हैरानी- ऑक्सीजन सिस्टम विकसित करने के बजाय नई दवाएं बनाने पर ज्यादा जोर, दवा कंपनियों ने भरपूर मुनाफा कमाया

1 May 2021: Himalayauk Newsportal & Print Media Bureau # High Light # # भारत में भी ऑक्सीजन की कमी की तरफ हमेशा अनदेखी # सरकारों ने स्वास्थ्य तंत्र को विकसित करने के लिए आवश्यकता के हिसाब से खर्च किया ही नहीं। मौजूदा सरकारें भी सरकारी अस्पतालों के बजाय प्राइवेट अस्पतालों को सुविधा संपन्न बनाने की नीतियां बनाती रही हैं। इस वजह से निवेश हुआ भी है तो वह सिर्फ प्राइवेट अस्पतालों मे । # महामारी के पहले तक तो कुछ सरकारें ऑक्सीजन को जीवनरक्षक मानने तक को तैयार नहीं थीं। ऑक्सीजन सिस्टम विकसित करने के बजाय नई दवाएं बनाने पर ज्यादा जोर दिया गया। ऑक्सीजन सिस्टम तो विकसित नहीं हुए, उसकी कमी को दूर करने के लिए दवाएं जरूर मार्केट में आ गईं, जिससे दवा कंपनियों ने भरपूर मुनाफा कमाया।

# एक ऑक्सीजन सिलेंडर 24 से 72 घंटों तक ऑक्सीजन दे सकता है। कोरोना के गंभीर लक्षण वाले मरीजों को एक हफ्ते तक यानी 3-4 सिलेंडर की जरूरत होगी। #

ब्रिटिश अखबार गार्जियन की एक रिपोर्ट कहती है कि यह संकट सिर्फ भारत का नहीं बल्कि तकरीबन हर कम और मध्यम आय समूह के देश का है। वहां महामारी से पहले भी निमोनिया जानलेवा था, पर ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए उतने उपाय नहीं किए गए, जितने जरूरी थे। भारत में भी ऑक्सीजन की कमी की तरफ हमेशा अनदेखी ही हुई है। इसका सबसे बड़ा नुकसान हुआ है गरीबों को, जो पूरी तरह सरकारी अस्पतालों और उसमें मिलने वाली सुविधाओं पर निर्भर हैं। इसके मुकाबले में प्राइवेट अस्पतालों की स्थिति थोड़ी ठीक है, क्योंकि उन्होंने ऑक्सीजन सप्लाई के लिए पर्याप्त इंतजाम किए हैं।

अस्पतालों में ऑक्सीजन सिस्टम में लगने वाले उपकरणों में पल्स ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन के स्रोत, ऑक्सीजन सपोर्ट के अन्य टेक्निकल उपकरण, ऑक्सीजन एनालाइजर और बिजली कनेक्शन चाहिए। प्रशिक्षित स्टाफ, ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट के लिए सिलेंडर जैसी अन्य चीजों की जरूरत भी होती है। पर इतना जुटाना भी कई सरकारी अस्पतालों के लिए मुश्किल का सौदा रहा है।

पल्स ऑक्सीमीटर:यह एक छोटा-सा उपकरण है जो अंगुली पर लगाते ही बताता है कि खून में ऑक्सीजन का स्तर कितना है। इससे ही पता चलता है कि मरीज को हाइपोक्जेमिया है या नहीं।

ऑक्सीजन का स्रोतःऑक्सीजन के स्रोत के तौर पर कंसंट्रेटर, जनरेटर इस्तेमाल होते हैं। यहीं से अस्पतालों में मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध होती है।

एनालाइजर:मरीजों को मिलने वाली ऑक्सीजन शुद्ध होना चाहिए। यह जांचने का काम एनालाइजर करता है।

भारत में कोरोना मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। गंभीर लक्षण भी पहले के मुकाबले ज्यादा मरीजों में दिख रहे हैं। इसी वजह से न केवल नए केसेस में बल्कि मौतों में भी आंकड़े अपने ही पुराने रिकॉर्ड तोड़ते जा रहे हैं। कोरोना मरीजों में मौत की सबसे बड़ी वजह बन रही है ऑक्सीजन की कमी। तकरीबन हर राज्य से ऑक्सीजन की कमी और उसकी वजह से हो रही मौतों की खबरें आ रही हैं।

देश का प्रत्येक शहर ही कोरोना के मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है। बड़े उद्योगों से ऑक्सीजन ली जा रही है। बाहर से भी बुलवाई जा रही है। अमेरिका से ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बुलवाए हैं। कई लोगों के लिए यह हैरानी वाला है। पहली लहर में तो ऐसा नहीं दिखा, अब ऐसा क्यों हो रहा है, 

रिलायंस के मिशन ऑक्सीजन की निगरानी मुकेश अंबानी खुद कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में रिलायंस दोहरी रणनीति पर काम कर रहा है। पहला रिलायंस की जामनगर स्थित रिफाइनरी के बहुत से प्रोसेस में बदलाव कर ज्यादा से ज्यादा जीवनदायी ऑक्सीजन का निर्माण करना है। दूसरा लोडिंग और परिवहन क्षमताओं को बढ़ाना ताकि जरूरतमंद राज्यों तक ऑक्सीजन को सुरक्षित पहुंचाया जा सके।

इस बार कोरोना वायरस ज्यादा घातक बनकर उभरा है। कोरोना वायरस की वजह से कोविड-19 निमोनिया और हाइपोक्जेमिया (Hypoxemia) हो रहा है। हाइपोक्जेमिया को सरल शब्दों में समझें तो खून में ऑक्सीजन की कमी है। कोविड-19 निमोनिया की यह सबसे गंभीर स्थिति है और ज्यादातर मौतों का कारण भी यही बन रहा है।

कोरोना इन्फेक्शन का इलाज करने के लिए कुछ एंटीवायरल दवाएं प्रभावी साबित हो रही हैं, पर गंभीर निमोनिया में बिना ऑक्सीजन सपोर्ट से हाइपोक्जेमिया से राहत नहीं मिल सकती। जब ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जाता है तो इन्फेक्शन को कम करने और फेफड़ों को ठीक होने के लिए वक्त मिलता है। इससे कोरोना से इन्फेक्टेड ज्यादातर लोगों के लिए ऑक्सीजन जीवनरक्षक साबित हो रही है।

भारत में 7,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन रोज होता है। पर इसका अधिकांश हिस्सा इंडस्ट्रीज को जाता है। अब मेडिकल इमरजेंसी को देखते हुए इंडस्ट्रीज ने अपना ऑक्सीजन भी मेडिकल इस्तेमाल के लिए देना शुरू कर दिया है।

मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड अपनी जामनगर तेल रिफाइनरी में प्रतिदिन 1000 MT से अधिक मेडिकल-ग्रेड ऑक्सीजन का उत्पादन कर रही है।

भारत के पास 1,224 क्रायोजेनिक ऑक्सीजन टैंकर हैं, जिनकी कुल क्षमता 16,732 मीट्रिक टन की है। पर ज्यादातर ऑक्सीजन पूर्वी हिस्से में बनती है और देश के अन्य हिस्सों में इसे पहुंचने में 6-7 दिन लग जाते हैं। इस तरह किसी भी दिन 3000-4000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन ही अस्पतालों तक पहुंच पाती है।

ऑक्सीजन की 50% सप्लाई स्टील कंपनियों से हो रही है। देशभर में 33 प्लांट्स से ऑक्सीजन सप्लाई हो रही है। टाटा स्टील 600 मीट्रिक टन, JSW 1,000 मीट्रिक टन और इसी तरह रिलायंस इंडस्ट्री, अडाणी, आईटीसी और जिंदल स्टील एंड पॉवर समेत सभी बड़े स्टील प्लांट ऑक्सीजन दे रहे हैं। इंडस्ट्री ने अब तक 16,000 मीट्रिक टन स्टोरेज टैंक्स से लिक्विड ऑक्सीजन उपलब्ध कराई है।

देश के सबसे बड़े लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन प्रोड्यूसर लिंडे पीएलसी के एक्जीक्यूटिव मलय बनर्जी के मुताबिक 15 मई तक प्रोडक्शन 25% तक बढ़ जाएगा। ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर भी संकट से निपटने को तैयार हो जाएगा। संकट बढ़ा क्योंकि इसके लिए कोई भी तैयारी नहीं थी। जल्द ही 9,000 टन प्रतिदिन ऑक्सीजन प्रोडक्शन होने लगेगा।

