उत्‍तराखण्‍ड- लक्ष्य में असफलता- 2021 में भी 31 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार

उत्तराखंड के 31 फीसद क्षेत्र में बच्चे कुपोषण का शिकार Execlusive Report by Chandra Shekhar Joshi Editor Dehradun Mob. 9412932030 Mail us: himalayauk@gmail.com

उत्तराखंड के चार जिले (हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर, उत्तरकाशी, चमोली) कुपोषण का शिकार हैं। पांच वर्ष तक के बच्चों में कुपोषण की पुष्टि होना प्रदेश के भविष्य पर भी बड़े सवाल खड़े करता है।  नीति आयोग की यह रिपोर्ट देश के 170 कुपोषित जिलों पर आधारित है। जनपद संख्या के हिसाब से भले ही उत्तराखंड का स्थान 13वां है, लेकिन राज्य की कुल जनपद संख्या व कुपोषित जनपदों की तुलना करें तो उत्तराखंड के 31 फीसद क्षेत्र में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। जबकि इस मामले में सात जिले कुपोषण का शिकार होने के बाद भी उत्तर प्रदेश में महज नौ फीसद क्षेत्र में बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं। 

पांच वर्ष तक के बच्चों के पोषण का अतिरिक्त ख्याल रखने की जरूरत होती है। आयु व भार के लिहाज से बच्चे को कैलोरी देने की जरूरत पड़ती है। अक्सर देखने में आता है कि ज्यादातर माता-पिता तीन वर्ष तक की उम्र तक भी बच्चों को सिर्फ दूध की मात्रा बढ़ाने पर जोर देते हैं। जबकि एक वर्ष बाद ही बच्चे को दूध के अलावा अन्य खाद्य पदार्थ मिश्रित मात्रा में देने की जरूरत पड़ती है। इस संतुलन के अभाव में बच्चे का वजन उसकी उम्र के हिसाब से कम रहता है या उसकी लंबाई प्रभावित होने लगती है। 

अल्प आयु में पोषण का बेहद अहम योगदान होता है। जन्म के कम से कम छह माह तक बच्चे को मां का दूध अनिवार्य रूप से दिया जाना चाहिए। इसके बाद एक वर्ष तक भी मां के दूध के अलावा गाय या भैंस का दूध भी उपयोगी रहता है। इसी क्रम में धीरे-धीरे बच्चे को अन्य तरह के पोषण की भी जरूरत पड़ती है। इसके लिए माता-पिता का जागरुक रहना बेहद जरूरी है। 

उत्तराखंड सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी बच्चों में कुपोषण की कमी दूर नहीं हो रही है। आपको बता दें कि उत्तराखंड प्रदेश में लगभग 17 हजार बच्चे कुपोषण के शिकार हैं इनमे से 1700 बच्चे अति कुपोषण का शिकार हैं। हरिद्वार में भी कई बच्चे और गर्भवती महिलाएं कुपोषण का शिकार हैं और इसको खत्म करने के लिए आज हरिद्वार में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में जहां संतुलित आहार पुस्तिका का विमोचन किया गया तो वही राज्य एवं आंगनवाड़ी पोषण निगरानी पोर्टल की शुरुआत भी की गई।

25 सित0 २०१९ में कुपोषण को उत्तराखंड राज्य में खत्म करने के लिए इसके खिलाफ अभियान की शुरुआत तो सरकार द्वारा 2018 में कर दी गई थी मगर आज भी अगर हम राज्य की बात करें तो राज्य में 17000 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इस कुपोषण को खत्म करने के लिए और देश को सशक्त बनाने के लिए व देश के बच्चों व गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से स्वस्थ बनाने के लिए हरिद्वार में भी एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें उत्तराखंड की राज्यपाल माननीय बेबी रानी मौर्य ने शिरकत की। यही नहीं इस कार्यक्रम में महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्या ने भी शिरकत कर हरिद्वार के लोगों को कुपोषण को खत्म करने के लिए उचित जानकारी दी।

राज्यपाल ने कहा कि हरिद्वार में बच्चे अधिक कुपोषण का शिकार हैं,  वहीं महिला और बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने कहा कि प्रदेश में लगभग 17 हजार बच्चे कुपोषित हैं। कुपोषण को दूर करने के लिए जनप्रतिनिधियों को भी इसे एक अभियान बनाने की जरूरत है। सरकार का लक्ष्य है कि 2021 तक राज्य को कुपोषण मुक्त किया जाए। कार्यक्रम में कई महिलाओं और बच्चों को पोषण युक्त खाद्य पदार्थ वितरित किए गए और उन्हें महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सचेत भी किया गया।

समृद्ध खानपान और औसत आर्थिकी वाले उत्तराखंड में भी बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पा रहा है। यहां बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, जो कि प्रदेश सरकार के लिए भी चिंता का विषय है। नीति आयोग की ओर से जारी देश के 170 कुपोषित जिलों की सूची में उत्तराखंड से हरिद्वार, चमोली, उत्तरकाशी और ऊधमसिंहनगर का नाम शामिल किया गया है। देशभर में पांच वर्ष तक की उम्र के बच्चों में कराए गए पोषण के सर्वे में यह हकीकत सामने आई। कुपोषित जिलों में बच्चों में उनकी आयु के हिसाब से लंबाई और भार में अपेक्षाकृत काफी कमी पाई गई।

जनपद संख्या के हिसाब से भले ही कुपोषित जनपदों में उत्तराखंड का स्थान 13वां है, लेकिन राज्य के कुल जनपद संख्या और कुपोषित जनपदों की तुलना करें तो उत्तराखंड के 31 फीसद क्षेत्र में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। 

राष्ट्रीय पोशन मिशन?

इसकी शुरुआत साल 2018 में हुई थी जहां ये मिशन बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण संबंधी परिणामों में सुधार करने के हेतु भारत सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है. राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission) नीति आयोग द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय पोषण रणनीति (National Nutrition Strategy) द्वारा समर्थित है. इस रणनीति का उद्देश्य वर्ष 2022 तक भारत को कुपोषण से मुक्त करना है. इसका उद्देश्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) और जन्म के समय कम वजन को क्रमशः 2%, 2%, 3% और 2% प्रतिवर्ष कम करना है. मिशन-मोड में कुपोषण की समस्या का समाधान करना है.

कुल लागत का 50% विश्व बैंक या अन्य बहुपक्षीय विकास बैंकों द्वारा दिया जा रहा है जबकि शेष 50% केंद्रीय बजटीय समर्थन के माध्यम से दिया जा रहा है. बजटीय समर्थन को निम्न भागों में विभाजित किया गया है. पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 जिसमें 90 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा 10 प्रतिशत राज्यों द्वारा. बिना विधायिका के केंद्रशासित प्रदेशों की स्थिति में 100 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा. अन्य राज्यों की स्थिति में 60:40 जिसमें 60 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा और 40 प्रतिशत राज्यों द्वारा.

उत्तराखंड को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए एक वर्ष पहले कुपोषित बच्चों को गोद लेने का अभियान शुरू किया गया था, सब हवा हवाई सिद्व हुआ- चन्‍द्रशेखर जोशी ने इस बारे में एक पत्र माननीय प्रधानमंत्री भारत सरकार नई दिल्‍ली को भेजा है-

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