कांग्रेस केे सीएम पीसीसी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह क्‍यो चलाने लगते है

मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को गहरे संकट में डालने का असली ‘दोषी’ कौन है? ज्योतिरादित्य सिंधिया और फिर कांग्रेस विधायकों के धड़ाधड़ इस्तीफ़ों के बाद भोपाल से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक गलियारों में इसी ‘दोषी’ को ढूंढा जा रहा है। कांग्रेस विधायकों की बग़ावत के बाद कमलनाथ सरकार का जाना लगभग तय हो चुका है। यह सरकार कब और कैसे जायेगी? और मध्य प्रदेश के भविष्य को नये सिरे से संवारने का जिम्मा किसके हाथों में होगा? इन सवालों का जवाब दो-तीन दिन में मिल जायेगा पर कांग्रेस आलाकमान के सामने यक्ष प्रश्‍न आ खडा हुआ है कि कांग्रेस केे मुख्‍यमंत्री पीसीसी को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह क्‍यो चलाने लगते है, उत्‍तराखण्‍ड मे यही गलती हुई, अब मध्‍य प्रदेश में यही गलती कांग्रेस को ले डूबी । हिमालयायूके ब्‍यूरो रिपोर्ट

सिंधिया ने सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का वक्त मांगा। सोनिया ने वक्त नहीं दिया। अंततः युवा और ऊर्जावान करार दिये जाने वाले सिंधिया ने कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ने का निर्णय ले डाला। इधर, बीजेपी ने भी देर नहीं कि और वह कांग्रेस के ढहते किले के चमकीले ‘कंगूरे’ को अपने ‘घर में सजाने’ के लिये तैयार हो गई।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के साथ जो हुआ, उसके असली और पहले बड़े दोषी खुद कमलनाथ माने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के अध्यक्ष का पद कमलनाथ के पास था। चुनाव से पहले कमलनाथ ने पीसीसी को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाया। सरकार को भी वह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी चलाने वाले ‘ओनर’ की तरह ही चलाते रहे।  सरकार की मुसीबत का एक अहम कारण कमलनाथ के उस बयान को भी माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने सिंधिया से सड़क पर उतर जाने के लिये कहा था। सिंधिया ने किसानों और जनता से किये गये चुनावी वायदे पूरा न होने पर अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी थी। लेकिन सिंधिया के बयान को कांग्रेस आलाकमान ने गंभीरता से नहीं लिया और कमलनाथ ने सिंधिया को ‘ललकार’ भी दिया।

सिंधिया और उनके समर्थकों ने कई बार मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद मांगा। लेकिन कमलनाथ इसके लिए तैयार नहीं हुए। रही-सही कसर राज्यसभा के लिए होने वाले चुनावों की रणनीति बनाते वक्त कमलनाथ-दिग्विजय ने पूरी कर दी। दोनों नेताओं ने कुछ इस तरह की ‘व्यूह रचना’ रची कि सिंधिया राज्यसभा जाने वाले नेताओं की दौड़ से भी बाहर कर दिए गए।

बड़ा सवाल यही है कि बीजेपी की सरकार बनने पर सिंधिया समर्थक 19 विधायकों को बीजेपी कैसे एडजस्ट कर पायेगी? प्रश्न यह भी है कि जिन निर्वाचन क्षेत्रों से ये विधायक आते हैं, वहां बीजेपी के पुराने लोगों का टिकट कटने पर क्या विद्रोह नहीं होगा?

जिन विधायकों की वजह से सरकार और खुद सीएम का वजूद होता है, उन विधायकों को कमलनाथ बहुत गंभीरता से लेते नजर नहीं आये। विधायकों के लिए उनके पास ‘वक्त’ नहीं होता था। मिलते भी थे तो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के ‘मालिक और मुलाजिम’ वाले अंदाज में।

सिंधिया के बुधवार को बीजेपी में शामिल होने के बाद बदले में पार्टी उन्हें क्या देगी, यह 13 मार्च से पहले स्पष्ट हो जायेगा। मध्य प्रदेश में तीन राज्यसभा सीटों के लिए इसी महीने चुनाव होना है और नामांकन दाख़िल करने की आख़िरी तारीख़ 13 मार्च है। बीजेपी सिंधिया को राज्यसभा भेजेगी।  

