दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर अर्जुन भी कैसे लूट गया; मै समय हूं

एक दिन राजा हरिश्चन्द्र घर,  सम्पति मेरू समान ।
एक दिन जाय स्वपच घर बिक गयो  अंबर हरत मसान ।।
होत न एक समान  सब दिन होत न एक समान ।।

जब अर्जुन दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर था, तब भी अंत में गोपियों के साथ अर्जुन को भीलों ने क्यों और कैसे लूट लिया था? ये समय है,

ये भक्त सूरदास जी का भजन है, जो उन राजनेताओं पर खरा उतरता है जो तरह-तरह के घोटाले और भ्रस्टाचार करते हैं, जनता को तानाशाही दिखाते है। ये लोग सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र तो नहीं थे, परन्तु राजाओं की तरह के ठाट-बाट थे । भ्रस्टाचार और घोटाले करके इतनी सम्पत्ति अर्जित किये की कुबेर भी शरमा जाएँ । राजा हरिश्चन्द्र जी सत्य की रक्षा के लिए बिक गये थे और अन्तोगत्वा उन्हें श्मशान में जाकर नौकरी करनी पड़ी । ये भ्रस्ट नेता धन के लिए अपना इमान बेच दिए। जनता की खून-पसीने की कमाई का करोड़ों-अरबों का घोटाला करके डकार गए और ऊपर से झूठ भी बोलते रहे। दसों-बीसों साल आरोपी बनकर भी सत्ता का मजा लूटते रहे। समय ने आखिर करवट बदला और अपने कुकर्मों का फल भोगने के लिए ये लोग जेल गए हैं। ये लोग निश्चिन्त थे की केस-मुकदमों में ही उम्र बीत जाएगी। श्मशान जाने से पहले इन्हें जेल हो गई है, ये समय है,

ये समय है, महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार, श्रीकृष्ण के परमधाम जाने के बाद, अर्जुन नें श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्र और श्रीकृष्ण की पत्नियों और द्वारिका की बची हुई स्त्रियों के साथ इन्द्रप्रस्थ की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में अर्जुन के ऊपर हज़ारों डाकुओं नें एक साथ आक्रमण किया।  इस युद्ध में एक अजीब सी बात हुई। चूंकि अर्जुन के साथ के सभी सैनिक श्रीकृष्ण के वियोग के दुःख में युद्ध करने की स्थिति में नहीं थे, अतः अर्जुन नें मन मजबूत करके सभी डाकुओं से अकेले युद्ध करने का निश्चय किया। डाकुओं से लड़ने के लिए अर्जुन नें जैसे ही गांडीव पर प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशिश की, उन्हें ऐसा लगा कि मानों उनकी भुजाओं का बल समाप्त हो गया है। हालाँकि उन्होंने युद्ध प्रारंभ किया, लेकिन कुछ समय बाद उनके अक्षय तरकशों में से बाण भी समाप्त हो गए। अब अर्जुन नें सिर्फ धनुष को ही डंडे की तरह चलाते हुए डाकुओं से युद्ध किया और उन्हें परास्त करके भगाने में सफल भी हो गये।

अर्जुन नें मुख्य मुख्य रानियों को तो बचा लिया, लेकिन दुर्भाग्यवश डाकू कई स्त्रियों का अपहरण करने में सफल हो गए। अब अर्जुन नें इन्द्रप्रस्थ आकर वहाँ का राज्य वज्र को सौंपा और सभी यदुवंशियों को यथास्थान भेजकर वे अत्यंत दुःखी और भारी हृदय से महर्षि व्यास जी के पास आए और उनसे अपनी इस नाकामी का कारण पूछा। तब व्यास जी नें उन्हें बताया कि जिन यदुवंशी स्त्रियों का अपहरण हुआ था, वे सभी स्त्रियाँ पूर्वजन्म में अप्सराएँ थीं, जिन्होंने महर्षि अष्टावक्र का उनके रूप के कारण मज़ाक उड़ाया था। इस कारण महर्षि नें उन्हें अगले जन्म में डाकुओं द्वारा अपहृत होने का श्राप दे दिया था।

इसी श्राप के कारण डाकुओं के सामने उन स्त्रियों की रक्षा के लिए आए हुए अर्जुन युद्ध के समय अशक्त महसूस करने लगे और उनके दैवीय अस्त्र शस्त्रों नें उनका साथ नहीं दिया। व्यास जी ने अर्जुन को यह भी बताया कि वे उन स्त्रियों के लिए चिंता न करें, डाकुओं द्वारा अपहृत होते ही वे सभी स्त्रियां अपने पूर्व रूप को प्राप्त होकर पुनः अपने लोक को जा चुकी हैं। उन सभी के अपहरण में अर्जुन का कोई दोष या पराजय नहीं हुई बल्कि यह महर्षि अष्टावक्र के श्राप के कारण हुआ था न कि अर्जुन की असमर्थता के कारण।

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