कूर्मांचल परिषद का 3 दिवस Aipan दीपावली मेला;भव्य शुभारम्भ 30 को गेरू विस्वार से ऐपर्ण, 31 को दीपावली-21 “पधान-पधानी” का चयन – पहली बार देदून में

23 अक्टूबर 21 कूर्मांचल परिषद देहरादून द्वारा 3 त्रिदिवसीय दीपावली मेले का आगाज कूर्मांचल भवन जीएमएस रोड देहरादून में किया गया, कार्यक्रम का शुभारंभ श्री सागर गुरुंग प्रसिद्व समाजसेवी गढ़ी द्वारा किया गया,

#कूर्माचल परिषद की मांग पर पूर्व मुख्‍यमंत्री हरीश रावत ने इस कला को विलुप्‍त होने से बचाने के लिए ऐपण विभाग तक बना दिया था और राज्‍य सरकार के हर कार्यालय में ऐपण चित्र लगाने की प्रेरणा दी थी

30 को गेरू और विस्वार से ऐपर्ण चित्रकला बनाई जाएगी, और 31 अक्टूबर 21 को 11 बजे से दीपावली मेला शुरू होगा, जिसमे विभिन्न खाने के स्टाल, सांस्कृतिक झांकिया, दिया डेकोरेशन तथा पहाड़ी व्यंजन प्रतियोगिता तथा दीपावली-21 “पधान-पधानी” का चयन होगा, लक्की ड्रॉ एवं पुरुस्कार वितरण के साथआर्कषक सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे

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कूर्मांचल परिषद के 3 दिवसीय मेले के प्रथम दिवस कूर्मांचल परिषद की सभी शाखाओं से महिलाओ और पुरुषों ने भाग लेकर फेब्रिरिक कलाकृति बनाई,

केंद्रीय सांस्कृतिक सचिब बबिता साह लोहनी ने बताया, कि 23 अक्टूबर को कपड़े में ऐपर्ण प्रतिभागियों ने बनाई, अब 30 को गेरू और विस्वार से ऐपर्ण चित्रकला बनाई जाएगी, और 31 अक्टूबर 21 को 11 बजे से दीपावली मेला शुरू होगा, जिसमे विभिन्न खाने के स्टाल, सांस्कृतिक झांकिया, दिया डेकोरेशन तथा पहाड़ी व्यंजन प्रतियोगिता तथा दीपावली-21 “पधान-पधानी” का चयन होगा, लक्की ड्रॉ एवं पुरुस्कार वितरण के साथआर्कषक सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे, सभी महिलाएं और पुरुष, और कलाकार सभी कुमायूंनी परिधान में होंगे

कूर्मांचल परिषद के अध्यक्ष कमल रजवार ने सभी को निमंत्रण दिया है, महासचिब चंद्रशेखर जोशी ने कहा कि कूर्मांचल की समृद्व सांस्कृतिक परम्परा रही है, कूर्मांचल परिषद देहरादून उसको सहेजने और सजोने का काम कर रही है; स्थान कूर्मांचल भवन, जीएमएस रोड, खाड़ी एवम ग्रामोघोग बोर्ड के निकट, देहरादून मो0 9412932030

इस अवसर पर भारी संख्या में महिला प्रतिभागियों ने कपड़े पर ऐपन कला उकेरी, जिनमें पुष्पा जोशी, निकिता रावत, प्राची बिष्ट,आरती पांडे, ममता जोशी, गरिमा जोशी, सीमा पाटनी, पूनम चौधरी, सुनीता पांडे, दीपा भंडारी, हर्षिता बिष्ट, उमा कोठारी, भव्या जोशी, किरण भंडारी, कुसुमलता पांडे, दिया पयाल, गुंजन उप्रेती, ज्योति उप्रेती, निहारिका साह, अंजना, पुष्पा कोठारी, प्रीति लोहनी, रुचि बोरा, मानसी बिष्ट, दीपाली बिष्ट, गुंजन पंत, रक्षा जोशी, गगन वर्मा आदि ने बेहतरीन कला का प्रदर्शन किया।

केंद्रीय सांस्कृतिक सचिब बबीता साह लोहनी ने बताया कि कूर्मांचल परिषद द्वारा आयोजित ऐपण कला रोजगार परक है, इसमे महिलाओ को प्रोत्साहित कर रोजगार की ओर जोड़ा जा सकता है, विगत वर्ष इस संबंध में केंद्रीय महासचिब चंद्रशेखर जोशी ने मॉन0 प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा था, जिसका सज्ञान लेते हुए पीएमओ से उत्तराखंड शासन को पत्र भी आया था, पर वो समय की गर्त में दबा रह गया, और संस्कृति विभाग में वह पत्र धूल खा रहा है, जबकि संस्कृति निदेशालय उत्तराखंड को कूर्मांचल परिषद के सहयोग से इस ऐपर्ण कला को प्रोत्साहित कर रोजगार परक बनाना चाहिए था,

इस अवसर पर अध्यक्ष कमल रजवार, महासचिब चंद्रशेखर जोशी, केंद्रीय सा0 सचिब बबिता साह लोहनी, केन्द्रीय पदाधिकारी गगन गुंजन वर्मा, ललित जोशी-सचिवालय, महिला उपाध्यक्ष प्रेमा तिवारी, एवम ई0 संतोष जोशी तथा गोपाल दत्त दुमका, दामोदर कांडपाल अध्यक्ष गढ़ी, गंगा दत्त बिनवाल, शोभन सिंह ठठोला, गोविंद बल्लभ पांडेय- पूर्व अध्यक्ष कांवली, मंजू देउपा अध्यक्ष काण्डली, कविता बाफिला सचिब काण्डली, शोभा जोशी, कमला उप्रेती, गायत्री ध्यानी, लीला देवी, हंसा धामी, कल्पना वर्मा, गोविंद सिंह देउपा, उमा कोठारी, गणेश दत्त कांडपाल, हरीश भंडारी, पंकज पांडे, राजेश कुमार पंत, कंचन बिष्ट समेत अनेक सदस्य उपस्थित थे।

महिलाओ को प्रोत्साहित कर रोजगार की ओर जोड़ा जा सकता है, विगत वर्ष इस संबंध में केंद्रीय महासचिब चंद्रशेखर जोशी ने मॉन0 प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा था, जिसका सज्ञान लेते हुए पीएमओ से उत्तराखंड शासन को पत्र भी आया था, पर वो समय की गर्त में दबा रह गया, और संस्कृति विभाग में वह पत्र धूल खा रहा है, जबकि संस्कृति निदेशालय उत्तराखंड को कूर्मांचल परिषद के सहयोग से इस ऐपर्ण कला को प्रोत्साहित कर रोजगार परक बनाना चाहिए था,

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आसान से नजर आने वाले ऐपण के पीछे ग्रहों की स्थिति और धार्मिक अनुष्ठानों का खास ध्यान- कूर्माचल परिषद देदून में ऐपण —

विगत वर्ष इस संबंध में केंद्रीय महासचिब चंद्रशेखर जोशी ने मॉन0 प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा था, जिसका सज्ञान लेते हुए पीएमओ से उत्तराखंड शासन को पत्र भी आया था, पर वो समय की गर्त में दबा रह गया, और संस्कृति विभाग में वह पत्र धूल खा रहा है, जबकि संस्कृति निदेशालय उत्तराखंड को कूर्मांचल परिषद के सहयोग से इस ऐपर्ण कला को प्रोत्साहित कर रोजगार परक बनाना चाहिए था,

आसान से नजर आने वाले ऐपण  के पीछे ग्रहों की स्थिति और धार्मिक अनुष्ठानों का खास ध्यान # देहरादून में कूर्माचल परिषद की वरिष्‍ठ पदाधिकारी बबीता शाह लोहनी इस लोक कला को भावी पीढी को सिखाने, बताने के लिए पूरे जी जान से जुटी है # कूर्माचल परिषद के केन्‍द्रीय अध्‍यक्ष कमल रजवार कहते है कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व अनमोल परंपराओं के कारण सदियों से उत्तराखंड की देवभूमि देश,दुनिया में एक अलग ही पहचान रखती है # कूर्माचल परिषद के केन्‍द्रीय महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी ने बताया कि कुमाऊनी ऐपण का जो रूप सदियों पहले था वही रूप आज भी है # कूर्माचल परिषद की मांग पर पूर्व मुख्‍यमंत्री हरीश रावत ने इस कला को विलुप्‍त होने से बचाने के लिए ऐपण विभाग तक बना दिया था और राज्‍य सरकार के हर कार्यालय में ऐपण चित्र लगाने की प्रेरणा दी थी

केन्‍द्रीय कूर्माचल परिषद उत्‍तराखण्‍ड सरकार से मांग करती है कि ऐपण को प्रोत्‍साहित करने के कार्य को आगे बढायेगी, केन्‍द्रीय महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी ने माननीय प्रधानमंत्री जी को पत्र भेज कर इस कला का पूरा विवरण देते हुए इसे संरक्षित किये जाने की मांग की है, दिल्‍ली राज्‍य सरकार ने भी उत्‍तराखण्‍ड मूल के पर्वतीय लोक गायक को दिल्‍ली राज्‍य में इस संबंध में महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी सौपी है, तो ऐसा ही प्रयास उत्‍तराखण्‍ड में किये जाने की आवश्‍यकता है ऐपण कला को पहचान देने की जरूरत है.

ऐपण को कुमाऊं में प्रत्येक शुभ कार्य के दौरान पूरी धार्मिक आस्था के साथ बनाया जाता है। त्यौहारों के वक्त इसे घर की देली, मंदिर, घर के आंगन में बनाने का विषेश महत्व है। ऐपण यानि अल्पना एक ऐसी लोक कला, जिसका इस्तेमाल कुमाऊं में सदियों से जारी है। यहां ऐपण कलात्मक अभिव्यक्ति का भी प्रतीक है। इस लोक कला को अलग-अलग धार्मिक अवसरों के मुताबिक बनाया किया जाता है। शादी, जनेऊ, नामकरण और त्योहारों के अवसर पर हर घर इसी लोक कला से सजाया जाता है। ज्योतिषियों के मुताबिक ऐपण हर अवसर के मुताबिक बनाए जाने वाली कला है। आज भी बगैर ऐपण के कोई शुभ कार्य नहीं होते हैं। ऐपण में सम बिंदु और विषम रेखाओं को शुभ माना गया है। देखने में भले ही ये ऐपण आसान से नजर आते है, लेकिन इन्हें बनाने में ग्रहों की स्थिति और धार्मिक अनुष्ठानों का खास ध्यान रखा जाता है।  देश के हर हिस्से में रहने वाले कुमाऊंनी के घर पर आपको ऐपण देखने को मिल जाएंगे। इसके साथ ही सात समुंदर पार रहने वाले कुमाऊंनी विदेशी धरती में रहते हुए भी इस कला और अपनी संस्कृति से जुड़े हुए है।

सदियों पुरानी परंपरा आज भी बरकरार है।और सबसे अच्छी बात यह है कि नई पीढ़ी के लोगो को इस कला को सीखाने में कूर्माचल परिषद का अविस्‍मरणीय योगदान  हैं, आज भी अपने घरों को इससे सजाना पसंद करते हैं।सभी शुभ अवसरों पर ऐपण बनाई जाती है और उनके ऊपर ही कलश की स्थापना की जाती है।  देहरादून में कूर्माचल परिषद की वरिष्‍ठ पदाधिकारी बबीता शाह लोहनी इस लोक कला को भावी पीढी को सिखाने, बताने के लिए पूरे जी जान से जुटी है, बबीता कहती है कि पुराने दौरे में ऐपण बनाने में चावल और गेरू का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन बदलते वक्त के साथ आज इनकी जगह पेंट और ब्रूश ने ले लिया है। यही नहीं त्योहारों के मौसम में अब तो बाजारों में रेडीमेड ऐपण भी मिलने लगे हैं,

अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व अनमोल परंपराओं के कारण सदियों से उत्तराखंड की देवभूमि देश,दुनिया में एक अलग ही पहचान रखती है।यहां पर एक से एक अनूठे लोकपर्व मनाए जाते हैं जो यहां की प्रकृति, भूमि ,जंगल, देवताओं को समर्पित रहते हैं। इसी के साथ ही यहां पर ऐसी कई सारी लोक कलाएं भी मौजूद है जो इस धरती की पहचान बन चुकी हैं।इन्हीं में से एक लोक कला/लोक चित्रकला है जिसे ऐपण(Aipan) कहा जाता है।कुमाऊनी ऐपण का जो रूप सदियों पहले था वही रूप आज भी है बल्कि यूं कह सकते हैं कि समय के साथ-साथ यह और भी समृद्ध हो चला है।यह कुमाऊं की एक लोक चित्रकला की शैली है जो कि पहचान बन चुकी है कुमाऊं की गौरवशाली परंपरा है ।

लोककलाओं को सहेजने में आगे है कुमाऊं ; लोककलाओं को सहेजने में कुमाऊं वासियों का कोई सानी नहीं है. यही वजह है कि यहां के लोगों ने सदियों पुरानी लोककलाओं को आज भी जिंदा रखा है. ऐसी ही एक कला है ऐपण, जिसका उपयोग कुमाऊं में प्रत्येक शुभ कार्य में पूरी धार्मिक आस्था के साथ किया जाता है. ऐपण यानि अल्पना एक ऐसी लोककला जिसका इस्तेमाल कुमाऊं में सदियों से जारी है. यहां ऐपण कलात्मक अभिव्यक्ति का भी प्रतीक है. इस लोककला को अलग-अलग धार्मिक अवसरों के मुताबिक चित्रित किया जाता है. शादी, जनेऊ, नामकरण और त्योहारों के अवसर पर हर घर इसी लोककला से सजाया जाता है. कूर्माचल परिषद लोककलाओ के सरंक्षण को तत्‍पर है परन्‍तु इस ओर राज्‍य उपेक्षा से निराश है

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