दुनिया के गरीब नौ देश जहां कोरोना वायरस का कहर नहीं वही यूरोप के लिए किसी भयानक त्रासदी की तरह आया

जो कालजयी बने हुए थे, धराशायी हो गये, और जो निर्बल कमजोर समझे जा रहे थे, मानो कुदरत ने उनको मजबूत कर दिया-  ऐसा ही कुछ हुआ, हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल के इस एक्‍सक्‍लूसिव आलेख को बडे ध्‍यान से पढिये-

दुनिया भर में सिर्फ नौ देश ही बचे हैं, जहां कोरोना वायरस का कहर नहीं है. वही कोरोना वायरस यूरोप के लिए किसी भयानक त्रासदी की तरह आया है. जिस कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई वो शहर अब सामान्य होने की ओर बढ़ रहा है लेकिन यूरोप में हर दिन सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है. कोरोना वायरस के संक्रमण से केवल यूरोप में 30 हजार की मौत हो चुकी है. इनमें से 20 हजार से ऊपर मौत केवल इटली और स्पेन में हुई है.  यूरोप पहले से ही कई तरह के संकट से जूझ रहा है. यहां तक कि यूरोपीय यूनियन के टूटने तक की आशंका जताई जा रही है. जैकस डीलोर्स यूरोपीय यूनियन कमिशन के पूर्व प्रमुख हैं ने कहा है कि संकट की इस घड़ी में एकता के अभाव में यूरोपीय यूनियन की मौत हो सकती है. एक्‍सक्‍लूसिव रिपोर्ट

निश्चित ही कोरोना का कहर अभी जारी है और जैसा कि जानकार बता रहे हैं कि आने वाला समय समूची विश्व की मानवता के लिए जबरदस्त चुनौतियों का समय है, कितने लोग इसमें कालकवलित होंगे और कितने बच निकलेंगे इसका अनुमान लगाना संभव नहीं. लेकिन एक बात तो तय है कि आपदा के ऐसे समय में लोगों/मुल्कों की खुदगर्जी और निस्वार्थी भाव ही सामने नहीं आ रहा बल्कि इस आपदा का लाभ उठाने में कॉरपोरेट सम्राटों की क्या कारगुजारियां चल रही हैं, वह भी साफ दिख रहा है. ‘मुनाफे के लिए दवाईयां’ के सिद्धांत पर चलने वाले मौजूदा मॉडल में ऐसी कामयाबियों पर गौर करने की फुर्सत नहीं है.; हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल ब्‍युूरो

  ‘क्यूबा मॉडल’ से होगा कोरोना का इलाज, प्रेजिडेंट मिगुएल ने इटली भेजी डॉक्टरों की बेस्ट टीम;जब दुनिया पर कोरोना का खतरा मंडराया तो क्यूबा पहले की तरह इस बार भी मदद को आगे आया। चाहे इम्युनिटी बढ़ाने वाली उसकी जादुई दवा हो या विशेषज्ञ डॉक्टर्स, क्यूबा हर स्तर पर आगे बढ़कर संक्रमित देशों की मदद में जुटा है। वेनेजुएला, निकारागुआ, जमैका, सूरीनाम और ग्रेनेडा के बाद उसने अपनी मेडिकल टीम इटली भेजी है जहां कोरोना से सबसे अधिक मौत हुई है।

दुनिया भर में सिर्फ नौ देश ही बचे हैं, जहां कोरोना वायरस का कहर नहीं है

मध्य एशिया में स्थित देश तुर्कमेनिस्तान ने तो अपने देश में कोरोना वायरस शब्द पर ही प्रतिबंध लगा दिया है. मास्क लगाकर घूमने और महामारी की बात करने पर पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेज दे रही है. कोरोना के रोकथाम के सोशल पोस्ट और दीवारों पर लगे पोस्टर भी हटा दिए गए हैं.   मध्य एशिया का ही दूसरा देश है ताजिकिस्तान. यह देश अपने पहाड़ों के लिए प्रसिद्ध है. यहां लोग ट्रैकिंग-क्लाइंबिंग के लिए आते हैं. इसने मार्च के शुरुआत में ही दुनिया के 35 देशों के नागरिकों को अपने यहां आने से मना कर दिया था. अब इसने कहा है कि न तो कोई विदेशी नागरिक न ही उसका अपना कोई नागरिक विदेश से वहां आ सकता है जब तक सब ठीक न हो जाए. 

चीन से सटा हुआ उत्तर कोरिया भी अब तक कोरोना वायरस के चंगुल से मुक्त है. यह दुनिया के सबसे सीक्रेट देशों में से एक माना जाता है. चीन में कोरोना वायरस के फैलते ही इसने अपनी सारी सीमाएं सील कर दी थीं. विदेशी नागरिकों का आना-जाना वैसे ही उत्तर कोरिया में ज्यादा नहीं है

उत्तरी अफ्रीका के दक्षिणी सूडान में अब तक कोरोना वायरस का एक भी मामला सामने नहीं आया है. इस देश की आबादी 1.11 करोड़ है. इस देश की सीमाएं भी सील हैं. न कोई बाहर जा पा रहा है, न ही कोई अंदर आ पा रहा है. लेकिन जनजीवन सामान्य है.

मध्यपूर्वी देश यमन भी अभी तक कोरोना वायरस के प्रकोप से बचा हुआ है. इस देश ने कई सालों तक गृहयुद्ध का सामना किया है. भूख और गरीबी से भी यहां बहुत से लोग मारे गए हैं. लेकिन यहां अभी तक कोरोना नहीं पहुंचा है. यहां की आबादी करीब 3 करोड़ है.

दक्षिण अफ्रीकाई देश बुरुंडी भी कोरोना वायरस के संक्रमण से अछूता है. यह देश अपने वाइल्डलाइफ, जंगल और हरियाली की वजह से जाना जाता है. इस देश में भी कोरोना वायरस का एक भी मामला सामने नहीं आया है. 

पूर्वी अफ्रीका का मालावी. इस देश की पहचान यहां का वाइल्डलाइफ, जंगल, जीव-जंतु और तट हैं. यहां का ग्रेट रिफ्ट वैली और मालावी लेक काफी प्रसिद्ध है. इस देश में भी अभी तक कोरोना वायरस का एक भी केस नहीं मिला है.

अफ्रीका का लिसोथो देश. यह देश अपने बर्फ से ढके पहाड़ों और वन्यजीव अभ्यारण्यों के लिए जाना जाता है. ये देश भी अब तक कोरोना वायरस से अछूता है. 

कोमोरोस देश में भी अब तक कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है. ये देश भी अफ्रीका में है. ये ज्वालामुखीय द्वीपों का समूह है. लोग इन द्वीपों को परफ्यूम आईलैंड भी कहते हैं. क्योंकि यहां खुशबूदार पेड़ मिलते हैं.

एक दिन यूरोपीय यूनियन टूट जाएगा और इसके लिए जिम्मेदार होगा लोकप्रिय राष्ट्रवाद.

इटली के पूर्व प्रधानमंत्री एनरिको लेट्टा ने भी कहा है कि कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी से यूरोपीय यूनियन खत्म होने की ओर बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, “हमलोग एक ऐसे संकट से जूझ रहे हैं जो पहले के संकटों से बिल्कुल अलग है. कोरोना वायरस की महामारी से यूरोपवाद की अवधारणा को धक्का लगा है और यह कमजोर हुई है.” इटली के पूर्व प्रधानमंत्री एनरिको लेट्टा ने भी कहा है कि कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी से यूरोपीय यूनियन खत्म होने की ओर बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, “हमलोग एक ऐसे संकट से जूझ रहे हैं जो पहले के संकटों से बिल्कुल अलग है. कोरोना वायरस की महामारी से यूरोपवाद की अवधारणा को धक्का लगा है और यह कमजोर हुई है.”

इटली के पूर्व पीएम ने ब्रिटेन के अखबार ‘द गार्जियन’ को दिए इंटरव्यू में कहा है कि यूरोप में मेलजोल दस साल पहले की तुलना में कम हुआ है. ईयू की विदेश नीति की पूर्व सलाहकार नैथली टोसी ने कहा है, “अगर हर कोई बेल्जियम फर्स्ट, इटली फर्स्ट और जर्मनी फर्स्ट की रणनीति पर चलने लगे तो हम सब एक साथ डूबेंगे. यह ऐसा वक्‍त है जब हमें जरूरत है कि या तो यूरोप को जोड़ें या तोड़ें. अगर अभी की तरह ही सब कुछ चलता रहा तो एक दिन यूरोपीय यूनियन टूट जाएगा और इसके लिए जिम्मेदार होगा लोकप्रिय राष्ट्रवाद. कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस की त्रासदी से यूरोपीय यूनियन के कई और पुराने घाव हरे हो गए हैं. ईयू के पूर्व एनलार्जमेंट कमिश्नर हीथर ग्रैबा ने कहा कि अलग-अलग संकटों से यूरोपीय यूनियन के देशों के बीच विश्वास कम हुआ है और यही सबसे बड़ी समस्या है.

वही दूसरी ओर जो कालजयी बने हुए थे, धराशायी हो गये, और जो निर्बल कमजोर समझे जा रहे थे, मानो कुदरत ने उनको मजबूत कर दिया-  ऐसा ही कुछ हुआ, इस एक्‍सक्‍लूसिव आलेख को बडे ध्‍यान से पढिये-

क्यूबा के डॉक्टर तथा स्वास्थ्य पेशेवर, इटली सरकार के निमंत्रण पर वहां पहुंचे थे. एयरपोर्ट में खड़े लोगों में चंद श्रद्धालु ऐसे भी थे, उनके हिसाब से क्यूबा के यह डॉक्टर किसी ‘फरिश्ते’ से कम नहीं थे. क्यूबा की टीमें पांच अलग अलग मुल्कों में भेजी गयी है: वेनेजुएला, जमैका, ग्रेनाडा, सूरीनाम और निकारागुआ. ऐसा क्‍यो ; इस छोटे-से एक करोड़ आबादी के इस मुल्क ने अपनी दखल से जबरदस्त छाप छोड़ी है. चीन में कोरोना से मरनेवाले मरीजों में तेजी से कमी आयी है जिसमें एक महत्वपूर्ण कारक के तौर पर क्यूबा द्वारा विकसित एंटीवायरल ड्रग अल्फा 2 बी का उल्लेख करना जरूरी है.

इटली, जो विश्व की सातवें नंबर की अर्थव्यवस्था है, तथा जिसकी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था अच्छे में शुमार की जाती है, वह उस त्रसदी का प्रतीक बना है.  मिलान वही इलाका है जो कोरोना से बुरी तरह प्रभावित इटली के लोम्बार्डी क्षेत्र में स्थित है. दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कही जाने वाली इटली – जिसकी स्वास्थ्य सेवाओं की दुनिया में काफी बेहतर मानी जाती हैं, कोरोना के चलते मरने वालों की तादाद वहां 9,000 पार कर गयी है. ( 28 मार्च 2020)

वही गौरतलब है – क्यूबा की यह अंतरराष्ट्र्रीयतावादी पहल इस मायने में भी मायने रखती है कि इटली उन मुल्कों में शुमार रहा है जिसने क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने में हमेशा अमेरिका का साथ दिया है. कोरोना के चलते उपजे वैश्विक संकट से जूझने की अग्रणी कतारों में क्यूबा  ; यह वही क्यूबा है जिस पर अमेरिका की तरफ से पचास साल से अधिक समय से आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं और अमेरिका की इस अन्यायपूर्ण हरकत का तमाम पूंजीवादी मुल्कों ने साथ दिया है. इन प्रतिबंधों ने उसे 750 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है.

अमेरिका में मरीजों का खूब दोहन होता है.; वहां स्वास्थ्य रक्षा का फोकस बीमारी केंद्रित है वहीं क्यूबा में वह निवारण केंद्रित है. क्यूबा द्वारा विकसित एंटीवायरल ड्रग अल्फा 2 बी   यह दवाई वर्ष 2003 से चीन में निर्मित हो रही है जहां क्यूबा सरकार की मिल्कियत वाली फार्मास्युटिकल कंपनी के साथ मिलकर यह उत्पादन हो रहा है. इसे इंटरफेरॉन कहते हैं जो एक तरह से प्रोटीन्स होते हैं जो मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.  ‘मुनाफे के लिए दवाईयां’ के सिद्धांत पर चलने वाले मौजूदा मॉडल में ऐसी कामयाबियों पर गौर करने की फुर्सत नहीं है. क्यूबा ने इस दवा को डेंगू जैसी बीमारी से लड़ने में बेहद प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया है. क्यूबा की सार्वभौमिक स्वास्थ्य प्रणाली, जिस ‘चमत्कार’ को लेकर पश्चिमी जगत के तमाम विद्वानों ने कई किताबें भी लिखी हैं और बीबीसी जैसे अग्रणी चैनलों ने उस पर विशेष डॉक्युमेंट्री भी तैयार की है. अपनी चर्चित किताब ‘सोशल रिलेशंस एंड द क्यूबन हेल्थ मिरैकल’ (2010) में एलिजाबेथ काथ बताती हैं कि ‘क्यूबा में स्वास्थ्य नीति पर अमल में व्यापक स्तर पर लोकप्रिय सहभागिता और सहयोग दिखता है, जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य को वरीयता देने की सरकार की दूरगामी नीति के तहत हासिल किया गया है. सरकार का इतना राजनीतिक प्रभाव भी है कि वह शेष जनता को इसके लिए प्रेरित कर सके.’ व्यापक इंसानियत के प्रति क्यूबाई जनता के सरोकार की एक ताज़ी मिसाल मार्च महीने के मध्य में समूची दुनिया के मीडिया में आयी जब उसने ब्रिटेन के ऐसे जहाज को अपने यहां उतरने की अनुमति दी, जिस जहाज पर सवार कई यात्राी कोविड-19 बीमारी का शिकार हुए थे और कैरेबियन समुद्र में वह जहाज महज पानी में तैर रहा था. यह ख़बर मिलने पर कि उसमें सवार यात्राी कोविड-19 का शिकार हुए हैं, किसी मुल्क ने उन्हें अपने यहां उतरने की अनुमति नहीं दी थी.

 क्‍यूबा ; लगभग 1.15 करोड़ की आबादी वाले इस छोटे से देश में कई ऐसी खासियतें हैं, जो इसका हेल्थकेयर सिस्टम पूरी दुनिया में पसंद किया जाता है. खुद World Health Organization का मानना है कि यहां की स्वास्थ्य सुविधाओं से सारे देश सीख सकते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार फिलहाल लगभग 60 देशों में क्यबूा के 30 हजार डॉक्टर सेवाएं दे रहे हैं. फिदले कास्त्रो की सरकार बनने के बाद मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ावा मिला. यही वजह है कि क्यूबा में हर 155 लोगों पर 1 डॉक्टर उपलब्ध है. ये अमेरिका और इटली से बेहतर है. बेहतरीन विशेषज्ञों की वजह से क्यूबा लंबे समय से ही अपने यहां दुनियाभर के डॉक्टरों को ट्रेनिंग दे रहा है. यहां Latin American School of Medicine (ELAM) में फिजिशियन को प्रशिक्षण मिलता है. साल 1998 से अबतक 123 देशों के डॉक्टर यहां प्रशिक्षण पा चुके हैं. खुद UN के पू्र्व सेक्रेटरी जनरल Ban Ki-moon के अनुसार क्यूबा का मेडिसिन स्कूल ELAM दुनिया का सबसे आधुनिक मेडिकल स्कूल है. यही वजह है कि क्यूबा की मेडिकल सुविधाओं को क्यूबन मॉडल के नाम से दुनिया में जाना जाता है.

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