सूत्रों के अनुसार पार्टी ने यह तय किया था कि इस बार सिटिंग विधायकों में से ही नेता चुना जाएगा। नए नेता के चुनाव के लिए शनिवार को केंद्रीय पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में जब पुष्कर सिंह धामी के नाम पर मुहर लगी तो कुछ वरिष्ठ विधायकों में नाराजगी के भाव देखे गए।

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