हाईकोर्ट द्वारा उत्तराखंड सरकार के सभी नोटिफ़िकेशन निरस्त
बजट नहीं तो नगर निकायों को समाप्त करें सरकार : हाईकोर्ट की गंभीर टिप्पणी
निकायों को लेकर किए गए सीमा विस्तार को फिलहाल नैनीताल हाईकोर्ट ने खत्म कर दिया है। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के सभी नोटिफ़िकेशन को निरस्त कर दिया है।
अदालत ने निकाय विस्तार के मामले में सरकार को 7 दिन में सभी याचिकाकर्ताओं समेत ग्रामीणों के पक्षों एवं आपत्तियों को सुनने को कहा ; राज्य सरकार ने पूर्व में प्रदेश में नगर पालिका, नगर निगमों और नगर पंचायतों के विस्तारीकरण का फैसला लिया था।
बडी खबर- हिमालयायूके न्यूज पोर्टल-
निकायों की सीमा विस्तार मामले में हाईकोर्ट ने भाजपा सरकार को अब तक का सबसे बड़ा झटका दिया। कोर्ट ने निकायों में गांवों को मिलाने से संबंधित नोटिफिकेशन निरस्त कर दिया। साथ ही नया नोटिफिकेशन जारी कर गांवों को सुनवाई का मौका देने के निर्देश दिए हैं।
दरअसल सरकार ने अधिसूचना जारी कर राज्य के कई गांवों का परिसीमन कर उनको नगर पालिका और नगर निगम में शामिल कर दिया। इस मामले में हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले ग्रामीण जनप्रतिनिधियों का कहना था कि ग्राम प्रधानो पर बस्ते जमा करने का दबाब भी डाला जा रहा है।
पूर्व में कोर्ट ने इस सम्बंध में सरकार से यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे। इन याचिकाओं में भवाली के संजय जोशी, हल्द्वानी के भोला दत्त भट्ट, ग्राम पंचायत बाबूगढ़ संघर्ष समिति कोटद्वार, पिथौरागढ़ के दौला बस्ते नेडा धनोरा, टिहरी और चम्बा समेत दर्जन से अधिक ग्रामीणों ने सरकार के आदेश को कोर्ट में चुनौती दी।
याचिका में कहा गया कि सरकार ने बिना सुनवाई के ही गांवों को निकायों में शामिल कर दिया। साथ ही याचिका में कहा गया है कि इसमें नियमों का पालन नहीं किया गया। लगभग 39 गांवों ने हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की है।
उत्तराखण्ड में गंभीर वित्तीय संकट – विकास कार्य दूर की बात
राज्य के 92 नगर निकायों पर कर्मचारियों की 136 करोड़ की देनदारी ने सरकार और शासन के होश उड़ा दिए हैं। आला अफसरों को यह नहीं सूझ रहा कि आखिर नगर निकायों को इस गंभीर वित्तीय संकट से कैसे उभारा जाए। वहीं कई सेवानिवृत्त अधिकारियों, कर्मचारियों के अदालत में चले जाने और अदालत द्वारा की गई टिप्पणी ‘क्यों न इन नगर निकायों को समाप्त कर दिया जाए’, सरकार व शासन के आला अफसरों की चिंताएं और बढ़ा दी हैं। सरकार इस संकट से निपटने के लिए अब नए शासनादेश की तैयारी में है। शहरी विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य भर में 92 नगर निकाय हैं। इन नगर निकायों में देहरादून, रुड़की, हरिद्वार और नैनीताल जैसे नगर निकायो की वित्तीय स्थिति तो ठीक है, लेकिन ज्यादातर नगर निकायों की स्थिति खस्ताहाल है।
वित्तीय हालत कितनी खराब है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सेवानिवृत्त अधिकारियों, कर्मचारियों के पेंशन, ग्रेच्युटी समेत अन्य भुगतान को छोड़ भी दें तब भी सेवारत कर्मचारियों को मासिक वेतन तक नहीं मिल पा रहा है। सबसे अधिक खराब वित्तीय स्थिति खटीमा, अल्मोड़ा, टनकपुर, भवाली और मसूरी जैसे नगर निकायों की है, जहां कर्मचारियों को कई महीने से वेतन नहीं मिल पाया है।
बजट नहीं तो नगर निकायों को समाप्त करें सरकार : हाईकोर्ट
जहां एक तरफ तमाम नगर निकाय वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं वहीं तमाम नगर निकायों के सेवानिवृत्त अफसरों और कर्मचारियों ने अदालत की शरण ली है। कर्मचारियों के अलग-अलग प्रकरणों की सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार और शहरी विकास विभाग को आड़े हाथों लिया है।
मुकदमों की सुनवाई के दौरान अदालत ने टिप्पणी की है, कि यदि नगर निकायों को ठीक ढंग से संचालित करने और कर्मचारियों के वेतन भुगतान में सरकार अक्षम है तो क्यों न इन नगर निकायों को बंद कर दिया जाए। अदालत की इस टिप्पणी ने सरकार और शहरी विकास विभाग के अफसरों की नींद उड़ा दी है।
मसूरी की स्थिति भी ठीक नहीं
पहाड़ों की रानी कही जाने वाली मसूरी नगर निकाय की स्थिति बेहद खराब है। अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान स्थापित मसूरी में सालाना लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं, बावजूद मसूरी नगर निकाय वित्तीय तौर पर खुद को खड़ा नहीं कर पा रहा है। यह स्थिति तब है जब किसी जमाने में मसूरी नगर पालिका सबसे अमीर नगर निकायों में शुमार की जाती थी।
आखिर कैसे बढ़ी समस्या
सवाल उठता है कि आखिर नगर निकायों की माली हालत क्यों खराब हुई? दरअसल नगर निकायों को 13वें, 14वें वित्त आयोग, राज्य वित्त आयोग और राज्य सरकार की ओर से अवस्थापना विकास के लिए बजट दिया जाता है। लेकिन, नगर निकायों द्वारा अनाप शनाप तरीके से खर्च बढ़ा लिए जाने, कर्मचारियों की भर्तियां किए जाने से मामला गड़बड़ हो गया। अब नगर निकाय सरकार से वित्तीय मदद की उम्मीद लगा रहे हैं।
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