वि0सभा उपचुनाव- उत्तराखंड में कराये तो बंगाल में भी कराने होगे- फंस गया पेंच

उत्‍तराखण्‍ड के मुख्‍यमंत्री को सितम्‍बर 21 तक विधानसभा उपचुनाव लड कर विधायक बनना होगा, तो ममता बनर्जी को भी 5 नवंबर, 2021 से पहले उपचुनाव लड़कर जीत हासिल करनी होगी। ममता को रोकने के लिए विधानसभा उपचुनाव छह महीने तक रोके जाने की रणनीति अपनाई गई तो उत्‍तराखण्‍ड में पेंच फसेगा, यहां मुख्‍यमंत्री बदलना होगा

संवैधानिक व्यवस्था क्या कहती है? विशेषज्ञ बता रहे हैं कि उप चुनाव करवाए जा सकते हैं. अन्य विशेषज्ञ भी यही मानते हैं कि साल भर के भीतर चुनाव होने की स्थिति में उपचुनाव टालना कोई तयशुदा नियम नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक सुविधा की बात ज़्यादा है.

शायद तभी ममता बनर्जी ने २३ जून 21 बुधवार को कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में कहा, “मैं प्रधानमंत्री से गुजारिश करती हूं कि वह उपचुनाव कराने का निर्देश दें। अब कोरोना कम हो रहा है और 7 दिनों के अंदर उप चुनाव कराए जा सकते हैं।

पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में इस मामले में हालात थोड़े जटिल हैं। इस साल मार्च के महीने में बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर तीरथ सिंह रावत को इस कुर्सी पर बैठाया था। तीरथ सिंह रावत अभी पौड़ी सीट से सांसद हैं और उन्होंने 10 मार्च, 2021 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 151ए के मुताबिक़, ऐसे राज्य में जहां चुनाव होने में एक साल का वक़्त बचा हो, उपचुनाव नहीं कराए जा सकते। राज्य की विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 में ख़त्म होगा। इसका मतलब अभी 9 महीने का वक़्त बचा हुआ है।  लेकिन अनुच्छेद 151ए के हिसाब से देखें तो तीरथ सिंह रावत के लिए 9 सितंबर, 2021 के बाद मुख्यमंत्री के पद पर बने रहना संभव नहीं हो पाएगा। कांग्रेस नेता ने कहा कि ऐसे में उत्तराखंड में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन करना होगा।

वही दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में भी मुख्‍यमंत्री को  विधानसभा चुनाव उपचुनाव लडना है, ममता ने 5 मई, 2021 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। ममता की अगुवाई वाली टीएमसी ने बंगाल चुनाव में बीजेपी को हरा दिया था लेकिन ममता ख़ुद नंदीग्राम सीट से चुनाव हार गई थीं। उन्हें उनके पुराने सियासी साथी शुभेंदु अधिकारी ने हराया था। लेकिन फिर भी टीएमसी के विधायक दल ने ममता को ही नेता चुना था लेकिन किसी भी शख़्स को मुख्यमंत्री चुने जाने के दिन से छह महीने के अंदर विधानसभा का निर्वाचित सदस्य बनना ज़रूरी होता है और इसके लिए राज्य में उपचुनाव कराने की ज़रूरत पड़ेगी। 

ममता बनर्जी को 5 नवंबर, 2021 से पहले उपचुनाव लड़कर जीत हासिल करनी होगी।

ममता बनर्जी ने बुधवार को कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में कहा, “मैं प्रधानमंत्री से गुजारिश करती हूं कि वह उपचुनाव कराने का निर्देश दें। अब कोरोना कम हो रहा है और 7 दिनों के अंदर उप चुनाव कराए जा सकते हैं। मैंने सुना है कि प्रधानमंत्री निर्देश देंगे तो चुनाव आयोग काम करेगा।”  मुख्यमंत्री ने कहा, “उप चुनाव कराने में देरी क्यों हो रही है। बंगाल में जब चुनाव हो रहे थे तो कोरोना का पॉजिटिविटी रेट 30 फ़ीसदी था और अब यह 3 फ़ीसदी और इससे नीचे आ गया है।”  बंगाल में चुनाव के पहले चरण से लेकर आठवें चरण तक ममता बनर्जी चुनाव आयोग पर खासी हमलावर रही थीं। उन्होंने चुनाव आयोग पर ताबड़तोड़ हमले किए थे और इतने चरणों में चुनाव कराने को लेकर आयोग की ख़ूब आलोचना की थी। 

संवैधानिक व्यवस्था क्या कहती है? विशेषज्ञ बता रहे हैं कि उप चुनाव करवाए जा सकते हैं. अन्य विशेषज्ञ भी यही मानते हैं कि साल भर के भीतर चुनाव होने की स्थिति में उपचुनाव टालना कोई तयशुदा नियम नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक सुविधा की बात ज़्यादा है.

रिप्रेज़ेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट के सेक्शन 151A के तहत चुनाव आयोग के लिए अनिवार्य है कि वह संसद या विधानसभा में किसी भी सीट के खाली होने के छह महीने के भीतर उपचुनाव करवाए. इस एंगल से उत्तराखंड में दो विधानसभा सीटें खाली हुई हैं. 22 अप्रैल को विधायक गोपाल रावत के गुज़रने के बाद गंगोत्री और पिछले दिनों इंदिरा हृदयेश के निधन से हल्द्ववानी सीटें खाली हो गई हैं. तो आयोग को यहां इस साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच चुनाव करवाने होंगे. लेकिन क्या उपचुनाव टाले जा सकते हैं?  सेक्शन 151A के हिसाब से छह महीने के भीतर चुनाव करवाए जाने चाहिए, लेकिन सवाल है कि अगर विधानसभा चुनाव में साल भर से कम का समय बाकी हो, तो खाली सीट पर उपचुनाव को टाला जा सकता है? चुनाव आयोग के वैधानिक सलाहकार के तौर पर 50 सालों तक सेवा देने वाले एसके मेंदीरत्ता की मानें तो आयोग इस स्थिति में बेशक उपचुनाव करवा सकता है, भले ही एक साल के भीतर विधानसभा चुनाव होने ही हों.

द प्रिंट की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी स्थितियां पहले भी बनी हैं और चुनाव आयोग ने उपचुनाव के कदम उठाए हैं. उदाहरण के तौर पर, ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री गिरधर गमांग 1998 में लोकसभा सदस्य चुने गए थे, लेकिन 1999 में उन्हें मुख्यमंत्री पद मिला. उनकी नियुक्ति के समय से एक साल से भी कम समय के भीतर 2000 में विधानसभा चुनाव होने ही थे, फिर भी गमांग 1999 में उप चुनाव के ज़रिये विधायक बने थे. अन्य विशेषज्ञ भी यही मानते हैं कि साल भर के भीतर चुनाव होने की स्थिति में उपचुनाव टालना कोई तयशुदा नियम नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक सुविधा की बात ज़्यादा है. उत्तराखंड में पौड़ी गढ़वाल सीट से लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत को पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह मार्च 2021 में मुख्यमंत्री बनाया गया था. कांग्रेस ने दावा किया कि उपचुनाव संभव नहीं होने की वजह से रावत का सीएम पद पर बने रहना ‘संकट’ की स्थिति होगी, लेकिन विशेषज्ञ बता रहे हैं कि उप चुनाव करवाए जा सकते हैं.

Presents by Himalayauk Newsportal Mob. 9412932030 Mail us: himalayauk@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *