वरदान प्राप्‍त पक्षी- पूरे जीवन काल में लगभग रोगमुक्त रहेगा, स्वाभाविक नहीं आकस्मिक मृत्यु होगी, भविष्य की घटनाओ का पूर्वाभास होगा

30 जून 2021- High Light# Himalayauk Newsportal & Print Media# High Light# शनिदेव से प्राप्‍त है वरदान # स्वाभाविक नहीं आकस्मिक मृत्यु होगी # अपने पूरे जीवन काल में लगभग रोगमुक्त रहेगा # कौआ ने अमृत का पान कर लिया था, जिससे उसकी स्वाभाविक मौत नहीं होती # किसी भी घटना का पहले ही आभास # कोई भी क्षमतावान आत्मा एक कौआ के शरीर में प्रवेश करके कहीं भी भ्रमण कर सकती है # यह यम का दूत # यह पक्षी कभी किसी बीमारी अथवा अपने वृद्धा अवस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त नहीं होता # व्य​क्ति जब शरीर का त्याग करता है और उसके प्राण निकल जाते हैं तो वह सबसे पहले कौआ का जन्म पाता है। # न्याय के देवता शनिदेव का वाहन भी है    # जिस दिन कौए की मृत्यु होती है, उस दिन उसका साथी भोजन ग्रहण नहीं करता

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कौवा पितरों के आश्रय स्थल के रूप में भी चिन्हित है, उसकी खूबियों के कारण ही शनिदेव ने उसे वरदान दे रखा है कि वह कभी भी किसी बीमारी के चलते नहीं मर सकता, उसकी मृत्यु सिर्फ आकस्मिक दशाओं में हो सकती है. कालांतर में भी इस किवदंती को काफी बल मिला है, जिसमें पाया गया है कि कौआ अपने पूरे जीवन काल में लगभग रोगमुक्त बना रहता है. कौआ अतिथि के आने की सूचना देने वाला तथा पितरों का आश्रम स्थल माना गया है। ऐसी भी मान्यता है कि कौआ ने अमृत का पान कर लिया था, जिससे उसकी स्वाभाविक मौत नहीं होती है। कौआ एक ऐसा पक्षी है, जिसे किसी भी घटना का पहले ही आभास हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि कोई भी क्षमतावान आत्मा एक कौआ के शरीर में प्रवेश करके कहीं भी भ्रमण कर सकती है।  यह यम का दूत होता है।

हमारे धर्म ग्रंथ की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने देवताओं और राक्षसों के द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत को रस चख लिया  था। यही कारण है कि कौए की कभी भी स्वाभाविक मृत्यु नहीं  होती है। यह पक्षी कभी किसी बीमारी अथवा अपने वृद्धा अवस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। . इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से होती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कौओं को देवपुत्र माना जाता है। व्य​क्ति जब शरीर का त्याग करता है और उसके प्राण निकल जाते हैं तो वह सबसे पहले कौआ का जन्म पाता है। माना जाता है कि कौआ का किया गया भोजन पितरों को ही प्राप्त होता है।

यह बहुत ही रोचक है कि जिस दिन कौए की मृत्यु होती है, उस दिन उसका साथी भोजन ग्रहण नहीं करता। कौआ कभी भी अकेले में भोजन ग्रहण नहीं करता। यह पक्षी किसी साथी के साथ मिलकर ही भोजन करता है।  कौए के बारे में पुराण में बताया गया है कि किसी भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास पूर्व ही हो जाता है। कौए को यमस्वरूप भी माना जाता है और न्याय के देवता शनिदेव का वाहन भी है।   

त्रेतायुग की एक घटना है। एक बार एक कौए ने माता सीता के पैर में चोंच मार दी। तब भगवान राम ने तिनके का बाण चलाया, जिससे उसकी एक आंख फूट गई। इस पर उसे अपने किए का पश्चाताप हुआ और उसने माफी मांगी। तब भगवान राम ने उसे आशीर्वाद दिया कि तुम को खिलाया गया भोजन पितरों को प्राप्त होगा। तब से पितृपक्ष में कौओं को भी श्राद्ध के भोजन का एक अंश दिया जाने लगा।

राम ने वरदान दिया कि पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोजन में  तुम्हें हिस्सा मिलेगा। तभी से यह परम्परा चली आ रही है कि  पितृ पक्ष में कौए को भी एक हिस्सा मिलता है।

सनातन धर्म की मान्यताओं के हिसाब से यूं तो हमारे देवी-देवताओं को किसी एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए साधन या वाहन की जरूरी नहीं होती है. फिर भी 33 कोटि देवी देवताओं ने खुद के लिए किसी न किसी पशु-पक्षी को वाहन बनाया है. जो उनके स्वभाव और संदेश को प्रकट करते हैं.

विष्णुजी गरुड़ की सवारी करते हैं, जबकि शिवजी नंदी बैल की. ब्रह्मा जी का वाहन हंस है तो देवराज इंद्र ऐरावत हाथी की सवारी करते हैं. इसी तरह दुर्गा माता के लिए बाघ की सवारी है तो लक्ष्मी मां ने वाहन के तौर पर उल्लू को चुना. इसके अलावा कई ऐेसे देवी देवता हैं जिनके वाहनों के बारे में प्राय: कम की वर्णन मिलता है.

विद्या की देवी मां सरस्वती सफेद हंस पर विराजती हैं. हंस में तमाम खूबियां हैं, जैसे वह एक ही हंसनी संग जीवन भर रहता है. कुबेर शिवजी के भक्त थे. उनकी कृपा से कुबेर के पास सोने की लंका और पुष्पक विमान होता था, जिसे रावण ने छीन लिया. मत्स्य पुराण के हिसाब से कुबेर की सवारी नर है. जो दर्शाता है कि मनुष्य को पैसे-समृद्धि अपने वश में रखती है.

गजानन गणेश ने चूहे को वाहन बनाया तो भैरवदेव ने कुत्ते को सवारी चुना. कहा जाता है कि कुत्ता पास रखने से मनुष्य आकस्मिक मृत्यु से बचा रहता है. काला कुत्ता भैरव रूप माना गया है.

अग्रिदेव का सनातन धर्म में जीवन से लेकर मरण तक महत्व है. उनका अस्त्र तलवार है तो उनकी सवारी भेड़. इसी तरह हाथी को कामदेव का वाहन माना जाता है. वैसे कुछ शास्त्रों में कामदेव को तोते पर बैठे हुए भी दिखाया जाता है. इसी तरह वायु के देवता पवन देव हिरण को वाहन के तौर पर उपयोग करते हैं. 

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