दिग्विजय सिंह के बेहद कट्टर समर्थक और कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक बिसाहूलाल सिंह ने इस्तीफ़ा देने के बाद कहा कि कमलनाथ विधायकों को जमकर अपमानित करते हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्र की समस्याएं लेकर पहुंचने वाले कनिष्ठ से लेकर वरिष्ठ विधायकों और मंत्रियों को कमलनाथ लज्जित कर कमरे से निकाल देते हैं। कैबिनेट की बैठकों में भी कमलनाथ का मंत्रियों से सीधा ‘टकराव’ हुआ। सिंधिया समर्थक मंत्रियों ने नाथ से उन्हीं की ‘भाषा’ में बात की और जवाब देने से भी परहेज नहीं किया। इसकी ख़बरें मीडिया में छायी रहीं। लेकिन कुर्सी की खातिर कई मंत्री-विधायक खून का घूंट पीते रहे।

‘सम्मान’ न मिलने से नाखुश होकर कांग्रेस छोड़ने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बुधवार को बीजेपी में शामिल हो गये हैं। सिंधिया राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय में पार्टी में शामिल हुए। सिंधिया ने मंगलवार को कांग्रेस छोड़ दी थी और इसके बाद उनके समर्थक मंत्रियों और विधायकों ने भी पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था। बताया जा रहा है कि बीजेपी सिंधिया को राज्यसभा का टिकट देगी और केन्द्र में मंत्री भी बनायेगी। ख़बर यह भी आ रही है कि सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने से पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा नाराज हैं। 

चूंकि पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह एवं सिंधिया के बीच ‘सीधी बार्गेनिंग’ हुई है, लिहाजा मोदी-शाह पार्टी में सिंधिया की एंट्री संबंधी निर्देश अवश्य देंगे। ताज़ा सियासी संकट सिंधिया के लिए ही ‘फायदे का सौदा’ नहीं है बल्कि बीजेपी को भी इसका लाभ होगा। सिंधिया को लेकर बीजेपी में जो होगा सो होगा। मगर, सिंधिया समर्थक विधायक बीजेपी में आते हैं तो बीजेपी की अंदरूनी राजनीति जमकर गरमायेगी, यह बात तय मानी जा रही है। ख़बरें आ रही हैं ‘सौदेबाजी’ के तहत सुनिश्चित हुआ है कि मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने या चुनाव की स्थितियां पैदा होने पर हरेक सिंधिया समर्थक विधायक का बीजेपी ‘पूरा ख्याल’ रखेगी। ख़बर यह भी है कि बीजेपी की सरकार बनने पर सिंधिया कोटे से किसी को उपमुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया जनसंघ से बीजेपी के दौर तक पार्टी की वफादार रहीं हैं। बावजूद इसके बीजेपी का एक धड़ा उन्हें कुंठित और लज्जित करता रहा। अन्य दलों में भी कई ऐसे चमकीले नाम हैं जिन्हें मध्य प्रदेश में पन्द्रह सालों के बीजेपी के राज में पार्टी ज्वाइन कराने के बाद हाशिये पर डाल दिया गया। ये नेता बीजेपी में इस कदर साइड लाइन किये गये कि दोबारा उबर ही नहीं पाये और इनकी राजनीति लगभग ख़त्म हो गई। लेकिन क्या सिंधिया इससे बचकर बीजेपी में राजनीति कर पायेंगे, यह देखने वाली बात होगी।

मंगलवार को चले जोरदार सियासी ड्रामे के बाद कांग्रेस और बीजेपी अपने विधायकों को ख़रीद-फरोख़्त से ‘बचाने’ में जुट गये हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा कांग्रेस के 22 विधायक-मंत्रियों द्वारा इस्तीफ़ा देने के बाद कमलनाथ सरकार का सदन में बहुमत साबित कर पाना बेहद मुश्किल हो गया है। लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि उनकी सरकार बहुमत साबित करेगी और कार्यकाल भी पूरा करेगी।  

कर्नाटक में लंबे समय तक चले सियासी घटनाक्रम में कांग्रेस के संकटमोचक रहे डी.के. शिवकुमार ने दावा किया है कि वह बाग़ी विधायकों के संपर्क में हैं और बाग़ी विधायक जल्दी वापस लौटेंगे। उन्होंने दावा किया कि इस्तीफ़ा देने वाले कई विधायक पार्टी में वापस आने के लिये तैयार हैं। डी.के. शिवकुमार ने एनडीटीवी से कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस के 19 विधायक पुलिस की हिरासत में हैं। 

  22 विधायकों के इस्तीफ़े के बाद कांग्रेस के पास 92 विधायक रह गए हैं। मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। दो सीट अभी रिक्त हैं। 228 सीटों में से कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफ़े के बाद विधानसभा की सदस्य संख्या 206 रह गई है। ऐसे में बहुमत साबित करने के लिए 104 विधायकों की आवश्कता होगी। कांग्रेस को यदि समर्थक दलों और निर्दलीय विधायकों का साथ मिल भी जाता है तो भी उसकी नैया पार होनी नामुमकिन है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एनडीटीवी से कहा कि कमलनाथ इस्तीफ़ा नहीं देंगे और फ़्लोर टेस्ट का सामना करेंगे। सिंह ने दावा किया कि चारों निर्दलीय और बीएसपी विधायक कांग्रेस के साथ हैं। उन्होंने कुछ बाग़ी विधायकों के वापस आने की भी उम्मीद जताई।

फिलहाल, सबसे बड़ा सवाल यही है कि कमलनाथ सरकार की लुटिया किन कारणों से और किन लोगों की वजह से डूबी? 15 साल के सत्ता के वनवास के बाद बहुमत से दो सीटें कम (114 सीटें) जीतकर कमलनाथ की अगुवाई में दिसंबर, 2018 में बनी सरकार चार निर्दलीय विधायकों के अलावा बसपा के दो और सपा के एक विधायक की मदद से चल रही थी।

मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने कई मौक़ों पर सिंधिया को बेइज्जत करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। सिंधिया राजघराने से जमकर खार खाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी मौक़ा मिलने पर सिंधिया को कुंठित करते रहे। अनदेखी और हक़ के अनुसार तवज्जो ना मिलने से बुरी तरह आहत सिंधिया ने अनेक अवसरों पर खुलकर अपने ‘गुस्से’ का इजहार किया। लेकिन पार्टी नेतृत्व और कमलनाथ-दिग्विजय की जोड़ी सिंधिया को ‘अंडर-एस्टीमेट’ करती रही। सिंधिया कोटे से नाथ सरकार में मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया द्वारा हालिया राजनीतिक संकट (ऑपरेशन लोटस) के बीच दिये गये संकेतों को भी नाथ-दिग्विजय और आलाकमान ने ‘अनदेखा’ कर दिया। सिसोदिया ने खुलकर कहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को नजर अंदाज करना कांग्रेस को बेहद महंगा पड़ेगा। 

सिसोदिया की चेतावनी सिंधिया को राज्यसभा का टिकट न देने के बाद बनने वाली स्थितियों को लेकर थी। सिंधिया समर्थक चेताते रहे और उधर बग़ावत का झंडा उठाने वाले विधायकों को वापस लाकर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने समझ लिया कि बीजेपी के प्लान को उन्होंने फ़ेल कर दिया है। तब कमलनाथ ने मीडिया से कहा था, ‘आल इज वैल।’ लेकिन बीजेपी ‘पार्ट टू’ में जुट गई थी।  सोमवार को कांग्रेस की ‘रेंज’ से बाहर हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी और कमलनाथ सरकार को मंगलवार दोपहर को ‘जोर का झटका’ दे दिया। सिंधिया के बाद उनके समर्थक 19 विधायकों (इनमें छह नाथ सरकार में मंत्री थे) ने इस्तीफ़ा दे दिया। 

संकट का आभास होने पर दिग्विजय सिंह ने 2 मार्च को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि बीजेपी कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है। तब भी सिंधिया के तेवर साफ नजर आये थे लेकिन कमलनाथ और आलाकमान ने सिंधिया को विश्वास में लेने की कोशिश तक नहीं की।

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