CORONA; आध्यात्म से जीतता भारत & विज्ञान ही नहीं धर्म के नजरिए से भी है खास-हैरान रह जायेगे आप- पद्मश्री डॉ केके अग्रवाल का दावा

High Ligh# विज्ञानं नहीं आध्यात्म से जीतता भारत # 40 दिन का हुआ लॉकडाउन, विज्ञान ही नहीं धर्म के नजरिए से भी है खास # अब देश में कुल 40 दिन का लॉकडाउन किया जा रहा है.  इन 40 दिनों का धार्मिक महत्व भी है # कॉन्फेडेरेशन ऑफ मेडिकल एसोसिएशंस ऑफ एश‍िया एंड ओसिनिया (CMAAO) के प्रेसीडेंट और हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री डॉ केके अग्रवाल का दावा है कि 40 दिन के इस लॉकडाउन का संबंध न सिर्फ विज्ञान से है # सभी धर्मों से इस 40 दिन का कनेक्शन है # डॉ केके अग्रवाल सबसे पहले इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण बताते हैं. # डॉ नीलम महेंद्र लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार है का कहना है- विज्ञानं नहीं आध्यात्म से जीतता भारत # हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल एवंं दैैैैनिक समाचार पत्र की एक्‍सक्‍लूसिव रिपोर्ट- #Chandra Shekhar Joshi- Editor Mob. 9412932030, Publish at Dehradun & Haridwar.

40 दिन का हुआ लॉकडाउन, विज्ञान ही नहीं धर्म के नजरिए से भी है खास

पद्मश्री डॉ केके अग्रवाल का दावा है कि अब देश में कुल 40 दिन का लॉकडाउन किया जा रहा है.  इन 40 दिनों का धार्मिक महत्व भी है. वो इसके लिए सबसे पहले ईसाई धर्म का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ऐसा वर्णन है कि ईसा मसीह ने 40 दिन गहन तप के लिए रेगिस्तान में बिताए. ठीक वैसे ही बुद्ध ने जंगल में 40 दिन और रात उपवास किया. वो कहते हैं कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने भी 40 दिन तक एक गुफा में रहकर ऐसा उपवास किया था. ऐसा कई जगह बताया गया है. डॉ अग्रवाल का कहना है कि इन 40 दिनों का धार्मिक महत्व भी है. वो इसके लिए सबसे पहले ईसाई धर्म का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ऐसा वर्णन है कि ईसा मसीह ने 40 दिन गहन तप के लिए रेगिस्तान में बिताए. ठीक वैसे ही बुद्ध ने जंगल में 40 दिन और रात उपवास किया. वो कहते हैं कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने भी 40 दिन तक एक गुफा में रहकर ऐसा उपवास किया था. ऐसा कई जगह बताया गया है. हिंदू धर्म में 40 दिनों के उपवास को ‘मंडल काल’ कहा जाता है. काल का अर्थ है एक काल और मंडल काल का अर्थ है 40 दिनों का काल. वहीं सिंधी हिंदू समुदाय भगवान का धन्यवाद समारोह मनाता है जिसे चालीहा साहिब कहा जाता है, यह 40 दिनों तक रहता है. यही नहीं जोरास्ट्रियन लोगों के पास प्रार्थना का जवाब देने के लिए 40 दिनों का फॉर्मूला होता है. इसे 40 दिन के अनुष्ठान के रूप में जाना जाता है. वो बताते हैं कि गुरु नानक ने सिरसा के नहोरिया बाजार में एक सूफी संत के साथ 40 दिन बिताए. उन्होंने भीरा पाकिस्तान के पास टिल्ला जोगियन में एक चीला / चालीसा यानी 40 दिन भगवान की पूजा करने में बिताया. वहीं हनुमान चालीसा में 40 श्लोक हैं और हनुमानजी के भक्त इन 40 श्लोकों को 40 दिनों तक पढ़ते हैं. वहीं बहाई मान्यता वाले मुल्ला हुसैन ने कर्बला छोड़ने से पहले 40 दिन उपवास और प्रार्थना की थी.

“मानव ही मानव का दुश्मन बन जाएगा- विज्ञानं नहीं आध्यात्म से जीतता भारत

डॉ नीलम महेंद्र निम्‍नलिखित आलेख में लिखती है कि किसने सोचा था ऐसा दौर भी आएगा # जो धर्म मनुष्य को मानवता की राह दिखाता था # उसकी आड़ में ही मनुष्य को हैवान बनाया जाएगा # इंसानियत को शर्मशार करने खुद इन्सान ही आगे आएगा # किसने सोचा था कि वक्त इतना बदल जाएगा” # शक्तिकोई भी हो दिशाहीन हो जाएतो विनाशकारी ही होती है लेकिन यदि उसे सही दिशादी जाए तो सृजनकारी सिद्ध होती है। # शायद इसीलिए प्रधानमंत्री ने 5 अप्रैल को सभी देशवासियों से एकसाथ दीपक जलाने का आह्वन किया जिसे पूरे देशवासियों का भरपूर समर्थन भी मिला।। जो लोग कोरोना से भारत की लड़ाई में प्रधानमंत्री के इस कदम का वैज्ञानिक उत्तर खोजने में लगे हैं वे निराश हो सकते हैं क्योंकि विज्ञान के पास आज भी अनेक प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं।हाँ लेकिनसंभव है किदीपक की लौ से निकलने वाली ऊर्जा देश के 130 करोड़लोगों की ऊर्जा को एक सकारात्मक शक्ति का वो आध्यात्मिक बल प्रदान करेजोइस वैश्विक आपदा से निकलने में भारत को संबल दे। क्योंकि संकट के इस समय भारत जैसे अपार जनसंख्या लेकिन सीमित संसाधनों वाले देश की अगर कोई सबसे बड़ी शक्ति, सबसे बड़ा हथियार है जो कोरोना जैसी महामारी से लड़ सकता है तो वो है हमारी “एकता”। और इसी एकता के दम पर हम जीत भी रहे थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष दूत डॉ डेविड नाबरो ने भी अपने ताज़ा बयान में कहा कि भारत में लॉक डाउन को जल्दी लागू करना एक दूरदर्शी सोच थी,साथ ही यह सरकार का एक साहसिक फैसला था। इस फैसले से भारत को कोरोना वायरस के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ने का मौका मिला। लेकिन जब भारत में सबकुछ सही चल रहा था, जबइटली, ब्रिटेन, स्पेन, अमेरिका जैसे विकसित एवं समृद्ध वैश्विकशक्तियाँ कोरोना के आगे घुटने टेक चुकी थीं, जब विश्व की आर्थिक शक्तियाँअपने यहाँ कोविड 19 से होने वाली मौतों को रोकने में बेबस नज़र आ रही थीं, तब 130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्यालगभग 500 के आसपास थी और इस बीमारी के चलते मरने वालों की संख्या 20 से भीकम थी, तो अचानक तब्लीगी मरकज़ की लापरवाही सामने आती है जो केंद्र और राज्य सरकारों के निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाते हुए निज़ामुद्दीन की मस्जिद में 3500 से ज्यादा लोगों के साथ एक सामूहिक कार्यक्रम का आयोजन करती है। 16 मार्च को दिल्ली के मुख्यमंत्री 50 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगाते हैं, 22 मार्च को प्रधानमंत्री जनता कर्फ्यू की अपील करते हुए कोरोना की रोकथाम के लिए सोशल डिस्टनसिंग का महत्व बताते हैं लेकिन मार्च के आखरी सप्ताह तक इस मस्जिद में 2500 से भी ज्यादा लोग सरकारी आदेशों का मख़ौल उड़ाते इकट्ठा रहते हुए पाए जाते हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार मस्जिद को खाली कराने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को सामने आना पड़ा था क्योंकि ये स्थानीय प्रशासन की नहीं सुन रहे थे। पूरे देश के लिए यह दृश्य दुर्भाग्यजनक था जब सरकार और प्रशासन इनके आगे बेबस नज़र आया। और अब जब इन लोगों की जांच की जा रही है तो अबतक इनमें से 300 से अधिक कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं और बाकी में से कितने संक्रमित होंगे उनकी तलाश जारी है। जो खबरें सामने आ रही हैं वो केवल निराशाजनक ही नहीं शर्मनाक भी हैं क्योंकि इस मकरज़ की वजह से इस महामारी ने हमारे देश के कश्मीर से लेकरअंडमान तक अपने पैर पसार लिए हैं। देश में कोविड 19 का आंकड़ा अब चार दिन के भीतर ही 3000 को पार कर चुका है, 75 लोगों की इस बीमारी के चलते जान जा चुकी है और इस तब्लीगी जमात की मरकज़ से निकलने वाले लोगों के जरिए देश के 17 राज्यों में कोरोना महामारी अपनी दस्तक दे चुकी है। देश में पहली बार एक ही दिन में कोरोना के 600 से ऊपर नए मामले दर्ज किए गए। बात केवल इतनी ही होती तो उसे अज्ञानता नादानी या लापरवाही कहा जा सकता था लेकिन जब इलाज करने वाले डॉक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ और पुलिसकर्मियों पर पत्थरों से हमला किया जाता है या फिर उन पर थूका जाता है जबकि यह पता हो कि यह बीमारी इसी के जरिए फैलती है या फिर महिला डॉक्टरों और नरसों के साथ अश्लील हरकतें करने की खबरें सामने आती हैं तो प्रश्न केवल इरादों का नहीं रह जाता। ऐसे आचरण से सवाल उठते हैं सोच पर, परवरिश पर, नैतिकता पर, सामाजिक मूल्यों पर, मानवीय संवेदनाओं पर। किंतु इन सवालों से पहले सवाल तो ऐसे पशुवत आचरणकरने वाले लोगों केइंसान होने पर हीलगता है। क्योंकि आइसोलेशन वार्ड में इनकी गुंडागर्दी करती हुई तस्वीरें कैद होती हैं तो कहीं फलों, सब्ज़ियों और नोटों पर इनके थूक लगाते हुए वीडियो वायरल होते हैं। ये कैसा व्यवहार है? ये कौन सी सोच है? ये कौन से लोग हैं जो किसी अनुशासन को नहीं मानना चाहते? ये किसी नियम किसी कानून किसी सरकारी आदेश को नहीं मानते। अगर मानते हैं तो फतवे मानते हैं। जो लोग कुछ समय पहले तक संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे वो आज संविधान की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। पूरा देश लॉक डाउन का पालन करता है लेकिन इनसे सोशल डिस्टनसिंग की उम्मीद करते ही पत्थरबाजी और गुंडागर्दी हो जाती है। लेकिन ऐसा खेदजनक व्यवहार करते वक्त ये लोग भूल जाते हैं कि इन हरक़तों से ये अगर किसी को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं तो खुद को औरअपनी पहचान को। चंद मुट्ठी भर लोगों की वजह से पूरी कौम बदनाम हो जाती है।कुछ जाहिल लोग पूरी जमात को जिल्लत का एहसास करा देते हैं। लेकिन समझनेवाली बात यह है कि असली गुनहगार वो मौलवी और मौलाना होते हैं जो इन लोगोंको ऐसी हरकतें करने के लिए उकसाते हैं।  तब्लीगी जमात के मौलाना साद का वो वीडियो पूरे देश ने सुना जिसमें वो  तब्लीगी जमात के लोगों को कोरोना महामारी के विषय में अपना विशेष ज्ञान बाँट रहे थे। दरअसल किसी समुदाय विशेष के ऐसे ठेकेदार अपने राजनैतिक हित साधने के लिए लोगों का फायदा उठाते हैं। काश ये लोग समझ पाते कि इनके कंधो पर देश की नहीं तो कम से कम अपनी कौम की तो जिम्मेदारी है। कम पढ़े लिखेलोगों की अज्ञानता का फायदा उठाकर उनको ऐसी हरकतों के लिए उकसा कर ये देश का नुकसान तो बाद में करते हैं पहले अपनी कौम और अपनी पहचान का करते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि आज मोबाइल फोन और सोशल मीडिया का जमाना है और जमाना बदल रहा है। सच्चाई वीडियो सहित बेनकाब हो जाती है। शायद इसलिए उसी समुदाय के लोग खुद को तब्लीगी जमात से अलग करने और उनकी हरकतों पर लानत देने वालों में सबसे आगे थे। सरकारें भी ठोस कदम उठा रही हैं। यही आवश्यक भी है कि ऐसे लोगों का उन्हीं की कौम में सामाजिक बहिष्कार हो साथही उनपर कानूनी शिकंजा कसे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनावृत्तिरुके। इन घटनाओं पर सख्ती से तुरंत अंकुश लगना बेहद जरूरी है क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में हमने देखा कि तब्लीगी जमात की सरकारी आदेशों की नाफरमानी से कैसे हम एक जीतती हुई लड़ाई हारने की कगार पर पहुचं गए। लेकिन ये अंतनहीं मध्यांतर है क्योंकिये वो भारत है जहाँ की सनातनसंस्कृतिनिराशा के अन्धकार को विश्वास के प्रकाश से ओझल कर देती है। आखिरअँधेरा कैसा भी हो एक छोटा सा दीपक उसे हरा देता है तो भारत में तो उम्मीद की सवा सौ करोड़ किरणें मौजूद हैं। डॉ नीलम महेंद्र (लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार है)

वही दूसरी ओर पद्मश्री डॉ केके अग्रवाल का दावा है कि 40 दिन के इस लॉकडाउन का संबंध न सिर्फ विज्ञान से है, बल्कि सभी धर्मों से इस 40 दिन का कनेक्शन है,

कॉन्फेडेरेशन ऑफ मेडिकल एसोसिएशंस ऑफ एश‍िया एंड ओसिनिया (CMAAO) के प्रेसीडेंट और हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री डॉ केके अग्रवाल का दावा है कि 40 दिन के इस लॉकडाउन का संबंध न सिर्फ विज्ञान से है, बल्कि सभी धर्मों से इस 40 दिन का कनेक्शन है, डॉ केके अग्रवाल सबसे पहले इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण बताते हैं. उनका कहना है कि क्वारनटीन शब्द विनीश‍ियन भाषा के क्वेरेंटेना से लिया गया है. क्वेरेंटेना का अर्थ होता है 40 दिन. इस अवध‍ि का मेडिकल जगत में भी महत्व है जो इस प्रकार है. वो बताते हैं कि ब्लैक डेथ प्लेग महामारी के दौरान यात्र‍ियों में संक्रमण को रोकने के लिहाज से सभी जहाजों को अलग अलग करने के लिए पहली बार ट्रेंटिनो यानी तीस-दिन का आइसोलेशन लागू किया गया था. फिर पहली बार 1377 में रागुसा गणराज्य, डालमिया (क्रोएशिया में आधुनिक डबरोवनिक) में इसे लगाया गया. क्वारनटीन मेडिकल आइसोलेशन से एकदम अलग है. क्वारनटीन की सलाह उन लोगों को दी जाती है जिनमें संक्रमण की आशंका है. उन्हें हेल्दी लोगों से अलग रहने की सलाह दी जाती है. क्वारनटीन को कॉर्डन सेनिटेयर से जोड़कर भी देखा जाता है जिसके तहत किसी संक्रम‍ित व्यक्त‍ि को एक तय भौगोलिक एरिया से बाहर जाने में रोक लगा दी जाती है. ताकि लोगों को संक्रमण से बचाया जा सके. डॉ अग्रवाल का कहना है कि इन 40 दिनों का धार्मिक महत्व भी है. वो इसके लिए सबसे पहले ईसाई धर्म का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ऐसा वर्णन है कि ईसा मसीह ने 40 दिन गहन तप के लिए रेगिस्तान में बिताए. ठीक वैसे ही बुद्ध ने जंगल में 40 दिन और रात उपवास किया. वो कहते हैं कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने भी 40 दिन तक एक गुफा में रहकर ऐसा उपवास किया था. ऐसा कई जगह बताया गया है.

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