भारत इस समय 100 क्रायोजेनिक कंटेनर लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन इम्पोर्ट कर रहा है। लिंडे 60 कंटेनर उपलब्ध करा रहा है। कुछ कंटेनर तो भारतीय वायुसेना ने विदेशों से उठाए हैं। कुछ कंटेनर ऑक्सीजन एक्सप्रेस के जरिए देश के कोने-कोने तक पहुंचाए गए। 80-160 टन लिक्विड नाइट्रोजन से भरे कंटेनर कई शहरों में पहुंचाए गए।

कंपनी ऑक्सीजन सिलेंडर की संख्या भी दोगुनी बढ़ाकर 10,000 करने जा रही है। ताकि ग्रामीण इलाकों में ऑक्सीजन सप्लाई को बेहतर बनाया जा सके। बनर्जी के मुताबिक कंपनी हब-एंड-स्पोक टाइप सिस्टम बनाने जा रही है ताकि लोकल स्तर पर लोकल डीलर्स तक लिक्विड ऑक्सीजन पहुंचाई जा सके।

ऑक्सीजन सैचुरेशन 95 होना चाहिए

कोरोना ने हर व्यक्ति को सेहत के प्रति सजग बना दिया है। हर कोई ये जानना चाहता है कि वह पूरी तरह स्वस्थ है या नहीं। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल  बताते है कि एक सामान्य व्यक्ति का ऑक्सीजन सैचुरेशन 95 होना चाहिए। यदि 93 से कम होता है तो ऑक्सीजन सपोर्ट देना चाहिए और यदि 90 से नीचे हो जाता है तो मरीज को अस्पताल में भर्ती करना चाहिए। हालांकि कई बार वातावरण साफ-सुथरा होने से भी ऑक्सीन सैचुरेशन कम या ज्यादा हाे सकता है। पेट के बल लेटने पर सामान्य से ज्यादा ऑक्सीजन शरीर के अंदर जाती है।

सामान्य परिस्थिति में ब्लड प्रेशर 120/80 होना चाहिए। यदि आप छह मिनट में 1700 फीट यानी आधा किलोमीटर चल या दौड़ लेते हैं और इसके बाद आपकी पल्स रेट अगले आधे मिनट में 80 से नीचे आ जाती है आप यह मान सकते हैं कि शरीर के मुख्य हेल्थ पैरामीटर्स यानी ब्लड प्रेशर, शुगर या ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल ठीक हैं। आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप दिनभर में तीन से चार बार ब्लड प्रेशर मापें और इसका चार्ट बना लें। यदि ब्लड प्रेशर हर बार एक ही रीडिंग के आस-पास आए और आपको अन्य कोई दिक्कत न महसूस हो रही हो तो स्थिति सामान्य है, लेकिन यदि रीडिंग में दिन भर में काफी बदलाव आए या असामान्य ब्लड प्रेशर के साथ आपको अन्य दिक्कतें भी महसूस हों तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

आमतौर पर बॉडी का सामान्य तापमान 98.4 होता है।

हर दिन कम से कम 2 कप फल (4 सर्विंग्स), 2.5 कप सब्जियां (5 सर्विंग्स), 180 ग्राम अनाज और 160 ग्राम मीट और सेम खाएं। हफ्ते में 1-2 बार रेड मीट और 2-3 बार चिकन खा सकते हैं। शाम के समय हल्की भूख लगने पर कच्ची सब्जियां और ताजे फल खाएं। सब्जियों को ज्यादा पकाकर न खाएं। वरना इसके जरूरी पोषक तत्व खत्म हो जाएंगे। अगर आप डिब्बाबंद फल या सब्जियां खरीदते हैं तो ध्यान रखें कि उनमें नमक और शक्कर ज्यादा ना हो।

Presents by Himalayauk Newsportal & Daily Newspaper, publish at Dehradun & Haridwar: Mob 9412932030 ; CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR; Mail; himalayauk@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *