आदम युग में जी रहे गढवाल के पहाडवासी

#कैबिनेट मंत्री प्रीतम पंवार का रिपोर्ट कार्ड #आज भी आदम युग में जी रहे उत्‍तराखण्‍ड के पहाडवासी #5 साल तक सत्‍ता सुख भोगे कैबिनेट मंत्री प्रीतम पंवार का रिपोर्ट कार्ड#जनता से इन्‍होंने वायदे किये थे, जो पूरे नही कर सके#बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, पानी व संचार सुविधा पहुचाने में असफल रहे# मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं गांव  #सालू गांव में 25 साल से अंधेरा कायम#बेटियां आठवीं से आगे कभी पढ़ाई नहीं कर पाती  #सरकार व शिक्षा विभाग असफल # उत्तरकाशी से डांग गांव में हरीश रावत सरकार ने सड़क बनाने से मुंह फेरा  # पहाड़ की नारी का  जज्बे तथाा राज्‍य सरकार की विफलता यहां देखने को मिली # 700 मीटर सड़क 11 जनवरी तक बना दी-   # वर्ष 2013 में हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के लिए 38 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ था, वो गायब हुआ- सरकार ने एक माह के लिए निशुुल्‍क  हवाई सेवा शुरू- इसका राजनीतिक इस्‍तेमाल ज्‍यादा#राज्‍य सरकार पर्वतीय इलाकों में शराब को प्रोत्‍साहित कर रही है, राज्‍य गठन के समय से लेकर अब तक के आंकडे देखे जाये तो असलियत सामने-  # हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड- में – रोज पढिये- एक रिपोर्ट कार्ड

PHOTO CAPTION; उत्तरकाशी से डांग गांव में महिलाओं ने खुद बनायी सडक, जब हरीश रावत सरकार ने सड़क बनाने से मुंह फेरा

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राज्य गठन के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में यमुनोत्री सीट से उक्रांद के टिकट पर चुनाव लड़े प्रीतम पंवार विधानसभा में पहुंचे। 2007 में उन्होंने दोबारा भाग्य आजमाया, मगर उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। अलबत्ता, 2012 के चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की। उक्रांद कोटे से उन्हें मौजूदा कांग्रेसनीत सरकार में काबीना मंत्री बनाया गया। लेकिन, 2017 के विधानसभा चुनाव में वह यमुनोत्री से पलायन कर गये।
जनता से इन्‍होंने वायदे किये थे, जो पूरे नही कर सके- नतीजा यमनोत्री विधानसभा सीट से भाग खडे हुए, यमनोत्री विधानसभा ने इनको कैबिनेट मंत्री तक पहुचाया, जबकि यह पांच साल तक ग्राम पंचायत शांखाल के तीन गांव आज भी बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, पानी व संचार सुविधा पहुचाने में असफल रहे, र्नीगाड़ : ग्राम पंचायत शांखाल के तीन गांव आज भी बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, पानी व संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। 21 वीं सदी में भी यहां के ग्रामीण अभावों में जी रहे हैं। लाखामंडल के गढ़सार मुख्य मार्ग से महज 15 किमी की दूरी पर जनपद उत्तरकाशी व देहरादून की सीमा से लगे तीन गांव ग्राम पंचायत शांखाल, कामरा व मटियालोड में अनुसूचित जनजाति के लोग निवास करते है। इन तीनों गांव में बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, संचार की सुविधा नहीं है जिस कारण यह गांव अन्य गांवों से अलग-थलग पड़े हैं। इन गांवों तक पहुंचने के लिए मुख्य मार्ग से 15 किमी पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। आज तक इन गांवों में कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। रोशनी को ग्रामीण छिलके जलाने को मजबूर हैं। सबसे ज्यादा परेशानी तब होती है जब गांव में कोई बीमार पड़ता है। उन्हें चिकित्सालय तक पहुंचाना टेढ़ी खीर साबित होता है। गांव की समस्याओं को लेकर कई बार जन प्रतिनिधियों व मंत्रियों को ज्ञापन भी दिया गया है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। क्षेत्र के भगत लाल, हुकिया लाल, किशन लाल, बर्फिया लाल का कहना है कि हम लोगों आज भी आदम युग में जी रहे हैं।
उत्तरकाशी में आठ गांवों को जोड़ने वाला गंगटाड़ी-सरनौल मोटर मार्ग 13 साल से डामरीकरण नही हो पाया,  आठ गांवों को जोड़ने वाला गंगटाड़ी-सरनौल मोटर मार्ग 13 साल से डामरीकरण की बाट जोह रहा है। डामरीकरण न होने से मोटर मार्ग खस्ताहाल है। ग्रामीण जान जोखिम में डालकर सफर करने को मजबूर हैं। डामरीकरण को लेकर पीएमजीएसवाई ने फरवरी 2014 में टेंडर निकाला। मगर डामरीकरण तो दूर सड़क पर एक पत्थर नहीं बिछाया गया। इसे लेकर ग्रामीणों में भारी रोष है। सरनौल ग्राम प्रधान कपूर चंद व क्षेत्र पंचायत सदस्य अवतार ¨सह रावत का कहना है कि नौगांव ब्लॉक के दूरस्थ क्षेत्र सरनौल तक ग्रामीणों के लंबे आंदोलनों के बाद मोटर मार्ग स्वीकृत हुआ। मगर तीन साल से बाद भी डामरीकरण नहीं हो पाया। उन्होंने बताया कि क्षेत्र के ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन व शासन तक इसकी शिकायत भी की। संबंधित विभाग भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। यह गांव जुड़े हैं मोटर मार्ग से जिसमें ठकराल पट्टी के फरी, गंगटाड़ी, कोटी, बंचाणगांव, चपटाड़ी, सरनौल, गडालगांव, बसराली तथा बडियाड़ पट्टी के पौंटी, गौल, छानिका, किमडार, ¨डगाड़ी आदि गांव
उत्तरकाशी में आठ गांवों को जोड़ने वाला गंगटाड़ी-सरनौल मोटर मार्ग 13 साल से डामरीकरण तक नही करवा पाये,

उत्तरकाशी जनपद के भटवाड़ी ब्लॉक स्थित सालू गांव में 25 साल से अंधेरा कायम है। 25 साल  पहले विनाशकारी भूकंप के दौरान यहां बिजली की तार टूट गई थी, तब से ऊर्जा निगम इसे जोड़ नहीं पाया। उत्‍तरकाशी जनपद के चार गांव ऐसे हैं। जहां की बेटियां आठवीं से आगे कभी पढ़ाई नहीं कर पाती। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से महज 50 किमी की दूरी पर स्थित भंगेली गांव तक पहुंचने में किसी डीएम को 69 साल लग गए।
25 साल पहले वर्ष 1991 से। विनाशकारी भूकंप से बिजली की तार टूट गई और गांव अंधेरे में डूब गया। इस बीच अविभाजित उत्तरप्रदेश में नौ मुख्यमंत्री बदले और वर्ष 2000 में उत्तराखंड भी अस्तित्व में आ गया। नए राज्य में भी कई मुख्यमंत्री राज कर गए। सालू में अंधेरा कायम था और कायम है। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर सालू तक पहुंचना बहुत मुश्किल भी नहीं है। सड़क से महज तीन किलोमीटर पैदल चलकर गांव तक पहुंचा जा सकता है, लेकिन ढाई दशक में ऊर्जा निगम यह दूरी नहीं नाप सका। वक्त के इस वक्फे में पीढ़ियां बदल गईं, बच्चे जवान हो गए और जवान बुढ़ापे की दहलीज पर जा पहुंचे, लेकिन अंधेरे से चल रही जंग खत्म नहीं हुई। ग्राम प्रधान दिनेश सिंह बताते हैं कि गांव में 66 परिवार हैं। कुछ घर सोलर लाइट से रोशन हैं, लेकिन ज्यादातर में लालटेन का ही सहारा है। कई बार ऊर्जा निगम के अधिकारियों को ज्ञापन सौंपने के बाद भी हालात नहीं बदले।

डुंडा ब्लॉक के गाजणा क्षेत्र में बिजली गायब रहती है। बिजली न होने के कारण लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वहीं जिला मुख्यालय में भी बिजली की कटौती को लेकर लोग परेशान रहते हैं। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में ऊर्जा निगम रोजाना बिजली कटौती करता  है। भयंकर ठण्‍ड में दूर दराज से आए ग्रामीण ठण्‍ड से कांप रहे हैं। बिजली आपूर्ति सुचारू तो बहुत मुश्‍किल है यहां। ये तो शहर की स्थिति रही, ग्रामीण क्षेत्रों का हाल इससे भी बदहाल है। सुदूरवर्ती गाजणा क्षेत्र के 40 गांवों में कई कई दिनों तक बिजली नहीं आती है। बिजली न होने के कारण ग्रामीणों के मोबाइल फोन की बैटरी डाउन होने के कारण बंद हो जाते  हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिजली की क्‍या स्‍थिति है। धौंतरी निवासी रमेश पंवार ने कहा कि गाजणा क्षेत्र में बिजली की समस्या एक दिन की नहीं है, स्थिति अधिक खराब हैं। 
बेटियां आठवीं से आगे पढ़ ही नहीं पातीं;  उत्तरकाशी, में देश के चार गांव ऐसे भी हैं, जहां बेटियां आठवीं से आगे पढ़ ही नहीं पातीं। ये गांव हैं ओसला, गंगाड़, ढाटमीर व पवाणी, जो उत्तरकाशी जिले के मोरी ब्लाक में पड़ते हैं। इनमें से ओसला गांव की बेटियां तो सिर्फ दर्जा पांच तक ही पढ़ पाती हैं। उत्तरकाशी के ब्लाक मुख्यालय मोरी से 40 किलोमीटर दूर तालुका गांव है, जहां तक पहुंचने के लिए कच्ची एवं बेहद संकरी सड़क है। इस पर सिर्फ छोटे वाहन ही गुजर सकते हैं। तालुका से 18 किलोमीटर दूर ओसला, 16 किलोमीटर दूर गंगाड़, 15 किलोमीटर दूर ढाटमीर और 14 किलोमीटर दूर पवाणी गांव पड़ते हैं। इन गांवों तक पहुंचने के लिए सात से आठ घंटे तक का समय लगता है। ओसला, गंगाड़ व ढाटमीर में प्राथमिक विद्यालय व जूनियर हाईस्कूल हैं। जबकि, पवाणी गांव में सिर्फ प्राथमिक विद्यालय। इनमें से ओसला का जूनियर हाईस्कूल पिछले छह साल से शिक्षक विहीन है। नतीजा, यहां छठवीं से आठवीं तक किसी भी कक्षा में कोई छात्र नहीं। पांचवीं से आगे की पढ़ाई के लिए इस गांव के 15 बालक जूनियर हाईस्कूल गंगाड़ में जाते हैं। लेकिन, बालिकाएं पांचवीं से आगे नहीं पढ़ पा रहीं। अन्य तीन गांवों की स्थिति भी बेहद दयनीय है। गंगाड़ के जूनियर हाईस्कूल में पढऩे वाले कुल 60 विद्यार्थियों में बालिकाओं की संख्या महज 18 है। कमोबेश यही स्थिति ढाटमीर जूनियर हाईस्कूल की भी है। लेकिन, जो सबसे चिंताजनक स्थिति है, वह यह कि इन चारों गांवों की एक भी बेटी आठवीं से आगे नहीं पढ़ पाई है। ओसला गांव की 15 वर्षीय मंजू पंवार कहती है, ‘मैं केवल पांचवीं तक ही पढ़ पाई। जूहा स्कूल में शिक्षक न होने के कारण आगे की पढ़ाई पर विराम लग गया।’ ढाटमीर गांव की 17 वर्षीय विनीता राणा कहती है, ‘आठवीं से आगे पढऩा चाहती थी, लेकिन इंटर कॉलेज 25 किलोमीटर दूर सांकरी में है। परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि घर से दूर रहा जा सके।’ ढाटमीर निवासी उमराव के अनुसार शिक्षा की स्थिति बालिकाओं ही नहीं, बालकों की भी बेहद खराब है। जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं, वे अपने बालकों भी आठवीं से आगे नहीं पढ़ा पाते। ओसला निवासी बचन सिंह पंवार कहते हैं कि उन्होंने तो जैसे-तैसे बीए तक पढ़ लिया, लेकिन बेटियों की कोई सुनने वाला नहीं। सरकार व शिक्षा विभाग असफल साबित हुआ है । मोरी ब्लाक में 44 जूनियर हाईस्कूल हैं, जिनके सापेक्ष 160 शिक्षक होने चाहिए, लेकिन तैनाती है सिर्फ 53 शिक्षकों की।  इससे शिक्षा की स्‍थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

उत्तरकाशी से डांग गांव में हरीश रावत सरकार ने सड़क बनाने से मुंह फेरा

 पहाड़ की नारी का  जज्बे तथाा राज्‍य सरकार की विफलता यहां देखने को मिली ;  700 मीटर सड़क आगामी 11 जनवरी तक बना दी-   गांव का जंगल बचाने से लेकर गांव तक सड़क पहुंचाने में मातृ शक्ति का समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति

;; उत्तरकाशी से डांग गांव में हरीश रावत सरकार ने सड़क बनाने से मुंह फेरा तो यहां की महिलाएं ने हाथ में गेंती उठा ली। अब महिलाएंं गत 11 दिसंबर से गांव के लिए सड़क काटने में जुटी ।  पहाड़ की नारी का  जज्बे तथाा राज्‍य सरकार की विफलता यहां देखने को मिली। जिस काम को तंत्र और उसके इंजीनियर नहीं कर पाए, उसे नारी शक्ति ने न सिर्फ अपने हाथों में लिया, बल्कि सफलता की ओर भी कदम बढ़ा लिया है। जब सरकार ने उनकी नहीं सुनी तो महिलाओं ने खुद ही हाथों में गेंती उठा ली। विकास भवन उत्तरकाशी से एक किलोमीटर दूर स्थित डांग गांव की महिलाओं ने घर-गृहस्थी की परवाह किए बिना विगत 11 दिसंबर से गांव के लिए सड़क काटने में जुटी । इस अभियान का नेतृत्व कर रही ग्राम प्रधान रजनी देवी नाथ कहती हैं कि गांव तक 700 मीटर सड़क आगामी 11 जनवरी तक बनकर तैयार हो जाएगी। डांग गांव की में करीब 97 परिवार रहते हैं। वर्तमान में इस ग्राम पंचायत में सभी पंचायत सदस्य महिलाएं हैं। इसी ग्राम पंचायत के राजस्व ग्राम पोखरी तक एनआइएम बैंड से सड़क ले जाई जा रही है। सड़क बनाने का जिम्मा लोनिवि के पास है। लेकिन, डांग के ग्रामीणों की मांग है कि पोखरी के लिए सड़क डांग से होते हुए ले जाई जाए। ताकि डांग को भी सड़क सुविधा का लाभ मिल सके। साथ ही गांव के ऊपर का जंगल भी बचा रहे। ग्रामीणों की इस मांग को अनदेखा कर दिया गया। ऐसे में डांग की महिलाओं ने 11 दिसंबर से गड्डू गाड गदेरे के निकट से खुद ही सड़क काटनी शुरू कर दी। वन पंचायत की सरपंच सुलोचना कलूड़ा बताती हैं कि जब भी डांग के ग्रामीणों ने सड़क की मांग की तो लोनिवि के अधिकारियों से जवाब मिला कि डांग गांव से सड़क नहीं जा सकती। इसलिए गांव की महिलाओं ने ठान लिया कि वह खुद ही गांव तक सड़क पहुंचाएंगी। सड़क निर्माण के कार्य में डांग की 40 महिलाएं जुटी हैं। इनमें शामिल 81 वर्षीय अतरा देवी कहती हैं कि वह सब्बल और गैंती तो नहीं उठा सकती, पर काम पर जुटी महिलाओं के लिए चाय-पानी की व्यवस्था तो कर ही सकती है। महिलाओं के इस जज्बे और जुनून को देख लगभग 20 पुरुष भी इस अभियान में सहभागी बने हुए हैं। डांग निवासी डॉ. नागेंद्र दत्त जगूड़ी कहते हैं कि डांग गांव का जंगल बचाने से लेकर गांव तक सड़क पहुंचाने में मातृ शक्ति का समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति पूरे गांव को ताकत दे रही है।

वर्ष 2013 में हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के लिए 38 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ था, वो गायब हुआ-हवाई पट्टी का काम कर रहे यूपी निर्माण निगम को सौंप दिया गया ;जबकि उत्‍तराखण्‍ड के विभाग बिना कार्य के पडे हैं; सरकार ने एक माह के लिए निशुुल्‍क  हवाई सेवा शुरू- इसका राजनीतिक इस्‍तेमाल ज्‍यादा-‘ 

विधानसभा चुनाव करीब आते ही प्रदेश सरकार ने चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी से निश्शुल्क हवाई सेवा तो शुरू कर दी, लेकिन हवाई पट्टी का काम अब भी अधूरा है। अभी तक न तो हवाई पट्टी के रन-वे की गुणवत्ता जांची गई है और न एनओसी ही मिली है। एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) टावर और टर्मिनल का काम भी अभी पूरा नहीं हो पाया। हवाई पट्टी का काम कर रहे यूपी निर्माण निगम को सौंप दिया गया, जबकि उत्‍तराखण्‍ड के विभाग बिना कार्य के पडे हैं,  क्षेत्रीय विधायक एवं शहरी विकास मंत्री प्रीतम पंवार ने उस समय कहा कि हवाई पट्टी का मुख्य कार्य पूरा हो चुका है। इसलिए इस पर सेवा शुरू करने में कोई परेशानी नहीं है।
ढाई दशक पहले चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी का कार्य शुरू हुआ। तब हवाई पट्टी की लंबाई 1165 मीटर और चौड़ाई 23 मीटर थी। लेकिन, वर्ष 2013 तक इस हवाई पट्टी का कोई उपयोग ही नहीं हुआ। 2013 की आपदा के दौरान यहां हेलीकॉप्टर उतारने के अलावा कई बार हवाई जहाज की ट्रायल लैंडिंग की गई, लेकिन व्यावसायिक उपयोग शुरू नहीं हो पाया। वजह थी ट्रायल के दौरान आई खामियां, जिन्हें दूर करने के लिए नागरिक उड्डयन विभाग ने हवाई पट्टी के रन-वे को और चौड़ा करने सहित अन्य सुविधाओं को बढ़ाने का निर्णय लिया। वर्ष 2013 में हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के लिए 38 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ। कार्यदायी संस्था उत्तर प्रदेश निर्माण निगम ने हवाई पट्टी के रन-वे को 30 मीटर चौड़ा बनाया। लेकिन, अन्य कार्य अब भी अधूरे पड़े हैं। सरकार की ओर से शुरू की गई हवाई सेवा का लाभ निशक्त लोग नहीं बल्कि सशक्त उठा रहे हैं। इससे इस निश्शुल्क सेवा के औचित्य पर भी सवाल उठ रहा है। आधा-अधूरी बनी चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी से 28 दिसंबर को सरकार ने एक माह के लिए निशुुल्‍क  हवाई सेवा शुरू की। इस सेवा का आनंद लेने वालों में ऐसे  व्यक्ति जो विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे है।

राज्‍य सरकार पर्वतीय इलाकों में शराब को प्रोत्‍साहित कर रही है

राज्‍य गठन के समय पूरे उत्‍तराखण्‍ड में शराब की खपत कितनी थी, आज कितनी है, यह आंकडे स्‍वयं राज्‍य सरकार के पास उपलब्‍ध है, ऐसे में राज्‍य सरकार के आंकडे ही उसके झूठ की पोल खोलते हैं, राज्‍य सरकार पर्वतीय इलाकों में शराब को प्रोत्‍साहित कर रही है 

मोरी क्षेत्र में चरस की तस्करी थमने का नाम नहीं ले रही है।  कानून व्‍यवस्‍था ठप्‍प है- वही बड़कोट के पौंटी गांव के ग्रामीणों ने प्रशासन से शिकायत की है, कि गांव में ही शराब के अवैध कारोबारी अपनी जड़े मजबूत करने में लगे हैं। ग्रामीण हरदेव राणा ने आरोप लगाया है कि गांव में ही उनकी दुकान है शाम को दुकान बंद करने के बाद शराबी उनकी दुकान के पास शराब पीकर उत्पात मचाते हैं। कई बार इसकी शिकायत प्रशासन से भी की गई, लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। गांव में शराब पर पूर्णत: प्रतिबंध है फिर भी शराब के अवैध कारोबारियों के गांव में ही हौसले बुलंद हैं, लेकिन पुलिस प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। 
अपने ही घर से नशे के खिलाफ आवाज उठाने वाली परमेश्वरी देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर की आवाज बन चुकी हैं। नशामुक्ति की इस जंग में आज सैकड़ों ग्रामीण महिलाएं परमेश्वरी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर त्यूणी क्षेत्र में जागरूकता की अलख जगा रही हैं। इसी की परिणति है कि बावर, बंगाण व शिलगांव क्षेत्र के दो दर्जन से ज्यादा गांवों में आज शराब पीने-पिलाने पर पूरी तरह पाबंदी है परन्‍तु राज्‍य सरकार शराब को प्रोत्‍साहित कर रही है।

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